मुंबई: वह क्रीम कलर की साड़ी पहने एक मंच पर खड़ी थीं. पसीने से लथपथ उनका माथा सिन्दूर के टीके से सजा हुआ था. उनके बाल थोड़े बिखरे हुए थे, जिस पर कुछ मिनट पहले ही उन पर बरसाए गए पीले फूलों की पत्तियां थी. इसी सबके बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की राष्ट्रीय सचिव पंकजा मुंडे ने याद किया कि कैसे उनका राजनीतिक जीवन “तूफान और मुश्किलों” से भरा रहा है.
सोलापुर में समर्थकों की भीड़ को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक पंकजा मुंडे ने कहा, “जब से मुंडे साहब (उनके पिता, दिवंगत बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे) ने मुझे विधायक बनाया है, तब से मैं संघर्ष का सामना कर रही हूं. मैंने सारी सुख सुविधा छोड़ दी और इस भावना के साथ राजनीति में आई कि मेरे पिता मुझसे अलग हो गए हैं. मुंडे साहब के साथ काम करते-करते कब छोटी सी पंकजा इतना कुछ सीख गईं और बड़ी होकर आपकी ताई (बड़ी बहन) बन गईं, मुझे भी पता नहीं चला. इसका सारा श्रेय आप सबको जाता है.”
पंकजा अपनी शिव शक्ति परिक्रमा के दौरान समर्थकों की भीड़ को संबोधित कर रही थीं, जो महाराष्ट्र के शक्ति पीठों और ज्योतिर्लिंगों की आठ दिवसीय तीर्थयात्रा है, और इस सप्ताह के शुरू में संपन्न हुई थी.
पंकजा ने उस दौर का जिक्र किया है जब उनके पिता को कथित तौर पर पार्टी के भीतर अलग-थलग कर दिया गया था. कुछ ऐसी ही तकलीफ वह आजकल झेल रही हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि पूर्व विधायक के लिए, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें महाराष्ट्र बीजेपी के भीतर दरकिनार कर दिया गया था, सोमवार को संपन्न हुई शिव शक्ति परिक्रमा उनके समर्थन आधार को मजबूत करने और उनकी व्यक्तिगत राजनीतिक पूंजी बनाने का एक प्रयास था. यह इस समय अपने पिता की विरासत को मजबूती से थामे रखने का एक प्रयास है. इस समय उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे, जो उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी माने जाते हैं, पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की विरासत पर अपना दावा ठोकते हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता धनंजय मुंडे, जिन्होंने बीड जिले के परली विधानसभा क्षेत्र से 2019 के विधानसभा चुनावों में पंकजा को हराया था. वह इस साल जुलाई में अजीत पवार के नेतृत्व में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के खिलाफ विद्रोह करने वाले विधायकों में से एक थे. अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट ने महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ बीजेपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से हाथ मिला लिया और धनंजय अब राज्य के कैबिनेट मंत्री हैं.
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, “पंकजा की यात्रा मूलतः एक शक्ति प्रदर्शन थी.”
उन्होंने मुख्य रूप से उन जिलों को कवर किया जो महाराष्ट्र के चीनी के कटोरे के रूप में जाना जाता है. यहां से गोपीनाथ मुंडे को सबसे अधिक ताकत मिली थी. पंकजा मुंडे वास्तव में मुश्किल में हैं. वह हमेशा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी पार्टी से मोहभंग दिखाने की कोशिश करती रहती हैं. वह अपने पिता से जुड़े भावनात्मक मुद्दों को सामने लाकर इस बात पर जोर देती है कि वह गोपीनाथ मुंडे की बेटी है और यात्रा भी इसी मुद्दे के आस-पास घूमती है.
दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट संदेश के जरिए अपनी बात रखने के लिए पंकजा तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन बंद था. उनके निजी सहायक ने भी दिप्रिंट के कॉल और व्हाट्सएप मैसेज का कोई उत्तर नहीं दिया.
यात्रा के दौरान सोलापुर में पत्रकारों से बात करते हुए पंकजा ने कहा था कि उनके दौरे के पीछे का इरादा अपने लोगों से मिलना था.
उन्होंने कहा, “मेरे कार्यकर्ता सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मैं मध्य प्रदेश की सहप्रभारी (पार्टी का सह-प्रभारी) हूं, इसलिए पिछले दो सालों से मैं लगातार मध्य प्रदेश में हूं. मुझे महाराष्ट्र का दौरा करने का मौका नहीं मिला और कार्यकर्ताओं को लगता है कि उन्हें मुझसे मिलना चाहिए.”
