नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध पत्रिका ऑर्गेनाइजर ने अपने ताजा अंक के एक संपादकीय में कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत को एक राष्ट्र नहीं बल्कि ‘राज्यों का संघ’ बताकर महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. आंबेडकर का अनादर किया है.
पिछले महीने यूके स्थित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा था.
संपादकीय में कहा गया है, ‘पहली बात, उन्होंने यह सब विदेशी भूमि पर कहा, वो भी उन उपनिवेशवादियों की, जो इस विचार को आगे बढ़ाते रहे हैं कि भारत कभी राष्ट्र नहीं था. भारतीय जनता पार्टी के साथ उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को समझा जा सकता है. फिर भी, सदियों पुरानी व्यवस्था का जिक्र कर भारत को नीचा दिखाने की यह मानसिकता समझ से परे है.’
इसमें कहा गया है, ‘जिन गांधी जी का नाम नेहरू-गांधी परिवार अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करता रहा है, वही हिंद स्वराज में अपने मौलिक लेखन के माध्यम से इस अवधारणा को खारिज करने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि अंग्रेजों के आने से पहले भी हमारा राष्ट्रीय जीवन था. लेकिन जिस नेता से तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अब भी उम्मीदें बांध रखी हैं, उन्होंने गांधी द्वारा एक सदी से भी पहले हासिल की गई उपलब्धि को खारिज करने की कोशिश क्यों की?’
ऑर्गेनाइजर ने अपने संपादकीय में कहा, ‘हालांकि, कम्युनिस्ट विचारधारा ने नेहरू और इंदिरा गांधी दोनों को ही प्रभावित किया, लेकिन उनका यही मानना था कि बतौर राष्ट्र भारत का एक प्राचीन इतिहास है.’ साथ ही जोड़ा कि वो सोनिया गांधी थी जिन्होंने ‘पहली बार इस विचार को आगे बढ़ने दिया कि भारत कभी राष्ट्र नहीं था और राष्ट्रीय नीतियों को परिभाषित करने के लिहाज से कभी एक राष्ट्र नहीं हो सकता.’
इसमें कहा गया है, ‘गांधीजी और बाबासाहेब आंबेडकर का अनादर करके राहुल गांधी कांग्रेस के पतन और विराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया को ही पूरा कर रहे हैं.’
ब्रिटेन के कार्यक्रम में राहुल गांधी की टिप्पणी की आलोचना के अलावा पिछले सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस में जिन अन्य मुद्दों का उल्लेख छाया रहा, उनमें मोदी सरकार के सत्ता में आठ साल पूरे होने और आरएसएस की खुद को बदलने की योजना शामिल है.
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‘राष्ट्रवाद की भावना का हिंदुत्व से गहरा संबंध’
आरएसएस मीडिया विंग के प्रमुख राजीव तुली ने हिंदी अखबार दैनिक जागरण के लिए लिखे एक लेख में स्पष्ट तौर पर ‘भारत को राज्यों का संघ’ बताने वाली राहुल गांधी की टिप्पणी पर निशाना साधते हुए उन लोगों की आलोचना की जो ‘भारत के एक राष्ट्र होने के विचार पर सवाल’ उठाते हैं.
तुली ने लिखा, ‘यह एक नई साजिश है, जिसकी वैचारिक सोच वामपंथी उदारवाद और नेहरूवादी-मैकालेवाद की अवधारणा से ली गई है, जिसमें कहा जाता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ ‘प्रतिक्रिया’ स्वरूप भारत एक राष्ट्र बना.’
उन्होंने लिखा, ‘राष्ट्रवाद की भावना का हिंदुत्व की प्रकृति से गहरा संबंध है. अलगाववाद के इन उपासकों को इतिहास की वास्तविकता से अवगत होना चाहिए और ऐतिहासिक तथ्यों के विकृत और मनगढंत विचारों से बचना चाहिए.’
बिना किसी का नाम लिए, तुली ने लिखा कि ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ मिलकर वाम उदारवादियों की साजिश, भारत को एक राष्ट्र के रूप में नहीं, बल्कि केवल एक राजनीतिक निकाय के रूप में पेश करना है.’
उन्होंने कहा, ‘यह स्वतंत्रता के बाद के राष्ट्रवाद के मॉडल के खिलाफ भी है, जो एक राष्ट्र के रूप में भारत की प्रगति को आगे बढ़ाना चाहता है, वह भी राज्यों की प्रगति को नुकसान पहुंचाए बिना.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अलगाववाद और विखंडन के बीज बोने के लिए इस मुद्दे को जानबूझकर आगे बढ़ाया जा रहा है. यही नहीं, उनका प्रयास विभिन्न राज्यों के बीच के मतभेदों और राज्यों और केंद्र सरकार के बीच के मतभेदों को आगे बढ़ाया जा सके ताकि भारत के विभाजन के अंतिम उद्देश्य को फलीभूत किया जा सके.
