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Friday, 19 April, 2024
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क्राइम, कल्ट स्टेटस, यंग डेथ- मूसेवाला की हत्या से पंजाब के गिरोहों की दुश्मनी फिर सुर्खियों में आई

पंजाब में ‘गैंग कल्चर’ कई दशकों से कायम है और पुलिस की तमाम सख्ती के बावजूद इस पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ है. वायरल गानों और सोशल मीडिया जंग ने इसकी जड़ों को और मजबूत ही किया है.

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नई दिल्ली: पंजाब के एक गांव की सड़क, काली जीप का पीछे करती सफेद कार और गोलियों की तड़तड़ाहट….गत 28 मई को पंजाबी गायक और राजनेता सिद्धू मूसेवाला पर जानलेवा हमले का कथित सीसीटीवी फुटेज काफी हद तक उनके एक बेहद लोकप्रिय म्यूजिक वीडियो के एक दृश्य जैसा दिखता है.

गायक की मौत और उनके भांगड़ा-रैप फ्यूजन वाले गानों में नजर आती बंदूकों, हिंसा और बदला लेने वाले दृश्यों के बीच समानताओं ने निश्चित तौर पर उनके प्रशंसकों का ध्यान आकृष्ट किया है, जिनमें कई का मानना है कि शायद सिद्धू को अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था. लेकिन, यह उदाहरण किसी और चीज से ज्यादा कला को असली जीवन में साकार करने का मामला नजर आता है.

सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें अपराध की निर्ममता उजागर करती हैं. उनमें दिख रहा है कि कैसे 28 वर्षीय यह स्टार अपनी काली एसयूवी की ड्राइवर सीट पर गिरा, उसकी लाल टी-शर्ट खून से लथपथ है और कार से टूटे शीशे उसके चेहरे में धंस गए हैं. प्रारंभिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सिद्धू के शरीर में स्वचालित हथियारों से चलाई गई दो दर्जन से अधिक गोलियां मिली हैं.

पुलिस का आरोप है कि पंजाब सरकार की तरफ से मूसेवाला की सुरक्षा घटाने के एक दिन बाद ही यह हमला लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के सदस्यों ने किया था.

बिश्नोई के कनाडा में रहने वाले सहयोगी गोल्डी बरार की एक कथित फेसबुक पोस्ट भी घटना के तुरंत बाद सामने आई थी जिसमें इस हत्या की जिम्मेदारी ली गई थी. पोस्ट में कहा गया था कि यह दो लोगों की हत्या में मूसेवाला की भूमिका को देखते हुए बदले की कार्रवाई थी. इसमें एक युवा अकाली नेता विक्की मिद्दुखेरा था और दूसरा 2020 में मारा गया बिश्नोई का सहयोगी गुरलाल बराड़.

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फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई ने अब खुद को ‘मुठभेड़’ में मार दिए जाने की आशंका जताई है.

वैसे, यह राज्य के लिए कोई अनोखा मामला नहीं है. हालांकि, एक सफल म्यूजिशियन और कांग्रेस नेता के तौर पर मूसेवाला—जिन्होंने इसी साल विधानसभा चुनाव लड़ा था (हालांकि वह आप प्रत्याशी विजय सिंगला से हार गए थे)—की हत्या एक हाई-प्रोफाइल केस है, लेकिन पंजाब में दशकों से ‘गैंग कल्चर’ कायम है और पुलिस की सख्ती के बावजूद इस पर काबू पाना नामुमकिन बना हुआ है.

जबरन वसूली, हत्या, ड्रग्स, और खूनी संघर्ष, इसका सिर्फ एक पहलू हैं. गानों और वायरल वीडियो से प्रेरित आबादी के एक वर्ग के बीच गैंग कल्चर ने एक कल्ट स्टेटस हासिल कर लिया है जिसमें लोगों का खुद को पूरी आक्रामकता के साथ किसी हीरो जैसा दर्शाना, पैसों की तड़क-भड़क और सामाजिक चेतना के साथ अपना जुड़ाव दिखाना एक आम बात हो गई है. मूसेवाला का जीवन और मृत्यु दोनों इस संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाले रहे हैं, भले ही उनका नाम सीधे तौर पर किसी गिरोह से जुड़ा न पाया गया हो.