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ब्रांड पंकजा
शिव शक्ति परिक्रमा के पूरे समय के दौरान, पंकजा पर क्रेन से लोग फूल बरसा रहे थे. उन्हें लंबी, भारी, बड़ी मालाएं पहना रहे थे. उनके कार्यकर्ता सेल्फी के लिए उनके चारों ओर खड़े होकर नारे लगा रहे थे. कई राजनीतिक दलों के नेता वहां मौजूद थे और उनके स्वागत के लिए आ रहे थे. श्रद्धालु बनी पंकजा रास्ते में कई मंदिरों का दौरा भी कर रही थीं.
एक समय पर, उन्हें महिलाओं से घिरे एक आदिवासी परिवार के फर्श पर बैठकर भाखरी (पारंपरिक महाराष्ट्रीयन रोटी) भूनते हुए भी देखा गया था. एक अन्य जगह पर, उन्हें अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को चम्मच भर खाना बांटते हुए और उनके खाते समय उन्हें परोसते हुए पाया गया.
शिव शक्ति यात्रा के बैनर तले वह जहां भी गईं, वहां लगे बैनर पर मुंडे बहनों- पंकजा और एमपी प्रीतम- के साथ-साथ उनके पिता गोपीनाथ मुंडे की तस्वीरे लगी थी. गोपीनाथ मुंडे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने 1980 और 1990 के दशक के दौरान ओबीसी समुदाय के भीतर सक्रिय रूप से बीजेपी के लिए समर्थन तैयार किया था. वरिष्ठ मुंडे की 2014 में मृत्यु हो गई थी.
हालांकि, उस यात्रा में शायद ही बीजेपी का एक भी झंडा था. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह यात्रा पंकजा और उनके पिता की विरासत को लेकर थी.
सोलापुर के बीजेपी विधायक विजय देशमुख ने कहा, “कुछ साल पहले, उन्होंने पार्टी की ओर से एक और यात्रा की थी. लेकिन, ये कोई पार्टी कार्यक्रम नहीं था. यह एक प्रकार से शक्ति प्रदर्शन था.” विजय पंकजा से तब मिले थे जब उनकी तीर्थ यात्रा उनके निर्वाचन क्षेत्र से होकर गुजर रही थी.
देशमुख ने कहा कि उनके कार्यालय को पंकजा की टीम से मैसेज मिला कि वह यात्रा पर निकलेंगी और सोलापुर जिले से होकर गुजरेंगी.
उन्होंने कहा, “गोपीनाथ मुंडे साहब का सोलापुर जिले में एक मजबूत आधार था. हम सब उनके कार्यकर्ता रहे हैं. यह उन्हीं की वजह से है कि हम जैसे नेताओं को पहली बार चुनाव टिकट मिला. इसलिए, हमने सोचा कि हमें उस व्यक्ति के लिए सामने आना चाहिए जिन्होंने हमारे लिए इतना कुछ किया है. इसलिए, मुंडे साहब के सभी कार्यकर्ता उन्हें सम्मान देते हैं.”
अपनी यात्रा के दौरान, पंकजा ने छत्रपति संभाजीनगर (पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था), नासिक, अहमदनगर, पुणे, सतारा, सांगली, कोल्हापुर, सोलापुर, धाराशिव (पहले उस्मानाबाद के नाम से जाना जाता था), बीड, हिंगोली और परभणी जैसे जिलों को कवर किया. वह जहां भी गईं, उन्होंने न केवल बीजेपी, बल्कि शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी जैसे सहयोगी दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ स्थानीय पदाधिकारियों से भी मुलाकात की.
पंकजा ने राज्य के कैबिनेट मंत्री सुरेश खाड़े, पार्टी सांसद सुजय विखे पाटिल, धनंजय महादिक, उदयनराजे भोसले, देवयानी फरांडे, सीमा हिरय, सुरेश धास, सचिन कल्याणशेट्टी और महेश लांडगे जैसे बीजेपी विधायकों से भी मुलाकात की. अपनी यात्रा के दौरान वह कई स्थानीय नेताओं, पूर्व विधायकों और कनिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों के आवासों पर गईं. उदाहरण के लिए, नासिक में वह बीजेपी के नासिक ग्रामीण जिला प्रमुख शंकर वाघ के भाई की मृत्यु पर संवेदना व्यक्त करने के लिए उनके आवास पर गईं.
यात्रा के दौरान मुंडे की पहुंच में पार्टी लाइनों से परे जाना, बीजेपी के सहयोगियों के साथ-साथ विरोधी नेताओं से मिलना भी शामिल था. उदाहरण के लिए, येओला में एनसीपी मंत्री छगन भुजबल के वफादारों ने मुंडे का स्वागत किया. नासिक में मुंडे ने शिवसेना एमएलसी नरेंद्र दराडे के आवास का भी दौरा किया. करमाला में, उन्होंने शिवसेना नेता रश्मी बागल के आवास पर नाश्ता किया और कोल्हापुर में वह धैर्यशील माने के आवास पर गईं.
