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Saturday, 20 April, 2024
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AJL की संपत्ति से कितना किराया कमाया गया और इसे कैसे खर्च किया गया, ED ने राहुल गांधी से पूछे सवाल

यंग इंडियन - एक कंपनी जिसमें गां धी परिवार की 'बहुमत वाली हिस्सेदारी' है- द्वारा 'नेशनल हेराल्ड' की प्रकाशक कंपनी 'एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड' के अधिग्रहण में धोखाधड़ी और साजिश किए जाने के आरोप लगाए गए हैं.

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नई दिल्ली: पिछले कुछ वर्षों में यंग इंडियन लिमिटेड द्वारा इंदौर, पंचकुला, दिल्ली और मुंबई में स्थित एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की अधिगृहीत संपत्तियों से कितना किराया अर्जित किया गया और उस पैसे को कैसे खर्च किया गया? क्या इस पैसे का उपयोग धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया गया था? यदि हां, तो किन धर्मार्थ संस्थाओं द्वारा? कांग्रेस पार्टी द्वारा एजेएल को दिए गए 90 करोड़ रुपये के कथित ऋण का रिकॉर्ड कहां है?

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार ये ऐसे कुछ सवाल हैं जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (एन्फोर्स्मेंट डाइरेक्टोरेट-ईडी) ने ‘नेशनल हेराल्ड’ से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अपनी जांच के हिस्से के रूप में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से की गयी पांच दिनों की पूछताछ में उठाया.

साल 1938 में पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा स्थापित, ‘नेशनल हेराल्ड’ स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस का मुखपत्र बन गया था. इस अखबार को साल 2008 में 90 करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज की वजह से अपना परिचालन बंद करना पड़ा था.

नेशनल हेराल्ड वाला मामला इसकी इक्विटी (शेयरों) के लेनदेन में 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की परिसंपत्ति की कथित हेराफेरी से जुड़ा हुआ है.

यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड, जिसमें गांधी परिवार – राहुल और उनकी मां और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी – के पास बहुमत वाली हिस्सेदारी है, द्वारा साल 2010 में नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एजेएल के अधिग्रहण में धोखाधड़ी, साजिश और आपराधिक विश्वासघात के आरोप लगाए गए हैं.

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बता दें कि यंग इंडियन की स्थापना साल 2010 में हुई थी और यह एक गैर-लाभकारी कंपनी है जिसे कंपनी अधिनियम के विशेष प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था.

जहां 13 से 21 जून के बीच राहुल गांधी से पांच दिनों तक रोजाना 10 घंटे से अधिक के समय तक पूछताछ की गई, वहीं सोनिया गांधी को भी इस मामले में पूछताछ के लिए एजेंसी ने 23 जून को तलब किया था.

हालांकि, सोनिया गांधी ने कथित तौर पर स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए इसे स्थगित किए जाने का अनुरोध किया था, जिसे ईडी ने स्वीकार कर लिया है. उन्हें अब जुलाई के आखिरी हफ्ते में एजेंसी के सामने पेश होने को कहा गया है. माना जा रहा है कि सोनिया गांधी फिलहाल कोविड और फेफड़ों के संक्रमण से उबर रही हैं.

कांग्रेस के कई सारे सदस्यों ने ईडी की इस तरह की कार्रवाई का विरोध किया है.

इस हफ्ते की शुरुआत में, कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया था कि ईडी की यह कार्रवाई ‘अवैध और असंवैधानिक’ है. साथ ही, उन्होने आरोप लगाया था कि भाजपा ‘अपने गुस्से के चरम पर में है और इसलिए उसने ईडी को अपना पिंजरा बनाया हुआ है.’

सिंघवी ने कहा, ‘राहुल गांधी को बार-बार देश का ध्यान भटकाने के लिए, सभी कैमरों को ईडी कार्यालय पर केंद्रित रखने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए बुलाया जा रहा है कि जिन मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए – चाहे वह अग्निपथ योजना हो, मूल्य वृद्धि हो, बेरोजगारी हो – वे दबे-ढंके और छुपे ही रहें.’

इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने ईडी की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मामले में ‘पैसे का कोई लेन-देन नहीं हुआ’, और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए ‘धन’ (मनी) और ‘धन के शोधन’ (लॉन्ड्रिंग ऑफ मनी) की आवश्यकता होती है.’

