नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के काडर आज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए उपलब्ध हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की इच्छा के लिए औज़ार बनाया जा सकता है- ये कहना है पूर्व बीजेपी मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी का.
अटल बिहारी वाजपेयी कैबनेट के एक पूर्व मंत्री शौरी- जिन्होंने आरएसएस का अध्ययन करने में काफी समय लगाया है- कहा कि संघ नेतृत्व के पास आज कोई शक्ति नहीं है, और वो एक अलग एजेण्डा के लिए मुखौटा मात्र है, और साथ ही ये भी कहा कि संगठन जिस सीधे-सादे जीवन के लिए जाना जाता था- अब उसका पालन नहीं होता.
ऑफ दि कफ के ताज़ा एपिसोड में, पूर्व अर्थशास्त्री, मंत्री और पत्रकार शौरी, अपनी नई किताब दि कमिश्नर फॉर लॉस्ट कॉज़ेज़ पर चर्चा करने के लिए दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ बैठे.
इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक रह चुके शौरी, अपनी किताब में न सिर्फ अपने पत्रकारिता के सफर की व्याख्या करते हैं, बल्कि कुछ ऐसी हस्तियों से अपनी बातचीत के अंश भी साझा करते हैं, जिनमें इंडियन एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और न्यायिक सक्रियता के पथ-प्रदर्शक पीएन भगवती, और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर शामिल हैं.
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आरएसएस
बातचीत के दौरान शौरी ने कहा कि बहुत से संपादक, पत्रकार और शिक्षाविद एक बुनियादी ग़लती करते हैं: वो आरएसएस के साहित्य को पढ़ने का समय नहीं निकालते, जो आज उसके एजेण्डा को समझने के लिए ज़रूरी है.
उन्होंने आरएसएस के अपने अध्ययन के ज़माने की बातें कीं, और एक अवसर को याद किया जब वो पूर्व आरएसएस सरसंघचालक (प्रमुख) एमडी देवरस के भाई भाउराव देवरस से मिले थे.
उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हें बहुत तेज़-दिमाग़ और जानकार व्यक्ति पाया’.
उन्होंने घटनाओं का अध्ययन करने और उन्हें सही रोशनी में जांचने की अहमियत पर भी बात की. इस संदर्भ में उन्होंने उस पर भी चर्चा की, जिसे वो अपने फैसले की दो बड़ी ग़लतियां मानते हैं.
उन्होंने कहा कि एक ग़लती थी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह का समर्थन करना. बीजेपी और वाम दलों के बाहर से समर्थन देने से, सिंह दिसंबर 1989 में प्रधानमंत्री बन गए.
नरेंद्र मोदी
शौरी की दूसरी – और उनके अनुसार ज़्यादा ख़राब- ग़लती थी कि कैसे उन्होंने नरेंद्र मोदी को ‘ग़लत समझा’ जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और 2014 में प्रधानमंत्री बनने के लिए उनका समर्थन किया.
उन्होंने कहा, ‘अगर आप गुजरात के वास्तविक रिकॉर्ड की जांच करें, तो वो उससे बहुत अलग था जो हम उस समय समझते थे. मैं ग़लत था जो उस सब पर यक़ीन कर लिया. मैंने मामले की बिल्कुल भी जांच नहीं की थी.
शौरी गुजरात में आर्थिक विकास के बारे में किए गए मोदी के दावों का ज़िक्र कर रहे थे, जिसे आमतौर से ‘गुजरात मॉडल’ कहा जाता है.
उन्होंने कहा, ‘कभी कभी हम मौजूदा हालात से इतने परेशान हो जाते हैं कि जो भी विकल्प नज़र आता है उसे झपट लेने की कोशिश करते हैं’. मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और 2014 के लोकसभा चुनावों में उनकी जीत ऐसे समय पर आई, जब कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी.