सांगली के इस्लामपुर में रहते हुए, उन्होंने विपक्षी महाविकास अघाड़ी में शामिल एनसीपी के शरद पवार-गुट के विधायक, जयंत पाटिल के नेतृत्व में एक चीनी कारखाने, राजारामबापू पाटिल सहकारी साखर कारखाना का दौरा किया और कई कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. परभणी में उनकी मुलाकात शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) सांसद संजय जाधव से हुई.
नासिक पश्चिम की विधायक सीमा हीरे ने कहा, जो अपनी यात्रा के दौरान पंकजा से मिली थीं, “मैं इसलिए गई क्योंकि हमारे पारिवारिक रिश्ते बहुत पुराने हैं. गोपीनाथ जी के मेरे ससुर के साथ बहुत अच्छे संबंध थे.”
हीरे ने कहा, “उनकी यात्रा मुख्य रूप से अपने कार्यकर्ताओं के साथ फिर से जुड़ने के लिए थी. उन्होंने पिछले दो महीने से राजनीतिक संन्यास ले लिया है. और उन्होंने कहा कि उनके पास आधिकारिक तौर पर महाराष्ट्र में कोई पद नहीं है. इसलिए ऐसा नहीं है कि उन्हें अपने काम के लिए लोगों से नियमित रूप से मिलना पड़ता है.”
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गोपीनाथ मुंडे की विरासत
जब पंकजा ने एक यात्रा की योजना की घोषणा की, तो राजनीतिक हलकों में कई लोगों ने 1994 में उनके पिता की संघर्ष यात्रा को याद किया. हालांकि, इस यात्रा की प्रकृति और इसके प्रभाव में काफी अंतर था.
जबकि पंकजा ने मुख्य रूप से मंदिरों का दौरा किया और लोगों को याद दिलाया कि वह उस पिता की बेटी हैं जिन्होंने महाराष्ट्र की तत्कालीन शरद पवार के नेतृत्व वाली सरकार को आड़े हाथों लिया था. अगले साल, बीजेपी तत्कालीन अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में पहली बार महाराष्ट्र में सत्ता में आई और मुंडे डिप्टी सीएम और गृह मंत्री बने थे.
गोपीनाथ मुंडे ने महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए जमीन तैयार की और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में जनाधार पैदा करके पार्टी को राज्य में अपने ‘ब्राह्मणवादी’ टैग से निकलने में मदद की. उनकी लोकप्रियता वंजारी समुदाय (जिससे वह थे) से आगे बढ़ गई और मुंडे महाराष्ट्र में बीजेपी के ओबीसी समर्थन आधार का सबसे बड़ा चेहरा बन गए.
2009 में, जब मुंडे बीड जिले से लोकसभा सांसद बने, तो उन्होंने भतीजे धनंजय के दावों को नजरअंदाज करते हुए, अपनी बड़ी बेटी पंकजा को बीड के परली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए चुना.
असंतुष्ट धनंजय ने 2013 में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी. पंकजा ने 2014 के विधानसभा चुनावों में भी अपना निर्वाचन क्षेत्र बरकरार रखा, लेकिन 2019 में अपने चचेरे भाई से हार गईं. इस बीच, मुंडे की दूसरी बेटी, प्रीतम मुंडे ने लोकसभा में अपने पिता की जगह ली, उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव लड़ा और 2019 में सीट पर कब्जा कर लिया.
2014 में गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद से, महाराष्ट्र में बीजेपी के पास प्रमुख ओबीसी चेहरों की कमी है. जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान उपमुख्यमंत्री, जाति से ब्राह्मण, देवेन्द्र फडनवीस ने बीजेपी पर अपनी पकड़ मजबूत की, पुराने नेताओं में कुछ नाराजगी पैदा होने लगी, जिनमें से कुछ एकनाथ खडसे जैसे महत्वपूर्ण ओबीसी नेता थे. उन्होंने अंततः पार्टी छोड़ दी. बीजेपी और 2020 में एनसीपी में शामिल हो गए. बीजेपी द्वारा चंद्रशेखर बावनकुले को राज्य पार्टी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना इस धारणा को सही करने का एक प्रयास था.
पंकजा की यात्रा ने उन्हें ओबीसी नेता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में मदद की क्योंकि यह आरक्षण के लिए मराठा विरोध के सबसे ताज़ा दौर के साथ मेल खाता था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा कोटा रद्द किए जाने के बाद, मराठा नेता मनोज जारांगे-पाटिल के नेतृत्व में मराठा कुनबी जाति के सदस्य ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. पंकजा अपनी यात्रा के दौरान जहां भी गईं, उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए अलग कोटा के लिए अपना पूरा समर्थन दिखाते हुए इस मुद्दे पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया. लेकिन उन्होंने ओबीसी आरक्षण को बिना छुए ऐसा करने पर जोर दिया.
