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Sunday, 22 December, 2024
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तेल की बेतहाशा बढ़ती कीमतें आपकी जेब खाली कर रही हैं लेकिन रिफाइनरी से जुड़ी कंपनियां मुनाफे में

दुनियाभर में बढ़ती कच्चे तेल की कीमतों ने भारतीय उपभोक्ताओं, तेल विपणन कंपनियों और यहां तक कि सरकार के बजट पर भी कहर बरपाया हुआ है.

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नई दिल्ली: जहां पेट्रोल और डीजल की बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने उपभोक्ताओं की नाक में दम कर रखा है. वहीं, सरकार ने लोगों को कुछ राहत देने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती करके अपने राजस्व पर एक प्रहार किया. उधर तेल विपणन कंपनियां भी खुदरा कीमतों को कम कर भारी नुकसान उठा रही हैं.

लेकिन ऐसा लगता है, इस निराशा के दौर में रिफाइनरी बिजनेस से जुड़ी कंपनियों को कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से फायदा पहुंचा है. कच्चे तेल को पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन जैसे तैयार उत्पादों में परिष्कृत करने वाली सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की तेल कंपनियां ने रिकॉर्ड मार्जिन प्राप्त किया है.

वैसे तो पिछले दिसंबर से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती चली आ रही हैं, लेकिन फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद कीमतों में भारी वृद्धि देखी गई. जिसके कारण वैश्विक आपूर्ति में कमी आई. तब से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक पर कायम हैं.

जब कमोडिटी की वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं तो तेल रिफाइनर में लगी खुदरा व्यापार कंपनियों का मुनाफा कमाना मुश्किल हो जाता है लेकिन विभिन्न रिफाइनरियों को इस बार युद्ध के कारण अपनी शोधन क्षमता पर शटडाउन और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा, जिस वजह से उनका रिफाइनिंग मार्जिन बढ़ गया.

चीन में भी लॉकडाउन की वजह से रिफाइंड उत्पादों में कमी में आई जिससे उनके मार्जिन में वृद्धि हुई है.

भारतीय निजी रिफाइनर के लिए यह वन—टाईम अवसर है क्योंकि वे अपने कच्चे तेल को रियायती दरों पर बेच रहे रूस से अपने आयात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खरीदने में सक्षम हैं. हालांकि सार्वजनिक रिफाइनर के लिए रूस से ज्यादा कच्चा तेल खरीदना मुश्किल है क्योंकि वे वार्षिक टर्म सप्लाई सौदों के तहत अपनी क्रूड आवश्यकताओं की खरीद करते हैं. इसका मतलब है कि वे निश्चित अनुबंधों से बंधे हैं. लेकिन इनमें यहां कुछ लचीलापन भी मौजूद है.

23 जून को भारतीय कच्चे तेल की कीमतें 109.10 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी. जब केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों को कड़ा कर दिया तो यह पिछले कुछ दिनों में संभावित मंदी की चिंताओं के बाद कम हो गई.

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स (एमआरपीएल), एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी की बठिंडा रिफाइनरी (एचएमईएल), भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) और चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीपीसीएल) जैसी सरकारी रिफाइनरियों ने पिछले वर्ष की तुलना में 2021-22 में सामान्य से अधिक लाभ दर्ज किया है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज, वेदांता और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनर कंपनियों के लिए डेटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि ये कंपनियां अपने मार्जिन को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करती हैं. लेकिन एक नियम के अनुसार, निजी रिफाइनर का मार्जिन सार्वजनिक क्षेत्र के रिफाइनर के मुकाबले दोगुना होता है.

ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) कंपनियों द्वारा खरीदे जाने वाले क्रूड की कीमत और रिफाइंड उत्पादों को बेचने वाली कीमत के बीच का अंतर है. सभी रिफाइनर कच्चे तेल को सस्ते में खरीदते हैं और रिफाइंड उत्पादों को जितना हो सके मुनाफा में बेचते हैं.

2020-21 में, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के साथ भारत में 23 रिफाइनरियों के आंकड़ों से पता चलता है कि IOC के पास 28 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, इसके बाद रिलायंस 27-28 प्रतिशत, BPCL 11 प्रतिशत, HPCL के पास तकरीबन 6.4 प्रतिशत और बाकी कंपनियों के पास बची हुई हिस्सेदारी है.


