नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) की ओर से दाख़िल की गई एक स्टेटस रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली में हवा की ख़राब क्वालिटी के मद्देनज़र वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की ओर से जारी निर्देशों और आदेशों का राज्यों ने मुश्किल से ही अनुपालन किया है.
बृहस्पतिवार को शीर्ष अदालत को दिए गए एक हलफनामे में, मंत्रालय ने वो आदेश गिनाए जो सीएक्यूएम ने जनवरी 2021 के बाद से जारी किए हैं, और बताया कि कैसे पांच राज्यों/केंद्र-शासित क्षेत्रों- दिल्ली (यूटी), हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब- ने अलग अलग श्रेणी में उनका अनुपालन किया है.
आंकड़ों से पता चलता है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने उस दिशा में कुछ नहीं किया, जिससे सुनिश्चित हो पाता कि उनके सूबों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में स्थित उद्योग अधिक स्वच्छ ईंधन पर स्विच कर लें.
राजस्थान अकेला प्रांत है जिसने प्रदूषण फैला रहे उन जेनरेटर्स सेट्स को सील करने के सीएक्यूएम आदेश का पालन किया है, जो एनसीआर के क्षेत्रों में चलते पाए गए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि धूल नियंत्रण के उपायों में दिल्ली ने एयर क्वालिटी कमीशन के सुझाए क़दमों का आंशिक रूप से पालन किया है, लेकिन UP, हरियाणा और राजस्थान को ‘ख़राब अनुपालन’ की श्रेणी में रखा गया है.
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उछाल का प्रमुख स्रोत
दिल्ली के वायु प्रदूषण में उछाल के पीछे सीएक्यूएम ने औद्योगिक प्रदूषण को एक प्रमुख स्रोत बताया है.
रिपोर्ट में कहा गया कि उसी के अनुसार 12 अगस्त को सीएक्यूएम ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को निर्देश जारी किए थे कि एनसीआर में स्थित औद्योगिक इकाइयों को, पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस) जैसे अधिक स्वच्छ ईंधन पर स्विच कराएं.
दिल्ली अकेला राज्य है जहां अधिकांश औद्योगिक इकाइयां- 1636 में से 1635- स्वच्छ ईंधन पर स्विच कर चुकी हैं.
हरियाणा में, एनसीआर स्थित केवल 399 औद्योगिक इकाइयों ने स्वच्छ ईंधन को अपनाया है, जबकि सीएक्यूएम के अनुसार 1,480 इकाइयों को ऐसा करने की ज़रूरत थी.
उत्तर प्रदेश में भी एनसीआर स्थित केवल पचास प्रतिशत फैक्ट्रियां ही-2,273 में से 1,160- परिवर्तन करके स्वच्छ ईंधन को अपना सकी हैं. राजस्थान में, 525 में से 191 इकाइयों ने ही सीएक्यूएम दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया है.
स्टेटस रिपोर्ट में कमीशन ने कहा है, कि जहां राजस्थान ने सीएक्यूएम निर्देश की अनुपालना के लिए एक एक्शन प्लान दिया है, वहीं उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने ऐसी कोई टाइमलाइन मुहैया नहीं कराई है.
उसने ये भी कहा है कि राज्यों से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने ऐसे उद्योगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की है, जिन्होंने निर्देशों का पालन नहीं किया है.
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‘बंद क्यों नहीं किया?’
हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ग़लती ये थी कि पीएनजी के आसानी से उपलब्ध होने के बाद भी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन पर चल रहीं औद्योगिक इकाइयों को बंद नहीं किया गया.
हरियाणा में ऐसी 220 इकाइयां बंद की जानीं थीं. जबकि उत्तर प्रदेश में ये संख्या 439 थी. लेकिन, कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सूचित किया कि कोई भी इकाई बंद नहीं हुई है.