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‘स्क्रिप्ट पहले ही तैयार की जा चुकी है’
मोदी सरकार की आठवीं वर्षगांठ पर टिप्पणी करते हुए दक्षिणपंथी पत्रकार हरि शंकर व्यास ने नया इंडिया के लिए अपने कॉलम में लिखा कि प्रधानमंत्री की कार्यशैली ‘पत्थर में खींची गई लकीर’ की तरह है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पहला बड़ा झटका दिया था, जो कि कोविड-19 महामारी से पहले ही पटरी से उतरने लगी थी.
व्यास ने लिखा, ‘भारतीय राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था को पिछले आठ वर्षों में जो दिशा मिली है, वह पत्थर में खींची गई लकीर की तरह है, जो बदलने वाली नहीं है. प्रधानमंत्री की अपनी सोच और कार्यशैली भी पत्थर पर लकीर की तरह है. माना जा सकता है कि 10, 15 या 20 साल उसी तरह गुजरेंगे जैसे आठ साल बीत गए.’
उन्होंने कहा, ‘दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट कोरोनावायरस महामारी के कारण आई थी लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट इससे काफी पहले नोटबंदी के सुनियोजित निर्णय के कारण ही आने लगी थी.’
यह बताते हुए कि देश की राजनीति और समाज किस दिशा में जाएगा, व्यास ने लिखा, ‘स्क्रिप्ट पहले से ही तैयार है. ‘प्रधान सेवक’ की सादगी और ईमानदारी पर चर्चा जारी रहेगी. यह नैरेटिव कि अन्य विपक्षी दल परिवारवादी और भ्रष्ट हैं, केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी के साथ और गहरा होता जाएगा. विपक्ष के नेता भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाते रहेंगे लेकिन सिस्टम से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा.’
उन्होंने कहा कि ‘मुफ्त अनाज बांटना, स्मार्टफोन, लैपटॉप बांटना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के नाम पर 500 रुपये, 1,000 रुपये महीना देना या इतिहास खंगालकर मंदिरों का पता लगाना’ ये सब चुनाव जीतने के फॉर्मूले हैं.
व्यास ने आगे लिखा कि ‘धर्म के आधार पर समाज को बांटने’ की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जारी रहेगी क्योंकि बहुत से लोग इसे रोकने का इरादा नहीं रखते हैं. उन्होंने लिखा, ‘इसके उलट पॉवर सिस्टम के ईंधन से इस आग को भड़काए रखने की कोशिश जारी रहेगी क्योंकि इसकी लौ में ही वोट पक रहे हैं.’
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‘संघ समाज का पर्याय है’
आरएसएस नेता मनमोहन वैद्य ने ऑर्गेनाइजर के एक लेख में अपनी उस योजना का खाका खींचा जो उन्होंने नए जमाने के अनुरूप आरएसएस के खुद को बदलने के संदर्भ में तैयार की है. उन्होंने लिखा, ‘संघ समाज का पर्याय है और लक्ष्य पूरे समाज की एकजुटता के संघ के दृष्टिकोण को जाहिर करने का होना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘स्वयंसेवकों को मेलजोल बढ़ाने के लिहाज से अधिक सक्रिय होना चाहिए, समाज के अधिक वर्गों के बीच पहुंच बनाएं ताकि समाज के नए वर्ग संघ के संपर्क में आ सकें, संघ को समझ सकें, आरएसएस के राष्ट्रीय आदर्शों को जान सकें और समाज का एक अभिन्न अंग होने के नाते हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज की रक्षा कर सकें और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के प्रति समर्पित रहें.’
वैद्य ने आरएसएस के विकास को तीन चरणों में परिभाषित किया- आजादी से पहले, आजादी के बाद और 1990 के दशक से अब तक.
वैद्य ने लिखा, ‘अब, हम संघ की विकास यात्रा के चौथे चरण में हैं. संघ के साथ हर स्वयंसेवक राष्ट्र की सर्वांगीण प्रगति के एक घटक के तौर पर जुड़ता है. इसलिए अपेक्षा की जाती है कि प्रत्येक ‘कमाऊ युवा स्वयंसेवक’ अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार सामाजिक परिवर्तन के लिए किसी एक क्षेत्र को चुनकर सामाजिक जागृति और सामाजिक परिवर्तन के लिए सक्रिय रूप से भाग लेगा और सहयोग करेगा.’
