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Sunday, 6 October, 2024
होमएजुकेशनआदतन अपराधी, कानून में खामियां — भारत की करोड़ों की पेपर लीक इंडस्ट्री की अंदरूनी कहानी

आदतन अपराधी, कानून में खामियां — भारत की करोड़ों की पेपर लीक इंडस्ट्री की अंदरूनी कहानी

सीरीज़ की दूसरी स्टोरी में दिप्रिंट यह पता लगा रहा है कि कैसे यह पेपर लीक का गिरोह करोड़ों की इंडस्ट्री में बदल गया, जिसका छोटे खिलाड़ी और आदतन अपराधी कानूनी खामियों का फायदा उठाते हैं.

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नई दिल्ली: जगदीश बिश्नोई उर्फ ​​‘गुरु’ ने मार्च 2008 में राजस्थान के एक सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा को पढ़ाना शुरू किया. उस साल जुलाई में उन्हें कांस्टेबल भर्ती की एक परीक्षा में ‘डमी उम्मीदवार’ बनने के लिए हिरासत में लिया गया.

दो साल बाद उस पर प्रश्नपत्र ‘लीक’ के लिए मुकदमा कर और गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में ज़मानत पर उसे रिहा कर दिया गया. वर्तमान में न्यायिक हिरासत में बिश्नोई को 2020 में 12 ऐसे मामलों में उसकी कथित संलिप्तता के लिए सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

संदेह है कि बिश्नोई ने 13 साल के दौरान अपने साम्राज्य का विस्तार किया और कई हाई-प्रोफाइल परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक किए, जिनमें 2021 में राजस्थान में सब-इंस्पेक्टर की भर्ती की परीक्षा और 2022 में जूनियर इंजीनियर की परीक्षा शामिल है.

जांचकर्ताओं के अनुसार, बिश्नोई के नेतृत्व वाले गिरोह प्रश्नपत्र तैयार करने वाले अधिकारियों और परीक्षा केंद्रों पर तैनात पर्यवेक्षकों और अधीक्षकों के साथ मिलकर काम करते हैं, इसके अलावा पेपर को लाने-ले जाने के लिए अनुबंधित प्रिंटिंग प्रेस और कूरियर कंपनियां भी इसमें शामिल हैं.

कोचिंग सेंटर भी इस सुचारु मशीनरी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

राजस्थान पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि नौकरी छूटने के कुछ समय बाद ही बिश्नोई ने अपने सहयोगी भूपेंद्र सरन की मदद से अपने पेपर लीक ‘व्यवसाय’ को बढ़ाने में पूरी ताकत लगा दी, जिसके नाम पर भी पेपर लीक के कम से कम 11 मामले दर्ज हैं.

राजस्थान पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “साल 2010 में उसके (बिश्नोई) निलंबन के बाद से वह एक पेशेवर पेपर लीक माफिया बन गया, जो अपने जैसे तत्वों के बूते पर तेज़ी से आगे बढ़ा.”

हालांकि, बिश्नोई को अभी तक उसके खिलाफ किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है, लेकिन उसके जैसे लोगों ने दिखाया है कि कैसे कोई व्यक्ति पेपर लीक के कई मामलों में आरोपी होने के बावजूद सालों तक सिस्टम से बच सकता है. दिप्रिंट ने ‘पेपर लीक’ और विभिन्न परीक्षाओं की अखंडता से सांठगांठ करने से संबंधित ऐसे 14 मामलों को ट्रैक किया और पाया कि आदतन अपराधी संदिग्ध अपराधियों की संलिप्तता का एक पैटर्न है, जो महीनों जेल में रहने के बावजूद बेखौफ हैं.

उदाहरण के लिए एमबीबीएस डिग्री धारक रवि अत्री और उनके सहयोगी बीटेक ग्रेजुएट रवि नारायण मिश्रा के खिलाफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के पुलिस थानों में पेपर लीक के कम से कम आठ मामले दर्ज हैं.

संजीव कुमार उर्फ ​​‘मुखिया’ का गिरोह एक और उदाहरण है, पुलिस को अक्टूबर 2023 से पेपर लीक के कम से कम चार मामलों में इसकी संलिप्तता का संदेह है, जबकि संजीव कुमार की नीट-यूजी 2024 ‘पेपर लीक’ मामले में संलिप्तता ने ध्यान आकर्षित किया है, वह बिहार और झारखंड में आयोजित शिक्षकों और कांस्टेबलों की भर्ती परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों के लीक होने में भी “प्रमुख संदिग्ध” पाया गया था.

