scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतग्राफ बता रहा है कि अभी बाकी है भारत में कोरोना महामारी का सबसे बुरा दौर

ग्राफ बता रहा है कि अभी बाकी है भारत में कोरोना महामारी का सबसे बुरा दौर

स्पेन, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे प्रमुख यूरोपीय देशों ने अपने यहां लॉकडाउन में पहले फ़ेज़ की रियायत तभी देना शुरू किया जब उनके यहां इस महामारी से जुड़े नए मामलों का ग्राफ़ अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंच कर नीचे गिर गया था.

Text Size:

कोरोनावायरस महामारी से निपटने के लिए 24 मार्च से देशभर में घोषित लॉकडाउन को भारत सरकार ने आगे बढ़ा दिया है, लेकिन अब लॉकडाउन में पहले जैसी सख्ती नहीं रहेगी. व्यावहारिक तौर पर, देश अब धीरे-धीरे लॉकडाउन की समाप्ति की तरफ़ बढ़ रहा है. लॉकडाउन पर सरकार के हालिया निर्णयों ने इसकी सफलता या असफलता को लेकर बहस छेड़ दी है.

कुछ लोगों का मानना है कि लॉकडाउन से देश में कोरोना की स्थिति पर क़ाबू पा लिया गया है. उनके ऐसा मानने के पीछे संख्या का गणित है, जिसके आधार पर वे अलग-अलग देशों ख़ासकर विकसित देशों में कोरोना से प्रभावित लोगों की तुलना भारत में कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या से करके देख रहे हैं तो यह संख्या काफ़ी कम नज़र आ रही है. ऐसी तुलना में इन देशों की जनसंख्या को एक पहलू के तौर पर शामिल कर लेने पर भारत की स्थिति और बेहतर दिखती है.

इस लेख में यह समझने की कोशिश की जाएगी कि संख्याएं और क्या कह रही हैं? भारत में ज़्यादातर पढ़े-लिखे लोग सीधे-सीधे संख्याओं के आधार पर ही कोरोना की स्थिति पर बातचीत कर रहे हैं, जबकि वैज्ञानिक/शोधार्थी उन संख्याओं की और भी एडवांस एनालिसिस करके भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगा रहे हैं और उससे लड़ने की रणनीति भी सुझा रहे हैं.

एनालिसिस करने के लिए इस लेख में वर्ल्डमीटर की वेबसाइट से 31 मई तक के आकड़ों को लिया गया है. यह संस्था दुनियाभर के देशों में कोरोना की स्थिति पर आंकड़े जारी कर रही है. यह आंकड़े सामान्य लोगों की समझ में आ जाएं, इसलिए लेखक ने इसमें थोड़ी-बहुत काट-छांट की है.


यह भी पढ़ेंः कोरोना संकट के दौर में नौकरशाही ने नरेंद्र मोदी को निराश किया


संख्याओं के आधार पर भारत में कोरोना की स्थिति

सिर्फ़ संख्या के आधार पर देखा जाए तो 31 मई तक के वर्ल्डमीटर के आंकड़े के अनुसार पूरी दुनिया में 63.39 लाख व्यक्ति कोरोना की चपेट में आए, जिसमें से 3.76 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी. इस महामारी से प्रभावित व्यक्तियों की संख्या के आधार पर भारत दुनिया के टॉप 10 देशों में 7वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका पहले, ब्राज़ील दूसरे और रूस तीसरे स्थान पर है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

चूंकि भारत जनसंख्या के मामले में चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, इसलिए जनसंख्या के सापेक्ष कोरोना प्रभावितों की तुलना करने पर भारत में कोरोना से प्रभावितों लोगों की संख्या कम दिखती है. सरकार और उसके समर्थक इसी औसत की तकनीक का सहारा लेते हैं और बताते हैं कि भारत ने कोरोनावायरस का मुकाबला सही तरह से किया है.

कोरोना से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण सूचना मृत्यु को लेकर है. टेबल-1 में मृत्यु के आंकड़े देखने पर भी भारत में यह संख्या काफ़ी कम दिखाई देती है, जिसे सकारात्मक तौर पर लिया जा सकता है. लेकिन यदि प्रति 1 करोड़ व्यक्तियों पर होने वाले टेस्ट की संख्या देखी जाए तो भारत में जनसंख्या के अनुपात में अभी भी काफ़ी कम टेस्ट हो रहा है. कम टेस्ट एक संशय को जन्म देता है कि कई मौतें बिना जांच किए भी हो सकती हैं.

 

Source- https://www.worldometers.info/ (Extracted and Edited by Arvind Kumar)

ग्राफ़ के आधार पर कोरोना की स्थिति का अध्ययन

कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या को देखने पर किसी देश में कोरोना पर स्थिति का एक अनुमान तो लगता है, लेकिन इससे दो या दो से ज़्यादा के देशों में इस महामारी की स्थिति पर सार्थक तुलना नहीं हो पा रही है, क्योंकि हर तुलना में कोई न कोई ख़ामी निकल आती है. अतः संख्या से आगे बढ़कर ग्राफ़ के आधार पर देशों के बीच कोरोना की स्थिति को समझकर तुलना किए जाने की ज़रूरत होती है. हालांकि ग्राफ़ भी संख्या के आधार पर ही बनता है लेकिन वह ज़्यादा सार्थक होता है.

कोरोना पर भारत की स्थिति को ग्राफ़ के माध्यम से समझने से पहले ग्राफ़ की तकनीकी पर थोड़ा सा प्रकाश डाल लेने की ज़रूरत है.

