पणजी, दो सितंबर (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने गोवा सरकार द्वारा चिकित्सा और दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में खिलाड़ियों के दाखिले के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने के कदम को यह देखते हुए खारिज कर दिया कि यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी थी। अदालत ने कहा कि यह प्रवेश विवरणिका में बाध्यकारी नियमों के विपरीत है।
न्यायमूर्ति भारती एच. डांगरे और न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता की खंडपीठ ने एक नीट अभ्यर्थी की याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिका में तकनीकी शिक्षा निदेशालय (डीटीई) द्वारा एक अगस्त को जारी नोटिस को चुनौती दी गई थी, जिसमें खिलाड़ियों को स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों (सीएफएफ) की श्रेणी के तहत रिक्त सीट के लिए आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
अदालत के 25 अगस्त के आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई।
पीठ ने दाखिला प्रक्रिया में समय-सीमाओं को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हुए यह देखा कि 2025-26 के लिए सामान्य प्रवेश विवरणिका “कानूनी प्रभाव रखती है और यह अधिकारियों व अभ्यर्थियों दोनों पर बाध्यकारी है”।
उच्च न्यायालय ने कहा, “विवरणिका में संशोधन किए बिना या उसमें संशोधनों की सूचना दिए बिना, काउंसलिंग शुरू होने के बाद नई श्रेणी के तहत आवेदन आमंत्रित करना, खेल शुरू होने के बाद उसके नियमों को बदलने के समान है।”
विवरणिका में गोवा मेडिकल कॉलेज, बम्बोलिम में एमबीबीएस के लिए 180 सीट और गोवा डेंटल कॉलेज में पांच-वर्षीय बीडीएस पाठ्यक्रम के लिए 50 सीट शामिल थीं।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एस. कंटक ने दलील दी थी कि डीटीई ने 28 जुलाई को एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए काउंसलिंग का कार्यक्रम प्रकाशित किया था और उसके अनुसार, काउंसलिंग का पहला दौर एक अगस्त को होना था, लेकिन इसे पांच अगस्त के लिए पुनर्निर्धारित कर दिया गया।
दलील में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने पांच अगस्त को आयोजित एमबीबीएस/बीडीएस के लिए काउंसलिंग के पहले दौर में भाग लिया था और पहले दौर के अंत में, रैंक 78 वाले उम्मीदवार ने सामान्य श्रेणी में एमबीबीएस में अंतिम सीट हासिल की, जबकि रैंक 108 वाले उम्मीदवार ने सामान्य श्रेणी में बीडीएस में पहली सीट हासिल की।
याचिकाकर्ता से ऊपर रैंक वाले केवल दो उम्मीदवार थे, जिन्होंने अपनी सीट सुरक्षित नहीं करवाई और इससे उसे उम्मीद जगी कि उसे सामान्य श्रेणी में एमबीबीएस या बीडीएस में सीट मिल सकती है।
हालांकि, नये खेल कोटे को लागू किये जाने से उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
याचिका में कहा गया, “सरकार ने पात्र मेधावी व्यक्तियों को खेल कोटे के तहत पहली बार आवेदन करने की अनुमति दी है और इसके लिए कट-ऑफ तिथि 14 अगस्त तय की है।”
कंटक ने दलील दी कि मेधा सूची में रैंकिंग के प्रकाशन और काउंसलिंग के पहले सत्र की निर्धारित तिथि के बाद राज्य सरकार का कदम, खेल शुरू होने के बाद उसके नियमों को बदलने के समान है।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता देवीदास पंगम ने उसकी कार्यकारी शक्तियों और गोवा खेल नीति 2009 का हवाला देते हुए नीति का बचाव किया।
गोवा फुटबॉल एसोसिएशन और फेंसिंग एसोसिएशन सहित खेल निकायों ने आरक्षण के समर्थन में हस्तक्षेप किया और दलील दी कि कई राज्यों ने पहले ही इसी तरह के उपाय अपना लिये हैं।
पीठ ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि आवेदन भरने के लिए कट-ऑफ तिथियां निर्धारित की गई थीं, तथा नियमों में निर्धारित मानदंडों को लागू करते हुए मेधा सूची 30 जुलाई को प्रकाशित की गई थी।
आदेश में कहा गया, “यदि ऐसा होता कि खिलाड़ियों के लिए आरक्षण का उल्लेख पहले ही विवरणिका में किया गया होता, तो हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि हम हस्तक्षेप नहीं करते, क्योंकि यह राज्य प्राधिकारी पर निर्भर करता है कि वह यह निर्धारित करे कि आरक्षण किसके पक्ष में होगा, या किसी विशेष श्रेणी का उम्मीदवार उपलब्ध न होने पर सीट किस श्रेणी को दी जाएगी।”
यह स्पष्ट करते हुए कि राज्य खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाने के लिए स्वतंत्र है, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने से पहले ऐसे उपायों को शामिल किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, “मेधा सूची के प्रकाशन के बाद और चल रही काउंसलिंग के दौरान आरक्षण लागू करने से प्रवेश प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।”
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