यह काफी हद तक इन गिरोहों की वजह से है कि समय के साथ “धोखाधड़ी” की अवधारणा एक बहुआयामी सिंडिकेट में विकसित हुई है जिसमें सिस्टम की खामियों से अच्छी तरह वाकिफ लोग शामिल हैं, लेकिन यह इतना आगे कैसे बढ़ गया कि यह एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया?

जांचकर्ताओं ने कहा कि प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी से अभियोजकों के लिए आपराधिक साजिश जैसे आरोपों को साबित करना मुश्किल हो जाता है — भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 — अक्सर धारा-420 (धोखाधड़ी) और 406 (आपराधिक विश्वासघात) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाता है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “वे हर बार ज़मानत हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं और हर बार वे अधिक दंडमुक्त होकर बाहर निकलते हैं.”

यहां तक ​​कि जिन मामलों में जांच पूरी हो जाती है, कठोर धाराएं लगाई जाती हैं और मामला ट्रायल चरण तक पहुंच जाता है, वहां भी मामला लटका रहता है.

इसका एक प्रमुख उदाहरण 1997 का आईआईटी-जेईई पेपर लीक है. इसके सुर्खियों में आने के लगभग तीन दशक बाद भी उत्तर प्रदेश की एक निचली अदालत में मुकदमा अभी भी गवाहों के परीक्षण के चरण में है. आरोपियों पर आईपीसी की धाराओं के साथ-साथ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे.

पुलिस द्वारा की गई घटिया जांच के कारण ऐसे मामलों में दोषसिद्धि भी मुश्किल से होती है. उदाहरण के लिए 1997 के मामले में अदालती दस्तावेज़ से पता चलता है कि कैसे लखनऊ स्थित त्रिवाग कोचिंग सेंटर, जिसके मालिक और शिक्षक आरोपियों में शामिल थे, के बचाव पक्ष ने परीक्षा आयोजित होने के 75 दिन बाद संस्थान में कूड़ेदान से जब्त किए गए “मुड़े-तुड़े” प्रश्नपत्र पर भरोसा किया. त्रिवाग के निदेशक राजेश नारायण वर्मा एक आईआईटीयन हैं.

इस सीरीज़ की दूसी स्टोरी में दिप्रिंट यह बता रहा है कि पेपर लीक गिरोह कैसे एक फलती-फूलती इंडस्ट्री में तब्दील हो गया, जिसे छोटे खिलाड़ियों, आदतन अपराधियों द्वारा संचालित किया जाता है, जो इस अवैध व्यापार को जारी रखने के लिए कानून की खामियों का फायदा उठाते हैं.


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पैसे का लेन-देन, ‘गला-काट मुकाबला’

पेपर लीक इंडस्ट्री पहली बार 1997 में राष्ट्रीय सुर्खियों में आई, जब अधिकारियों ने उस साल आयोजित आईआईटी-जेईई परीक्षा की अखंडता से समझौता करने की साजिश का पर्दाफाश किया था, लेकिन लगभग तीन दशक बाद, विशेषज्ञों से लेकर जांचकर्ताओं तक, कोई भी पेपर लीक उद्योग के यूनिट इकोनॉमिक्स के बारे में निश्चित नहीं है. हालांकि, पिछले कुछ साल में जांच से संकेत मिलता है कि लीक हुए पेपर का बाज़ार हज़ारों करोड़ों रुपयों का है.

राज तेवतिया, जिन्हें 2022 में रूसी हैकर्स के साथ मिलीभगत करके आईआईटी-जेईई और जीमैट पेपर लीक रैकेट चलाने के आरोप में दिल्ली पुलिस साइबर सेल ने गिरफ्तार किया था, ने खुलासा किया कि गिरोह ने 500 आईआईटी-जेईई उम्मीदवारों को प्रश्नपत्र बेचकर करीब 60 करोड़ रुपये कमाए.

इसके अलावा, 2021 जेईई मेन्स लीक मामले की जांच से पता चला कि आरोपी को 820 उम्मीदवारों ने लगभग 15 लाख रुपये दिए थे.

उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इन मामलों में पैसे के स्रोत का पता नहीं लगाया जा सकता है, इसलिए कोई सटीक आंकड़ा नहीं है. हालांकि, जांच से पता चला है कि यह 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है, यदि इससे अधिक नहीं है. जितने अधिक लोग शामिल हैं, उतनी ही अधिक परतें और पैसा सामने आता है.”

दिसंबर 2022 में वरिष्ठ शिक्षकों के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) जीके (ग्रुप सी) प्रतियोगी परीक्षा के लीक से जुड़ी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की मनी लॉन्ड्रिंग जांच इसका एक उदाहरण है. इस मामले में यह पाया गया कि प्रत्येक छात्र को 10 लाख रुपये में प्रश्नपत्र बेचे गए थे, इसके अलावा मुख्य आरोपियों को कमीशन भी दिया गया था. आरपीएससी के सदस्य बाबू लाल कटारा को कथित तौर पर पेपर लीक करने के लिए 60 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.

इस साल मई में सामने आए नीट-यूजी 2024 ‘पेपर लीक’ मामले में जांचकर्ताओं को संदेह है कि उम्मीदवारों ने परीक्षा से एक रात पहले प्रश्नपत्र तक पहुंच के लिए 30 लाख रुपये का भुगतान किया था. राजस्थान पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “कुछ पेपर लीक की वजह से लोगों में आक्रोश फैल जाता है और परीक्षाएं रद्द कर दी जाती हैं, लेकिन सभी स्तरों पर लीक हो रहे हैं, लेकिन सभी खबरों में नहीं आते.”

उनके अनुसार, ‘पेपर लीक’ इंडस्ट्री सरकारी नौकरियों की उच्च मांग और “गला-काट मुकाबला” के कारण भी फल-फूल रहा है.

उन्होंने कहा, “यह मांग और आपूर्ति का सरल अर्थशास्त्र है. यह उद्योग तब तक जीवित रहेगा जब तक यह मांग और सुरक्षित सरकारी नौकरी का जुनून रहेगा.”


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‘सामान्य संदिग्ध’

संजीव कुमार उर्फ ​​‘मुखिया’ के खिलाफ 12 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें पेपर लीक के पांच मामले शामिल हैं, जिसमें नीट-यूजी 2024 ‘पेपर लीक’ मामला भी शामिल है. वो इस साल जनवरी में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) पेपर लीक मामले और बिहार के दो अन्य मामलों में भी फरार है.

पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से एमबीबीएस डिग्री धारक अपने बेटे डॉ शिव कुमार के साथ, संजीव कुमार ने कथित तौर पर इस साल मार्च में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) शिक्षक भर्ती परीक्षा, पिछले अक्टूबर में बिहार पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा और नीट-यूजी 2017 के प्रश्नपत्र लीक करने की साजिश रची थी.

बिहार पुलिस का दावा है कि संजीव कुमार और उसके सहयोगी पिछले साल राज्य में तीन बड़े पेपर लीक के लिए जिम्मेदार थे. बिहार पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सिर्फ सरगना ही नहीं, बल्कि गिरोह के लोगों की पूरी चेन कई पेपर लीक में शामिल है.”

इस साल की शुरुआत में आयोजित उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की कांस्टेबल भर्ती परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने की जांच के दौरान संजीव कुमार के एक सहयोगी शुभम मंडल का नाम भी सामने आया था.

रवि अत्री, जिसका नाम नीट-यूजी 2024 ‘पेपर लीक’ मामले में सामने आया था, को एक समय यूपीपीएससी परीक्षा पेपर लीक का मास्टरमाइंड कहा जाता था.

उत्तर प्रदेश पुलिस में 60,000 खाली पदों को भरने के लिए इस परीक्षा में 47 लाख से अधिक एस्पिरेंट शामिल हुए थे.

यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के अनुसार, अत्री ने कथित तौर पर अपने सहयोगी रवि नारायण मिश्रा के साथ मिलकर फरवरी में पेपर लीक की साजिश रची थी, जो इस मामले में आरोपी भी था.