इसी घटना के परिप्रेक्ष्य में दिप्रिंट ने इस बात नजर डाली कि पंजाब में गैंग कल्चर कैसे विकसित हुआ और कैसे लोगों की कल्पनाओं में गहराई से घर करता चला गया.


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जल्दी-जल्दी जी लेने की तमन्ना और युवा मौत

मूसेवाला की हत्या से ठीक एक महीने पहले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक डेडीकेटेड एंटी-गैंगस्टर टास्क फोर्स (एजीटीएफ) के गठन की घोषणा की थी, क्योंकि कथित तौर पर गिरोहों से संबंधित अपराध बढ़ रहे थे. हालांकि, संगठित अपराध नियंत्रण इकाई (ओसीसीयू) की तरफ से करीब 70 गैंग से जुड़े 500 ज्ञात गैंगस्टरों में से करीब 300 को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा चुका है.

लेकिन अभी कई समूह सक्रिय हैं—जो अंतरराज्यीय स्तर पर सक्रिय होने और अंतरराष्ट्रीय लिंक रखने के लिए जाने जाते हैं. ये न केवल जबरन वसूली और हत्या के प्रयासों जैसे मामलों के लिए कुख्यात हैं, बल्कि उनके बीच खूनी संघर्ष भी जगजाहिर हैं, जिसका ऐलान वे कभी-कभी सोशल मीडिया पर उत्तेजक पोस्ट और वीडियो के माध्यम से खुले तौर पर करते हैं.

फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से पहले, कनाडा में अपनी तड़क-भड़क वाली जीवनशैली और ड्रग-रनिंग के लिए चर्चित ‘पंजाबी माफिया’, जो अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति काफी गंभीर थे, को टीवी पर एक-दूसरे को धमकाते और चुनौती देते देखा जा सकता था.

1990 के दशक में वैंकूवर के बिंदी जोहल और रंजीत ‘रॉन’ दोसांझ के बीच की तीखी झड़प इसका एक प्रमुख उदाहरण है.

1994 में ऐसी ही एक मौके पर रॉन दोसांझ ने बिंदल—जिसका मानना मानना था कि दोसांझ ने अपने भाई जिमी दोसांझ की हत्या की है—से कहा था, ‘मैं तुम्हारी पीठ पर गोली नहीं मारूंगा, आमने-सामने खड़े होकर माथे पर वार करूंगा.’ दो हफ्ते बाद ही रॉन दोसांझ की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

इस बीच, 1980 के दशक में पंजाब में भी एक समानांतर गैंग-कल्चर विकसित होने लगा था, जिसे ‘लिव फास्ट डाई यंग’ के तौर पर परिभाषित किया गया था. इसमें यूनिवर्सिटी और छात्र राजनीति अपराध की नर्सरी के रूप में उभरी.

1980 के दशक की शुरुआत में उभरी ऐसी ही एक शख्सियत पंजाब यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पीयूएसयू) के नेता माखन सिंह का जिक्र पुलिस कथित तौर पर ‘गॉडफादर’ और अन्य गैंगस्टरों के लिए प्रेरणा के तौर पर करती है. माखन सिंह का चीमा गैंग नामक एक अन्य गिरोह के साथ झगड़ा हुआ था और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स सेंटर में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके बाद से कई ‘कुख्यात’ गैंगस्टर अक्सर पुलिस के राडार पर आते रहे हैं. लेकिन सामाजिक स्तर पर सतर्कता ‘न्याय’ से जुड़े होने के कारण उनकी छवि एक तरह से रॉबिनहुड वाली रही है.

कुछ लोगों के बीच अपनी जननेता जैसी ‘छवि’ को देखते हुए राजनीति में भी शामिल हुए—जैसे फाजिल्का के जसविंदर सिंह ‘रॉकी’, जो एक समय हत्या, जबरन वसूली, अपहरण, साजिश और अवैध हथियार रखने जैसे लगभग 30 मामलों का सामना कर रहे थे (18 में बरी हो चुके थे). 2016 में शिमला राजमार्ग पर गोली मारकर हत्या किए जाने से पहले जसविंदर राजनीति में अपना करियर बना रहे थे और चुनाव लड़ रहे थे.

