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सोमवार, 5 मई, 2025
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बच्चों में मायोपिया की तेज रफ्तार पर रोक के लिए पहली बार स्कूलों को साथ जोड़ेगा एम्स

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(पवनेश कौशिक)

नयी दिल्ली, पांच मई (भाषा) बच्चों में ‘मायोपिया’ के बढ़ते मामलों और इस रोग की तेज रफ्तार पर रोक लगाने के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने पहली बार स्कूलों की मदद लेने का निर्णय लिया है।

इसके लिए गर्मियों की छुट्टियों में निजी और सरकारी स्कूलों की मदद से दिल्ली में दो सप्ताह का विशेष ‘मायोपिया’ रोकथाम अभियान चलाया जाएगा।

एम्स स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र की प्रमुख डॉक्टर राधिका टंडन ने ‘भाषा’ के साथ विशेष बातचीत में सोमवार को यह जानकारी दी। डॉ. टंडन ने कहा कि मायोपिया में दूर की दृष्टि कमजोर हो जाती है और इस रोग का प्रसार बच्चों में बड़ी तेजी से हो रहा है।

डॉ. टंडन ने कहा, ‘‘ सामान्य तौर पर पहले मायोपिया की शुरुआत किशोरावस्था (13-14 वर्ष ) में होती थी लेकिन अब यह बेहद कम उम्र में हो रहा है। तीन से चार साल की उम्र में बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। यही नहीं, इसमें दूर की नजर कमजोर होने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। यानी तेजी से चश्मे का नंबर बढ़ रहा है।’’

मायोपिया में बच्चों की दूर की दृष्टि कमजोर हो जाती है और पढ़ने वाले बच्चों को कक्षा में ब्लैकबोर्ड पर देखने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके अन्य लक्षणों में आंखों से पानी आना, सिरदर्द होना, आंखों में भारीपन आदि शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि जीवन शैली में परिवर्तन, खान-पान की आदतों में बदलाव व अधिक ‘स्क्रीन टाइम’ मायोपिया के मामले बढ़ने के प्रमुख कारण हैं।

एम्स के अध्ययनों में भी मोबाइल और गैजेट के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में दूर की नजर कमजोर होने की समस्या बढ़ने की बात सामने आई है।

एम्स के एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में 2001 से 2021 तक 20 सालों में बच्चों में मायोपिया में तीन गुना की वृद्धि देखी गई। इस अध्ययन के अनुसार 2001 में बच्चों में मायोपिया की समस्या जहां सात फीसदी थी वहीं, 2011 में बढ़कर यह 13.5 फीसदी पर पुहंच गई।

कोविड के बाद वर्ष 2021 में किये गये सर्वे में 20 से 22 फीसदी बच्चे मायोपिया से ग्रस्त पाये गये।

डॉ टंडन ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मायोपिया के खिलाफ जागरुकता को सबसे बड़ा हथियार करार देते हुए उन्होंने कहा कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए एम्स, दिल्ली में गर्मियों की छुट्टियों में अभियान चलाएगा।

आर.पी. नेत्र विज्ञान केंद्र की प्रमुख ने कहा,‘‘ सरकारी और निजी स्कूलों की मदद लेते हुए मायोपिया के खिलाफ दो सप्ताह का जागरूकता अभियान ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान चलाया जाएगा। इस समय को इसलिए चुना गया है ताकि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो।’’

‘डिजिटल क्रांति’ के मौजूदा समय में जब स्कूलों द्वारा ‘स्मार्ट’ कक्षाएं व ऑनलाइन कक्षाएं संचालित की जा रही है, ऐसे में बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने की चुनौती के मद्देनजर डॉ. टंडन ने मायोपिया से बचाव के लिए 20-20-20 फार्मूले को अपनाने की सलाह दी।

उन्होंने कहा, ‘‘मोबाइल, टीवी देखते हुए या लैपटॉप-डेस्कटॉप पर काम करते हुए प्रत्येक 20 मिनट के बाद 20 सेकेंड के लिए ‘ब्रेक’ लें। अपनी पलकें 20 बार झपकाएं। स्कूल में ‘स्मार्ट क्लास’ पर पढ़ाई करने वाले बच्चे इस नियम को अपनाए, इससे आंखों को आराम मिलता है।’’

साथ ही उन्होंने स्मार्ट कक्षाएं संचालित करने वाले स्कूलों के लिए अध्ययन सामग्री का फॉट बड़ा रखने और पढ़ाई में दृश्य-श्रव्य सामग्री के बीच संतुलन बनाने और अधिक ‘आउटडोर एक्टिविटी’ संचालित करने की सलाह दी।

डॉ. टंडन ने कहा कि मायोपिया के बढ़ते मामलों के मद्देनजर एम्स में पिछले साल विशेष मायोपिया क्लिनिक की शुरूआत की गई थी और यहां 15 वर्ष तक के ऐसे बच्चों के इलाज को प्राथमिकता दी जाती है जिनमें इस बीमारी की रफ्तार तेज है।

भाषा पवनेश नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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