scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमदेशफंसाया गया, खराब माहौल: बिलकिस के दोषियों ने कुछ इस तरह से दीं अपनी बेगुनाही की दलीलें

फंसाया गया, खराब माहौल: बिलकिस के दोषियों ने कुछ इस तरह से दीं अपनी बेगुनाही की दलीलें

रिहा किए गए 11 दोषियों में से अधिकांश गुजरात के सिंगवाड़ लौट आए हैं, जिसने फिलहाल असहज माहौल के बीच उदासीनता ओढ़ रखी है. 2002 तक यह गांव बानो के परिवार का भी घर था. अब वहां सिर्फ उनके चाचा रहते हैं.

Text Size:

सिंगवाड़: 2002 के गुजरात दंगों के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के 11 दोषियों में एक वकील, एक शिक्षक, एक डॉक्टर, एक स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता, एक पूर्व सरपंच का पति और एक होटल चलाने वाला शामिल है. इन सभी को गुजरात सरकार ने उम्रकैद की सजा में छूट देते हुए 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया. इन कैदियों को मिली रिहाई की खबर उस साल आई है जब गुजरात में एक नई विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं.

रिहा किए गए 11 दोषियों में से ज्यादातर गुजरात के दाहोद जिले के सिंगवाड़ गांव लौट आए, जिसने फिलहाल असहज माहौल के बीच उदासीनता ओढ़ रखी है. 2002 तक बानो के परिवार का घर भी टूटी-फूटी सड़कों, ऊबड़-खाबड़ गलियों और दुकानों और बकरियों से भरी संकरी गलियों वाले इसी गांव में था.

बिलकिस बानो मामले के बारे में पूछने पर गांव वाले असहज हैं लेकिन चुप्पी साधे हुए हैं.

सिंगवाड़ के एक फल विक्रेता रमेश भाई ने दिप्रिंट को बताया कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद से गांव शांतिपूर्ण है और ‘अभी भी यहां शांति ही है.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं यहां अलग-अलग समुदाय के संबंधों के बारे में कुछ नहीं कह सकता हूं. मुझे अपने काम से मतलब है.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

लेकिन कुछ हैं जो बड़ी सावधानी से अपनी बात रखते हैं, उस समय की कहानियां सुनाते हैं जब बानो का परिवार गांव में भैंस का दूध पहुंचाता था, बच्चे एक साथ क्रिकेट खेलते थे और लोग एक-दूसरे के पारिवारिक समारोहों में शामिल होते थे. उन्हें याद है कि कुछ दोषियों के परिवारों और बानो के परिवार के बीच भी कई मौकों पर चीजों का लेना-देना हुआ करता था.

वे समय-समय पर गांव के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच होने वाले मामूली झगड़े के बारे में भी बात करते हैं.

दोषी और उनके परिजन अपने आपको बेगुनाह बनाए हुए हैं, जबकि बानो के परिवार के वो लोग जो अभी भी सिंगवाड़ में रहते हैं, का कहना है कि उनके सिर पर हमेशा चिंता के बादल बनें रहते हैं.

‘बिलकिस के साथ जो हुआ, मेरी परवरिश ऐसा करने के लिए नहीं कहती’

गुजरात के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया और अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसके परिवार के चौदह सदस्यों की हत्या कर दी, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी. ये मार्च 2002 में गोधरा दंगों के दौरान की घटना है.

उस समय बानो 19 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती भी.

बाद में उन्होंने अपने गांव सिंगवाड़ के लोगों को आरोपी बनाया, जिनमें से 11 लोगों को 2008 में दोषी ठहराया गया था, जबकि एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

हालांकि, दोषियों और उनके परिजनों का कहना है कि वे निर्दोष थे और राजनीतिक कारणों से उन्हें निशाना बनाया गया था.