राहुल गांधी ने खुद कहा है कि वह ‘ईडी और ऐसी एजेंसियों’ से प्रभावित नहीं होने वाले हैं, और ‘मुझसे पूछताछ करने वाले अधिकारियों ने भी समझ लिया है कि कांग्रेस पार्टी के किसी नेता को इस तरह से डराया और दबाया नहीं जा सकता.’


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‘किसी भी तरह के मौद्रिक लेनदेन से संबंधित नहीं है’

ईडी के सूत्रों के अनुसार, चूंकि यंग इंडियन ने ‘धोखाधड़ी से’ एजेएल की 800 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की और अब उसका उपयोग कर रही है, इसलिए यह ‘धन शोधन निवारण अधिनियम (प्रेवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट- पीएमएलए) की धारा 3 के तहत एक अपराध’ बन जाता है और यही वह मामला है जिसकी जांच की जा रही है.

पीएमएलए की धारा 3 में कहा गया है कि जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी अपराध से होने वाली आय में ‘लिप्त होने या जानबूझकर सहायता करने या जानबूझकर इसका हिस्सा बनने या इससे जुड़ी किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि में शामिल होता है और इसे एक बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करता है, वह मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का दोषी होगा. ‘.

ईडी के एक सूत्र ने कहा, ‘मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध तब बनता है जब कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पीएमएलए की अनुसूची के तहत परिभाषित गतिविधियों के अनुरूप आपराधिक कृत्य के परिणामस्वरूप प्राप्त की गई संपत्ति से जुड़ी चीज़ों में लिप्त होने का प्रयास करता है या जानबूझकर सहायता करता है या जानबूझकर इसका हिस्सा बनता या वास्तव में ऐसी किसी भी प्रक्रिया या गतिविधियों में शामिल होता है.’

सूत्र ने कहा, ‘इसलिए लोगों को यह बताना कि मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध केवल देश के अंदर और बाहर नकदी की आवाजाही से संबंधित है, एक जानबूझकर फैलाया गया भ्रम है.’

इस सूत्र ने सवाल किया, ‘मुंबई, पंचकुला, भोपाल, इंदौर, दिल्ली में एजेएल की संपत्तियां हैं जिनका उपयोग राजस्व उत्पन्न करने के लिए किया जा रहा है, वह सारा पैसा कहां जा रहा है?’

सूत्र ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी अपराध के संबंधित आय से जुड़ी कोई भी गतिविधि पीएमएलए की धारा 3 के अंतर्गत आती है. अतः ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में ईडी की जांच का फोकस अधिनियम की धारा 3 पर ही है.

सूत्र ने दावा किया, यह रिकॉर्ड की बात है कि ये संपत्तियां, जो पहले एजेएल के पास थीं, उस यंग इंडियन द्वारा धोखाधड़ी से हासिल की गई थीं जिसमें गांधी परिवार भी शेयरधारक हैं और उन संपत्तियों को किराए पर देने के लिए व्यावसायिक उपयोग के अंतर्गत रखा गया है. ‘

सूत्र ने कहा, ‘इसके अलावा, आयकर विभाग, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा प्राप्त किए गये निष्कर्षों से यह स्पष्ट है कि इस मामले में एजेएल की 800 करोड़ रुपये से अधिक की अचल संपत्तियों को पूरी तरह से गांधी परिवार के स्वामित्व वाले यंग इंडियन द्वारा धोखाधड़ी से, बेईमानी से और एक आपराधिक साजिश के एक हिस्से के रूप में जालसाज़ी का अपराध करके हासिल किया गया है.’

साल 2013 में, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट (दिल्ली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत) के समक्ष एक शिकायत दर्ज की थी, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी द्वारा कथित तौर पर नेशनल हेराल्ड से जुड़े लेन-देन पर सवाल उठाया गया था.

गांधी परिवार के खिलाफ लगाए गए इन आरोपों ने आयकर विभाग को इस मामले की जांच शुरू करने के लिए प्रेरित किया. दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ट्रायल (मुक़दमे की सुनवाई) के लिए समन जारी किया और दोनों को साल 2015 में जमानत दे दी गई.

