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Saturday, 20 April, 2024
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दक्षिण छत्तीसगढ़ को छोड़ राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में अपना विस्तार क्यों कर रहे हैं माओवादी

पुलिस और राज्य गृह विभाग के अधिकारियों की मानें तो बस्तर क्षेत्र में मौजूद नक्सली अपने कोर एरिया से निकलकर छोटी टुकड़ियों में राजनांदगांव और कवर्धा सहित मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बॉर्डर क्षेत्रों में स्थापित होना चाहते हैं.

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रायपुर: दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षाबालों के बढ़ते दबाव की वजह से राज्य के महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से लगने वाली पश्चिमी सीमा विशेषकर राजनांदगांव और उसके आसपास के जिलों में नक्सलियों की आवाजाही तेज हो गई है. राज्य के अधिकारियों के अनुसार नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियों को देखकर स्थानीय पुलिस के साथ ही जनप्रतिनिधियों को भी सतर्क रहने को कहा गया है.

पुलिस और राज्य गृह विभाग के अधिकारियों की मानें तो बस्तर क्षेत्र में मौजूद नक्सली अपने वर्तमान कोर एरिया से निकलकर छोटी टुकड़ियों में राजनांदगांव और कवर्धा सहित इन जिलों से लगने वाले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बॉर्डर क्षेत्रों (एमएमसी) में स्थापित होना चाहते हैं.

इसी कड़ी में नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में पिछले कुछ दिनों के अंतराल में तीन लोगों को जान से मार  दिया जिसके बाद पुलिस ने स्थानीय लोगों विशेषकर जनप्रतिनिधियों के लिए एडवाइजरी जारी की है.

पुलिस द्वारा जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्यों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीण आदिवासियों की मुखबिरी के नाम पर हत्या की है.

एडवाइजरी में जनप्रतिनिधियों को दूरस्थ और अंदरूनी क्षेत्रों में जाने से मना करते हुए कहा गया है कि नक्सली आने वाले दिनों में हत्या जैसी और अप्रिय घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं.

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दिप्रिंट से बात करते हुए राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक डी श्रवण ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में नक्सलियों ने करीब चार लोगों की मुखबिर बताकर हत्या की है.

उन्होंने बताया, ‘तीनों मृतक किसी न किसी जनप्रतिनिधि के करीबी थे जबकि चौथी हत्या बुधवार को डोंगरगढ़ क्षेत्र के खुर्सीपार गांव में एक वन सुरक्षा समिति के चौकीदार की हुई है.’

श्रवण के अनुसार, ‘बीते कुछ दिनों में प्रदेश के राजनांदगांव और कवर्धा जिलों के साथ-साथ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से लगने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में नक्सलियों के मूवमेंट्स बढ़े हैं. वर्तमान में इनकी संख्या 50-60 के करीब हो सकती है.’

‘यहां नक्सली तीनों राज्यों के ट्राइजंक्शन जिसे वो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ (एमएमसी) जोन के रूप में प्रचारित करते हैं, का फायदा उठाना चाहते हैं. इस क्षेत्र को माओवादी बस्तर के विकल्प के रूप में विकसित करना चाहते हैं लेकिन पुलिस और सुरक्षाबल भी उनका सामना करने के लिए पूरी तरह से मुस्तैद हैं. अब तक उनकी सभी कोशिशें नाकाम रही है.’

राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक की बात की पुष्टि गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर की है.

इस अधिकारी ने कहा, ‘खुफिया विभाग से मिली रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ दिनों से राज्य के पश्चिमी क्षेत्रों में नक्सलियों का मूवमेंट बढ़ा है. राजनांदगांव के अलावा खुर्सीपार, डोंगरगढ़ के ग्रामीणों ने भी पुलिस अधिकारियों को बाहरी लोगों के बढ़ते मूवमेंट्स की शिकायत की है. बस्तर में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव के चलते ही वहां से कुछ माओवादी इस ट्राइजंक्शन में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं.’

