नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा) विमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से सरकार को लाभांश वितरण समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
एक सरकारी सूत्र ने शुक्रवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि आने वाले पांच वर्षों के लिए इसमें बस हल्के बदलावों की जरूरत हो सकती है।
सूत्र ने कहा कि ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था स्थिर है और लगातार वृद्धि दर्ज कर रही है, तो ऐसे में अगले पांच वर्षों के लिए लाभांश वितरण का फॉर्मूला क्या होना चाहिए, इस बारे में सुझाव देते वक्त कुछ बदलाव करने की जरूरत हो सकती है।
उन्होंने कहा कि अब तक लाभांश हस्तांतरण की गणना जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती रही है और अब निश्चित रूप से इस ढांचे की समीक्षा का समय आ गया है।
सूत्र ने कहा, ”विमल जालान समिति की सिफारिशें समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं, यहां तक कि कोविड के दौरान भी ऐसा हुआ था। मुझे नहीं लगता कि जालान समिति के फॉर्मूले खत्म होंगे। इसमें कुछ बदलाव होंगे और आरबीआई इस पर काम कर रहा है।”
आरबीआई अपने आर्थिक पूंजी ढांचे (ईसीएफ) के आधार पर सरकार को लाभांश देता है। इस ढांचे को पूर्व आरबीआई गवर्नर विमल जालान के नेतृत्व वाली विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर अगस्त, 2019 में लागू किया गया था।
जालान समिति ने आरबीआई के बही-खाते का 5.5 से 6.5 प्रतिशत हिस्सा आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) के रूप में रखने का सुझाव दिया था। पिछले हफ्ते, आरबीआई बोर्ड ने ईसीएफ की समीक्षा की थी। इसके आधार पर ही सरकार को अधिशेष का हस्तांतरण किया जाता है।
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए रिकॉर्ड 2.1 लाख करोड़ रुपये का लाभांश सरकार को दिया था, जो 2022-23 में हस्तांतरित 87,416 करोड़ रुपये के दोगुने से भी अधिक है।
भाषा पाण्डेय प्रेम
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