ईडी के सूत्र ने यह भी दावा किया कि भले ही यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी कंपनी है, लेकिन यह 2010 के बाद से कोई भी धर्मार्थ गतिविधि नहीं कर रही है, मगर फिर भी वाणिज्यिक गतिविधियो में संलग्न है.

सूत्र ने दावा किया, ‘यह धर्मार्थ कंपनी, जिसमें गांधी प्रमुख शेयरधारक हैं, पैसा कमा रही है. इस कंपनी को प्रमुख स्थानों पर स्थित इमारतों से किराए आते रहे हैं, लेकिन इसमें से किसी का भी धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया है. तो यह कहां खर्च किया गया था? यंग इंडियन द्वारा इन किराए के जरिए कितना पैसा कमाया जा रहा है? यही सब हम इस मामले में आरोपी से पूछ रहे हैं’

सूत्र ने आगे कहा, ‘जांच में हमने जो कुछ भी पाया है, उससे यह कहना गलत है कि इन संपत्तियों से प्राप्त लाभ का धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए जा रहा है.’

सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी से उस 90 करोड़ रुपये के कर्ज के बारे में भी पूछा गया जो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने कथित तौर पर एजेएल को दिया था और यह भी सवाल किया गया कि उस पैसे का क्या किया गया था.

कांग्रेस द्वारा बार-बार कहा जाता रहा है कि एजेएल को एक विशेष समय अवधि में 90 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज़ दिया गया था और उस कर्ज़ की भरपाई के लिए कांग्रेस ने अपने कर्ज़ को इक्विटी (हिस्सेदारी) में बदल दिया और फिर इसे यंग इंडियन को बेच दिया. हालांकि, ईडी के सूत्रों के अनुसार, इस कर्ज़ के भुगतान का कोई लेखा जोखा (रिकॉर्ड) नहीं है.


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‘एक वैध जांच’

कांग्रेस नेताओं के इस आरोपों के वारे में बोलते हुए कि ईडी ने किस विधेय अपराध के बिना ही मामले की जांच शुरू की और इसलिए यह अवैध है, सूत्रों ने कहा कि चूंकि एक अदालत ने पहले ही इस मामले में धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के अपराध का संज्ञान लिया था, और राहुल एवं सोनिया गांधी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, ईडी को जांच शुरू करने के लिए किसी प्राथमिकी की आवश्यकता नहीं थी.

कांग्रेस नेता और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पहले कहा था कि ईडी की कार्रवाई एक निजी शिकायत पर आधारित है, और चूंकि ईडी का समन केवल किसी दर्ज प्राथमिकी पर ही आधारित हो सकता है और इसलिए यह अवैध है.

इस बारे में, ऊपर उद्धृत ईडी स्रोत ने दावा किया, ‘दिल्ली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने पहले ही इस मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 403, 406, 420, 120 बी के तहत अपराधों का संज्ञान लिया है, जिसके कारण यंग इंडियन ने एजेएल की संपत्तियों का अधिग्रहण किया और इसने सोनिया गांधी राहुल गांधी तथा अन्य लोगों को समन भी जारी किया जो फिलहाल जमानत पर हैं. तो, फिर जांच शुरू करने के लिए किसी प्राथमिकी की ज़रूरत ही क्यों है?’

सूत्र के अनुसार, इस मामले में मजिस्ट्रेट ने कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) की धारा 204 के तहत अपराध का संज्ञान लिया था और मुकदमे के लिए समन जारी किया था क्योंकि उन्हें लगा कि इसके लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं.

सूत्र ने दावा किया कि गांधी परिवार ने मजिस्ट्रेट के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की थी, जिसे खारिज कर दिया गया.

ईडी के सूत्र ने कहा, चूंकि धारा 420 और 120 बी के तहत किया गया अपराध पीएमएलए के तहत एक निर्धारित अपराध (शेड्यूल्ड अफेन्स) है, और यंग इंडियन ने इन अपराधों की अगली कड़ी के रूप में 800 करोड़ रुपये से अधिक की इन संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया है (चूंकि एजेएल का अधिग्रहण सवालों के घेरे में है और इस संबंध में अदालत द्वारा एक जांच का आदेश दिया गया था), इसी कारण से, 800 करोड़ रुपये की यह राशि (संपत्ति का सकल मूल्य) पीएमएलए के तहत ‘अपराध की आय’ बन जाती है, और इस प्रकार यह एक ‘वैध मामला’ है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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