अपर मुख्य सचिव गृह सुब्रत साहू ने दिप्रिंट से कहा, ‘इंटरस्टेट बॉर्डर क्षेत्र होने के कारण माओवादियों ने पश्चिम छत्तीसगढ़ को अपने विस्तार कार्यक्रम में शामिल किया है. अपने इस एजेंडा पर वे कुछ सालों से काम कर रहे हैं लेकिन उनको किसी प्रकार की सफलता मिल नहीं पाई है. सुरक्षा बल वहां हर प्रकार की चुनौती के लिए तैयार हैं. माओवादियों को आगे बढ़ने नहीं दिया जाएगा. वहां की जनता से भी उनको कोई मदद नहीं मिल रही है.’


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राज्य के पश्चिम और मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में विस्तार की नीति

करीब 18 साल तक माओवादियों के साथ रहने के बाद 2018 में आत्मसमर्पण करने वाले पहाड़ सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि छत्तीसगढ़ के पश्चिमी भाग से लगने वाले मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, अमरकंटक से महाराष्ट्र के गोंदिया और आसपास के वनों में उनके विस्तार की नीति करीब पांच साल पहले बन गई थी.

सिंह ने बताया, ‘बस्तर में सुरक्षाबलों की बढ़ती संख्या के दबाव का माओवादी नेताओं को पूरा एहसास है. वर्ष 2014 की एक बैठक में, जिसका मैं साक्षी हूं, नक्सली नेताओं ने यह माना था कि सुरक्षाबलों की बढ़ती संख्या से भविष्य में उनको भारी नुकसान होगा. इससे बचने के लिए नई रणनीति के तहत बड़ी टुकड़ियों की बजाय छोटी टुकड़ियों के विस्तार की योजना बनाई गई थी. इसी योजना के अंतर्गत राज्य के पश्चिमी भाग और उससे लगने वाले मध्य प्रदेश के अमरकंटक को बेस बनाकर कान्हा नेशनल पार्क सहित अन्य जिलों के जंगल और बीहड़ों में वे वर्चस्व कायम करना चाहते हैं.’

एमएमसी जोन में सीपीआई (माओवादी) की गोंदिया, राजनांदगांव, बालाघाट (जीआरबी) डिवीज़न के हेड रह चुके पहाड़ सिंह ने आगे बताया, ‘हालांकि उनका विस्तार कार्यक्रम अबतक उनके अनुरूप सफल नहीं हो पाया है लेकिन बस्तर में सुरक्षाबलों के दबाव के चलते ही माओवादियों के केंद्रीय नेतृत्व ने दंडकारण्य जोनल कमेटी बस्तर से अलग एमएमसी जोन का गठन किया और विस्तार की नई रणनीति बनाई.


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मुख्यमंत्री ने भी माओवादियों के पलायन की जताई आशंका

कुछ दिन पहले दिप्रिंट से बात करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद आशंका जताई थी कि बस्तर में माओवादियों के कोर एरिया में केंद्रीय सुरक्षाबलों और राज्य पुलिस के बढ़ते कैंपों के कारण नक्सली राज्य के पश्चिमी क्षेत्रों की तरफ शिफ्ट कर सकते हैं.

मुख्यमंत्री ने कहा था, ‘बस्तर में सुरक्षाबलों विशेषकर राज्य पुलिस और सीआरपीएफ द्वारा कैंपों की संख्या बढ़ाई जा रही है. यही कारण है कि नक्सली कमजोर पड़ रहें हैं और उनको कैडर भर्ती के लिए स्थानीय युवा भी अपेक्षाकृत कम मिल रहे हैं. सुरक्षाबलों के दबाव से नक्सली राजनांदगांव, कवर्धा सहित राज्य के पश्चिमी भागों में पलायन कर सकते हैं. लेकिन सरकार भी इन बातों को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है.’

बता कि दें राज्य के नक्सल पीड़ित क्षेत्र बस्तर में केंद्रीय सुरक्षाबाल सीआरपीएफ की करीब 36 कंपनियां माओवादियों के कोर क्षेत्र सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों में तैनात की जा रही हैं. इसके अलावा राज्य पुलिस के भी करीब 7-10 कैंप खोलने की तैयारी चल रही है.

पुलिस के आला अधिकारियों के अनुसार आने वाले दिनों में नक्सलियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में सीआरपीएफ और पुलिस के कैंप हर पांच किलोमीटर की दूरी पर खोलने की तैयारी है.


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