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Tuesday, 26 November, 2024
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एल्गार परिषद मामले में 16 आरोपियों में से एक की मौत, दो जमानत पर रिहा, 13 जेल में बंद

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया है कि इसके कारण अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.

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मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में अगले तीन महीने में आरोप तय करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद अब इस बात पर ध्यान केंद्रित हो गया है कि मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों से जुड़ी स्थिति क्या है.

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) मामले की जांच कर रहा है. इस मामले में 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत के दौरान पिछले साल यहां एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी, जबकि तेलुगु कवि वरवरा राव चिकित्सकीय जमानत पर जेल से बाहर हैं. केवल एक आरोपी सुधा भारद्वाज को नियमित जमानत पर रिहा किया गया है. सुधा को पिछले साल दिसंबर में बंबई उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी. इसके अलावा 13 अन्य आरोपी विभिन्न जेलों में बंद हैं.

एनआईए ने अपने मसौदा आरोपों में आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जाने का अनुरोध किया है. अदालत ने अभी इस मामले में आरोप तय नहीं किए हैं. आरोप तय होने के बाद ही सुनवाई शुरू होगी.

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया है कि इसके कारण अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन था. बाद में एनआईए ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली.

इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों की स्थिति इस प्रकार है:

कार्यकर्ता सुधीर धवले मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किए गए लोगों में शामिल हैं. उन्हें जून 2018 में गिरफ्तार किया गया. वह वर्तमान में तलोजा जेल में बंद हैं और उन पर उग्रवादी संगठन के सक्रिय सदस्य होने का आरोप लगाया गया है. एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस साल जुलाई में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

कार्यकर्ता रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था और वह तब से जेल में हैं. उन्हें कथित तौर पर शहरी माओवादियों के प्रमुख सदस्यों में शामिल बताया गया है. विशेष अदालत ने जुलाई 2022 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी. विल्सन को सितंबर 2021 में अपने पिता के निधन के बाद 30वें दिन के अनुष्ठान में शामिल होने के लिए विशेष एनआईए अदालत ने 14 दिन की अस्थायी जमानत दी थी. उन्होंने 14 दिन की अवधि समाप्त होने पर आत्मसमर्पण कर दिया था.

वकील सुरेंद्र गाडलिंग को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं. एनआईए के अनुसार, गाडलिंग पर आरोप है कि वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (माओवादी) के एक सक्रिय सदस्य हैं और वह धन उगाहने की गतिविधियों और उसके वितरण में शामिल थे. विशेष अदालत ने गाडलिंग को भी जुलाई 2022 में जमानत देने से इनकार कर दिया था.

प्रोफेसर शोमा सेन को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह भायखला महिला जेल में बंद हैं. उन्होंने 2021 में चिकित्सकीय आधार पर और कोविड-19 के बढ़ते मामलों के मद्देनजर जमानत याचिका दायर की थी लेकिन विशेष एनआईए अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी. अदालत ने जुलाई 2022 में उनकी ‘डिफॉल्ट’ जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी.

कार्यकर्ता महेश राउत पर माओवादी विचारधारा का प्रचार करने और छात्रों को नक्सली आंदोलन में शामिल करने के प्रयास का आरोप है. एनआईए का आरोप है कि राउत ने मामले के सह-आरोपियों को एल्गार परिषद कार्यक्रम के लिए पांच लाख रुपये दिये थे. उन्हें 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह अब भी जेल में हैं. विशेष अदालत ने उनकी ‘डिफॉल्ट’ जमानत याचिका इस साल खारिज कर दी थी.

उच्चतम न्यायालय ने 82-वर्षीय राव को 10 अगस्त, 2022 को चिकित्सकीय आधार पर जमानत दी थी. बंबई उच्च न्यायालय ने उन्हें पिछले साल चिकित्सकीय आधार पर अस्थायी जमानत दी थी. उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह उच्च न्यायालय द्वारा पिछले वर्ष फरवरी में जमानत मंजूर किए जाने तक जेल में थे. उन पर प्रतिबंधित समूह का वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य होने का आरोप है.

सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील अरुण फरेरा को अगस्त 2018 में इस मामले में गिरफ्तार किया गया था और वह वर्तमान में तलोजा जेल में हैं. उन्होंने मामले में डिफॉल्ट जमानत का अनुरोध किया था, लेकिन विशेष अदालत एवं बंबई उच्च न्यायालय ने इसे इस साल फरवरी में खारिज कर दिया था. फरेरा पर माओवादी मुहिम में सक्रिय रूप से भाग लेने का आरोप है.

वर्नोन गोंजाल्विस को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह भी तलोजा जेल में बंद हैं. विशेष अदालत और उच्च न्यायालय दोनों ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने जमानत के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज इस मामले में एकमात्र ऐसी आरोपी हैं, जिन्हें बंबई उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2021 में डिफॉल्ट जमानत दी. उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह दिसंबर 2021 तक जेल में थीं. एनआईए के आरोप के अनुसार, भारद्वाज भाकपा (माओवादी) की सक्रिय सदस्य हैं.

एनआईए ने कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे को अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया था. उच्चतम न्यायालय ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका मंजूर नहीं की थी, जिसके बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था. वह इस समय तलोजा जेल में हैं और विशेष अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है.

सत्तर-वर्षीय गौतम नवलखा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह तब से तलोजा जेल में हैं. नवलखा की साथी सहबा हुसैन ने दावा किया है कि नवलखा को अक्टूबर 2021 में अंडा सेल (उच्च सुरक्षा वाले बैरक) में स्थानांतरित कर दिया गया था और तब से उन्हें अकेले कारावास में रखा गया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वह इस समय तलोजा जेल में हैं. उन्होंने हाल में जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिस पर अभी सुनवाई होनी है. एनआईए ने बाबू पर भाकपा (माओवादी) नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार में शामिल होने का आरोप लगाया है.

स्टेन स्वामी (83) की न्यायिक हिरासत में मौत हो गई. उन्होंने उच्च न्यायालय से चिकित्सकीय आधार पर जमानत का अनुरोध किया था. उस पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान उन्हें एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था, जहां पांच जुलाई, 2021 को उनकी मौत हो गई. उन्हें अक्टूबर 2020 में एनआईए ने गिरफ्तार किया था और वह मई 2021 में एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित किये जाने तक तलोजा जेल में रहे.

गायक और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे को एनआईए ने सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था. वह वर्तमान में तलोजा जेल में बंद हैं.

एनआईए ने रमेश गैचोर को गोरखे के साथ गिरफ्तार किया था और वह भी तलोजा जेल में बंद हैं. दोनों पर एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन करने वाले समूह में शामिल होने का आरोप है.

कबीर कला मंच की सदस्य ज्योति जगताप को सितंबर 2020 में नक्सली गतिविधियों और माओवादी विचारधारा के प्रचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वह फिलहाल मुंबई की भायखला महिला जेल में बंद हैं.

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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