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तेल कंपनियां और उनका मुनाफा

तेल कंपनियों को दो प्रमुख स्ट्रीम में विभाजित किया जा सकता है – अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम. अपस्ट्रीम कंपनियां मुख्य रूप से तेल और गैस की खोज और उत्पादन में लगी रहती हैं. वे कुओं से तेल निकालते हैं और उसे रिफाइनरों को बेचते हैं. जबकि डाउनस्ट्रीम कंपनियां कच्चे तेल को तैयार उत्पादों में बदलने का काम करती हैं.

तेल कंपनियां अब या तो उत्पादन में गिरावट देख रही हैं या फिर भारत में तेल उत्पादन के अंत तक पहुंच गई हैं. कच्चे तेल का उत्पादन 2014-15 से गिरकर 2021-22 में 29.69 मिलियन टन हो गया जो कि 28 सालों में सबसे कम रहा. ये आकड़े 1994-95 में 32.2 मिलियन टन से 7.8 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाते हैं.

तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) का कुल घरेलू उत्पादन में 65 फीसदी हिस्सा है. फिलहाल भारत अपनी तेल की मांग का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है.

ओएनजीसी और ऑयल इंडिया (ओआईएल) जैसी कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए अपने रिफाइनिंग कारोबार पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. उदाहरण के लिए एक प्रमुख रिफाइनर, ओएनजीसी की सहायक कंपनी एमआरपीएल को उच्च रिफाइनिंग मार्जिन के कारण पिछले साल 765 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था लेकिन इसकी तुलना में कंपनी ने 2021-22 में 2,958 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ दर्ज किया.

राज्य द्वारा संचालित रिफाइनर ने 2021-22 में औसतन 7-8 डॉलर प्रति बैरल का जीआरएम देखा, जो साल 2017-18 के समान ही है. उस समय मार्जिन अपने ऐतिहासिक उच्च स्तर पर था.

2020-21 में महामारी और उससे जुड़े मुद्दों के कारण औसत मार्जिन गिरकर 5.64 डॉलर प्रति बैरल हो गया. दिग्गज कंपनी आईओसी के लिए मार्जिन 2021-22 में 11.25 डॉलर प्रति बैरल के करीब था, जबकि पिछले साल यह 5.64 डॉलर था. ये मार्जिन हर महीने क्रूड मिक्स के आधार पर बदलते हैं जो ये संस्थाएं खरीद करने में सक्षम हैं.

स्वचलित सीपीसीएल और एमआरपीएल जैसी रिफाइनरियों को कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रमुख लाभ हुआ है लेकिन जो कंपनियां रिफाइनिंग और मार्केटिंग दोनों करती हैं, जैसे एचपीसीएल, आईओसी और बीपीसीएल नुकसान में रहीं. क्योंकि उनके रिफाइनिंग लाभ का इस्तेमाल मुख्य रूप से मार्केटिंग मार्जिन पर नुकसान की भरपाई के लिए किया गया.

Graphic by Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिक रमनदीप कौर ने बनाया है | दिप्रिंट

पिछले हफ्ते सरकार ने कहा था कि मई 2022 के दौरान तेल रिफाइनरियों द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों का उत्पादन 23.25 मिलियन टन था, जो मई 2021 के उत्पादन से 16.65 प्रतिशत अधिक है.

निजी रिफाइनर के पास बढ़त

रिलायंस इंडस्ट्रीज, वेदांता और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनरियां सरकारी रिफाइनर की तुलना में लाभ में रहीं क्योंकि उनके अधिकांश कच्चे तेल का उपयोग परिष्कृत उत्पादों के निर्यात के लिए किया जाता है. इसके अलावा, वे सस्ते रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े लाभार्थी भी रहे हैं, जिस वजह से उन्हें रिकॉर्ड लाभ मिला है.

विशेषज्ञों का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के जीआरएम में ऐसा नहीं हैं. वह कहते हैं कि निजी रिफआइनर्स का लाभ समान है या फिर राज्य द्वारा संचालित रिफाइनर से दो गुना तक ज्यादा है. इसका एक कारण यह भी है कि सरकारी रिफाइनर कच्चे तेल की खरीद सालाना टर्म सप्लाई डील के जरिए करते हैं.

