नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने सोमवार को सितंबर के अंत तक कपास पर आयात शुल्क हटाने को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की और कहा कि इससे देश के कपास किसानों पर घातक असर होगा।
यहां एक संवाददाता सम्मेलन में, एसकेएम नेता राकेश टिकैत, हन्नान मुल्ला, प्रेम सिंह गहलावत, राजन क्षीरसागर और कृष्ण प्रसाद ने कहा कि 19 अगस्त से 30 सितंबर तक कपास के आयात पर 11 प्रतिशत शुल्क तत्काल प्रभाव से हटाने से घरेलू कपास की कीमतें लड़खड़ा जायेंगी।
मीडिया को संबोधित करते हुए, अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के उपाध्यक्ष और पूर्व माकपा सांसद हन्नान मुल्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वादा किया था कि वह देश के किसानों की रक्षा के लिए ‘चट्टान की तरह’ खड़े रहेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘कपास पर 11 प्रतिशत शुल्क हटाने में चार दिन भी नहीं लगे।’
उन्होंने कहा, ‘‘इस फैसले का तत्काल प्रभाव विशेष रूप से गंभीर होगा क्योंकि अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्रों में किसान लगभग दो महीने पहले ही अपनी फसल बो चुके हैं और अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य पाने की उम्मीद में काफी लागत लगा चुके हैं। आयात शुल्क हटाने का यह कदम ऐसे समय में आया है जब किसान अपनी फसल काटने की तैयारी कर रहे हैं।’’
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता टिकैत ने कहा कि शुल्क हटाने से किसानों को भारी नुकसान होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर शुल्क हटा दिया जाता है, तो स्थानीय किसानों को भारी नुकसान होगा। केवल शुल्क लगाकर ही हम आयातित वस्तुओं पर नियंत्रित कर सकते हैं। कुछ वस्तुओं पर हम 300 प्रतिशत तक शुल्क लगा सकते हैं। दूसरे देशों में किसानों को 72 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलती है। यहां हमें 3-4 प्रतिशत की सब्सिडी भी नहीं मिलती।’
टिकैत ने कहा, ‘‘सरकार को बताना चाहिए कि क्या शुल्क हटाने से किसानों को फायदा होगा। (बल्कि) इससे किसान आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होगी।’’
उन्होंने यह भी कहा कि अगर अमेरिका भारत पर शुल्क का दबाव बना रहा है, तो लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए।
टिकैत ने कहा, ‘‘अगर वे शुल्क लगा रहे हैं, तो लोगों को आगे आकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना होगा। हम उनके कई उत्पादों का बहिष्कार भी कर सकते हैं या कुछ का इस्तेमाल कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कोल्ड ड्रिंक्स। कौन कहता है कि आप कोल्ड ड्रिंक के बिना नहीं रह सकते? अगर आप खपत में 50 प्रतिशत की भी कटौती कर दें, तो भी फर्क पड़ेगा।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या एसकेएम ने इस मुद्दे पर सरकार से संपर्क किया है, उन्होंने कहा, ‘सरकार ने फरवरी, 2021 से एसकेएम के किसी भी सदस्य से बात नहीं की है।’
अखिल भारतीय किसान महासभा के गहलोत ने कहा कि अमेरिकी सरकार भारत पर अमेरिका से आने वाले अन्य कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार खोलने का दबाव बना रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब तक किसान भारत सरकार को यह स्पष्ट नहीं कर देते कि ऐसे किसान विरोधी फैसले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे, संभावना है कि मोदी सरकार अमेरिकी दबाव में आकर अन्य फसलों के लिए भी ऐसे फैसले ले लेगी।’
एआईकेएस नेता क्षीरसागर ने कहा कि वे विरोध प्रदर्शन को गांवों तक ले जाएंगे।
प्रसाद ने कहा कि किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अनुसार उनकी फसलों का दाम नहीं मिल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले के अनुरूप नहीं है।
एसकेएम ने कपास किसानों से अधिसूचना की प्रतियां जलाने और गांवों में विरोध प्रदर्शन करने का आग्रह किया।
उन्होंने यह भी कहा कि 1, 2 और 3 सितंबर को कपास उत्पादक गांवों में जनसभाएं आयोजित की जाएंगी, जिसमें एक प्रस्ताव पारित किया जाएगा जिसमें प्रधानमंत्री से कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क हटाने संबंधी 19 अगस्त की अधिसूचना को निरस्त करने और स्वामीनाथन आयोग के ‘सी-टू योग 50 प्रतिशत’ फॉर्मूले के आधार पर 10,075 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी तुरंत घोषित करने का आग्रह किया जाएगा। 10 सितंबर से पहले संबंधित स्थानीय निकाय के अध्यक्ष को दिए जाने वाले ज्ञापन के समर्थन में एक हस्ताक्षर अभियान और घर-घर पर्चे बांटने का भी आयोजन किया जाएगा।
एसकेएम के प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘अगर प्रधानमंत्री इस मांग पर तत्काल कोई निर्णय नहीं लेते हैं, तो कपास किसान मंडल महापंचायत बुलाएंगे और संबंधित सांसदों के यहां विरोध मार्च निकालेंगे।’
एसकेएम ने एक बयान में कहा कि भारत में कपास की खेती का रकबा लगभग 120.55 लाख हेक्टेयर है, जो दुनिया के कुल कपास खेती के रकबे का लगभग 36 प्रतिशत है, और कपास खेती के रकबे के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है।
राज्यों में, महाराष्ट्र में कपास की खेती के लिए सबसे बड़ा रकबे वाला राज्य है, उसके बाद गुजरात और तेलंगाना का स्थान आता है। भारत की लगभग 67 प्रतिशत कपास की खेती, वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में होती है।
भाषा राजेश राजेश अजय
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