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Monday, 24 June, 2024
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खट्टर सरकार के ई-टेंडरिंग नियम के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी में हरियाणा के सरपंच

पंचायती राज संस्थान अधिनियम में संशोधन करते हुए सरकार ने दो लाख रुपये से ज्यादा के विकास कार्य को ई-टेंडरिंग के माध्यम से कराने का आदेश दिया है. उधर सरपंचों का मानना है कि सरकार के जरिए उठाए गए इस कदम से उनकी शक्तियां छीन ली गई हैं.

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चंडीगढ़: ‘सुशासन’ की दिशा में किया गया प्रयास कभी-कभी उल्टा भी पड़ सकता है. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार के साथ ठीक यही हो रहा है. जब से उन्होंने पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के विकास कार्यों के लिए ई-निविदा शुरू की है, तब से सरपंचों ने उनकी सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया है.

यह निर्णय फरवरी 2021 में लिया गया था. तब राज्य सरकार ने पीआरआई अधिनियम के तहत नियम 134 में संशोधन किया था और कहा था कि पांच लाख रुपये से अधिक के विकास कार्य ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के जरिए किए जाएंगे. बाद में इस राशि को घटाकर दो लाख रुपये कर दिया गया.

लेकिन ये बदलाव 2022 के अंत में ही सामने आ पाए, क्योंकि पंचायतों का कार्यकाल फरवरी 2021 में समाप्त हो गया था. अक्टूबर-नवंबर 2022 में नए सिरे से पंचायत चुनाव हुए और 27 नवंबर को इसके नतीजे घोषित किए गए.

इस फैसले के बाद से सरपंचों ने विरोध करना शुरू कर दिया. सरकार का तर्क है कि पहले नियम 134 के तहत पंचायती राज संस्थाएं किसी भी विकास कार्य को बिना टेंडर जारी किए किसी को भी आवंटित कर सकती थीं. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता था.

लेकिन सरपंच आरोप लगा रहे हैं कि इससे उनके अधिकार छीन लिए गए हैं. क्योंकि अब सारे विकास कार्य सरकारी अधिकारियों के जरिए ही उन्हें मिल पाएंगे.

हरियाणा के पंचायत मंत्री और भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के देवेंद्र सिंह बबली ने पिछले हफ्ते यह कहकर आग में घी डालने का काम किया कि केवल ‘चले हुए कारतूस’ ही फैसले के खिलाफ आंदोलन करने में लगे हुए हैं.

इससे पहले 18 दिसंबर को सरपंचों के विरोध के बीच बबली को उनके गृह जिले फतेहाबाद में एक कार्यक्रम में बोलने नहीं दिया गया था. वे वहां पीआरआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों को संबोधित करने गए थे लेकिन नाराज सरपंचों ने उन्हें चुप करा दिया था.

अब राज्य भर के सरपंचों ने उनके गृह निर्वाचन क्षेत्र टोहाना में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की धमकी दी है. उनका 15 जनवरी को इस क्षेत्र का दौरा करने का कार्यक्रम है. वे वहां अपनी राज्य स्तरीय बैठक की भी योजना बना रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों में उन्होंने हिसार, करनाल, सोनीपत और पानीपत में भी अपना विरोध प्रदर्शन किया है.


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‘खट्टर सरकार को पंचायतों पर भरोसा नहीं’

विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आंदोलनकारियों का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि सरकार को निर्वाचित प्रतिनिधियों पर भी भरोसा नहीं है.

हुड्डा ने गुरुवार को दिप्रिंट से कहा, ‘खट्टर सरकार के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति अविश्वास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने पहले पंचायत चुनावों में एक साल से अधिक की देरी की. और अब वह पंचायतों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं.’

उन्होंने सवाल किया कि अगर सरकार निर्वाचित प्रतिनिधियों से उनकी शक्तियां छीनना ही चाहती है तो फिर चुनाव क्यों कराती है.

