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Tuesday, 25 June, 2024
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भारतीय अध्ययन में दावा- स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड-19 से बचाने वाली दवा के तौर पर एचसीक्यू कारगर नहीं

जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया के अध्ययन में यह भी पाया गया कि एससीक्यू लेने वालों में पॉजीटिव होने की दर थोड़ी ज्यादा है.

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नई दिल्ली : जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया (जेएपीआई) के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, एक रोगनिरोधी (प्रोफिलैक्टिक) के तौर पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का कोई उपयोग नहीं है.
शोधकर्ताओं ने तो यहां तक पाया गया कि जो इसका उपयोग नहीं कर रहे थे, उनकी तुलना में रोगनिरोधी या सुरक्षात्मक दवा के तौर पर इसका इस्तेमाल करने वालों के पॉजीटिव होने की दर थोड़ी ज्यादा ही थी.

यह निष्कर्ष ऐसे समय सामने आया है, जबकि नोवेल कोरोनोवायरस (सार्स-कोव-2) पर एचसीक्यू के रोग निरोधक प्रभावों की जांच के लिए ब्रिटेन में एक परीक्षण फिर शुरू होने जा रहा है.

अन्य अंतरराष्ट्रीय अध्ययन भी इसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचे हैं, जबकि भारत में कुछ में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि सामान्य रूप से मलेरिया और स्वप्रतिरोधक विकारों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली यह दवा कोरोनोवायरस का संक्रमण रोक सकती है.

भारत में स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम मोर्चे के ऐसे सभी कार्यकर्ताओं के लिए बतौर रोग निरोधक एससीक्यू के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है. कोविड-19 मरीजों के सीधे संपर्क में रहने वाले उनके परिजनों के लिए भी सुरक्षात्मक उपाय के तहत इस दवा की सिफारिश की गई है, खासकर जो देखभाल से सीधे जुड़े हैं.

अध्ययन में क्या पाया गया

हालांकि, अध्ययन 4,000 से अधिक लोगों पर किया गया. लेकिन उनमें से केवल 3,667 का पूरा डाटा उपलब्ध है, जिसके आधार पर अध्ययन का निष्कर्ष निकाला गया है. इनमें से 1,113 लोगों का वायरस के लिए टेस्ट 539 ऐसे अन्य लोगों के साथ किया गया, जिनमें फ्लू जैसे लक्षण विकसित हुए थे. बीस लोगों (1.8 प्रतिशत) का नतीजा पॉजीटिव निकला.

परीक्षण में शामिल समूह में से 755 ने रोगनिवारक के रूप में एचसीक्यू का उपयोग किया था. उनमें से 14 लोग (1.9 प्रतिशत) में वायरस का टेस्ट पॉजीटिव निकला जो दवा न लेने वालों के पॉजीटिव पाए जाने की दर 1.7 प्रतिशत से ज्यादा है.

ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में काम कर रहे स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं (एचसीडब्ल्यू) में कम जोखिम क्षेत्र वालों की तुलना में लक्षण तो ज्यादा पाए गए लेकिन पॉजीटिव होने की दर कोई अंतर नहीं था. शोधकर्ताओं ने लिखा, हमारे पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह भारत के स्वास्थ्य कर्मियों पर इस तरह का पहला अध्ययन है. हमारा निष्कर्ष बताता है कि ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में पीपीई की पर्याप्त व्यवस्था के साथ तैनात एचसीडब्ल्यू के लिए अधिक जोखिम नहीं होता है. वहीं, एक रोगनिरोधक के रूप में एचसीक्यू कारगर नहीं है.

शोध में शामिल लोगों में 52.1 प्रतिशत पुरुष और 47.9 प्रतिशत महिलाएं थीं. जिनकी औसत आयु 18-40 वर्ष के बीच थी.