एक गैर-लाभकारी पंजाब मानवाधिकार संगठन के साथ काम करने वाले सरबजीत ने कहा, ‘सार्वजनिक तौर पर ये सभी गैंगस्टर ऐसा दर्शाते हैं कि वे आम लोगों के हित में काम कर रहे हैं और अपनी जान तक जोखिम में डाल रहे हैं. यह बात ग्रामीणों को बहुत ज्यादा आकृष्ट करती है.’

उदाहरण के तौर पर, 2017 में शेरा खुबन गिरोह के सदस्यों ने कथित तौर पर अकाली दल की एक महिला पर मंदिर के बाहर हमले का बदला लेने की कसम खाई थी. गैंग के एक सदस्य ने फेसबुक पर कथित तौर पर घोषणा की, ‘हम पुलिस जांच में विश्वास नहीं करते. अपनी पिस्तौल तैयार रखो, हम देखेंगे कि तुम कितनी गोली चला सकते हो. अगर आपमें हिम्मत है, तो हमें इनबॉक्स में मैसेज करें.’

एक अन्य कुख्यात गैंगस्टर प्रभजिंदर सिंह बराड़ ‘डिंपी’ था, जो कथित कॉन्ट्रैक्ट किलर और यूपी, पंजाब और हरियाणा के राजनेताओं का गुर्गा था. वह बिहार, कर्नाटक और दिल्ली के अलावा इन तीन राज्यों में भी वांछित अपराधी था.

डिंपी 2006 में जब एक बार जमानत पर रिहा किया गया, तब 25,000 लोगों ने उनका स्वागत किया था, और कथित तौर पर बठिंडा-कोटकपुरा रोड के दोनों ओर 500 कारें खड़ी थीं. उसी वर्ष के अंत में मोटरसाइकिल सवार शूटर्स ने उस समय उसकी हत्या कर दी, जब वह अपनी कार में बैठा था.

फिर विक्की गौंडर था, जो उस समय सुर्खियों में आया जब किसी अन्य गैंगस्टर की मौत का बदला लेने के लिए उसके गिरोह ने कथित तौर पर ‘शार्पशूटर’ और डॉन सुखा कहलों (जो खुद कई राज्यों में हिंसक अपराधों से जुड़े दर्जनों मामलों में वांछित था) की हत्या कर दी.

गौंडर ने कथित तौर पर कहलों—जिसे यारों का यार कहा जाता था—को अमृतसर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर उस समय गोली मारी जब उसे एक केस की सुनवाई के सिलसिले में पुलिस वैन में ले जाया जा रहा था. बताया जाता है कि उसने हत्या के बाद उसके शव के ऊपर ही डांस किया और भागने से पहले अपने इस पूरे कृत्य को फिल्माया भी. इस दौरान पुलिस कर्मियों पर कथित तौर पर बंदूकें तान रखी गई थीं. 2016 के कुख्यात नाभा जेलब्रेक में भागने वालों में एक गौंडर भी था.

अधिकांश गैंगस्टर अपनी युवावस्था में ही मारे जाते हैं. ‘मोस्ट वांटेड’ गौंडर भी 2018 में एक कथित पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था. जब सफेद चादर में लिपटा उसका शव और हरी पगड़ी पंजाब के मुक्तसर स्थित उसके पैतृक गांव सरवन बोडला पहुंचा, तो उसे देखने के लिए लोगों का तांता लग गया था. बताया जाता है कि खिलाड़ी से गैंगस्टर बने 27 वर्षीय गौंडर के ‘प्रशंसक’ उस समय एकदम बेकाबू हो गए थे. मात्र 14 साल की उम्र में बंदूक उठाने वाले गौंडर को समर्पित सोशल मीडिया पेज बन गए थे.

तमाम युवा लड़कों, कई तो बमुश्किल अपनी किशोरावस्था में थे, ने गौंडर की तस्वीरें पोस्ट की और खुद बंदूकें लहराते हुए उसकी मौत का बदला लेने की कसमें खाईं.

