शिमला: हिमाचल प्रदेश इस मानसून में भयंकर बाढ़ के प्रकोप का सामना कर रहा है. ब्यास नदी और उसकी सहायक नदियां उफनती हुई कुल्लू और मंडी जिलों में कहर बरपा रही हैं. घरों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान नष्ट हो रहे हैं. नदियां वाहनों को बहा ले जा रही हैं और सड़कों और राजमार्गों को नुकसान पहुंच रहा है.
विशेषज्ञों और राज्य सरकार के अधिकारियों ने नदियों में बढ़ते जल स्तर के पीछे मशीनों से नदी खनन को रोकने को एक कारण बताया है.
हिमाचल के खनन विभाग के भूविज्ञानी अतुल शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “बाढ़ के पीछे का एक कारण वर्षों से जमा हुई तलछट के कारण नदी तल का सिकुड़ना है, जिसके कारण नदियां किनारों पर बहने लगती हैं. मंडी और कुल्लू में, ब्यास में किसी भी प्रकार के खनन की अनुमति नहीं है. वैज्ञानिक खनन ही इसका समाधान हो सकता है.”
यह मामला पहली बार तब चर्चा में आया जब लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री विरकामादित्य सिंह ने 11 जुलाई को हिमाचल में बाढ़ का पहला दौरा किया था.
जलमग्न सैंज और कुल्लू क्षेत्र का दौरा करने के बाद सिंह ने मीडिया से कहा था कि नदी के तल पर बहुत सारे मलबे और बोल्डर जमा हो गए हैं.
उन्होंने कहा, “नदी के तल का नियंत्रित वैज्ञानिक खनन ही इसका समाधान है और इस मामले को उठाया जाना चाहिए.”
लोक निर्माण विभाग और जल शक्ति विभाग के अधिकारियों ने न केवल ब्यास बल्कि सिरमौर में तबाही मचाने वाली यमुना और अन्य छोटी नदियों के तल को भी साफ करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
पीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी ने कहा, “हाल ही में कुल्लू और मंडी में आई बाढ़ के बाद, हमें रेत और बजरी से भरी नदी को साफ करने के लिए कुछ उपाय करने होंगे. इसे हटाना होगा ताकि नदी अपने सही रास्ते पर बह सके.”
हिमाचल सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य सरकार तलछट को हटाने के लिए नदी तल पर नियंत्रित खनन की अनुमति देने की संभावना पर विचार कर रही है.
हालांकि, इस विचार ने पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है, जो पहले ही इसको लेकर सावधानी बरतने की वकालत करते रहे हैं कि कहीं इस कदम के परिणामस्वरूप नदी तल में बड़े पैमाने पर खनन न हो जाए.
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, 2018 से हिमाचल प्रदेश में अधिकृत नदी तल खनन गतिविधि बंद हो गई है क्योंकि सरकार ने इसके लिए वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) के तहत अनुमति अनिवार्य कर दी है.
हिमाचल सरकार के एक दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य ने कुल्लू और मंडी में ब्यास नदी का अध्ययन करने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया है. उन्होंने कहा, “इस पैनल द्वारा एक रिपोर्ट बनाई जाएगी, जिसके बाद राज्य सरकार एक ड्रेजिंग नीति पर विचार कर सकती है जिसे जल शक्ति विभाग द्वारा तैयार किया जाएगा.”
जल शक्ति विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “हिमाचल की प्रमुख नदियों में ड्रेजिंग की आवश्यकता है क्योंकि लंबे समय से तलछट नहीं हटाई गई है.”
उन्होंने कहा, “ड्रेजिंग का मतलब नदी के तल में खनन करना नहीं है बल्कि सफाई करना और पानी के लिए अधिक जगह बनाना है.”
हिमाचल के दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बाढ़ और भारी बारिश से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए अपने कुल्लू दौरे के दौरान ब्यास नदी में तलछट के भार की ओर इशारा किया था.
अधिकारी ने कहा कि नदी में तलछट में शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हो रहे निर्माण का मलबा भी शामिल था जिसे छोटी धाराओं में बहा दिया गया था जो बाद में ब्यास नदी के नीचे जाकर बैठ गई.
शर्मा ने कहा, “एक विशेषज्ञ पैनल उन स्थानों की पहचान करने के लिए ब्यास नदी का अध्ययन कर रहा है जहां तलछट का खनन किया जा सकता है.”
पीडब्ल्यूडी अधिकारी ने कहा कि विभाग ने खनन अधिकारियों को नदियों और नालों में जमा मलबा को उठाने के लिए लिखा था क्योंकि यह किनारों पर बह रही थी और सड़क के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा रही थी.
अधिकारियों ने कहा कि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी यही समस्या है.
हिमाचल सरकार के एक दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “राज्य (उत्तराखंड) ने एक नदी ड्रेजिंग नीति बनाई है और सिंचाई विभाग इसकी देखभाल कर रहा है. इसमें नदियों से तलछट हटाना शामिल है ताकि वे तल से बाहर न बहें. इसे नदी किनारे बनी सड़कों के क्षतिग्रस्त होने के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में देखा गया. विशेषज्ञों द्वारा ब्यास का अध्ययन पूरा करने के बाद हिमाचल सरकार अपनी योजना तैयार करेगा.”
