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Monday, 4 November, 2024
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‘मोदी सरकार उद्योगपतियों के झुंड से घिरी’, हेमंत सोरेन कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ गए एससी

झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का कहना है कि उनकी सरकार ने 22 कोयला ब्लॉकों के नीलामी की मंजूरी नहीं दी है, यह कहते हुए कि मोदी सरकार का फैसला 'कोऑपरेटिप फेडरलिज्म के खिलाफ' था.

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रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह ‘पूरी तरह से बिजनेसमैन के झुंड से घिरी हुई है’. इसलिए उन्होंने राज्य के 22 कोयला ब्लॉकों को नीलामी करने के अपने फैसले को खारिज कर दिया है.

सोरेन ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘मोदी सरकार ने राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना जल्दबाजी में यह निर्णय लिया है. सरकार पूरी तरह उद्योगपतियों के झुंड से घिरी हुई है. उनकी टिप्पणी शनिवार को तब आई है जब उनकी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, जिसमें उन ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की गई, जो राज्य को करीब 90,000 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा सकती थीं.

पीएम मोदी ने अपनी सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में, गुरुवार को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी शुरू की थी. इनमें से लगभग 22 ब्लॉक झारखंड में हैं.

केंद्र सरकार ने बीते 18 जून को देशभर के 41 कोल ब्लॉक की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की है. इसमें पहली बार विदेशी निवेश को भी शामिल किया जा रहा है. इस 41 कोल ब्लॉक में सबसे अधिक झारखंड के 22 कोल ब्लॉक शामिल हैं. इन खदानों से कुल 386 करोड़ टन कोयले के खनन होने की बात कही गई है.

पीएम मोदी जहां इस पहले आपदा को अवसर कहा था, वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन कह रहे हैं इस वक्त खदान का उचित्त मूल्य नहीं मिल सकता. क्योंकि दुनियाभर में लॉकडाउन है. हेमंत ने नीलामी की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं. साथ ही फिलहाल इसे रोकने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं.

हेमंत सोरेन ने कहा, ‘कोल ब्लॉक आवंटन में विदेशी निवेश के आने की बात कही जा रही है. कोरोना के कारण पूरी दुनिया में लॉकडाउन है. इस स्थिति में कोल ब्लॉक को बाजार से सही मूल्य नहीं मिलेगा.’ उन्होंने यह भी कहा कि, नीलामी से पहले खनन एरिया में सोशियो इनवायरमेंट असेसमेंट (सामाजिक और पर्यावरण प्रभाव का मूल्यांकण) का होना जरूरी है. जो कि फिलहाल सुनिश्चित नहीं किया गया है.’

उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने राज्यों को भरोसे में लिए बिना हड़बड़ी में यह निर्णय लिया है.

बदले हुए नियमों के अनुसार, जिसे मोदी सरकार ने इस साल जनवरी में एक झटके में बदल दिया, इसके लिए राज्य सरकारें जिन्हें तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले जैसे हाइड्रोकार्बन की खोज करने वाली परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी देनी होती है.

झारखंड सरकार 22 कोयला ब्लॉकों को अपनी मंजूरी नहीं देने पर अड़ी हुई है. मुख्यमंत्री ने रविवार को ट्वीट किया था कि मोदी सरकार का निर्णय ‘सह संघवाद की घोर अवहेलना’ करने वाला था.

सरकार को व्यापारियों के एक समूह ने घेर रखा है. सोरेन की बात समर्थन पूर्व मंत्री सरयू राय ने भी किया है. उन्होंने कहा कि, ‘हेमंत का ये रुख राज्यहित में है. उन्हें सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस पर बात करनी चाहिए.’ वहीं बीजेपी ने इसे विकास विरोधी कदम बताया है.

सीएम की ओर से पूर्व में दिप्रिंट को दी गई जानकारी के मुताबिक कोल कंपनियों पर लगभग 50 हजार करोड़ रुपया बकाया है, जो झारखंड सरकार को मिलना है. वहीं डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड में सरकार के पास 5 हजार करोड़ रुपए हैं, जिसे अभी तक खर्च नहीं किया गया है.

90 हजार करोड़ मिल सकते हैं

राज्य को जिन 22 खदानों की नीलामी होनी है उसमें अशोक करेकाटा, बुंडू, चकला, चितरपुर, गोंदुलपाड़ा, नॉर्थ ढाडू, सेरेगढ़ा, महुआमिलान (नॉर्थ कर्णपुरा), ब्रह्माडीहा (गिरीडीह), बूढ़ाखाप, रउता (रामगढ़), चोरीटांड तिलैया, जोगेश्वर, खास जोगेश्वर, लालगढ़ नॉर्थ (वेस्ट बोकारो), जयनगर पतरातू, तोकीसूद-2 (साउथ कर्णपुरा), ओरंगा (लातेहार), महुआगढ़ी, उरमापहाड़ी (राजमहल), राजहरा (डालटेनगंज) और शीतनाला (झरिया) शामिल है.


यह भी पढ़ें: लोकसभा में हंगामे के बीच खनिज विधि संशोधन विधेयक पारित, कोयला खनन प्रक्रिया में आएगी तेज़ी


इस नीलामी से झारखंड को 90 हजार करोड़ रुपए मिल सकते हैं. इन खदानों में लगभग 386 करोड़ टन (इस आंकड़े से संबंधिक डॉक्यूमेंट दिप्रिंट के पास है) कोयला है. खनन कंपनी की ओर से राज्य सरकार को प्रति टन 200-300 रुपए रॉयल्टी मिलती है. इसके अलावा कोल कंपनी अपने प्रॉफिट का 26 प्रतिशत मिनरल फंड में जमा कराती है. एक माइंस से लगभग 30 साल तक खनन होता है.