‘नायकों के प्रति आस्था’ के साथ बदले और हिंसा का यह सिलसिला मूसेवाला की मौत के मामले में भी सामने आया है, जिसे लॉरेंस बिश्नोई और देवेंद्र बांबिहा गिरोहों के बीच दुश्मनी का नतीजा माना जाता है.

जैसा कि दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था जब भी ये गिरोह किसी तरह का संदेश देना चाहते हैं, तो एक निर्धारित मॉडस ऑपरेंडी होती है. अपराध को एकदम वीभत्स रूप देंगे, सोशल मीडिया पर इसकी जिम्मेदारी लेंगे और अपना वर्चस्व दर्शाने की कोशिश करेंगे. पुलिस अधिकारी ने बताया कि बिश्नोई गिरोह को अपने दुश्मन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने के लिए जाना जाता है.

उन्होंने कहा, ‘वे दो उद्देश्यों के लिए हत्याओं को अंजाम देते हैं—एक दुश्मन गिरोह के सदस्यों का खात्मा, और संभावित प्रतिद्वंद्वियों और अन्य लोगों के बीच एक संदेश भेजना, जिनसे वे पैसे वसूलना चाहते हैं.’

यह सिलसिला यहीं थमने की संभावना नहीं है. बिश्नोई—जो अपहरण और जबरन वसूली जैसे अपराधों में संलिप्त होने से पहले राष्ट्रीय स्तर का एक एथलीट और पंजाब यूनिवर्सिटी छात्र संगठन (एसओपीयू) का नेता था—को कथित तौर पर दिल्ली में ‘गैंगस्टरों’ से मौत की धमकी मिल चुकी है. अलग-अलग मामलों में सुनवाई के लिए उसे अदालतों में पेश करना पुलिस के लिए चिंता का विषय बना हुआ है (वो इस समय तिहाड़ में बंद है) और पुलिस को उसकी सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने पड़ रहे हैं.

पूर्व में कई अन्य कथित गैंगस्टरों की तरह बिश्नोई ने भी कथित तौर पर सोशल मीडिया पर कुछ क्लिप पोस्ट की हैं और उस पर जेल में रहते हुए हत्याओं का आदेश देने का आरोप भी लगा है. पुलिस उसके पास से कई बार मोबाइल फोन बरामद कर चुकी है.

इस बीच, ऐसी आशंकाएं हैं कि मूसेवाला की असामयिक मौत को रूमानी बनाया जा सकता है और इससे युवाओं में गैंग-कल्चर के प्रति ललक और बढ़ सकती है.

शोक, ग्लैमर और बंदूकें

सिद्धू मूसेवाला की मौत से उनके प्रशंसकों में शोक की लहर है. अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए मूसा गांव स्थित गायक की हवेली के बाहर सैकड़ों लोगों ने डेरा डाला रखा था, एक 19 वर्षीय ने युवक ने तो निराशा में आत्महत्या का प्रयास भी किया. तमाम लोगों ने मूसेवाला के यूट्यूब वीडियो के कमेंट सेक्शन में श्रद्धांजलि अर्पित की—’नायकों को हमेशा याद रखा जाता है, वे कभी नहीं मरते’; ‘वो अमर हो गए.’ उनके गाने क्रांति, लड़ाई, स्वतंत्रता और हमारे समाज की बाधाओं के खिलाफ संघर्ष का संकेत हैं.’

यह उस गायक के लिए बहुत बड़ी प्रतिक्रिया है जो पांच साल पहले तक एकदम अनजान था.

मानसा जिले के मूसा गांव के मूल निवासी शुभदीप सिंह सिद्धू ने 2016 में छात्र वीजा पर कनाडा जाने से पहले इंजीनियर बनने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया था.

सिद्धू मूसेवाला को 2017 में उनके गाने ‘सो हाई’ ने एकदम रातोंरात शोहरत दिला दी थी, जिसके बोल सीधे-साधे लेकिन मर्दानगी के भाव से भरे थे, जैसे ‘हो करदा कनाडा विच डील सोनिये, मुंडा पूरी गैंगस्टा अपील सोनिये…’

वीडियो में दोनों कलाई पर हीरे की घड़ियां, बंदूकों, कारों पर बिखरे पैसे का खूब स्वैग दिखाया गया था—और रोचक म्यूजिक ने भी लोगों के बीची उन्हें पहचान दिला दी, जिसमें उनके गांव और जाट सिख परिवार से जुड़े होने का जिक्र तो था ही, विदेश की हाई-फ्लाइंग लाइफस्टाइल को भी पूरी तरह भुनाया गया था.