मैक्स हेल्थकेयर के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में स्थित पांच मैक्स हॉस्पिटल, मुंबई के बीएलके सुपरस्पेशलिटी अस्पताल और नानावती अस्पताल के 3,667 स्वास्थ्य कर्मियों (डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ आदि) से संबंधित डाटा का विश्लेषण किया गया. डाटा 23 मार्च और 30 अप्रैल के बीच एकत्र किया गया था. एचसीक्यू को बतौर रोगनिवारक इस्तेमाल करने पर स्वास्थ्य मंत्रालय का पहला परामर्श 23 मार्च को जारी किया गया था.


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शोधकर्ताओं के मुताबिक, कई स्वास्थ्यकर्मी व्यक्तिगत स्तर पर बतौर सुरक्षात्मक उपाय एससीक्यू/क्लोरोक्वीन/एजिथ्रोमाइसिन ले रहे थे. हमारे अध्ययन के मुताबिक एचसीक्यू ने संक्रमण को रोकने में कोई भूमिका नहीं निभाई. सुनियोजित तरीके से विभिन्न समीक्षाओं से यह निष्कर्ष भी निकला कि शोध से इतर एचसीक्यू के इस्तेमाल से संबंधित उपयुक्त डाटा नहीं है और वास्तव में इसके प्रभावी होने, क्यूटीके के लंबे समय तक बढ़ने जैसे प्रतिकूल प्रभावों और इससे सुरक्षा की झूठी धारणा बनने को साबित करने के लिए क्लीनिकल डाटा का अभाव है.

क्यूटीसी का बढ़ना एक असामान्य ईसीजी को दर्शाता है जो एचसीक्यू के उपयोग के ज्ञात प्रतिकूल प्रभावों में से एक है.
स्वास्थ्यकर्मियों पर बड़े पैमाने पर अध्ययन करने का आह्वान करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि सिम्पटमैटिक मरीजों के पॉजीटिव पाए जाने की उच्च दर को देखते हुए व्यावहारिक यही होगा कि संसाधनों का इस्तेमाल सिम्पटमैटिक लोगों के परीक्षण पर किया जाए और व्यापक स्तर पर कांटैक्ट ट्रेसिंग की जाए.

अंतरराष्ट्रीय अनुभव

एचसीक्यू के बारे में यह निष्कर्ष नया नहीं कि ये एक प्रभावी रोगनिरोधी एजेंट नहीं हैं, लेकिन यह पहली बार है कि जब भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों पर इस तरह का कोई अध्ययन प्रकाशित हो रहा है.

इस माह के शुरू में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा, मैकगिल यूनिवर्सिटी और कई अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने बताया उच्च या मध्यम किसी भी तरह के जोखिम की स्थिति में पुष्ट संक्रमण मामले या कोविड-19 रोगी के संपर्क में आने के बाद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बीमारी से बचा नहीं पाई, जबकि इसे संपर्क में आने के चार दिन के भीतर रोगनिरोधी दवा के तौर पर दिया गया.

यह जानकारी भी सामने आई है कि प्लेसबो (16 प्रतिशत) की तुलना में एचसीक्यू (40 प्रतिशत से अधिक) का दुष्प्रभाव अधिक है.

इस संदर्भ में मैक्स के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण अंतर यह था कि यह एक डबल ब्लाइंड प्लेसबो-नियंत्रित परीक्षण था. इसका सीधा आशय यह है कि परीक्षण शामिल लोगों को यह नहीं पता था कि उन्हें एचसीक्यू या प्लेसेबो में क्या मिल रहा है. मैक्स शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐसे में बीमारी से बचाव की झूठी भावना की संभावना खत्म हो गई थी. ट्रायल और कंट्रोल दोनों ही समूहों में पॉजीटिव होने की दर समान पाई गई.

