नई दिल्ली: हेरिटेज-वॉक-गाइड मोबी सारा जकारिया ने नई दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों को पिछले 10 वर्षों की तुलना में पिछले दो महीनों में अधिक बदलते देखा है.
यह G20 का असर है और स्मारकों में ऐसा बदलाव किया जा रहा है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सदियों पुराने नाजुक स्मारकों को तेजी से सुंदर और स्वागतयोग्य बनाने की कोशिश अक्षरशः एक काफी जल्दबाजी भरे काम में तब्दील होती जा रही है.
जी20 शिखर सम्मेलन से पहले, नई दिल्ली को इस बदलाव व सौन्दर्यीकरण के लिए 120 मिलियन डॉलर की राशि मिली है. केंद्र और राज्य सरकार की सिविक एजेंसियां राजधानी को आधुनिक भारत के एक चमचमाते प्रतीक – एक फ्लोरोसेंट, चमकदार, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपयुक्त मेजबान – में बदलने के लिए महीनों से काम कर रही हैं.
और इस सारी आधुनिकता और नवीनता के बीच, दिल्ली के इतिहास को भी कुछ देखभाल हो जा रही है जो कि बहुत ज़रूरी थी. शहर भर में स्मारकों और हेरिटेज बिल्डिंग का जीर्णोद्धार और नवीनीकरण किया जा रहा है – लेकिन कई विशेषज्ञों को चिंता है कि यह केवल नाममात्र का संरक्षण है.
महरौली पुरातत्व पार्क में कुली खान का मकबरा और लोधी गार्डन में मुगल काल की मस्जिद जैसे स्मारक अचानक प्लास्टर से गुलाबी हो गए हैं, और उनमें लाइट्स वगैरह की नई फिटिंग की जा रही है. महरौली पुरातत्व पार्क में 19वीं सदी की शुरुआत में एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा निर्मित एक बिना छत वाले गोलाकार स्मारक पर भी अचानक छत आ गई है और अब यह एक कैफे बनने जा रहा है.
एजीके मेनन ने कहा, यदि आप संरक्षण के अनुशासन को बनाए रखना चाहते हैं, तो आप इसे बर्बरता कहेंगे.
वास्तुकार, शहरी योजनाकार और कंज़र्वेशन कंसल्टेंट एजीके मेनन, जो इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) दिल्ली चैप्टर के संयोजक भी थे, ने कहा, “वे जो कर रहे हैं वह संरक्षण से अधिक सौंदर्यीकरण है.” “यदि आप संरक्षण के अनुशासन को बनाए रखना चाहते हैं, तो आप इसे बर्बरता कहेंगे.”
इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ठेकेदारों और श्रमिकों को ऐतिहासिक संरक्षण में प्रशिक्षित किया गया है और क्या इस प्रक्रिया में स्थापित संरक्षणवादियों से परामर्श लिया गया है.
तेज़ी से ठीक करना
इतिहास में रुचि रखने वालों का एक समूह रविवार शाम को हेरिटेज वॉक पर लोधी गार्डन में एक छोटे से स्मारक को देखने के लिए रुकता है. यह स्मारक गुलाब के बगीचे के पास मुगल काल के अंतिम समय की एक मस्जिद है, और मजदूर इसके पास बिजली के तार बिछाने के लिए जमीन के कुछ हिस्सों को खोदने में व्यस्त थे. इस ग्रुप का नेतृत्व करने वाले जकारिया, जिनके पास 11 वर्षों से शहर भर में हेरिटेज वॉक का संचालन करने का अनुभव है वह यह सब देखकर भौंचक्के रह जाते हैं.
लोधी गार्डन के गुलाब उद्यान के पास स्थित यह छोटी मस्जिद अपनी आंतरिक दीवारों पर चित्रो या रूपांकनों और कैलिग्रफी या सुंदर लिखावटों के लिए जानी जाती है. अब, दीवार में एक दरार पर प्लास्टर लगा दिया गया है, जिससे लिखावट साफ-साफ दिखनी बंद हो गई है. दो सप्ताह पहले जब ज़कारिया ने वॉक का संचालन किया था, तब ऐसा कोई काम नहीं किया जा रहा था.
