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Sunday, 5 May, 2024
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सेक्स रेश्यो के सरकारी आंकड़े शक के घेरे में, विशेषज्ञों ने कहा- अभी से उत्सव मनाना ठीक नहीं

पूर्वोत्तर में महिला मुद्दों पर काम करने वाली कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वो इन आंकड़ों के बजाय 2021 के सरकारी आंकड़ों का इंतजार करेंगे.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते देश के लिंगानुपात में 8 अंकों की प्रभावशाली बढ़ोत्तरी ने सबको चौंकाया. दरअसल 21 जून को लोकसभा में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना से संबधित एक सवाल का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले चार साल के लिंगानुपात के आंकड़े बताए हैं. मंत्रालय के मुताबिक करीब 30 से अधिक राज्यों में लिंगानुपात के अंकों में वृद्धि हुई है. लेकिन अगर 2015-16 के लिंगानुपात के आंकड़ों की तुलना 2018-19 के आंकड़ों से करें तो पता चलता है कि 11 राज्यों और संघ शाषित राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट भी आई है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, जन्म के समय (एसआरबी) राष्ट्रीय स्तर पर लिंगानुपात 2015-16 में 923 था, लेकिन अब ये 2018-19 में बढ़कर 931 हो गया है. इस सबका श्रेय मोदी सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना को दिया जा रहा है. लेकिन विशेषज्ञ अभी इन आंकड़ों को सवालों के दायरे में ही रख रहे हैं और उनका मानना है कि 2021 की जनगणना से अधिक प्रामाणिक आंकड़े सामने आएंगे.


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एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को इस सिलसिले में बताया, ‘पहले सरकार लिंगानुपात के आंकड़ों के लिए जनगणना के आंकड़ों को ही आधार बनाती थी लेकिन ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के बाद यह महसूस किया गया कि इस योजना की सफलता जांचने के लिए 10 साल का इंतजार क्यों किया जाए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कोई ठोस कदम उठाने के लिए 10 साल एक लंबी अवधि है. इसलिए हमने हर साल के आंकड़े इकट्ठा करने शुरू कर दिए.’

‘ये आंकड़े पूर्ण और निष्पक्ष हैं क्योंकि ये राज्यों के स्वास्थ्य विभागों से आये हैं. वहां सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में बच्चों के जन्म के समय के आंकड़े तैयार किए जाते हैं.’

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भाजपा नेता बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा कर रहे बुलंद

दिप्रिंट से बात करते हुए एक भाजपा नेता ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को दिया जो 22 जनवरी 2105 को हरियाणा के पानीपत से शुरू की गई थी.

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दि प्रिंट को बताया, ‘2015 में हमने ऐसे 100 जिलों की पहचान की जहां जन्म के समय लिंगानुपात को काफी भयानक तरीके से बिगड़ा हुआ था और जहां के लोगों का नजरिया पितृसत्ता से जकड़ा हुआ था.’

उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा, ‘मीडिया में इस योजना का जितना भी प्रचार हुआ उसके पीछे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय व स्वास्थ्य मंत्रालय का जमीन पर किया गया काम है.’

गौरतलब है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की योजना को 2018 में देश के 640 जिलों में लागू किया गया था. ये योजना महिला एवं बाल विकाल मंत्रालय, स्वास्थ्य व मानव संसाधन मंत्रालय मिलकर चलाते हैं.

शक के घेरे में मंत्रालय के आंकड़े

हरियाणा में महिला मुद्दों पर सालों से काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता जगमति सांगवान ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये आंकड़े पूर्णतया यकीन करने लायक नहीं हैं. ये जन्म के समय दर्ज किए गए रिकॉर्ड्स से निकाले गए हैं. कई सारे फैक्टर्स को छुपाया जाता है. आप देखिए कि पिछले साल हरियाणा सरकार ने भी जन्म के समय के आंकड़े दिखाकर वाहीवाही लूटी थी और बाद में वो आंकड़े गलत निकले.’

पूर्वोत्तर में महिला मुद्दों पर काम करने वाली कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वो इन आंकड़ों के बजाय 2021 के सरकारी आंकड़ों का इंतजार करेंगे.


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इंद्रप्रस्थ सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में कार्यरत समाजशास्त्र की सहायक प्रोफेसर पारो मिश्रा ने कहा, ‘मेरा मानना है कि 2021 में जनगणना के आंकड़े ज्यादा भरोसे लायक होंगे. ये आंकड़े हर जिले और हर घर को कवर करते हैं.’

वो आगे जोड़ती हैं, बहुत सारे राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात में भारी उछाल दर्ज की गई है… यह कई स्तरों पर असंभव सा लग रहा है.’

गौरतलब है कि मंत्रालय के अनुसार, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों ने क्रमशः 27 और 18 अंकों की छलांग लगाई. 2015-16 और 2018-19 में हरियाणा का अनुपात 887 से 914 हो गया, जबकि राजस्थान में 929 से बढ़कर 947 हो गया.

आईआईटी दिल्ली में समाजशास्त्र की प्रोफेसर रविंदर कौर का भी कहना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य में प्रजनन क्षमता में गिरावट देखी जा रही है तो इन राज्यों में लिंगानुपात में गिरावट आना लाजमी है.

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