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Friday, 19 April, 2024
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‘फर्जी लोन, नकली बही खाते’- 35000 करोड़ रुपए का DHFL मामला, भारत की सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी

सीबीआई की प्राथमिकी में दावा किया गया है कि डीएचएफएल के प्रमोटरों ने अन्य लोगों के साथ मिलकर 17 बैंकों के समूह को 34,615 करोड़ रुपये का चूना लगाया और इन फंड्स को 'डीएचएफएल से जुड़ी' कंपनियों को दिया.

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नई दिल्ली: सीबीआई सरकारी कर्मचारियों और अन्य लोगों की मिलीभगत से दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) द्वारा किए गए 34,615 करोड़ रुपए के फंड के कथित दुरुपयोग की जांच कर रही है. उसका मानना है कि यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा बैंक धोखाधड़ी का मामला हो सकता है.

सोमवार को दायर एक नए मामले में सीबीआई ने डीएचएफएल के कपिल और धीरज वधावन पर लगभग 42,871 करोड़ रुपए की राशि के एक बड़े हिस्से का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था. यह राशि कथित तौर पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले 17 बैंकों के समूह से लोन, एडवांस और नॉन- कन्वर्टिबल डिबेंचर में सब्सक्रिप्शन के तौर पर ली गई थी.

नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर, पब्लिक इश्यू के जरिए लंबी अवधि के लिए फंड जुटाने का एक फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है. एडवांस को यहां एक उधारकर्ता को दी गई ऋण सुविधा के रूप में संदर्भित किया जाता हैं जिसका इस्तेमाल उधारकर्ता किसी भी अल्पकालिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए कर सकता है.

एफआईआर के अनुसार, इन फंड्स को कथित तौर पर डीएचएफएल संस्थाओं को फ्रॉड लोन के रूप में बिना डिलिजेंस, बिना प्रतिभूतियों को प्राप्त किए, बही खातों में हेर-फेर के जरिए डायवर्ट किया गया था. इसकी एक कॉपी दिप्रिंट ने देखी है.

सीबीआई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘डीएचएफएल ने बैंकों के कंसोर्टियम से लिए गए कर्ज और एडवांस पर जानबूझकर चूक की, जिससे बैंकों को 34,614.88 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.’

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यस बैंक से जुड़े कथित धोखाधड़ी के एक मामले में वधावन भाइयों सहित डीएचएफएल के प्रमोटर भी सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों के जांच के दायरे में हैं. इस नए मामले की जांच पर प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट ने मेल के जरिए उनकी कानूनी टीम से संपर्क साधने की कोशिश की थी, लेकिन बताया गया कि मामला अब तक किसी वकील को नहीं सौंपा गया है.

यस बैंक के मामलों में, वकीलों ने कहा है कि दोनों भाई एजेंसियों के साथ सहयोग कर रहे हैं और जांच के लिए सभी जरूरी दस्तावेज जमा कर दिए हैं.

मौजूदा मामले में यह आरोप लगाया गया है कि डीएचएफएल के प्रमोटरों ने ‘प्रोजेक्ट फाइनेंस’ के तौर पर 14,000 करोड़ रुपए की राशि वितरित की लेकिन यह राशि उनके बही खातों में ‘खुदरा ऋण’ के रूप में दिखाई गई थी ताकि फंड को डायवर्ट किया जा सके.

सीबीआई की प्राथमिकी जिस शिकायत पर आधारित है, उसके मुताबिक कंपनी ने ‘ इनफलेटिड रिटेल लोन पोर्टफोलियो’ बनाए और उनमें 1.8 लाख से अधिक झूठे और नॉन-एक्जिस्टेंट लोन को दिखाया गया.

शिकायत में बताया गया कि इन कथित ऋणों के रिकॉर्ड ‘बांद्रा बुक्स’ नाम के डेटाबेस में रखे गए थे और वे ‘बाद में ओएलपीएल ऋण (अन्य बड़े परियोजना ऋण) के साथ विलय कर दिए गए’

इस मामले से पहले, भारत में संदिग्ध बैंक धोखाधड़ी के अब तक के सबसे बड़े मामले में एबीजी शिपयार्ड शामिल था. इसमें एक निजी फर्म पर बैंकों से उधार लिए गए 22,842 करोड़ रुपये के फंड को डायवर्ट करने का आरोप लगाया गया है.