ज़कारिया ने कहा, “जब मैं चीजों को इस तरह से होते हुए देखता हूं – जैसे जल्दबाज़ी में किए जाने वाले पेंटिंग का काम जिससे सूक्ष्म या छोटे-छोटे विवरण ढक जाते हैं, तो मुझे यह जानकर दुख होता है कि साइट पर मौजूद लोगों को इस बारे में कोई जागरूकता या जानकारी नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं. या वे इस बात पर शेखी बघारते हैं कि वे स्मारकों की सफ़ाई कर रहे हैं.”
वह टूर गाइड प्लेटफॉर्म अनफोल्ड दिल्ली के साथ अपनी विरासत यात्रा के दौरान होने वाले परिवर्तनों पर नज़र रख रही है. ज़कारिया ने INTACH में भी काम किया है और इससे पहले उनके लिए वॉक भी आयोजित किया है. उन्होंने महरौली में मुगल सम्राट शाह कुली खान के मकबरे की ओर इशारा किया, जिस पर भी ताजा पेंट और प्लास्टर लगा है – इससे सामने के कुछ हिस्से धुंधले हो गए हैं, जिससे यह बताना मुश्किल हो गया है कि स्मारक के किस हिस्से पर पत्थर का काम मुगल काल के दौरान किया गया था और कौन से भाग बाद में अंग्रेजों द्वारा जोड़े गए हैं.
सारा ज़कारिया ने कहा, आप संरक्षण के नाम पर किसी इमारत को कुछ ही हफ्तों में रिस्टोर नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा, “यह संदेहास्पद लगता है और वास्तविक संरक्षण के अनुरूप नहीं है. मैंने स्मारकों को रिस्टोर किए जाते हुए देखा है, और इसमें समय लगता है – आप संरक्षण के नाम पर किसी इमारत को केवल कुछ हफ्तों में रिस्टोर नहीं कर सकते.” यह तेज़ी उस मेहनत व बहुत ध्यानपूर्वक किए जाने वाले काम की कीमत पर आई जिसकी रिस्टोरेशन में ज़रूरत होती है.
इन विशिष्ट स्मारकों पर काम करने वाले मजदूर सहमत हैं – रिस्टोरेशन के काम में समय लगता है, लेकिन उनके पास इसका बहुत समय नहीं है. जी20 शिखर सम्मेलन के लिए स्मारकों को तैयार करने की समय सीमा के अंदर ही इस काम को पूरा करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
हेरिटेज कंज़र्वेशन और रिस्टोरेशन का काम करने वाली एक निजी निर्माण कंपनी नोस्पे एंड कंपनी एलएलपी चलाने वाले राधा रंजन मेहता ने कहा, “मेरे कर्मचारियों से पूछो, वे पिछले कुछ हफ्तों से लगातार काम कर रहे हैं! वे रातों और वीकेंड में अथक परिश्रम कर रहे हैं.” मेहता ने कहा, “एक साल का काम चार महीने में हो रहा है. काम पूरा होने के बाद इसके रखरखाव में भी काफी खर्च आएगा.”
दिल्ली पर्यटन विभाग द्वारा नोस्पे एंड कंपनी को G20 के लिए 11 स्मारकों को रिस्टोर करने का टेंडर दिया गया था. इस कार्य की देखरेख नई दिल्ली का पुरातत्व विभाग भी कर रहा है. विभाग का नेतृत्व कार्यालय प्रमुख (पुरातत्व) संजय गार्ड द्वारा किया जाता है. दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए पुरातत्व विभाग से संपर्क किया लेकिन उनकी तरफ से इसका अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.