निर्यात मांगों को पूरा करने के काम को निजी खिलाड़ियों ने कथित तौर पर अपने संयंत्रों को बंद करके टाल दिया, जो आमतौर पर रखरखाव के लिए वर्ष के इस समय के आसपास बंद किए जाते हैं.

जहां कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण रिफाइनिंग व्यवसाय को एक बड़ी बढ़त मिली है, वहीं राज्य द्वारा संचालित रिफाइनर के लिए विपणन व्यवसाय उनकी लाभप्रदता पर एक दबाव रहा. न केवल वे अधिक कीमत पर कच्चा तेल खरीद रहे हैं, बल्कि सरकार द्वारा अनौपचारिक मूल्य नियंत्रण के कारण उपभोक्ताओं को तैयार उत्पादों को सस्ती दर पर बेचने के लिए भी मजबूर हैं.

इस महीने की शुरुआत में पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि रिलायंस-बीपी और नायरा एनर्जी जैसे निजी ईंधन खुदरा विक्रेताओं ने तेल मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की है क्योंकि वे डीजल को 20-25 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल 14-18 रुपये प्रति लीटर कम कीमत पर बेचकर घाटा उठा रहे हैं. यह तेल की बढ़ती दरों के बावजूद कीमतों में ठहराव का परिणाम है.


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रिफाइनरी क्षेत्र के लिए आउटलुक

इस क्षेत्र पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि 2022-23 में सरकारी रिफाइनरियों के जीआरएम में पिछले साल की तुलना में थोड़ी गिरावट आएगी.

क्रिसिल के निदेशक-ऊर्जा सौरव मित्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘2021-22 में मार्जिन औसतन 7-8 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहा. 2022-23 में थोड़ी मंदी होगी इसलिए ये लाभ लगभग 6-7 डॉलर प्रति बैरल रह जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘डोमेस्टिक ग्रोथ आउटलुक बहुत स्थिर दिख रहा है. इसलिए, अगर पेट्रोलियम उत्पादों की मांग की बात करें तो हमें विश्वास है कि वित्त वर्ष 2013 में इसमें 5-7 प्रतिशत की लगातार बढ़ोतरी देखी जाएगी. यह आर्थिक गतिविधियों में निरंतर वृद्धि के कारण होगा.’

मित्रा ने कहा कि निजी रिफाइनरियों के पास बेहतर मार्जिन होता है क्योंकि उनकी रिफाइनरियां बड़ी होती हैं और अधिक विविधता वाले ईंधन को संसाधित कर सकती हैं. उन्होंने बताया कि ये कंपनियां अपनी अधिक लचीली कच्चे तेल की खरीद प्रक्रिया से भी लाभान्वित होते हैं.

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की सभी प्रमुख तेल कंपनियों को 30 जून को समाप्त तिमाही में संभावित नुकसान का सामना करना पड़ेगा. वह कहते हैं, ‘ हालांकि उनके पास रिफाइनरी स्तर पर अच्छा मार्जिन है लेकिन मार्केटिंग व्यवसाय में कुछ गंभीर नुकसान की वजह से घाटा उठाना पड़ेगा. दूसरा कारण एलपीजी है, जिससे उनके मार्जिन कम हो जाएगा. उन्हें प्रति 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर पर 100-114 रुपये का नुकसान हो रहा है.’

आईसीआरए के उपाध्यक्ष और सह-समूह प्रमुख प्रशांत वशिष्ठ ने कहा, ‘क्रैक-स्प्रेड्स (जीआरएम के लिए एक और शब्द) निश्चित रूप से बहुत अधिक हैं’. वशिष्ठ ने आगे कहा, सरकारी अनौपचारिक मूल्य नियंत्रण राज्य द्वारा संचालित रिफाइनर की लाभप्रदता के लिए खराब होने जा रहे हैं लेकिन निजी रिफाइनर भारी मुनाफा कमाएंगे क्योंकि उनका अपना रिटेल नेटवर्क काफी छोटा है और उनके अधिकांश रिफाइनरी उत्पाद निर्यात किए जाते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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