अपराध के लिए दोषी ठहराए गए वकील राधेश्याम शाह को भी 15 अगस्त को सजा में छूट देते हुए रिहा किया गया था. वह आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘राहत शिविर में एनजीओ वालों ने बिलकिस को यह कहानी सुनाई. हमें बलि का बकरा बनाया गया क्योंकि मोदीजी के राजनीतिक विरोधी उन्हें निशाना बनाना चाहते थे.’

Area outside Radheshyam Shah's house in Singvad | Photo: Manasi Phadke | ThePrint
सिंगवाड़ में राधेश्याम शाह के घर के बाहर का एरिया | फोटोः मानसी फडके | दिप्रिंट

दिप्रिंट से फोन पर बात करते हुए शाह ने दावा किया, ‘2002 में जो कुछ भी हुआ, मुझे नहीं पता कि यह किसने किया, लेकिन उस परिवार के साथ जो कुछ भी हुआ और जो कुछ भी उन्होंने खोया, वह गलत है. मेरी परवरिश और तहज़ीब ऐसा करने की इजाजत नहीं देती है.’

उसने कहा, ‘लेकिन, हम में से कोई भी इस घटना में किसी भी तरह से शामिल नहीं था.’

जेल से रिहा होने के बाद अपने गांव में दो दिन बिताने के बाद शाह गुरुवार को पड़ोसी राज्य राजस्थान चला गया और एक मंदिर में दर्शन किए. और अपने देवता को अपनी रिहाई के लिए धन्यवाद दिया.

उसने दावा किया कि वह घटना के दिन 3 मार्च, 2002 को अपने परिवार के सदस्यों के साथ घर पर था, लेकिन उस समय कोई सीसीटीवी कैमरा और सेल फोन नहीं होने के कारण, ऐसा साबित कर पाना मुश्किल था.

वह एक और कारण बताता है कि क्यों वे सभी इस अपराध को करने में असमर्थ थे जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया था.

दोषियों में तीन भाई-नरेश मोढिया और प्रदीप मोढिया, शैलेश भट्ट और मितेश भट्ट, केअरभाई वोहानिया और बकाभाई वोहानिया और एक चाचा-भतीजे की जोड़ी- जसवंत नाई और गोविंद नाई थे.

शाह ने दावा किया, ‘उन्होंने जो कुछ भी कहा, कि हमने एक के बाद एक करके उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया, उसके बारे में नैतिक दृष्टिकोण से सोचें. क्या कोई व्यक्ति अपने भाई के सामने ऐसा कुछ कर सकता है? यह हमारी संस्कृति नहीं है.’

रिहा किए गए इन 11 दोषियों में से एक गोविंद नाई के घर पर जब दिप्रिंट ने गुरुवार को दौरा किया तो स्थिति सामान्य थी. एक बच्चा सीढ़ियों पर खेल रहा था. कुछ देर बाद उसकी मां उसे वहां से उठाकर ले गई. उसका बड़ा भाई घर के अंदर एक छोटी साइकिल की सवारी कर रहा था. उसकी दादी की दोनों पर बराबर नजर बनी हुई थी.

गोविंद नाई घर पर नहीं था, जबकि नाई का बेटा, जो नाम नहीं बताना चाहता था, बाहर निकलने की तैयारी में था.

मामले के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘यह हमारे लिए एक बंद अध्याय है. दरअसल हम इसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहते हैं. यह सब होने से पहले वह (गोविंद नाई) पास के गांव के एक सरकारी स्कूल में टीचर थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है.’


यह भी पढ़ेंः विस्तार के बाद भी महाराष्ट्र कैबिनेट टू-मैन शो बनी, क्योंकि मलाईदार मंत्रालय तो सीएम, डिप्टी सीएम के ही पास हैं


छोटी-मोटी तकरार

सिंगवाड़ में रहने वाले लोगों का दावा है कि बानो का परिवार 2002 तक गांव में शांति से रहा करता था. हालांकि कुछ को उनकी कुछ गांव वालों के साथ हुई छोटी-मोटी तकरार याद आती है. लेकिन वे साफ तौर पर कहते हैं कि ये पड़ोसियों के बीच वाली सामान्य तकरार हुआ करती थीं.