पंकजा ने धाराशिव में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा, “कौन सा समूह कहेगा कि हमारे कोटे से दूसरे समुदाय को आरक्षण दो? ऐसा कोई नहीं कहेगा. ऐसा करने और दो समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का कोई मतलब नहीं है. महाराष्ट्र स्थिरता, शांति चाहता है.”
दिप्रिंट से बात करते हुए, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में राजनीति और सार्वजनिक प्रशासन विभाग की प्रोफेसर राजेश्वरी देशपांडे ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंकजा मुंडे अपने पिता की विरासत चाहती हैं. उन्हें जाति समुदाय का कार्ड भी बरकरार रखना होगा. कुछ शोधकर्ताओं ने वंजारी जाति संघों का अध्ययन किया है और ऐसा लगता है कि सभी जाति समुदाय पार्टियों में विभाजित हो गए हैं. इसलिए, वह कई बाधाओं के बीच काम करते हुए, अपने राजनीतिक करियर को बढ़ाने के लिए हर संभावना की तलाश में है.”
पार्टी से मुंडे के कथित मोहभंग के बारे में हर बार चर्चा हुई है कि उन्हें या उनकी बहन को पद के लिए नजरअंदाज किया गया. 2016 में, जब तत्कालीन सीएम फडनवीस ने उनसे जल संरक्षण विभाग वापस ले ल छीन लिया, जिसके तहत उनकी प्रमुख ‘जलयुक्त शिवार’ योजना का गठन किया गया था, जब उन्हें 2020 और 2022 में एमएलसी चुनावों के दौरान या 2021 में कैबिनेट विस्तार के दौरान नामांकन नहीं मिला. बीजेपी नेतृत्व ने भागवत कराड को उनकी बहन प्रीतम के स्थान पर कनिष्ठ मंत्री और ओबीसी चेहरे के रूप में चुना.
फिर इस साल अप्रैल में, ऐसे समय में जब विपक्षी दल सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर उन्हें राजनीतिक रूप से निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे थे, पंकजा को परली में अपने चीनी कारखाने में छापे का सामना करना पड़ा. जीएसटी अधिकारियों ने कथित तौर पर कर चोरी के आरोप में परिसर पर छापा मारा था.
इस साल जुलाई में, हताश पंकजा ने अपने मुंबई आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा कि उनकी अनदेखी के बारे में सभी सवाल पार्टी नेतृत्व को अवगत करा दिया गया है और वह बीजेपी में हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी उनकी नहीं है, इसलिए वह दो महीने की छुट्टी ले रही हैं.
देशपांडे ने कहा, “यह आम तौर पर दिखाता है कि महिला राजनेताओं के लिए राजनीति के कठिन दौर से गुजरना अधिक मुश्किल भरा हो जाता है. मुख्यधारा की राजनीति में बहुत कम महिलाएं हैं और नेताओं के लिए उन्हें दरकिनार करना आसान होता है.”
बीजेपी के भीतर गोपीनाथ मुंडे के कथित अलगाव के बारे में पंकजा बात कर रही थीं. वह वह दौर था जब पार्टी आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा था और वरिष्ठ मुंडे के बारे में कथित तौर पर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में शामिल होने की अफवाह थी. हालांकि, अंततः वह बीजेपी में ही बने रहे.
एक दशक से भी अधिक समय बाद, पंकजा के बारे में ऐसी ही अफवाहें चल रही हैं. हालांकि उन्होंने जुलाई में स्पष्ट किया था कि वह बीजेपी नहीं छोड़ रही हैं.
लेकिन, इससे परे वह अपने कार्यकर्ताओं को अपने अगले राजनीतिक कदम के बारे में अनुमान लगाने पर मजबूर कर रही है.
जैसे ही शिव शक्ति परिक्रमा यात्रा सोमवार को समाप्त हुई, पंकजा, जिन्हें परली विधानसभा सीट बरकरार रखने के लिए संभवतः प्रतिद्वंद्वी से सहयोगी बने धनंजय के साथ हाथ-मुक्की करनी पड़ेगी, ने अपने अनुयायियों से बात करते हुए एक बात स्पष्ट कर दी. उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वह ऐसा नहीं करेंगी. उनकी नजरें अपनी बहन प्रीतम की बीड लोकसभा सीट पर टिकी हैं. लेकिन इससे भी आगे, उसने उन्हें एक गुप्त संदेश भी दिया है.
(संपादन: ऋषभ राज)
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