यह भी पढ़ें: CWC से बाहर रखे जाने पर मणिशंकर अय्यर बोले — ‘गांधी, खरगे मानते हैं मैं डायनासोर और हल्की तोप हूं’
‘खनन का नियमन कौन करेगा?’
पर्यावरण अनुसंधान ग्रुप, हिमधारा के सह-संस्थापक और हरित कार्यकर्ता मंशी अशर ने कहा कि तलछट की सफाई की आड़ में नदियों को खनन के लिए खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “लोगों को बाढ़ के कारण नुकसान हुआ है और अगर राज्य सरकार इसके लिए नदी के तलछट को जिम्मेदार ठहराती है, तो इस समय समुदाय की ओर से खनन के प्रति कम प्रतिरोध होगा. लेकिन खनन ठेकेदारों के लिए यह ‘आपदा में अवसर’ नहीं बनना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि “नदी में कुछ ऐसे स्थान हो सकते हैं जहां तलछट अत्यधिक जमा हो गई है”.
उन्होंने आगे कहा, “लेकिन इसके लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन और एक अंतःविषय दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि हम एक आपदा को रोकने के लिए दूसरे आपदा को निमंत्रण नहीं दे.”
उन्होंने बताया, “कहां खनन करें, कैसे खनन करें और कितना खनन करें, ये कुछ प्रमुख चिंताएं हैं और हिमाचल सरकार को बाजार के हिसाब से एक अलग दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए.”
किन्नौर के पर्यावरणविद् नरेंद्र सिंह नेगी ने भी यही बात कहीं.
उन्होंने कहा, “मशीनीकृत खनन हानिकारक है. आमतौर पर 3-4 फीट से अधिक गहराई तक खनन की अनुमति नहीं है और मशीनें इससे अधिक गहराई तक खुदाई करेंगी. इसके लिए नियम कौन बनाएगा? खनन विभाग अवैध खनन पर अंकुश नहीं लगा सका जो कई स्थानों पर बेरोकटोक चल रहा है.”
यह भी पढ़ें: ‘कोई समानता नहीं’, हरियाणा के गेस्ट टीचर्स CM के निर्वाचन क्षेत्र में क्यों बना रहे आंदोलन की योजना
मंडी, कुल्लू जिलों में सर्वेक्षण
खनन विभाग द्वारा तैयार की गई मंडी और कुल्लू की 2018 की सर्वेक्षण रिपोर्ट में ब्यास नदी और दो जिलों में अन्य प्रमुख नदियों में तलछट के अत्यधिक जमा होने पर बात कहीं गई है. इसमें कहा गया है कि बाढ़ ने इस मानसून में भारी नुकसान पहुंचाया था.
लेकिन रिपोर्ट में नदी तल की सफ़ाई के लिए मशीनों के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई गई थी.
इसमें कहा गया है, “किसी भी अन्य अर्थ-मूविंग मशीन जैसे जेसीबी, बुलडोजर, पोकलेन, लोडर आदि से उत्खनन नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही ठेकेदार द्वारा खनन करवाने से नदी और जलधारा को नुकसान पहुंच सकता है.”
सर्वेक्षण के अनुसार मंडी जिले में ब्यास में लगभग 3.21 करोड़ मिलियन टन का तलछट भार था.
मंडी की रिपोर्ट में बताया गया था कि नदी/नालों के कुछ हिस्सों में, रेत बजरी के द्वीप बन गए थे, जिससे नदी दो धाराओं में विभाजित हो गई थी. यह नदी की प्रकृति के लिए ठीक नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे स्थानों, यानी केंद्रीय द्वीपों में, “विस्तृत अध्ययन के बाद दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों में एक मीटर से अधिक खनन की अनुमति दी जा सकती है”.
कुल्लू के लिए, रिपोर्ट ने पर्यावरण प्रदूषण और संसाधनों के अत्यधिक दोहन के खिलाफ सुरक्षा के रूप में भूमिगत जल स्तर के नीचे खनन को हतोत्साहित किया.
खनन विभाग के एक तीसरे वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि हिमाचल के 12 जिलों में से नौ- शिमला, सोलन, सिरमौर, कुल्लू, लाहौल स्पीति, किन्नौर, चंबा, मंडी और बिलासपुर में खनन के लिए एफसीए के तहत अनुमति की आवश्यकता थी.
उन्होंने कहा, “हमने इन नौ जिलों में खनन स्थलों की नीलामी की, लेकिन अधिकांश खननकर्ता एफसीए अनुमति रिपोर्ट नहीं दिखा सकें. अब, 2018 से नदी तल पर खनन लगभग बंद हो गया है. इससे जल निकायों में हजारों टन तलछट जमा हो गई है, जिससे वे सिकुड़ गए हैं और बारिश के दौरान आसपास के इलाकों में बाढ़ आ गई है.”
अधिकारी ने अवैध खनन गतिविधियों से इनकार नहीं किया, लेकिन कहा कि अवैध रूप से खनन की गई सामग्री की मात्रा नदी के तल पर कोई फर्क डालने के लिए बहुत कम थी.
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: बिल्डरों के ‘बकाया’ के बावजूद घर खरीदारों को लिए ‘तत्काल’ रजिस्ट्रेशन और कब्ज़ा दिया जाए: कमेटी