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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत

सीबीआई में सूत्र के अनुसार, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के उप महाप्रबंधक विपिन कुमार शुक्ला ने वधावन और सहाना के निदेशक के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी. शिकायत के आधार पर 11 फरवरी 2022 को इस संबंध में वधावन और सहाना समूह के निदेशक सुधाकर शेट्टी व अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.

सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘ यह मामला आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात, बहीखातों और खातों में हेरा-फेरी और सरकारी कर्मचारियों के आधिकारिक पद के दुरुपयोग से संबंधित हैं’

एफआईआर के अनुसार, डीएचएफएल ने मई 2019 से कर्जदाताओं को अपने ऋण भुगतान दायित्वों को डिफॉल्ट करना शुरू कर दिया था.

एफआईआर में कहा गया है कि 1 फरवरी 2019 को कर्जदाताओं के साथ बैठक में डीएचएफएल के नकदी प्रवाह की निगरानी के लिए समितियों को नियुक्त करने का निर्णय लिया गया था और फिर अल्वारेज़ एंड मार्सल को ‘विशेष निगरानी’ के लिए एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया.

प्राथमिकी में लिखा है, ‘उसी बैठक के दौरान उधारदाताओं ने अप्रैल 2015 से दिसंबर 2018 की अवधि के लिए डीएचएफएल के वित्त की एक विशेष समीक्षा ऑडिट करने के लिए ऑडिट फर्म केपीएमजी को नियुक्त किया, ताकि किसी भी तरह के डायवर्जन या फंड की हेराफेरी या अनैतिक प्रथाओं की जांच की जा सके. केपीएमजी ने नवंबर 2019 में ऋणदाताओं को अपनी समीक्षा रिपोर्ट सौंपी थी.’

एफआईआर में आगे कहा गया है, फरवरी 2020 में उधारदाताओं ने फर्म को एक बार फिर से ‘अप्रैल 2015 से मार्च 2019 की अवधि’ के लिए डीएचएफएल के फाइनेंस को ऑडिट करने के लिए नियुक्त किया था.


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कैसे ऑडिट ने ‘सारे राज खोल दिए’

ऊपर उद्धृत सीबीआई अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जनवरी 2021 में केपीएमजी ने एक फोरेंसिक ऑडिट में पाया कि डीएचएफएल ने बड़े स्तर पर फंड को कर्ज और एडवांस के रूप में 66 ‘इंटर-कनेक्टेड कंपनियों’ को वितरित किया था.

सूत्र ने बताया, ‘66 में से 35 ऐसी संस्थाओं को 2015 और 2018 के बीच ऋण और एडवांस दिया गया था. इनमें से 35 में से 25 कंपनिया ऐसी थी जिनका संचालन न के बराबर था. उन्हें भी बतौर कर्ज फंड बांटा गया था. अन्य 31 कंपनियों के बारे में बाद में पता चला था.

सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘कुल मिलाकर 29,100.33 करोड़ रुपए का कर्ज था.

प्राथमिकी के अनुसार, 2015-2018 से इन इंटर-कनेक्टेड कंपनियों में से 35 को 24,595 करोड़ रुपए के ऋण और एडवांस का वितरण किया गया था.

सूत्र ने कहा, ‘इस तरह पैसे को डायवर्ट किया जा रहा था’

सूत्र ने आगे बताया, ‘डीएचएफएल से जुड़ी संस्थाओं को कर्ज के रूप में दी जा रही इस राशि का इस्तेमाल शेयरों और डिबेंचर की खरीद के लिए भी किया गया था. इन कंपनियों और व्यक्तियों में से अधिकांश का संबंध भूमि और संपत्तियों के लेन-देन और निवेश से था.’

