(राधा रमण मिश्रा) नयी दिल्ली, 14 सितंबर (भाषा) अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार के जीएसटी दरों में कमी और आयकर में छूट से अर्थव्यवस्था में कुल मांग में 3.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की उम्मीद है। इसके साथ इन सुधारों से देश की आर्थिक वृद्धि की क्षमता 7.0 से 7.5 प्रतिशत हो सकती है। उनका यह भी कहना है कि आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन को तेज करने के लिए नीति-निर्माताओं को विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। और इसके लिए अन्य क्षेत्रों विशेष रूप से भूमि और श्रम क्षेत्र में सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जीएसटी परिषद ने हाल में माल एवं सेवा कर के चार स्लैब की जगह दो स्लैब करने का फैसला किया। अब कर की दरें पांच और 18 प्रतिशत होंगी जबकि विलासिता एवं सिगरेट जैसी अहितकर वस्तुओं पर 40 प्रतिशत की विशेष दर लागू होगी। दरों को युक्तिसंगत बनाये जाने के तहत टेलीविजन एवं एयर कंडीशनर जैसे उपभोक्ता वस्तुओं के अलावा खानपान और रोजमर्रा के कई सामान समेत करीब 400 वस्तुओं पर दरें कम की गयी हैं। इससे पहले, 2025-26 के बजट में 12 लाख रुपये तक की सालाना आय (नौकरीपेशा के लिए मानक कटौती के साथ 12.75 लाख रुपये) को कर मुक्त किये जाने की घोषणा की गयी थी। जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स के निदेशक एन आर भानुमूर्ति ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों तरह के किसी भी कर का गुणक ऋणात्मक होता है। यानी जितना अधिक कर होगा, उत्पादन उतना ही कम होगा। ऐसे में, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर सुधारों के माध्यम से करों के बोझ में कमी आने से देश की आर्थिक वृद्धि की क्षमता 7.0 से 7.5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।’’ उल्लेखनीय है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा है..
आनंद राठी ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री और कार्यकारी निदेशक सुजान हाजरा ने कहा, ‘‘आयकर की दर में कटौती से लोगों की खर्च योग्य आय में प्रभावी रूप से वृद्धि हुई है। उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति को देखते हुए, इससे कुल मांग में 2.3 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। जीएसटी दरों में कमी के गुणक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये की मांग वृद्धि के साथ, अर्थव्यवस्था में कुल 3.5 लाख करोड़ रुपये का योगदान होगा।’’ उन्होंने यह भी कहा कि उपभोग में वृद्धि के साथ, कंपनियों के लाभ में वृद्धि होने की संभावना है। बढ़ी हुई खपत से कंपनियों की बिक्री मात्रा में वृद्धि होगी और वित्त वर्ष 2024-25 के शुद्ध लाभ में 1.0 से 1.5 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है। इन सुधारों के महंगाई पर पड़ने वाले असर के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति पहले से ही कम है। इस कदम से अल्पावधि में मुद्रास्फीति दरों में कमी आ सकती है। हालांकि, यदि निजी क्षेत्र निवेश के माध्यम से अपनी क्षमता का विस्तार नहीं करता है, तो मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति बढ़ेगी।’’ हाजरा ने कहा, ‘‘आवश्यक वस्तुओं के मामले में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति में 0.1 से 0.15 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है और सेवाओं की जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने से भी सीपीआई मुद्रास्फीति में 0.05 से 0.1 प्रतिशत की कमी आने की उम्मीद है।’’ यह पूछे जाने पर मांग और खपत में वृद्धि के कारण चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि में कितना इजाफा होने की उम्मीद है, भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘ चूंकि सुधार वित्त वर्ष के मध्य में हुए हैं, इसलिए पूरे वर्ष के लिए अनुमान लगाना मुश्किल है। हालांकि, वार्षिक आधार पर, मांग पक्ष पर इसका प्रभाव लगभग 0.6 प्रतिशत तक हो सकता है। हालांकि, आपूर्ति में भी सुधार होना जरूरी है। अन्यथा, यह महंगाई बढ़ाने वाला हो सकता है।’’ यह पूछे जाने पर कि अमेरिका के 50 प्रतिशत शुल्क के प्रभावों से निपटने में यह कितना मददगार होगा, उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि हमारे अपने अनुमान बताते हैं, चालू वर्ष में भारत पर अमेरिकी शुल्क का प्रभाव लगभग 0.5 प्रतिशत हो सकता है। इसलिए, जीएसटी सुधार अपेक्षित शुल्क प्रभाव की भरपाई से कहीं अधिक कर सकते हैं।’’ भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘हालांकि, जीएसटी सुधार संरचनात्मक और दीर्घकालिक नीतियां हैं, लेकिन मध्यम अवधि में व्यापार विविधीकरण, शुल्क में कमी, उत्पादकता में सुधार आदि जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से शुल्क के प्रभाव को कम किया जा सकता है।’’ यह पूछे जाने पर कि आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन में तेजी लाने के लिए किन अन्य क्षेत्रों में सुधारों की आवश्यकता है, उन्होंने कहा, ‘‘जीएसटी सुधार एक बड़ा सुधार होने के साथ…समयोचित भी है। यह अगली पीढ़ी के सुधारों में से एक है जिसके बारे में हम में से कई लोग बात कर रहे थे। नीति-निर्माताओं को अब विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी और उसके निर्धारकों में सुधार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेष रूप से भूमि और श्रम क्षेत्र में सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, न्यायपालिका, प्रशासनिक और ऑडिट जैसे कुछ अन्य क्षेत्रों में सुधार उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ इन क्षेत्रों में सुधार कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हैं और इनके लिए राज्यों के साथ सहमति बनाना आवश्यकता है, जैसा कि 2017 में जीएसटी के कार्यान्वयन के दौरान किया गया था।’’ हाजरा ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि सुधारों की गति जारी रहेगी। वैश्विक चुनौतियों के बीच, अर्थव्यवस्था को आंतरिक मजबूती से बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। शुल्क संबंधी अनिश्चितताओं के प्रभाव को कम करने के लिए लंबे समय से लंबित सुधार ही आगे का रास्ता हैं।’’भाषा रमण अजयअजय
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