सरबजीत सिंह ने कहा कि कई लोगों को, खासकर गांवों में, इस तरह की पैकेजिंग बहुत पसंद की जाती है.

अपेक्षाकृत काफी कम समय में ही मूसेवाला ने अपने यूट्यूब चैनल पर 11 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर और इंस्टाग्राम पर 8.4 मिलियन फॉलोअर की एक विशाल फैन फॉलोइंग बना ली थी. उनकी लोकप्रियता ने ही उन्हें कांग्रेस का टिकट दिलाया और उन्हें उन किसानों के बीच भी खासा रुतबा हासिल हो गया, जो 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से पेश तीन विवादास्पद कृषि कानूनों (जो अब निरस्त हो चुके हैं) का विरोध कर रहे थे.

लेकिन इसी जीवनशैली का दूसरा पहलू यह था कि उन्हें मौत की धमकी मिल रही थीं, और सशस्त्र अंगरक्षक और बुलेटप्रूफ कार उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी.

हालांकि, ज्ञात तौर पर मूसेवाला के वास्तव में किसी गैंग से संबद्ध होने की बात सामने नहीं आई है, लेकिन उन पर अक्सर एक ऐसे माहौल का हिस्सा होने का आरोप लगाया जाता रहा है जो हिंसा और अराजकता को बढ़ावा देने वाला है.

फरवरी 2020 में गायक पर अपने गाने ‘पांच गोलियां’ के जरिये कथित तौर पर बंदूक संस्कृति और हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. उनके खिलाफ चंडीगढ़ के वकील एच.सी. अरोड़ा की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज की गई थी. लुधियाना पुलिस ने एक आरटीआई कार्यकर्ता कुलदीप सिंह खैरा की शिकायत पर भी गायक को तलब किया था, जिनका आरोप था कि मूसेवाला का गाना गन कल्चर और हिंसा को बढ़ावा देने वाला है.

मई 2020 में मूसेवाला के दो वीडियो वायरल हुए, जिसमें एक में वह पांच पुलिस अधिकारियों के साथ एके-47 चलाने का अभ्यास करते दिख रहे हैं और दूसरे में एक निजी पिस्तौल का उपयोग करते नजर आ रहे हैं. इसके बाद उनकी सहायता करने वाले पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था और मूसेवाला पर लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया था.

इस पर, वकील रवि जोशी ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पंजाब पुलिस ने विवादास्पद गायक के खिलाफ कानून के कड़े प्रावधानों के तहत मामला दर्ज नहीं किया है. इसके बाद उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर में आर्म्स एक्ट और आपराधिक साजिश के प्रावधान जोड़े गए.

अपने गीत ‘संजू’, जिसमें संजय दत्त की शस्त्र अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के समय की वीडियो क्लिप इस्तेमाल की गई हैं, में मूसेवाला ने अपनी तुलना अभिनेता से की है. वे कहते हैं कि भले ही उन पर संजय दत्त की तरह शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है और इस अपराध की न्यूनतम सजा पांच साल है, लेकिन साहसी लोगों के खिलाफ पुलिस मामले आम हैं और वह इसका मुकाबला करेंगे.

फिर, अपनी मौत से दो सप्ताह पहले यूट्यूब पर पोस्ट किए गए आखिरी गाने, ‘द लास्ट राइड’ के जरिये मूसेवाला शायद एक अलग ही तरह का संदेश दे डाला था.

अपनी प्रेरणा रहे अमेरिकी रैपर टुपैक शकूर की हत्या के दृश्यों को फिर से रिक्रिएट करते हुए मूसेवाला ने इस गाने के जरिये कहा था कि यद्यपि मौत ने कुछ जल्दी ही दस्तक दे दी, लेकिन वे जीते-जी ही अमर हो गए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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