कुरुक्षेत्र/करनाल: कुछ लोगों को 50 वर्षीय फूलकली के जीवन में आया खुशनुमा बदलाव साफ नज़र आ सकता है.
अपने दो कमरों वाले घर से महज कुछ ही गज़ की दूरी पर स्थित अपने छोटे से खेत में काम कर रही हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के बल्लही गांव की निवासी एकदम खुश है. अब से पहले करीब दो दशक तक फूलकली अपने परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नजदीकी सप्लाई प्वाइंट से बाल्टियां भरकर पानी लाती थी, जो कि उसके घर से 400 मीटर दूरी पर है.
भले ही यह दूरी बहुत ज्यादा न रही हो लेकिन दो बच्चों की मां फूलकली कहती है कि केंद्र के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नल से जल ’ के तहत प्रशासन द्वारा उसके घर तक जलापूर्ति उपलब्ध कराए जाने से तीन महीने के अंदर उसके जीवन में कितना बदलाव आ गया है इस बात को केवल वही समझ सकता है जो पिछले दो दशकों से लगातार हर दिन दो बार पानी की बाल्टियां भरकर ला रहा हो.
फूलकली ने दिप्रिंट से कहा, ‘बाल्टी छूट गई. आप नहीं जानते कि यह कितनी बड़ी नियामत है. हर एक दिन, चाहे बारिश हो या फिर सर्दी मुझे पानी लाने के लिए बाहर जाना ही पड़ता था.’
फूलकली का घर बल्लही गांव के उन आखिरी 35 घरों में शामिल है जिन्हें हाल ही में पीने के पानी का कनेक्शन मिला है. इसके साथ ही कुरुक्षेत्र इन पांच में से एक ऐसा जिला बन गया है जहां सभी 1.39 लाख ग्रामीण परिवारों को अब तक पानी का कनेक्शन मिल चुका है.
कुरुक्षेत्र के बेहोली गांव की रहने वाली 50 वर्षीय कश्मीरो देवी भी अपने दरवाजे पर ही पानी का कनेक्शन पाने वाली एक लाभार्थी हैं.
अपने घर, जिसकी मरम्मत का काम चल रहा है, के बाहर चारपाई पर बैठी कश्मीरो देवी कहती हैं कि उन्हें तो उस समय अपनी किस्मत पर भरोसा ही नहीं हो पा रहा था जब तीन महीने पहले राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग (पीएचडी) के अधिकारी उनके आंगन में पानी का कनेक्शन लगाने के लिए आए थे.
कश्मीरो देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा पांच लोगों का परिवार है. हर दिन मैं या मेरी सास सड़क पार करके पानी लेने जाते थे और दर्जनों बाल्टी पानी भरकर लाते थे. मेरे पति एक खेत मजदूर हैं और सुबह जल्दी ही घर से निकल जाते थे. यह मेरे और मेरी बूढ़ी सास के लिए पीड़ादायक काम था लेकिन हमारे पास कोई और चारा भी नहीं था.’
यह बदलाव वो कहानी है जो हरियाणा के अंबाला, रोहतक, करनाल और पंचकूला जिलों में भी दोहराई जा रही है. ये क्षेत्र देश के उन 52 जिलों में शामिल हैं जिनमें मोदी सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नल से जल ’ के तहत 100 प्रतिशत पानी के कनेक्शन मुहैया कराए जाने हैं.
नल से जल कार्यक्रम अगस्त 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में एक बड़े सार्वजनिक ढांचागत कार्यक्रम के तौर पर लॉन्च किया गया था, जिसका लक्ष्य 2024 तक हर ग्रामीण परिवार को पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना है.
यह 2019 की निर्धारित समयसीमा से पहले भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने और उज्ज्वला योजना के तहत आठ करोड़ एलपीजी कनेक्शन वितरित किए जाने की ही तर्ज पर एक हाईप्रोफाइल कल्याणकारी योजना है.
नल से जल पर 3.6 लाख करोड़ रुपये का व्यापक खर्च आना है, जिसमें से केंद्र सरकार 2.08 लाख करोड़ रुपये मुहैया करा रही है और बाकी का योगदान राज्यों की तरफ से आ रहा है.
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सबसे बड़ी चुनौती
दक्षिणी हरियाणा के मेवात और रेवाड़ी जैसे जिलों, जहां पानी की जबर्दस्त कमी है, के विपरीत अंबाला, पंचकूला, कुरुक्षेत्र या इससे सटे करनाल जिले के ग्रामीण इलाकों में हर घर तक पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना पीएचडी अधिकारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती नहीं थी क्योंकि इन जिलों में पहले से ही बड़े पैमाने पर पाइप नेटवर्क है.
मौजूदा समय में राज्य के 31 लाख ग्रामीण परिवारों में से 26.39 लाख यानी करीब 85 प्रतिशत के पास पानी का कनेक्शन है. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें से 17.66 लाख परिवारों के पास अगस्त 2019 में नल से जल कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही पानी का कनेक्शन था.
उदाहरण के तौर पर कुरुक्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 80 प्रतिशत घरों में पहले से ही पानी का कनेक्शन था.
पीएचडी के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि दक्षिण हरियाणा के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो शायद ही किसी जिले में पानी की कोई खास कमी है. उन्होंने कहा कि अधिकांश जिलों में जलापूर्ति नेटवर्क काफी हद तक ठीकठाक ही काम कर रहा है.