‘मुश्किल समय’
शौरी ने कांग्रेस के दौर में और वीपी सिंह सरकार के अंतर्गत, इंडियन एक्सप्रेस के संपादक की हैसियत से अपने कार्यकाल पर भी बात की.
उन्होंने आज की व्यवस्था को ‘कौटुंबिक’ क़रार दिया, जिसने सत्ता को एक जगह केंद्रित कर दिया है, जहां शक्तियों का कोई विभाजन नहीं है.
उन्होंने कहा कि स्वतंत्र पत्रकारों और न्यायपालिका के लिए ये एक मुश्किल समय है.
उन्होंने कहा, ‘अब कोई संस्थागत प्रतिबंध नहीं रह गए हैं. एक नागरिक के सामने कोई रास्ता नहीं बचा है’.
उन्होंने कहा कि जजों को रिटायर होने के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करने चाहिए. उन्हें अपने फैसलों की जांच करनी चाहिए, ताकि उनके निहितार्थों और परिणामों को समझ सकें.
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‘कोई पछतावा नहीं’
उन्होंने कहा कि व्यवस्था के अंदर अपनी ग़लतियों को लेकर, किसी ‘पछतावे या शर्मिंदगी’ का अहसास नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘इस बात का कोई अहसास नहीं है कि ‘मैंने जो किया उससे कोई आहत हो रहा है’, चाहे वो नोटबंदी हो या आंकड़ों का फर्ज़ीवाड़ा’.
उन्होंने दो बड़े विवादों पर भी बात की, जो पिछले कुछ महीनों में हिजाब और हलाल मीट पर खड़े हो गए हैं.
दोनों ही विवाद कर्नाटक से शुरू हुए- पहला उस समय सुर्ख़ियों में आया, जब कुछ मुस्लिम लड़कियों को हेडस्कार्फ पहनकर क्लास में आने से रोका गया, और दूसरा तब उठा जब कुछ हिंदू संगठनों ने हलाल चीज़ों के बहिष्कार की आवाज़ उठाई.
शौरी ने कहा कि ये कोई मुद्दे नहीं हैं, और सिर्फ चुनाव आने से पहले उठाए गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य की बात है कि हिंदू धर्म को नीचे गिराकर यहां पर ले आया गया है’.
सार्वजनिक शख़्सियतों का गिरता स्तर
पूर्व राज्यसभा सांसद शौरी ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में लोगों की गुणवत्ता में ‘नाटकीय गिरावट’ आई है.
उन्होंने कहा कि ये बात न सिर्फ राजनेताओं, बल्कि नौकरशाहों के लिए भी सही है. उन्होंने एक मिसाल दी: पूर्व राजनयिक बीके नेहरू इंदिरा गांधी के सामने खड़े हो गए थे, जब उन्होंने 1984 में सदन में बहुमत साबित करने का मौक़ा दिए बिना जम्मू-कश्मीर की फारूक़ अब्दुल्ला सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया.
गुप्ता और शौरी नेइंडियन एक्सप्रेस में एक साथ बिताए अपने समय को भी याद किया- ये शौरी ही थे जिन्होंने गुप्ता को उत्तर-पूर्व से रिपोर्ट करने के लिए भेजा था.
शौरी ने कहा, ‘रामनाथ गोयनका के साथ काम करना, हर दिन एक नया जोखिम था’. उन्होंने याद किया कि किस तरह इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक, उन्हें ग़ुस्साए जजों और राजनेताओं से बचाते थे, जो उनकी लिखी या कराई गई कुछ ख़बरों से नाराज़ होते थे.
युवा पत्रकारों को उनकी सलाह? ख़ूब पढ़िए और सार्वजनिक दस्तावेज़ों की छानबीन कीजिए- बहुत सारी ख़बरें वहीं से निकलती हैं.
उन्होंने कहा, ‘जब हमारे सामने कठिनाइयां आती हैं, तो हमें उन्हीं से अपना काम निकालना चाहिए’.
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