हालांकि दोषियों ने इस मामले में अपने ‘फंसाने’ के लिए इन कारणों को भी उसकी वजह माना है.

उदाहरण के लिए, अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, नरेश कुमार मोढिया गांव में एक होटल चलाते थे और उसने अदालत को बताया था कि उसे निशाना बनाया गया है क्योंकि होटल से निकलने वाला ड्रेनेज का पानी बानो के पिता के आंगन में चला गया था. जेल में रहते हुए मोढिया की मौत हो गई थी.

The house of Bilkis Bano's uncle Ayyub Ghachi | Photo: Manasi Phadke | ThePrint
बिलकिस बानो के चाचा अयूब गाची का घर | फोटोः मानसी फडके | दिप्रिंट

गांव में लाला डॉक्टर के नाम से मशहूर एक अन्य दोषी बिपिन जोशी ने कहा था कि उसने बानो के पिता का इलाज किया था. लेकिन उन्होंने दवाओं के पैसे नहीं दिए थे. सिंगवाड़ में जोशी का कच्चा मकान सालों से खाली पड़ा है. गांव वालों ने बताया कि गिरफ्तारी के कुछ साल बाद उसका परिवार वड़ोदरा चला गया.

11 दोषियों में से एक रमेश चंदना एक सरकारी क्लर्क थे. उन्होंने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि एक मौजूदा सरपंच के खिलाफ प्रचार करने की वजह से उस पर आरोप लगाया गया था. आखिरकार चंदना की पत्नी 2001 में गांव की सरपंच बन गई थी.

अदालत के दस्तावेजों के अनुसार, तीसरा दोषी शैलेश भट्ट एक ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ था. उसने अदालत से कहा कि अवैध इमारतों को तोड़ने के अभियान में शामिल था. इसमें से कई संपत्तियां मुस्लिम लोगों की थी. सिंगवाड़ के लोगों ने कहा कि भट्ट अब ठीक से सुन नहीं पाता है और उसे बोलने में भी काफी मुश्किल होती है.

राधेश्याम शाह ने कहा कि भट्ट ने गांव के मुखिया बनने के लिए एक मौजूदा मुस्लिम सरपंच को भी हराया था.

अपने बारे में बात करते हुए उसने दावा किया कि उसे भी निशाना बनाया गया था क्योंकि 1998 में एक वकील के रूप में उसने ‘मुस्लिम आदमियों द्वारा लाई गई दो आदिवासी लड़कियों को वापस भेजने’ के लिए अभियान चलाया था.

हालांकि शाह का कहना है कि वह किसी राजनीतिक दल या संगठन से नहीं जुड़ा हैं और हिंदुत्ववादी संगठनों का दोषियों का मिठाई और जश्न के साथ स्वागत करने वाली तस्वीरें आधा सच दिखाती है.

उसने कहा, ‘हां, हमारे दोस्तों और परिवार वालों ने हमारी आरती उतारी थी और मिठाई के साथ हमें बधाई दी थी. हम उनसे बहुत दिनों बाद मिल रहे थे. लेकिन हमारी रिहाई को लेकर काफी कंफ्यूजन था. ऐसे बहुत से लोग वहां थे जिन्हें हम नहीं जानते थे. उन्होंने हमें गुलदस्ते दिए, माला पहनाई और पेड़े (मिठाई) खिलाए. ’

उसने कहा, ‘जेल अधीक्षक ने हमें जितनी जल्दी हो सके वहां से जाने के लिए कहा था क्योंकि हमारा मामला संवेदनशील था. और हमारा सारा ध्यान भी उसी तरफ था. लेकिन भीड़ और कंफ्यूजन बहुत ज्यादा था.’


