देहरादून (उत्तराखंड) : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट पार्क में 6 हजार पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण को लेकर कड़ा रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि ममले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए.
सोमवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायधीश की पीठ ने टिप्पणी की कि मामले की गंभीरता और शीर्ष अधिकारियों के संदिग्ध भूमिका को देखते हुए मामले को सीबीआई को क्यों न भेजा जाए? मामले की अगली सुनवाई 1 सितम्बर को तय की गई है.
2017 और 2022 के बीच बताया गया है कि जिम कार्बेट में टाइगर सफारी के निर्माण और अन्य टूरिस्ट सुविधाओं के लिए पेड़ काटे गए. बाउंड्री वॉल और भवन भी नेशनल पार्क में बनाए गए. उस समय हरक सिंह रावत राज्य के वन मंत्री थे.
देहरादून के रहने वाले अनु पंत की ओर से दायर पीआईएल पर सुनवाई के दौरान पीठ ने सरकार से सवाल किया. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि कार्बेट में 6 हजार पेड़ों की कटाई को लेकर कई सारी रिपोर्ट्स कोर्ट के समक्ष पेश रखी गईं. इन सभी रिपोर्ट को डिटेल में याचिकाकर्ता एडवोकेट अभिजय नेगी ने कोर्ट दिखाया.
इस पर, कोर्ट ने सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता से पूछा कि तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत और अन्य शीर्ष वन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जिनका नाम कई रिपोर्टों में सामने आया है.
इस पर, चीफ अस्थाई अधिवक्ता ने कहा कि चीफ सचिव कोर्ट के समझ सही तथ्यों को रखेंगे.
उस समय के वनमंत्री हरक सिंह रावत का नाम केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट में भी प्रमुखता से आया था. यह रिपोर्ट कोर्ट में भी पेश की गई थी. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट में भी पूर्व वन मंत्री का नाम है.
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