अत्री और मिश्रा ने कथित तौर पर 2015 के ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT) संविदा नर्सिंग स्टाफ भर्ती पेपर को भी लीक किया था, जिसके लिए हरियाणा पुलिस ने उन दोनों पर मामला दर्ज किया था, लेकिन पुलिस सूत्रों ने बताया कि हर बार वह ज़मानत पर छूट जाते थे और फिर से धंधे में लग जाते थे.

यूपी एसटीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “उन पर ज़्यादातर धोखाधड़ी और आईटी एक्ट की धाराएं लगाई गई थीं, जो उन्हें जेल में रखने और उनके संचालन को बाधित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. वह हर बार ज़मानत हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं.”

अत्री को 2012 एआईपीएमटी और 2015 एम्स-पीजी प्रश्नपत्र लीक में कथित संलिप्तता के लिए भी गिरफ्तार किया गया था. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) द्वारा संजीव कुमार से उसके संबंधों का पता लगाने के बाद नीट-यूजी 2024 ‘पेपर लीक’ मामले से उसका संबंध सामने आया.

अत्री और मिश्रा दोनों पर यूपी समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी (प्रारंभिक) परीक्षा 2024 के प्रश्नपत्र लीक में शामिल होने का भी आरोप है, जिसे भी फरवरी में रद्द कर दिया गया था. मिश्रा को एक समय इस रैकेट का ‘सरगना’ माना जाता था.

मध्य प्रदेश पुलिस के सूत्रों के अनुसार, मिश्रा ने फरवरी 2023 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) नर्सिंग स्टाफ भर्ती परीक्षा का प्रश्नपत्र भी कथित तौर पर लीक किया था. उसे एनएचएम पेपर लीक मामले में पिछले मार्च में एमपी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. वह 2021 यूपी शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपीटीईटी) परीक्षा में भी आरोपी था और दोनों मामलों में गिरफ्तार किया गया था. प्रश्नपत्र व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई थी.

इसी तरह, हरियाणा के पलवल के मूल निवासी तेवतिया को जनवरी 2022 में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. वह इंटेलिजेंस फ्यूजन स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट (आईएफएसओ) द्वारा फरार था और उसके सिर पर एक लाख रुपये का इनाम था.

पेपर लीक की साजिश रचने के लिए हरियाणा पुलिस में उसके खिलाफ चार मामलों के अलावा, तेवतिया 2021 आईआईटी-जेईई पेपर लीक के सिलसिले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भी उसकी तलाश है. गिरोह ने कथित तौर पर उस प्लेटफॉर्म से छेड़छाड़ करने के लिए एक रूसी हैकर को काम पर रखा था जिस पर परीक्षा आयोजित की जा रही थी.

पुलिस सूत्रों के अनुसार, तेवतिया 2017 से कई सालों से ये घोटाले चला रहा था. जिन परीक्षाओं में उसने कथित तौर पर सांठगांठ की है, उनमें जीमैट, जेईई, टीओईएफएल और आईईएलटीएस के अलावा सिस्को और आईबीएम के लिए प्रमाणन परीक्षाएं और यहां तक ​​कि सशस्त्र बलों के लिए प्रवेश परीक्षाएं भी शामिल हैं.

जीमैट के लिए गिरोह ने कथित तौर पर प्रत्येक उम्मीदवार से लगभग 6 से 8 लाख रुपये वसूले. दिल्ली पुलिस के सूत्रों के अनुसार, जीमैट परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए गिरोह द्वारा एकत्र की गई कुल राशि 50-60 लाख रुपये के बीच थी. तेवतिया की गिरफ्तारी के बाद, ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन काउंसिल (जीएमएसी), जो आधिकारिक तौर पर जीमैट का संचालन करती है, ने 100 से अधिक स्टूडेंट्स के स्कोर कार्ड रद्द कर दिए और उन्हें भविष्य में परीक्षा देने से भी रोक दिया.

विनय दहिया, जिसे सीबीआई ने 2021 आईआईटी जेईई पेपर लीक मामले के पीछे का ‘मास्टरमाइंड’ बताया है, दिल्ली में एक कंसल्टेंसी फर्म चलाता है. उसे और उसके सहयोगी को इस साल जनवरी में विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (FMGE) में बैठने वाले उम्मीदवारों को नकली प्रश्नपत्र देकर लूटने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

मामला तब सुर्खियों में आया जब फार्महाउस पर हंगामा हुआ, जहां दहिया ने करीब 40 छात्रों को बुलाया और प्रत्येक को 20 लाख रुपये में पेपर बेचने की कोशिश की. आरोपियों ने 4-6 लाख रुपये एडवांस भी ले लिए थे.