एफआईआर के मुताबिक, ऑडिट में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं, संबंधित पार्टियों से फंड का डायवर्जन, फ्रॉड नॉन एक्जिस्टेंट लोन को दिखाने के लिए जाली बही खाते बनाना, फंड की राउंड-ट्रिपिंग और कपिल वधावन, धीरज वधावन और उनके सहयोगियों द्वारा संपत्ति के निर्माण के लिए डायवर्ट की गई राशि का इस्तेमाल का संकेत दिया था.

सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘ईमेल बताती हैं कि कपिल वधावन के नियंत्रण में कई कंपनियां थीं.’

सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘ ईमेल से यह भी पता चलता है कि उन्होंने इन कंपनियों के निदेशकों और लेखा परीक्षकों को नियुक्त किया और इन कंपनियों के समग्र वित्त का प्रबंधन करते हुए सचिवीय रिकॉर्ड को भी संभाला हुआ था.’

अपनी प्राथमिकी में जांच एजेंसी ने कहा कि न्यूनतम संचालन वाली कंपनियों को पर्याप्त दस्तावेजों और मोर्टेज सिक्योरिटीज के मूल्यांकन के बिना ही कर्ज दिया गया था. फंड डायवर्ट किया गया और कई मामलों में सहाना समूह के सुधाकर शेट्टी से संबंधित संस्थाओं में निवेश के लिए उपयोग किया गया था.

इसमें कहा गया है, ‘ फंड को एनसीडी (नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर), प्रमोटर समूह की संस्थाओं के वरीयता शेयरों या संयुक्त उद्यमों में निवेश के लिए डायवर्ट किया गया था. आईसीडी (इंटर-कॉर्पोरेट डिपॉजिट) ऋण खातों को एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) के रूप में वर्गीकृत किए बिना रोलओवर किया गया था. कई मामलों में तो बैंक खाते के विवरण में ब्याज की अदायगी से कई सौ करोड़ की राशि का पता नहीं लगाया जा सकता था.’

‘बांद्रा बुक्स’

सीबीआई में दर्ज शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि डीएचएफएल और उसके प्रमोटरों ने अपनी संस्थाओं को ‘प्रोजेक्ट फाइनेंस’ के रूप में 14,000 करोड़ रुपए की राशि वितरित की लेकिन यह राशि ‘उनके बही खातों में रिटेल लोन’ के रूप में दिखाई गई थी.

प्राथमिकी के अनुसार, ‘इसकी वजह से एक इन्फ्लेटेड रिटेल लोन पोर्टफोलियो तैयार किया गया और इसमें 1,81,664 फर्जी और 14,095 करोड़ रुपए (31 मार्च 2019 तक बकाया) के नॉन एक्जिस्टेंट रिटेल लोन बनाए गए’

प्राथमिकी में कहा गया है, ‘ये रिटेल लेन, जिन्हें ‘बांद्रा बुक्स’ कहा जाता है, को एक अलग डेटाबेस में रखा गया था. जबकि इस कर्ज को डीएचएफएल ने वितरित किया था और बाद में ओएलपीएल ऋण (अन्य बड़े परियोजना ऋण) के साथ विलय कर दिया गया था.’

‘बांद्रा बुक्स’ की राशि में से, 11,000 करोड़ रुपए कथित तौर पर ओएलपीएल को हस्तांतरित कर दिए गए थे और शेष 3,018 करोड़ रुपए को रिटेल पोर्टफोलियो के हिस्से के तौर पर असुरक्षित रिटेल लोन के रूप में रखा गया था.

ऊपर उद्धृत सीबीआई अधिकारी ने बताया, ‘ओएलपीएल के रूप में दिए गए लार्ज वैल्यू लोन को बांद्रा बुक में स्मॉल रिटेल लोन के तौर पर दर्शाए गए थे. इस बात की जांच की जा रही है कि सांविधिक लेखा परीक्षकों ने ऑडिट के दौरान इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की थी. यह साफ है कि कोई जवाबदेही तय नहीं की गई थी और इसलिए सरकारी कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच की जाएगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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