नयी दिल्ली, 31 जुलाई (भाषा) चावल निर्यातकों के एक संगठन ने बृहस्पतिवार को कहा कि एक अगस्त से लागू होने वाले 25 प्रतिशत का अमेरिकी शुल्क चावल निर्यात के लिए एक अस्थायी ‘बाधा’ है। संगठन का मानना है कि भारत के पास अब भी वियतनाम और पाकिस्तान जैसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले मूल्य लाभ बरकरार रखता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अगस्त से भारत से आने वाले सभी सामान पर 25 प्रतिशत का शुल्क लगाने की घोषणा की है। साथ ही रूसी कच्चे तेल और सैन्य उपकरण खरीदने पर जुर्माना लगाने का भी फैसला किया है।
भारतीय चावल निर्यातक महासंघ (आईआरईएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने कहा, ‘‘यह शुल्क एक अस्थायी बाधा है, दीर्घकालिक बाधा नहीं। रणनीतिक योजना, विविधीकरण और टिकाऊपन के साथ, भारतीय चावल निर्यातक अमेरिकी बाजार में अपनी उपस्थिति को सुरक्षित रख सकते हैं और उसका विस्तार भी कर सकते हैं।’’
गर्ग ने यह भी बताया कि अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा बासमती चावल बाजार नहीं है।
आईआरईएफ के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने कुल 52.4 लाख टन वैश्विक बासमती निर्यात में से लगभग 2.34 लाख टन बासमती चावल अमेरिका को निर्यात किया। पश्चिम एशिया, भारतीय बासमती चावल का प्रमुख बाजार बना हुआ है।
गर्ग ने आगे कहा कि शुल्क लगाए जाने के बावजूद भारत मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता के मामले में बढ़त बनाए हुए है।
गर्ग ने कहा, ‘‘भारतीय चावल पर नया अमेरिकी शुल्क चीन (34 प्रतिशत), वियतनाम (46 प्रतिशत), पाकिस्तान (29 प्रतिशत) और थाइलैंड (36 प्रतिशत) जैसे प्रतिस्पर्धी देशों पर लगाए गए शुल्कों से कम है, जिससे भारतीय चावल अमेरिकी बाजार में अपेक्षाकृत अधिक प्रतिस्पर्धी बना हुआ है।’’
भारतीय चावल निर्यातक संघ (आईआरईएफ) चावल उद्योग के 7,500 से अधिक अंशधारकों का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें निर्यातक, मिल मालिक, कृषक समुदाय, लॉजिस्टिक्स भागीदार और पैकेजिंग कंपनियां शामिल हैं। आईआरईएफ भारत के चावल निर्यात क्षेत्र के विकास में सहायक नीतियों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार, एपीडा, व्यापार निकायों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ नियमित रूप से संपर्क करता है।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.