यह अंतरिम बजट नहीं है. वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को जो बजट पेश किया, उससे उनके पूर्ववर्तियों द्वारा पेश किए गए पिछले तीन अंतरिम बजटों – 2004 में जसवंत सिंह, 2009 में प्रणब मुखर्जी और 2014 में पी चिदंबरम – से कोई समानता नहीं है.
अतीत के किसी भी अंतरिम बजट में गोयल की 75,000 करोड़ रुपये वाले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना जैसी कोई भारी-भरकम योजना नहीं शुरू की गई थी. पीएम-किसान योजना में दो हेक्टेयर तक जोत वाले सभी कृषक परिवारों को सालाना 6,000 रुपये की सहायता देने का प्रावधान है.
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उल्लेखनीय है कि 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार खेती में काम आ रहे देश के 14.6 करोड़ भूखंडों में से करीब 86 प्रतिशत दो हेक्टेयर से छोटे हैं. इस तरह करीब 12.5 करोड़ कृषि जोत दो हेक्टेयर से छोटे हैं. बजट में दिए गए आंकड़े भी इसी के आसपास हैं. गोयल ने अपने भाषण में कहा कि इस योजना से 12 करोड़ किसान परिवारों को फायदा होगा. याद रहे कि इन परिवारों में से एक तिहाई उत्तर प्रदेश और बिहार में खेतीबारी करते हैं. इसलिए इस योजना के चुनावी फायदे को कम कर के नहीं आंका जाना चाहिए.
विगत के किसी भी अंतरिम बजट में पेंशन योजना की घोषणा नहीं थी और ना ही असंगठित क्षेत्र के अनुमानित 10 करोड़ श्रमिकों के लिए इस योजना का कार्यान्वयन शुरू करने के वास्ते आरंभिक 500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी. इस योजना में 15,000 रुपये से कम मासिक तनख्वाह वाले श्रमिक शामिल होंगे, यानी असंगठित क्षेत्र का हर चौथा श्रमिक इस पेंशन योजना का हिस्सा बन सकेगा.
किसी अंतरिम बजट में इससे पहले आयकर में किसी बड़ी रियायत की भी घोषणा नहीं की गई थी जैसा कि गोयल ने 5 लाख रुपये तक की सालाना आय वाले करदाताओं को आयकर में पूरी छूट देकर की है. उन्होंने आशा व्यक्त कि है की सालाना कुल 6.5 लाख रुपये तक आमदनी वाले लोग भी इस नई रियायत का लाभ उठा सकेंगे. इस तरह अगले साल करीब तीन करोड़ छोटे करदाता नई रियायत से लाभांवित हो सकेंगे. साथ ही, सभी वेतनभोगियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है और बैंक से मिलने वाली ब्याज के लिए स्रोत पर ही टैक्स (टीडीएस) की सीमा को सालाना 10,000 रुपये से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया गया है.
कर व्यवस्था में बदलावों के फायदे और बोझ
दूसरे शब्दों में, 2019-20 के अंतरिम बजट में कम से कम 13 करोड़ लोगों और 12 करोड़ परिवारों को वित्तीय राहत दी गई है. मासिक वित्तीय लाभ मात्र 500 रुपये तक का हो सकता है, लेकिन इनमें से अधिकांश लाभार्थियों के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होने के कारण इन योजनाओं को अलग मानकों के आधार पर तेंलगाना और ओडिशा में लागू प्रत्यक्ष लाभ स्थानांतरण योजनाओं के प्रभावी राजनीतिक जवाब के तौर पर पेश किया जा सकेगा. यदि इन योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया जाता है तो पूरे देश में और समाज के तमाम तबकों के लोग भारी संख्या में इनके लाभार्थी बन सकेंगे.