मनमोहन वैद्य ने कहा, ‘अपने परिवारों के लिए आवश्यक आय अर्जित करना, अपने परिवारों का पालन-पोषण करना और नियमित रूप से शाखा में हिस्सा लेना ही काफी नहीं होगा. सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक जागृति की दिशा में सक्रिय रूप से काम करने में अपना समय लगाना ही संघ कार्यकर्ता की असली परिभाषा है.’
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‘व्यापार घाटा’
आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने दैनिक जागरण के लिए एक लेख में मुद्रास्फीति में उछाल और डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरते मूल्यों के बारे में लिखा.
उन्होंने लिखा, ‘भारत में, खुदरा मुद्रास्फीति की दर अप्रैल में 7.79 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जिसे पिछले लगभग पांच वर्षों की तुलना में बहुत अधिक माना जा रहा है. रुपये में गिरावट देश में महंगाई की समस्या को और बढ़ा सकती है.’
उन्होंने लिखा, ‘हाल के दिनों में हमारे आयात में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. हालांकि, इस बीच हमारा निर्यात भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है लेकिन आयात में बढ़ोतरी के कारण हमारा व्यापार घाटा काफी बढ़ गया है. हमारे देश में पोर्टफोलियो निवेश बड़ी संख्या में आ रहा है. लेकिन पिछले कुछ समय से देश में निवेश की निकासी का रुख भी बना हुआ है.’
महाजन ने लिखा, ‘इससे न केवल हमारे शेयर बाजार प्रभावित हुए हैं बल्कि डॉलर की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है.’ उन्होंने उम्मीद जताई कि आयात में कमी से डॉलर की मांग घट सकती है.
महाजन ने लिखा, लंबे समय तक ‘सरकार ने मुक्त व्यापार की नीति अपनाई है और इसने कम आयात शुल्क पर आयात की अनुमति दी है.’
उन्होंने लिखा, ‘चीन सहित कई देशों द्वारा देश में आयात डंप कर दिए जाने के कारण हमारे उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है. साथ ही हमारा व्यापार घाटा भी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ा है.’
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‘पार्टी मानसिकता की गुलाम’
एक अन्य दक्षिणपंथी लेखक शंकर शरण ने नया इंडिया में आरएसएस और उसके सहयोगियों के बारे में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने हिंदुओं से ‘खुद के लिए लड़ने’ की बात कही, इस तथ्य के बावजूद कि सत्तासीन सरकार आरएसएस के प्रति झुकाव रखती है.
शरण ने लिखा, ‘अब संघ की तरफ से ये नैरेटिव दिया जा रहा है कि हिंदुओं को अपने देश, धर्म और संस्कृति के लिए लड़ना होगा. लेकिन जब कांग्रेस सत्ता में थी तो संघ-भाजपा नेता, कार्यकर्ता ऐसी बातें नहीं करते थे. बल्कि, वे सपने दिखाते थे कि उन्हें पूर्ण बहुमत कब मिलेगा.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘इस तरह के अभियानों का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. हिंदुओं को डराने, भड़काने से ही उनका वोट एक पार्टी से बंधा रहेगा. इससे ज्यादा कुछ नहीं क्योंकि इस तरह के अभियान चलाने वाले पार्टी मानसिकता के गुलाम हैं.’
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‘मूसेवाला की हत्या कानून-व्यवस्था की विफलता दर्शाती है’
आरएसएस पर पीएचडी करने वाले दक्षिणपंथी लेखक रतन शारदा ने पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या सहित हिंसा की हालिया घटनाओं के लिए पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की आलोचना की है.
न्यूज भारती के लिए एक लेख में शारदा ने लिखा, ‘सिद्धू मूसेवाला की हत्या एक राजनीतिक हत्या नहीं हो सकती. बल्कि यह कानून-व्यवस्था पूरी तरह से विफल होने का संकेत है. पुलिस कुछ अज्ञात कारणों से एकदम बेबस है. यह एक खतरनाक स्थिति है. यह मुझे याद दिलाती है कि उग्रवाद के अंतिम चरण में जब भी ऐसी निर्मम हत्याएं हुई थीं, तो अपने हाथ बांधे खड़ी थी. कमजोर नेतृत्व ने खुद देखा कि आतंकियों के आगे पंजाब पुलिस एकदम निसहाय थी क्योंकि खुद उनके परिवारों को निशाना बनाया जा रहा था.’
उन्होंने लिखा, ‘राज्य सभी नागरिकों को व्यक्तिगत सुरक्षा तो नहीं प्रदान कर सकता. लेकिन राज्य का कर्तव्य है कि वह इस तरह का माहौल कायम करे कि अपराधी जघन्य अपराध को अंजाम देने की हिम्मत न कर सकें. हाल के दिनों में बेरहमी से की गई हत्याएं हमें बताती हैं कि 1980 के दशक की तरह कानूनी मशीनरी का कोई डर नहीं रह गया है.’
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