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Friday, 19 April, 2024
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कहां हैं नौकरियां? मोदी सरकार का ‘रोज़गार बैंक’ जल्द ही दे सकता है इसका जवाब

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एनडीए सरकार सातवीं आर्थिक जनगणना करेगी, जो एक राष्ट्रीय व्यापार रजिस्टर प्लेटफॉर्म के लिए एक आधार तैयार करेगी

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार देश के नौकरी परिदृश्य का सर्वेक्षण करने के लिए जनगणना शुरू करने और रोजगार आंकड़ों का एक बैंक बनाने के लिए तैयार है जोकि 2019 के आने वाले लोकसभा चुनावों में एक बड़ा बहस का विषय होगा।

सांख्यिकी और योजना कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के उच्च पद पर आसीन स्रोतों के मुताबिक, सरकार 2019-20 के दौरान सातवीं आर्थिक जनगणना शुरू करेगी, जो राष्ट्रीय व्यापार रजिस्टर प्लेटफॉर्म (एनबीआरपी) के लिए आधार तैयार करेगी।

ऐसे स्टॉक मिलान का आखिरी अभ्यास दो साल पहले किया गया था।

विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर नौकरी तलाशने वाले युवाओं की बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सालाना एक करोड़ नई नौकरियां बनाने के अपने वादे को पूरा करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है।

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हालांकि, शीर्ष मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों ने यह कहकर खुद को बचाने का प्रयास किया है कि भारत में नौकरियों के आंकड़ों का कोई निश्चित भंडार नहीं है। अगले साल मोदी फिर से चुनाव लड़ेंगे और दोबारा सरकार बनाने का प्रयत्न करेंगे, इस दौड़ में बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा रहेगा।

नौकरी बाजार को ट्रैक करने के लिए विश्वसनीय डेटा की अनुपस्थिति से बनी खाली जगह को एनबीआरपी से भरने की उम्मीद है।

एमओएसपीआई (MOSPI) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह रोजगार सहित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मानकों पर औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों से आर्थिक गतिविधियों पर जानकारी के भंडार के निर्माण की सुविधा प्रदान करेगा।”

यह प्लेटफॉर्म वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क, कर्मचारी राज्य बीमा, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और अन्य पंजीकरण प्राधिकरणों से प्रतिष्ठानों का डेटा एकत्र करेगा।

रोजगार के आंकड़ों के लिए मंत्रालय ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और मुद्रा योजना जैसे अन्य स्रोतों को इससे जोड़ने का भी प्रस्ताव रखा है, जो विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के लिए एमएसएमई उद्यमों को निधि देते हैं।

वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और दुकानों के जियो-टैगिंग  के माध्यम से आयोजित किए जाने वाले जमीनी सर्वेक्षण भी योजना में शामिल हैं।

मंत्रालय के एक अन्य स्रोत ने समझाया, “यह हमें प्रतिष्ठान द्वारा किए जाने वाले निर्पेक्ष कार्य के बावजूद नियोजित लोगों की संख्या की गिनती करने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, पिछले साल एक प्रतिष्ठान सात कर्मचारियों के साथ एक दर्जी की दुकान थी, लेकिन अब यह 15 कर्मचारियों के साथ एक ब्यूटी सैलून है।”

2016 से नौकरी डेटा गुम है

एमओएसपीआई के अंतर्गत आने वाले श्रम ब्यूरो ने 2016 से वास्तविक रोजगार आंकड़ों का पता लगाने के लिए कोई सर्वेक्षण नहीं किया है, यह संसद में श्रम और रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा पुष्टि की गई एक तथ्य है।

श्रम ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 2015-16 में पाँच साल के उच्चम स्तर पाँच प्रतिशत तक पहुँच गई – महिलाओं के लिए 8.7 प्रतिशत, और पुरुषों के लिए 4.3 प्रतिशत।

ग्रामीण क्षेत्र में यूजुअल प्रिंसिपल स्टेटस  (यूपीएस) के दृष्टिकोण के अनुसार, शहरी क्षेत्र में यह दर 5.1 प्रतिशत थी (सर्वेक्षण की तारीख से 365 दिनों के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति के आधार पर सर्वेक्षण किया गया था)।

आंकड़ों के खुलासे के बाद मोदी सरकार की गंभीर आलोचना की गई क्योंकि यह हर साल एक करोड़ नौकरियां बनाने के वादे के आधार पर सत्ता में आई थी। इसके बाद सरकार ने वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण नहीं किया।

 एक खोखला भारत वहन नहीं कर सकता

अर्थशास्त्री मानते हैं कि नौकरी बाजार पर आधारित डेटा की अनुप्लब्धता नीति के कार्यान्वयन को मुश्किल बनाती है।

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी ने कहा, “युवा आबादी द्वारा संचालित देश में, रोजगार पर आधारित डेटा की अनुपस्थिति भ्रामक हो सकती है। इसका मतलब है कि हम अर्थव्यवस्था की निगरानी करने और उचित निर्णय लेने में असमर्थ हैं।”

जोशी ने कहा, “सरकार के पास नौकरी बाजार पर आधारित राष्ट्रीय डेटा बैंक होना चाहिए, जिसे सालाना जारी किया जा सकता है।”

भारत के पहले मुख्य सांख्यिकीविद् अर्थशास्त्री प्रणब सेन ने कहा, “भारत जैसी अर्थव्यवस्था एशिया के आर्थिक परिदृश्य में नेतृत्व की भूमिका निभाने के सपने के साथ देश की रोजगार की स्थिति के बारे में अनजान रहने का जोखिम नहीं उठा सकती है।”

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