ये भी पाया गया कि राज्यों ने, उत्सर्जन नियंत्रण नियमों का उल्लंघन कर रहीं इकाइयों को बंद करने के बारे में दिए गए निर्देशों का भी पालन नहीं किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली ने ऐसी केवल पांच इकाइयों को बंद करने के आदेश दिए, जबकि 10 कंपनियां अनुपालन न करने की दोषी पाई गईं थीं.
इसी तरह, हरियाणा ने केवल तीन यूनिट्स को बंद करने का आदेश दिया, उत्सर्जन नियमों का पालन न करने वाली इकाइयों की संख्या 278 थी. यूपी में, 16 फैक्ट्रियां बंद की गईं जबकि प्रदूषण फैला कही इकाइयों की संख्या 122 थी और राजस्थान में ऐसी केवल एक यूनिट को बंद किया गया जबकि 14 इकाइयां नियमों का उल्लंघन करतीं पाई गईं थीं.
16 नवंबर को डीज़ल जेनरेटर्स का संचालन बंद करने के सीएक्यूएम निर्देश के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान अकेला राज्य है जिसने एनसीआर क्षेत्र में आने वाले सभी 101 डीज़ल जेनरेटर्स को सील कर दिया है.
कमीशन लिखता है कि जेनरेटर सेट्स को सील किए जाने को लेकर उसे दिल्ली, हरियाणा और यूपी से कोई सूचना नहीं मिली है. सीएक्यूएम की एक जांच टीम को दिल्ली में 19, हरियाणा में 110 और यूपी में 83 जेनरेटर सेट्स चलते हुए मिले.
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धूल नियंत्रण
हालांकि चार राज्यों- दिल्ली, यूपी, हरियाणा और राजस्थान ने क्रमश: 10 और 15 साल पुराने डीज़ल और पेट्रोल वाहनों को ज़ब्त किया, और वैध प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट के बिना वाहन चला रहे लोगों पर जुर्माना लगाया, लेकिन उन्होंने ई-वाहन या ज़ीरो-उत्सर्जन वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा नहीं दिया, जैसा कि फरवरी 2021 में जारी सीएक्यूएम एडवाइज़री के तहत आवश्यक था.
11 जून को जारी एक और सीएक्यूएम आदेश का – जिसमें धूल कम करने के उपायों की ऑनलाइन निगरानी के लिए, एक वेब पोर्टल विकसित किया जाना था- दिल्ली और यूपी ने पालन किया है. दो राज्यों में क्रमश: 491 और 205 निर्माण स्थलों की निगरानी की जा रही है. हरियाणा और राजस्थान ने अभी तक ये परियोजना शुरू नहीं की है.
फरवरी 2021 में, सीएक्यूएम ने राज्यों को दो एडवाइज़रियां जारी कीं, जिनमें उन्हें धूल प्रबंधन सेल बनाकर प्रदूषण से लड़ने के लिए कहा गया था. कोई जवाब प्राप्त न होने पर, कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट से अनुरोध किया है कि पांच राज्यों से, की गई कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट तलब की जाए.
पराली जलाना
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पराली जलाने को नियंत्रित करने के एक्शन प्लान का कार्यान्वयन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. सीएक्यूएम ने हरियाणा को ‘बहुत ख़राब’, पंजाब को ‘ख़राब’ और यूपी को ‘असंतोषजनक’ रेटिंग दी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल हरियाणा में, पराली जलाने की घटनाओं में 60 प्रतिशत से अधिका इज़ाफा हुआ है, जबकि पंजाब में इसमें गिरावट देखी गई.
हालांकि पंजाब में पराली जलाने की गिनती 2020 में 83,002 से घटकर, 2021 में 71,304 पर आ गई, लेकिन हरियाणा में इसमें 66.27 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ- पिछले साल की 4,202 से बढ़कर इस साल 6,987. यूपी में पराली जलाने की घटनाएं 407 से घटकर 252 पर आ गईं.
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