26 दिसंबर, 2022 को शुरू हुए राज्य विधानसभा के तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र में यह मुद्दा उठा था. विपक्ष ने सरकार को 2017 के अपने उस फैसले की याद दिलाई, जब पंचायतों की ओर से किए जाने वाले कार्यों की वित्तीय सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये तक कर दी गई थी. उन्होंने सवाल किया कि अब सरपंचों की शक्ति 20 लाख रुपये से घटाकर दो लाख रुपये क्यों कर दी गई है.

भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को और ज्यादा शर्मिंदगी तब उठानी पड़ी, जब गठबंधन सहयोगी जजपा के एक विधायक ने भी शीतकालीन सत्र के दौरान फैसले के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया. जेजेपी के बरवाला विधायक जोगी राम सिहाग ने पार्टी के सहयोगी पंचायत मंत्री बबली से उन ‘बाध्यकारी कारणों’ को बताने के लिए कहा, जिनके कारण राज्य सरकार ने पंचायतों की तरफ से किए जाने वाले कार्य की वित्तीय सीमा को कम कर दिया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, विधानसभा में शून्यकाल के दौरान सिहाग ने कहा था, ‘ई-टेंडरिंग के नाम पर ग्राम पंचायत सरपंचों के विकास कार्यों को करने के अधिकार को 20 लाख रुपये से घटाकर 2 लाख रुपये कर दिया गया है. क्या ये सरपंच भ्रष्ट हैं? उनकी शक्तियों को कम करने के बजाय सरकार को सरपंचों को और ज्यादा अधिकार देने चाहिए थे.’

सीएम खट्टर के 28 दिसंबर के बयान के मुताबिक, दो लाख रुपये से अधिक का काम हरियाणा इंजीनियरिंग वर्क्स पोर्टल पर टेंडर के जरिए किया जाएगा.

लंबे आंदोलन के लिए तैयार हैं आंदोलनकारी

आंदोलनकारी सरपंच नरम पड़ने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं.

हिसार जिले के सरपंच संघ के अध्यक्ष नर सिंह दुहान ने मंगलवार को एक रिपोर्ट में कहा कि वे ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया से खुश नहीं हैं. उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में ई-टेंडरिंग के जरिए किए गए काम सही ढंग से नहीं किए गए और इनके लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ई-टेंडरिंग अधिकारियों के करीबी ठेकेदारों को काम आवंटित करने का एक तरीका है.

करनाल जिले में नीलोखेरी सरपंच एसोसिएशन के अध्यक्ष ईसाम सिंह ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया कि ई-टेंडरिंग बंद होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो आंदोलनकारी एक लंबे आंदोलन के लिए तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि पहले सरपंचों को 20 लाख रुपये तक का काम खुद करने का अधिकार था. सिंह ने कहा, ‘इस सीमा को बढ़ाकर 30 लाख रुपये (घटाने की बजाय) किया जाना चाहिए था.’

वहीं सरकार भी इस विरोध को शांत कराने के लिए अपनी ओर से एड़ी-चोटी का जोर लगा चुकी है. पंचायत मंत्री बबली ने कहा कि इस आंदोलन के पीछे वही लोग हैं जिन्होंने पूर्व में सरकारी धन की हेराफेरी की थी.

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए बबली ने दिप्रिंट में कहा अतीत में  जानकारी मिली थी कि पंचायतों ने उस काम के लिए 25 लाख रुपये खर्च करने की सूचना दी है जो आसानी से 10 लाख रुपये में पूरा किया जा सकता था.

उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था के तहत दो लाख रुपये से लेकर 25 लाख रुपये तक के कार्य की तकनीकी स्वीकृति अनुविभागीय अधिकारी ही दे सकेंगे. जबकि इसके लिए प्रखंड समिति एवं जिला परिषद के सरपंच व अध्यक्ष सिर्फ प्रशासनिक स्वीकृति दे सकेंगे.

उन्होंने कहा कि ई-टेंडरिंग यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई है कि एक-एक पैसे का इस्तेमाल सिर्फ विकास कार्यों के लिए किया जा रहा है.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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