इन योजनाओं का सालाना बोझ 99,000 करोड़ रुपये से कम नहीं होगा. चूंकि ये वित्तीय फायदे एक बार के लिए ही सीमित नहीं हैं, सरकार पर इसका बोझ आने वाले वर्षों में भी कायम रहेगा. यह अगले साल के लिए अनुमानित भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग आधा प्रतिशत के बराबर का आंकड़ा है. अंतरिम बजट की तो बात ही छोड़िए, हाल के वर्षों में पूर्ण बजटों में भी इतनी बड़े स्तर पर और इतनी अधिक संख्या में लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं नहीं देखी गई थीं. यदि इन कदमों से नरेंद्र मोदी को सत्ता में बने रहने के लिए आवश्यक संख्या में वोट नहीं मिलते हैं तो फिर मोदी सरकार से जनता के मोहभंग का स्तर भी बड़ा और व्यापक माना जाएगा.
आश्चर्य है कि इन घोषणा के बावजूद राजकोषीय घाटे पर इनके असर को नाममात्र का दिखाया गया है. संशोधित अनुमानों के अनुसार वर्ष 2018-19 के लिए राजकोषीय घाटा, बजट अनुमान 3.3 प्रतिशत के मुकाबले, जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रहेगा. इसी तरह, 2019-20 के 3.4 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का अनुमान पिछले साल घोषित 3.1 प्रतिशत के आंकड़े से थोड़ा ही अधिक है. और, संशोधित जीडीपी आंकड़े अनुमान से बेहतर दिखाने के सरकार के पिछले कुछ वर्षों के रिकॉर्ड के मद्देनज़र शायद अंतिम आंकड़े लक्ष्य के अनुरूप ही साबित हों.
लगभग पूर्ण बजट ही
हालांकि, अंतरिम बजट में दिखाए गए आय के अनुमानों को लेकर कुछ सवाल पूछे जा सकते हैं. वर्ष 2018-19 के लिए संशोधित अनुमानों में पिछले बजटीय अनुमानों के मुकाबले जीएसटी राजस्व में एक लाख करोड़ रुपये की कमी दिखाई गई है. इसकी भरपाई निगम कर राजस्व के पूर्व के बजट अनुमानों से 50,000 करोड़ अधिक रहने और विभिन्न वस्तुओं पर करों में वृद्धि के कारण सीमा शुल्क राजस्व 17,500 करोड़ रुपये अधिक होने; तथा जीएसटी लागू करने से राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की क्षतिपूर्ति वाले व्यय में 29,000 करोड़ रुपये की कमी से हो जाती है.
विनिवेश से होने वाली आय के, जो अभी तक मात्र 35,500 करोड़ रुपये अनुमानित है, अंतरिम बजट के अनुसार 80,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य तक पहुंचने की उम्मीद है. यह एक मुश्किल लक्ष्य दिखता है. यदि मार्च 2019 के अंत तक राजस्व प्राप्ति के इन लक्ष्यों में से एक भी पीछे छूटा तो मौजूदा वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के अंतिम आंकड़े चिंता का विषय हो सकते हैं.
वर्ष 2019-20 के लिए बजट आंकड़ों में विभिन्न मदों में व्यय पर लगाम लगाने के प्रयासों की झलक मिलती है. सरकार का पूंजीगत व्यय में, इस साल 20 प्रतिशत बढ़ने के बाद, अगले साल मात्र 6 प्रतिशत बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाया गया है. राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के व्यय में थोड़ी कमी आएगी, पर रक्षा खर्च में इस साल की 3 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले 2019-20 में 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जाएगी.
कुल मिलाकर, मोदी सरकार के लिए पेश गोयल का पहला बजट अपनी व्यापकता के कारण किसी पूर्ण बजट के समान नज़र आता है. यहां तक कि समानताएं राजस्व वृद्धि और खर्च में कमी संबंधी आंकड़ों को लेकर भी हैं जो कि पूर्ण बजट में यह मानकर दिए जाते हैं कि आंकड़े अनुमानों से दूर रहने पर मौजूदा सरकार ही अगले साल संशोधित आंकड़े पेश कर सकेगी.
(बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष अनुबंध के तहत)
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