अधिकारियों ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती थी कि बड़ी संख्या में अवैध कनेक्शनों को नियमित करना और जंग लग चुकी पाइपलाइनों को बदलना जो लगभग दो दशक पहले बिछाई गई थीं.
कई गांवों में तो लोगों ने खुद ही पाइप लगवा लिए थे और आस-पास के क्षेत्र के नियमित कनेक्शन या सबमर्सिबल पंप से पानी खींच रहे थे.
जमीनी स्तर के कार्यक्रम की निगरानी कर रहे कुरुक्षेत्र पीएचडी के कार्यकारी अभियंता अरविंद रोहिल्ला ने कहा, ‘चूंकि कनेक्शन अवैध थे, उन्हें बिल नहीं दिए जा रहे थे और नतीजतन राजस्व का नुकसान हो रहा था. और लोग भी पानी के लिए भुगतान करने के आदी नहीं थे.’
रोहिल्ला ने कहा कि पीएचडी की तरफ से पिछले एक साल के दौरान ग्रामीण कुरुक्षेत्र के 1.39 लाख घरों में से 70,958 घरों में पानी के कनेक्शन को नियमित करके उन्हें बिलिंग नेटवर्क के तहत लाया गया है.
रोहिल्ला ने आगे कहा, ‘ये लोग पानी ले रहे थे लेकिन बिल नहीं भर रहे थे. हमारी सबसे बड़ी चुनौती उन्हें भुगतान के लिए राजी करना था. अधिकांश लोग अनसुनी कर रहे थे. अब धीरे-धीरे बदलाव नज़र आने लगा है. यह नल से जल कार्यक्रम के तहत सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. हमारा राजस्व संग्रह भी इससे बढ़ेगा.’
हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में राज्य सरकार ने पानी के लिए शुल्क निर्धारित कर रखा है— सामान्य घरों के लिए प्रति माह 40 रुपये और दलित परिवारों के लिए 20 रुपये प्रति माह.
अभी भी कुछ लोग अनमने हैं लेकिन हरियाणा में ग्रामीण इस तथ्य को समझ रहे हैं कि अब उन्हें पानी का उपभोग करने पर उसके लिए भुगतान करना होगा.
करनाल के रुगसाना गांव की सरपंच 36 वर्षीय आला सिंह ने कहा, ‘ग्रामीण पानी का इस्तेमाल काफी सोच-समझकर करेंगे. पहले बहुत ज्यादा बर्बादी होती थी. एक बार भुगतान करना शुरू करने पर पानी की गुणवत्ता खराब होने या पूरा फ्लो न होने पर अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सकते हैं.’
इस गांव में पानी के 43 नए कनेक्शन दिए गए हैं, जबकि तमाम पुरानी पाइपलाइनों को बदला गया है.
पीएचडी की तरफ से अवैध कनेक्शनों को नियमित करने के अलावा दशकों पुरानी पाइपलाइनों को भी बदला जा रहा है, जो तमाम जगह एकदम जंग लगी हुई हैं और एकदम बदहाल स्थिति में हैं.
कुरुक्षेत्र और कैथल के प्रभारी पीएचडी के सुपरिटेंडेट इंजीनियर अशोक खंडूजा ने कहा, ‘कई गांवों में पाइपलाइनें कम से कम 30 साल पहले बिछाई गई थीं और उनमें जंग लग चुकी है. कई जगहों पर लीकेज भी हुई है. हमने ज्यादातर पुरानी पाइपलाइनों को बदल दिया है और इन्हें नए सिरे से बिछाया है.’
अगला काम- पानी समितियों को सक्रिय करना
अब जबकि तीन जिलों में सौ फीसदी पानी के कनेक्शन हो गए हैं, राज्य सरकार के अधिकारियों का अगला कार्य जलापूर्ति का बुनियादी ढांचा तैयार करना और उसका रखरखाव सुनिश्चित करना है. और इस काम में मदद के लिए नवगठित पानी समितियों (ग्रामीण जल और स्वच्छता समितियां) को लगाया जाएगा.
हर गांव में पानी समिति आमतौर पर सरपंचों के नेतृत्व में होती है और इसमें महिलाओं का 50 प्रतिशत और एससी/एसटी समुदाय का 25 प्रतिशत प्रतिनिधित्व होता है.
पानी समितियां न केवल यह तय करेंगी कि संबंधित गांव के लिए कैसा बुनियादी ढांचा जरूरी है बल्कि बाद के चरण में वे नल से जल की आपूर्ति पर लोगों से लिए जाने वाले शुल्क को भी निर्धारित करेंगी.
नल से जल कार्यक्रम के क्रियान्वयन से जुड़े केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘पानी समितियों को उनके कामकाज के बारे में बताया जा रहा है. वे इस पूरी प्रक्रिया का एक बड़ा अहम हिस्सा हैं और न केवल यह तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगी कि संबंधित गांव में जलापूर्ति का बुनियादी ढांचा कैसा हो बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगी कि उसका सही तरह से रखरखाव होता रहे.’
अंतत: पीएचडी जलापूर्ति के बुनियादी ढांचे के संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी पानी समितियों को सौंप देगा.
खंडूजा ने कहा, ‘निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को शामिल करने और उन्हें अपने संसाधनों का प्रबंधन खुद करने देने में मदद करने का विचार है. इसके बाद के चरण में पानी समितियों के पास बिल बनाने की जिम्मेदारी होगी. वे पानी की आपूर्ति से मिलने वाले राजस्व का हिसाब-किताब रखेंगी और इसे पाइपलाइनों के रखरखाव के लिए इस्तेमाल करेंगी.’
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