मेनन और इसके दिल्ली चैप्टर के वर्तमान संयोजक अरुण कुमार के अनुसार, इन सभी 11 स्मारकों का जीर्णोद्धार आखिरी बार 2010 में INTACH द्वारा किया गया था. जीर्णोद्धार की प्रक्रिया के लिए एक प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है – पहले एक गहन जांच की जाती है और फिर यह देखा जाता है कि जिस मटीरियल का प्रयोग जीर्णोद्धार के लिए किया जाना उस पर हेरिटेज बिल्डिंग किस तरह से प्रतिक्रिया देती है. चूने की परतों को कई राउंड में प्लास्टर किया जाता है, जिससे प्रत्येक परत को सूखने के लिए सांस लेने का समय मिलता है.
कुली खान के मकबरे का जीर्णोद्धार करने में INTACH को एक वर्ष का समय लगा. जीर्णोद्धार का वर्तमान दौर तीन सप्ताह से चल रहा है – मकबरे के अंदर का हिस्सा चमकदार सफेद है, और दीवारों पर नाजुक गहरे नीले रंग के डिजाइन चित्रित किए गए हैं. संरचना की गुंबददार छत वैसी ही बनी हुई है क्योंकि नोस्पे एंड कंपनी को मूल गुंबद के लिए कोई संदर्भ फोटो नहीं मिल सका. INTACH ने पुष्टि की कि उन्हें जीर्णोद्धार के इस दौर पर परामर्श करने के लिए नहीं कहा गया था.
“यह पहले ऐसा नहीं दिखता था. यह सब पुराना लग रहा था. अब यह साफ और चमक रहा है,” महरौली निवासी हरिलाल यादव मुस्कुराते हुए कहते हैं, जो 10 वर्षों तक कुली खान मकबरे में सुरक्षा गार्ड भी रहे हैं – वह रिस्टोरेशन के आखिरी दौर के ठीक बाद शामिल हुए थे. “मुझे लगता है कि जब इसे बनाया गया था तो यह ऐसा ही दिखता रहा होगा. एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और अब जी20. ये तीन इवेंट्स ऐसे हैं जिन्होंने दिल्ली को फिर से खूबसूरत बना दिया है!”
यह भी पढ़ेंः नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय आधुनिक भारत का अभिलेख है, नया नाम इसके इतिहास को बदल नहीं पाएगा
संरक्षण बनाम ‘सौंदर्यीकरण’
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) भी जी20 शिखर सम्मेलन के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है.
“G20 के लिए, हमारे ‘प्रमुख स्मारकों’ पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है – जैसे लाल किला, कुतुब मीनार और हुमायूं का मकबरा. एएसआई में संयुक्त महानिदेशक (पुरातत्व) टीजे अलोन ने कहा, हमने जुलाई में तैयारी शुरू कर दी थी और हम विशेष सफाई, बेहतर रोशनी आदि कर रहे हैं.
INTACH और दिल्ली सरकार की एजेंसियों के अलावा, ASI दिल्ली के विरासत स्मारकों की देखरेख करने वाला दूसरा प्रमुख निकाय है. शहर में 2,000 से अधिक स्मारक और विरासत इमारतें हैं, और उनका रखरखाव एएसआई और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) जैसी एजेंसियों के बीच विभाजित है. उदाहरण के लिए, कुतुब मीनार के लिए एएसआई जिम्मेदार है, लेकिन निकटवर्ती महरौली पुरातत्व पार्क की देखभाल दिल्ली राज्य पुरातत्व विभाग और डीडीए द्वारा की जाती है.