भारत की सिफारिश

भारत मार्च से ही सुरक्षात्मक दवा के तौर पर एचसीक्यू के इस्तेमाल की अपनी सिफारिश पर दृढ़ था. 22 मई को इस परामर्श को स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ अग्रिम पंक्ति के सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए भी लागू कर दिया गया. दिशा-निर्देश के तहत अग्रिम मोर्च के सभी एसिम्पटमैटिक कार्यकर्ताओं, मसलन कंटेनमेंट जोन में तैनात निगरानी कार्यकर्ता, कोविड-19 की रोकथाम से जुड़ी गतिविधियों में शामिल अर्द्धसैनिक/पुलिस के जवान आदि के लिए एचसीक्यू का इस्तेमाल अनिवार्य है, इसके अलावा दो अन्य समूहों के लिए मार्च में की गई सिफारिश यथावत है.

केंद्र सरकार का कहना है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की कोविड-19 टास्क फोर्स ने इन सिफारिशों को तीन अध्ययनों के आधार पर तैयार किया था. पूर्व के एक अध्ययन में आईसीएमआर ने एसिम्पटमैटिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जिनका सार्स-कोव-2 संक्रमण के लिए टेस्ट किया गया, में रोग निरोधक की खुराक लेने और सार्स-कोव-2 संक्रमण होने के अंतराल के बीच एक अहम खुराक-प्रतिक्रिया संबंध पाया.

नई दिल्ली में केंद्र सरकार के तीन अस्पतालों में हुई एक अन्य जांच में पाया गया कि रोग निरोधक एचसीक्यू ले रहे स्वास्थ्यकर्मियों के सार्स-कोव-2 संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम थी. तीसरी थी नई दिल्ली के एम्स में 334 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर हुई ऑब्जरवेशनल पर्सपैक्टिव स्डटी जिसमें 248 ने एचसीक्यू (औसतन छह हफ्ते तक फॉलोअप) लिया. इसमें भी पता चला कि रोगनिरोधक एचसीक्यू लेने वालों में सार्स-कोव-2 संक्रमण के मामले कम थे.


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मई में तेलंगाना सरकार ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर अध्ययन से जुड़ी एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की, जो एचसीक्यू ले रहे थे. सिकंदराबाद के गांधी मेडिकल कॉलेज में हुए अध्ययन में बताया गया कि 694 लोगों में से 394 लोग एक पॉजीटिव मरीज के संपर्क में आए लेकिन उनमें कोई लक्षण नहीं दिखे. उनमें से 71 प्रतिशत का वायरस की जांच के लिए रैंडम टेस्ट किया गया और सभी निगेटिव पाए गए.

दवा के दुष्प्रभाव

दवा के दुष्प्रभाव के बारे में जो बात जेएपीआई और एनईजेएम दोनों के अध्ययनों में कही गई है, कुछ वैसे ही तथ्य अन्य अध्ययनों में भी सामने आए हैं.

स्वास्थ्य मंत्रायल का परामर्श कहता है, 1,323 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर रोगनिरोधक एचसीडब्ल्यू आकलन के दौरान जी मिचलाना (8.9 प्रतिशत), पेट दर्द (7.3 प्रतिशत), उल्टी (1.5 प्रतिशत), हाइपोग्लाइसीमिया (1.7 प्रतिशत) और कार्डियो-वस्कुलर प्रभाव (1.9 प्रतिशत) जैसे मामूली दुष्प्रचार पाए गए. हालांकि, फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार एचसीक्यू के दुष्प्रभाव से जुड़े 214 मामले सामने आए हैं. इनमें 7 गंभीर मामले व्यक्तिगत स्तर पर दवा के इस्तेमाल से जुड़े थे, जबकि तीन मामलों में ईसीजी में क्यूटी इंटरवल बढ़ने की समस्या पाई गई.

यही वजह है कि बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, दिल की बीमारी या अन्य रोगों से पीड़ित लोगों के लिए इस दवा के इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की जाती है. इसका इस्तेमाल करने की स्थिति में लगातार निगरानी और कम से कम एक बार ईसीजी कराना जरूरी होता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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