यह भी पढ़ेंः बालासाहेब ने लगाया, बारिश ने गिराया और BMC ने बचाया: पढ़िए ‘VIP’ गुलमोहर के पेड़ की कहानी


‘हम डर के साये में जीते हैं’

अभी भी सिंगवाड़ में रहने वाले गाची के रिश्तेदार और परिचितों ने दिप्रिंट को बताया कि बानो के पिता अब्दुल गाची पहले गांव में भैंस के दूध की सप्लाई का बिजनेस चलाते थे. 2002 की घटना के कुछ साल बाद गाची ने अपने घर को ‘गांव के बाहर के कुछ लोगों’ को एक कपड़े की दुकान चलाने के लिए पट्टे पर दे दिया था.

दुकान के पीछे एक कच्चा घर है जहां बानो के चाचा अय्यूब अभी भी अपने परिवार के साथ रहते हैं.

अय्यूब घर पर नहीं थे. उनके भतीजे, बानो के चचेरे भाई इस्माइल गाची ने दिप्रिंट को बताया कि जब से दोषियों को रिहा किया गया है तब से वे डरे हुए हैं.

Bilkis Bano's cousin Ismail Ghachi | Photo: Manasi Phadke | ThePrint
बिलकिस बानों के चचेरे भाई इस्माइल गाची | फोटोः मानसी फडके | दिप्रिंट

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के गवाहों में इस्माइल भी शामिल थे. उन्होंने कहा, ‘पहले भी जब उनमें से कुछ पैरोल पर आते थे, तो हम डर जाते थे. कुछ मामूली झगड़े भी हुए. उनके रिहा होने के बाद से अब हम डर में जी रहे हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में गुजरात सरकार को बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, स्थायी आवास और सरकारी नौकरी देने का निर्देश दिया था. उन्होंने दावा किया कि बानो को मुआवजा तो मिल गया लेकिन परिवार अभी भी नौकरी और स्थायी आवास के इंतजार में है.

उन्होंने यह भी कहा कि 2002 के बाद से गांव में मुस्लिमों की संख्या काफी कम हो गई है. उनके जैसे ज्यादातर लोग दूसरे गांवों में रहते हैं और दिन में केवल काम के लिए सिंगवाड़ आते हैं.

इस बीच कई ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि अय्यूब, जिसे गांव में कई लोग बोध काका कहते हैं, अक्सर अपने घर के पास एक चाय की दुकान पर बैठता है, जो राधेश्याम शाह के घर के ठीक सामने है.

इस्माइल गाची ने कहा कि उन्होंने दोषियों के परिवारों के साथ कोई संबंध नहीं बनाए रखा, जबकि शाह का परिवार एक अलग तस्वीर पेश करता है.

राधेश्याम के छोटे भाई 45 वर्षीय आशीष शाह ने कहा, ‘बोध काका के साथ हमारे सौहार्दपूर्ण संबंध हैं. हमारे घर के ठीक सामने उनकी चाय की दुकान है. हम उनके (बिलकिस बानो के) परिवार को सालों से जानते हैं. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पूरी तरह से शांति है. स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित तिरंगा यात्रा में दोनों समुदायों ने भाग लिया था.’ आशिष की चूड़ियां, कंगन, झुमके और अन्य सामान की दुकान है.

वह याद करते हुए बताता है कि कैसे वह और उसका भाई बानो के भाई के साथ क्रिकेट खेला करते थे.

राधेश्याम के 80 वर्षीय पिता भगवानदास शाह ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास उन्हीं के यहां का दूध आया करता था. हमने समारोहों और समारोहों के दौरान एक-दूसरे के घरों में खाना भी खाया है.’

वह कहते हैं, ‘मेरी भी बेटियां हैं. मैं उनका दर्द समझता हूं. उस समय माहौल खराब था. लेकिन मेरा बेटा निर्दोष है.’  उन्होंने आगे कहा, ‘हमने उसकी रिहाई के लिए 18 साल, छह महीने और 33 दिनों तक इंतजार किया है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः सुशील मोदी के ‘भाजपा के सेना को तोड़ने’ वाले बयान से महाराष्ट्र के मानसून सत्र में हंगामे के आसार


 

share & View comments