फूल लगाए गए हैं, स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं, दीवारों को रंगा गया है, सड़क के किनारे की दुकानें ध्वस्त कर दी गई हैं, और G20 प्रतिनिधियों के लिए संभावित रूप से अरुचिकर जगहें – जैसे बेघरों के लिए रैन बसेरे – को पार्क में बदल दिया गया है. लगभग 50 नई मूर्तियां और 100 से अधिक नए फव्वारे विभिन्न सुविधाजनक स्थानों पर लगाए गए हैं, और मेट्रो स्टेशनों को भित्ति चित्रों से सजाया गया है. आने वाले हवाई यात्री अब शहर में प्रवेश करते समय 6 फीट ऊंची शेर की मूर्तियों, घोड़ों और शिवलिंगों के साथ फव्वारे और एक नए कृत्रिम चट्टान झरने को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं.
कुमार ने कहा, “एक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के साथ, अगर दिल्ली के स्मारकों का उचित रखरखाव और जीर्णोद्धार कार्य किया जाता है, तो शहर का आकर्षण बदल जाता है. यह सब होना एक शानदार विचार है और जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी में चल रहे सभी कार्यों से दिल्ली की नागरिक स्थिति में सुधार हुआ है. स्मारकों के साथ, कम से कम कुछ रखरखाव का काम शुरू किया गया है.”
राजधानी शहर में आखिरी वैश्विक आयोजन 2010 के राष्ट्रमंडल खेल थे और पिछली बार उसी वक्त INTACH के मार्गदर्शन में दिल्ली के स्मारकों का सौंदर्यीकरण किया गया था.
And the prettification of Delhi’s monuments goes on unchecked …. These beauties inside #Lodigarden have been coated with a fresh layer of sand, cement and bajri. In the process, the delicate incised plasterwork on the walls is effaced. So is the calligraphy on the facade. #Lodi pic.twitter.com/BeRAJvEyGo
— Rakhshanda Jalil (@RakhshandaJalil) August 27, 2023
साहित्यिक इतिहासकार और इनविजिबल सिटी: द हिडन मॉन्यूमेंट्स ऑफ इंडिया की लेखिका रक्षंदा जलील ने कहा, “‘सौंदर्यीकरण’ की प्रक्रिया में, हम चाहते हैं कि सब कुछ साफ-सुथरा दिखे – और यह हमारे अतीत को मिटा देता है.” वह कहती हैं, “अपने मूल चरित्र के बिना एक स्मारक या इमारत महज़ एक खोल या शेल जैसा है. इन इमारतों के अग्रभागों पर सुंदर लिखावटों को बनाए रखने और प्लास्टरवर्क को उकेरने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.
लेकिन ऐतिहासिक संरक्षण का सवाल एक आधुनिक शहर के विश्व स्तर पर सौंदर्य के सामने फीका पड़ जाता है. चमकदार, शहरी और सुसंस्कृत दिखने की होड़ में, दिल्ली के गहराई तक पैठे और समन्वित इतिहास का वास्तविक संरक्षण पीछे छूट गया है.
यह अभी भी एक खंडहर जैसा दिखना चाहिए, और यह बिल्कुल ठीक है – क्योंकि यह एक खंडहर ही है. और यही इसका महत्त्व है- एजीके मेनन.
इसके मूल में यह विचार है कि अतीत को किस प्रकार देखा जाता है – न कि इस रूप में कि वह कोई सुंदर चीज़ है या एजुकेशनल चीज़.
मेनन ने कहा, “संरक्षण का उद्देश्य किसी स्मारक को सुंदर बनाना या अतीत को फिर से बनाना नहीं है जिसके बारे में हम केवल अनुमान लगा सकते हैं और ‘आविष्कार’ कर सकते हैं: यह प्रामाणिकता को संरक्षित करने के लिए अस्वीकार्य है.” “संरक्षण का विचार स्मारक की प्रामाणिकता को बचाना है. अंत में, यह अभी भी एक खंडहर जैसा दिख सकता है, और यह बिल्कुल ठीक है – क्योंकि यह एक खंडहर है. और इसका महत्त्व इसी में निहित है.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः राजभवनों का मतलब सिर्फ वैभव, विशेषाधिकार नहीं, बल्कि सत्ता भी है – अब ये BJP का वॉर रूम भी हैं