नई दिल्ली: सोमवार सुबह 9:15 बजे शेयर बाजार खुले तो सब कुछ हमेशा की तरह सामान्य चल रहा था. कुछ ही मिनटों के भीतर एक स्टॉक—आरबीएल बैंक—में लगातार गिरावट का दौर दिखा और यह लगभग 23.2 प्रतिशत गिरकर 140.90 रुपए प्रति शेयर पर बंद हुआ.
इससे दो दिन पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आरबीएल बैंक के बोर्ड में अपना अधिकारी नियुक्त किया था. हालांकि, ये कदम उठाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं था—क्या बैंक में गैर-नियामक अनुपालन नहीं हो रहा, गवर्नेंस से जुड़ा कोई मुद्दा था या फिर क्या आरबीआई आरबीएल बैंक के शीर्ष नेतृत्व से खुश नहीं था?
अटकलों का दौर शनिवार से ही शुरू हो गया था जब लंबे समय से बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पद पर आसीन विश्ववीर आहूजा अचानक छुट्टी पर चले गए और बैंक के बोर्ड ने कार्यकारी निदेशक राजीव आहूजा को अंतरिम एमडी और सीईओ नियुक्त किया.
बैंक ने अगले दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बयान जारी किया कि विश्ववीर आहूजा मेडिकल कारणों से छुट्टी पर गए हैं.
मीडिया ब्रीफिंग के दौरान राजीव आहूजा ने कहा कि उन्हें बैंक के किसी सदस्य के खिलाफ गवर्नेंस संबंधी किसी भी जांच की कोई जानकारी नहीं है लेकिन साथ ही कहा कि जोखिम प्रबंधन और अनुपालन पर और अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
केंद्रीय बैंक के करीबी सूत्रों का हवाला देते हुए सीएनबीसी-टीवी 18 ने बताया था कि आरबीआई ने अपने अधिकारी को बैंक बोर्ड में नियुक्त करने का कदम इसलिए उठाया क्योंकि विश्ववीर आहूजा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति प्रक्रिया में देरी हो रही थी—बैंकिंग नियामक ने तीन साल के लिए कार्यकाल विस्तार के बैंक के आग्रह को ठुकराते हुए जून में विश्ववीर आहूजा का कार्यकाल सिर्फ एक साल बढ़ाया था. रिपोर्ट के मुताबिक, इसके अलावा आरबीआई ने यह कदम बैंक को जोखिम प्रबंधन पर अपने रुख से अवगत कराने के लिए भी उठाया था.
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बैंक की वित्तीय स्थिति ठीक: आरबीआई
आरबीआई ने सोमवार को स्पष्ट किया कि आरबीएल बैंक की वित्तीय स्थिति ठीक है और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 36एबी के तहत नियुक्ति तब की गई जब यह महसूस किया गया कि बोर्ड को नियामक/पर्यवेक्षी मामलों में ज्यादा सहयोग की आवश्यकता है.
बयान में कहा गया है, ‘रिजर्व बैंक यह स्पष्ट करना चाहता है कि बैंक में पूंजी की कोई कमी नहीं है और बैंक की वित्तीय स्थिति संतोषजनक बनी हुई है.’
सोमवार को बैंक के शेयरों में बिकवाली पूर्व में ऐसी ही घटनाओं के अनुरूप थी क्योंकि जब भी आरबीआई ने बैंकों के कामकाज में दखल में दिया है—उन बैंकों की एसेस क्वालिटी और गवर्नेंस के मुद्दों को लेकर चिंताएं जाहिर की जाती रही हैं.
घबराए निवेशकों को बैंक के वित्तीय रूप से स्थिर होने का आश्वासन देने की कोशिश में आरबीआई ने बैंक के कैपिटल एडिक्वेसी रेश्यो (सीएआर) और लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो (एलसीआर) जैसे मेट्रिक्स का सहारा लिया.
सीएआर यह पता लगाने का मानक है कि क्या बैंक के पास पर्याप्त पूंजी है क्योंकि किसी घाटे या अचानक किसी झटके से उबरने के लिए बैंक के पास एक न्यूनतम पूंजी होना जरूर है. 30 सितंबर तक आरबीएल बैंक के पास 16.33 प्रतिशत की सीएआर थी जबकि बुनियादी रूप से यह 9 प्रतिशत होने की जरूरत थी. यह बैंक की मजबूत पूंजी स्थिति को दर्शाता है.
एलसीआर किसी बैंक की संपत्ति के उस हिस्से को संदर्भित करता है जो अत्यधिक तरल होता है और ब्याज भुगतान जैसे अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने के लिए नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है. आरबीआई ने कहा कि आरबीएल बैंक के पास 24 दिसंबर 2021 को अपने शुद्ध नकदी प्रवाह का 153 प्रतिशत का एलसीआर था जबकि नियामक स्तर पर 100 प्रतिशत की ही आवश्यकता है.
अंत में, प्रोविजन कवरेज रेश्यो (पीसीआर)—जो बैड असेट के संदर्भ में होता है और जिसका प्रावधान किसी बैंक को अपने मुनाफे में करना होता है—की बात करें तो 30 सितंबर को आरबीएल बैंक की कुल सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का पीसीआर 76.6 प्रतिशत था.
आरबीएल की कमाई में उतार-चढ़ाव
इन सभी स्पष्टीकरणों के बावजूद अभी भी बाजार विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई के पास अपने कारण हो सकते हैं जिन्हें बैंक फिलहाल सार्वजनिक न करना चाहता हो.
आरबीएल बैंक का प्रसार काफी हद तक क्रेडिट कार्ड और माइक्रोफाइनेंस जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में इसके निवेश के जरिए बढ़ा है जिसकी वजह से इसकी आय में उतार-चढ़ाव होता है. विशेषज्ञों का मानन है कि मध्यम अवधि में बैंक को अपने कुल उत्पाद पोर्टफोलियो के 31 प्रतिशत से असुरक्षित ऋण, क्रेडिट कार्ड और माइक्रोफाइनेंस की हिस्सेदारी घटानी चाहिए और खुदरा जमा हिस्सेदारी और बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में उपलब्ध बैंक निवेशकों के आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि आरबीएल के स्टॉक में सबसे ज्यादा 29 फीसदी हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों की है. इसके बाद खुदरा निवेशकों का नंबर हैं जो बैंक में करीब 17.50 प्रतिशत शेयरों के मालिक हैं. म्युचुअल फंड, हाई-नेट वर्थ इंडीविजुअल और बीमा कंपनियों के पास बैंक में क्रमशः लगभग 15.8 प्रतिशत, 7.75 प्रतिशत और 5.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
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