सरकारी डॉक्यूमेंट

फॉरेस्ट एरिया होगा बर्बाद 

हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक इस खनन से झारखंड के चकला खदान के नजदीक 55 प्रतिशत, चोरीटांड तिलैया के 50 प्रतिशत, सेरेगढ़ा का 44 प्रतिशत फॉरेस्ट एरिया खत्म हो जाएंगे.

इधर पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि जिन खदानों में खनन होना है, वह घना जंगल वाला एरिया है. साल 2009-19 में एक उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक 70 प्रतिशत खनन इलाके को ‘गो एरिया’ और 30 प्रतिशत को ‘नो गो एरिया’ में रखा गया था. नो गो एरिया मतलब जहां घना जंगल है, खनन होने से पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकता है.

पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था सीएसई की पत्रिका डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक उस कमेटी की रिपोर्ट में कुल देशभर के कुल 222 खदानों (3,20,684 हेक्टेयर) को ‘नो गो जोन’ में रखा गया था. जिसे वर्तमान सरकार ने साल 2015 में बदल दिया. इसके बाद इसकी संख्या घटा कर 105 (1,40,311 हेक्टेयर) कर दी गई.

पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी साफ कहते हैं कि, ‘हेमंत सरकार भी पिछली सरकारों की तरह पर्यावरण के मुद्दे को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं दिखती है. पिछली जितनी सरकारें रही हैं, कोई भी पर्यावरण को लेकर गंभीर नहीं रही. जंगल पहले भी कटा है, एक बार फिर कटना तय है. खनन पहले भी हुआ है, जंगल आज तक नहीं लगाया गया. इसबार भी इसकी कोई योजना नहीं दिख रही है. कोयला तो बाहर जाएगा, प्रदूषित झारखंड होगा.’

वहीं प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट के शशि नंद कुलियार ने बताया कि, ‘जिस झारखंड में केवल सारंडा के कुछ इलाके हैं, जिन्हें ‘नो गो एरिया’ घोषित किया गया है. यह केंद्र ने ही तय किया है. जिन 22 खदान का ऑक्शन होना है, उसमें कौन सा ‘गो ज़ोन’ है, कौन सा ‘नो गो ज़ोन’ है, इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है.’

जबकि दिप्रिंट को बीते 19 अप्रैल को दिए साक्षात्कार में उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि खनन ही बंद कर देना चाहिए. इससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है. उर्जा के लिए किसी और स्त्रोत पर विचार और काम करना चाहिए.

नियमों के मुताबिक कोई भी खदान नीलामी के लिए तभी जा सकता है, जब उसे सभी तरह के क्लियरेंस मिल जाए. यह क्लियरेंस स्टेट इनवारामेंटल इंपैक्ट अथॉरिटी और स्टेट इनवायरमेंटल असेसमेंट अथॉरिटी की ओर से मिलती है.

निलामी से पहले कंपनी को फॉरेस्ट प्लान, इनवायरमेंटल प्लान और माइनिंग प्लान भी पास कराने होते हैं. क्या ये सब पास हो चुके हैं? राज्य के खनन सचिव अबुबकर सिद्दीकी कहते हैं, ‘सभी जानकारी फिलहाल वन विभाग के पास है, लीज के लिए जब आवेदन आएगा, तब यह मामला उनके डिपार्टमेंट में आता है.’


य़ह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ सरकार ने कोयला खदानों से अतिरिक्त लेवी के लिए कई बार लिखा पत्र, केंद्र का रवैया हमेशा उदासीन रहा


 विरोध- मजदूरों का शोषण और पलायन 

वहीं नीलामी में विदेशी निवेश को लेकर कई मजदूर संगठन विरोध कर रहे हैं. इनमें इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, धनबाद कोलियरी कर्मचारी संघ और भी कई संगठन शामिल हैं. धनबाद में शनिवार को प्रदर्शन कर रहे पूर्व मंत्री बच्चा सिंह सहित 50 लोगों के खिलाफ डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. इन पर आरोप है कि प्रदर्शन के दौरान इन लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया था. बच्चा सिंह पहले जदयू कोटे से मंत्री थे लेकिन अब उस पार्टी से निकलकर अपना जनता मजदूर संघ बनाया है.

बच्चा सिंह ने बताया कि, ‘बीते 18 जून को हमलोग प्रदर्शन कर रहे थे. जिसके बाद यह एफआईआर हुई है. हमारी मांग है कि इसमें निजी क्षेत्र को नहीं आने देना चाहिए. इससे मजदूरों का शोषण और बढ़ जाएगा. हालांकि वह ये भी स्वीकारते हैं कि सरकारी कंपनियों द्वारा खनन के बावजूद आउटसोर्सिंग की वजह से मजदूरों का शोषण लंबे समय से हो रहा है.’

इससे पहले जिन जगहों पर खनन चल रहा है, वहां आज तक विस्थापन एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. झरिया कोल खदान के आसपास झरिया मास्टर प्लान के मुताबिक 79,159 परिवारों के विस्थापन का मामला अटका हुआ है. इसे साल 2021 तक पूरा हो जाना था. साल 2016 में संसद में दिए एक बयान के मुताबिक पियूष गोयल ने बताया था कि मात्र पांच प्रतिशत लोगों को पुनर्वासित किया गया है.

नया खदान, नई कंपनियां और काले सोने का कारोबार क्या इस बार भी झारखंड को समृद्ध कर पाएगा. या फिर बीते कई सालों की तरह खदान के आसपास वालों को हमेशा की तरह फिर एक दर्द देकर ही जाएगा?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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1 टिप्पणी

  1. Coal blocks auction hona chahiye chakla me Abhijeet power plant band hai coal blocks k wajah se berojgaari dur karne k liye auction hona hi chahiye

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