FMGE विदेश से डिग्री प्राप्त डॉक्टरों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति देता है. इसका संचालन राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (NBE) द्वारा किया जाता है, जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है.

दहिया को पिछले साल मार्च में सीबीआई ने 2021 जेईई-मेन्स परीक्षा के पेपर लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया था और बाद में ज़मानत पर रिहा कर दिया. दहिया सहित आरोपियों पर आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और आईटी एक्ट की धारा-6-डी (जो कोई भी संचार उपकरण या कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी व्यक्ति का रूप धारण करके धोखा देता है) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

दहिया के खिलाफ उत्तर प्रदेश में पेपर लीक के दो अन्य मामले भी दर्ज हैं.

पेपर लीक कानून: पुराने और नए

आईपीसी के प्रावधानों के अनुसार, पेपर लीक और उम्मीदवार के प्रतिरूपण से जुड़े आरोपों में आम तौर पर धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चलाया जाता है, जिसके बारे में जांचकर्ताओं ने कहा कि अदालत में ज़मानत याचिका का विरोध करते समय ये धाराएं ज्यादा कारगर नहीं होती हैं.

उन्होंने कहा कि इन मामलों में प्रत्यक्ष और प्राथमिक साक्ष्य बहुत कम होते हैं और अधिकांश गवाह अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए तैयार नहीं होते हैं, यही वजह है कि जांच मुख्य रूप से दस्तावेज़ या मनी ट्रेल या तकनीकी निगरानी के माध्यम से की जाती है.

राजस्थान में अतिरिक्त महाधिवक्ता भुवनेश शर्मा ने कहा कि चूंकि, आईपीसी की धारा 420 के तहत सज़ा सात साल थी, इसलिए ज़मानत की शर्तें आसान थीं और आरोपी पुलिस थाने से ज़मानत पाने में सक्षम था.

शर्मा ने कहा कि इसका समाधान राजस्थान जैसे कानून हैं, जो पेपर लीक में शामिल होने के दोषी व्यक्ति के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान करते हैं.

इसके अलावा, कानून अब उन संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति देता है, जिन्हें जांच एजेंसी “अपराध की आय” की तरह देखती है. शर्मा ने कहा कि संपत्ति जब्त करने और अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान कम से कम युवाओं को इस संगठित आपराधिक गतिविधि में शामिल होने से रोकने के लिए काम करना चाहिए.

पुलिस अधिकारियों ने कहा कि कानून के दायरे में इन सिंडिकेट को संगठित गिरोह के रूप में माना जाना चाहिए. बिहार पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “जैसे ही आप यह साबित कर पाते हैं कि कोई विशेष आरोपी किसी गिरोह से जुड़ा है, तो आपको उसके अपराध और पिछले रिकॉर्ड के दायरे में जाने की ज़रूरत नहीं है. यह कानून इन तत्वों को संगठित गिरोह का हिस्सा साबित करके उन पर नकेल कसने के काम आएगा.”

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने आजीवन कारावास जैसे समान प्रावधानों के साथ एक अध्यादेश के प्रख्यापन का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन अपराधों को संज्ञेय, गैर-ज़मानती, गैर-समझौता योग्य और सत्र न्यायालयों द्वारा विचारणीय बनाकर इसे और अधिक कठोर बना दिया. प्रस्तावित अध्यादेश राज्यपाल से मंजूरी का इंतजार कर रहा है.

नीट-यूजी 2024 और यूजीसी-नेट परीक्षाओं से जुड़ी गड़बड़ियों और आरोपों पर मचे बवाल के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने 21 जून को सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 को अधिसूचित किया, जो देश भर में अनुचित साधनों और संगठित कृत्यों के लिए सज़ा का कानूनी ढांचा प्रदान करता है. इस मामले की जांच से जुड़े बिहार पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि नए कानून के तहत अभियोजन एजेंसियों को केवल यह साबित करना है कि आरोपी एक संगठित गिरोह का हिस्सा है, ताकि उसे 10 साल की सज़ा मिल सके.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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