सांख्यिकी में किसी भी घटना का जब ग्राफ़ से अध्ययन किया जाता है, जिसमें बहुत बड़े डाटा (Big Data) का इस्तेमाल हो तो यह पहले से ही माना जाता है कि वह अंत में नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन (Normal Distribution) के नियम का पालन करेगा. यदि बहुत बड़ा डाटा ना हो तो उसका ग्राफ़ नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन के नियम का पालन कर भी सकता है, नहीं भी कर सकता. नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन का मतलब होता है कि ग्राफ़ शुरुआत में बढ़ेगा, बीच में अपने शीर्ष बिंदु (Peak Point) पर पहुंचेगा, और आख़िरी में नीचे की तरफ़ गिरेगा. ऐसा करते हुए वह अंत में घंटी जैसी आकृति बनाता है, जैसा कि नीचे के चित्र में दिखाया गया है.

चूंकि कोरोनावायरस का फैलना भी बिग डाटा (Big Data) एनालिसिस का विषय है, इसलिए इसके ग्राफ़ के बारे में भी माना जा रहा है कि विभिन्न देशों में यह नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन के नियम का पालन करेगा, यानी शुरुआत में बढ़ेगा, बीच में अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंचेगा, और अंत में नीचे की तरफ़ गिरेगा. किसी देश में कोरोना का ग्राफ़ कितना जल्दी अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंचकर नीचे की तरफ़ गिरना शुरू करेगा, यह वहां की सरकार द्वारा इस महामारी की रोकथाम के लिए लॉकडाउन, टेस्टिंग, स्क्रीनिंग, क्वारेंटाइन जैसे उठाए गए कदमों पर काफ़ी हद तक निर्भर करता है.


यह भी पढ़ेंः अहमदाबाद के परिवार के दो सदस्य ‘सांस की तकलीफ’ से मरे, लेकिन अस्पताल ने नहीं दी कोविड रिपोर्ट


इसमें एक महत्वपूर्ण बात जोड़ देने की ज़रूरत है कि किसी देश में ग्राफ़ कब अपने उच्चतम बिंदु (Peak Point) पर पहुंचेगा यह काफ़ी कुछ इससे भी निर्धारित होता है कि उस देश में पहले मरीज़ की पहचान कब हुई? सामान्य परिस्थितियों में जिस देश में पहले मरीज़ की पहचान जल्दी हुई है, वहां का ग्राफ़ शीर्ष बिंदु पर पहले पहुंचेगा.

 

ग्राफ़ के आधार पर भारत की कोरोना की स्थिति

नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन के ग्राफ़ को यदि अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में कोरोना के प्रतिदिन आने वाले नए मामलों और प्रतिदिन होने वाली मौतों के आंकड़े से बनने वाले ग्राफ़ की तुलना की जाए तो काफ़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है.

 

 

 

 

Source: https://www.worldometers.info/ (Edited by Arvind Kumar)

 

अमेरिका: कोरोना के नए मामलों में अमेरिका का ग्राफ़ अपने शीर्ष पर पहुंच कर स्थिर हो गया दिखायी देता है, लेकिन वह लगातार नीचे की तरफ नहीं गिर रहा है, बल्कि बीच-बीच में उछाल मार देता है. प्रतिदिन होने वाली मौतों के मामले में भी अमेरिका का ग्राफ़ कुछ-कुछ अंतराल के बाद उछाल मार देता है लेकिन कुल मिलाकर वह नीचे की तरफ़ ही गिर रहा है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अमेरिका में कोरोना के मामले में सबसे बुरी स्थिति आ चुकी है और यहां से अब सुधार का अनुमान लगाया जा सकता है.

ब्रिटेन: यहां प्रतिदिन आने वाले नए मामलों में बनने वाला ग्राफ़ पूरी तरीक़े से नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन के नियम का पालन करता दिखता है, क्योंकि अपने शीर्ष पर पहुंचने के बाद वह लगातार नीचे की तरफ़ ही गिर रहा है, ऐसा भले ही कुछ अंतराल के बाद हो रहा है. ब्रिटेन में कोरोना और उससे जुड़ी मौतों के मामले में भी ग्राफ़ कमोबेश नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन के नियम का पालन करते दिखता है, इसमें भी वह कुछ-कुछ अंतराल के बाद उछाल मार देता है, लेकिन वह नीचे की तरफ़ लगातार गिर ही रहा है.


यह भी पढ़ेंः डेटा में समस्या के बाद लैंसेट ने एचसीक्यू को कोविड में मौत के अधिक ख़तरे से जोड़ने वाली विवादास्पद स्टडी वापस ली


भारत: यहां प्रतिदिन कोरोना के नए मामलों और उससे हो रही मौतों के ग्राफ़ को अभी भी अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंचना बाक़ी है. दोनों ही ग्राफ़ तेज़ी से ऊपर की तरफ़ ही बढ़ रहे हैं. ये ग्राफ़ अभी कितनी ऊंचाई को छुएगा इस पर अनिश्चितता बनी हुई है. चूंकि ग्राफ़ अपने शीर्ष बिंदु को छूकर ही नीचे की तरफ़ गिरना शुरू करेगा, इसलिए जब तक ऐसा हो नहीं जाता, तब तक कहना मुश्किल है कि भारत में यह महामारी कब क़ाबू में आएगी.

इस बीच भारत सरकार ने लॉकडाउन में पहले फ़ेज़ की रियायत भी देना शुरू कर दिया है. सरकार का यह निर्णय समझ से परे है क्योंकि इस महामारी से प्रभावित स्पेन, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे प्रमुख यूरोपीय देशों ने अपने यहां लॉकडाउन में पहले फ़ेज़ की रियायत तभी देना शुरू किया जब उनके यहां इस महामारी से जुड़े नए मामलों का ग्राफ़ अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंच कर नीचे गिर गया था.

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं.)

share & View comments