नई दिल्ली: इस सप्ताह की शुरुआत में जारी ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कैसे भारत के टॉप 1 प्रतिशत लोगों के पास इसकी कुल संपत्ति का 40.6 प्रतिशत से अधिक है, जो पिछले कुछ दिनों चर्चा का विषय हुआ है. हालांकि, रिपोर्ट को गहराई से पढ़ने पर कुछ तथ्यात्मक और वैचारिक मुद्दों का पता चलता है जो हाइलाइट करने योग्य है.
दावोस में हुए विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के पहले दिन सोमवार को ऑक्सफैम की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई जिसका शीर्षक ‘सर्वाइवर ऑफ द रिचेस्ट’ है. इस रिपोर्ट के साथ पहला मुद्दा यह उठा कि इसमें बहुत से आंकड़े उपभोग विश्लेषण नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाईजेशन (NSSO) के भारत में 2011-12 के विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के घरेलू उपभोग के पुराने आंकड़ों से लिया गया है.
हालांकि, यह ऑक्सफैम की गलती नहीं है कि हमारे पास केंद्र सरकार का कोई हालिया कंजप्शन डेटा नहीं है, इसका मतलब यह है कि इसमें उपयोग किए जाने वाले कुछ डेटा एक दशक से भी पहले के हैं जबकि अन्य (जीएसटी दरें) इस वर्ष के हैं.
2011-12 के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, ऑक्सफैम ने अनुमान लगाया कि 50 प्रतिशत गरीब आबादी चुनिंदा खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं पर कमाई का 6.7 प्रतिशत टैक्स देने में खर्च करती है. ध्यान दें कि यह वस्तुओं पर किया गया खर्च नहीं है, बल्कि वस्तुओं पर भुगतान किए गए करों पर है.
ऑक्सफैम ने जिन खाद्य पदार्थों पर ध्यान दिया है उनमें दालें, दूध, अनाज, खाद्य तेल, मांस, सूखे मेवे, पेय पदार्थ और पैक्ड प्रोसेस्ड फूड शामिल हैं.
इनमें से खुले बेचे जाने वाले दालों पर जीएसटी दर शून्य है और पैक किए जाने पर 5 प्रतिशत है. खाद्य तेलों पर भी जीएसटी 5 फीसदी है. दूध, अनाज (जब सरकार द्वारा मुफ्त प्रदान नहीं किया जाता है), और मांस सभी जीएसटी से मुक्त हैं.
ड्राई फ्रूट्स और पैक्ड फूड पर लगभग 12 प्रतिशत या18 प्रतिशत टैक्स लगता है, हालांकि यह बात सोचने लायक है कि इनकी कीमत को देखते हुए कितने ही गरीब इन चीज़ो को कहते होंगे.
ऑक्सफैम ने अपनी लिस्ट में जिन गैर-खाद्य पदार्थों को शामिल किया वे है, वाशिंग पाउडर, रेफ्रिजरेटर, मोटरसाइकिल/स्कूटर, मोबाइल फोन, पैन और तंबाकू, ईंधन और प्रकाश, कपड़े, बिस्तर, जूते, टॉयलेटरीज़, क्रॉकरी और बर्तन, एयर कंडीशनर/कूलर, वॉशिंग मशीन, लैपटॉप और आभूषण या गहने.
इनमें से बहुत सारी वस्तुएं ऐसी भी हैं जिन्हें नियमित रूप से नहीं ख़रीदा जाता है, जैसे- टू-व्हीलर, एसी, कूलर, लैपटॉप, या गहने. इस बात की तो बहुत कम ही संभावना है कि गरीब इन्हें खरीद भी रहें हैं.
ऑक्सफैम के मुताबिक, 10 में से छह भारतीय 262.4 रुपये प्रति दिन या 95,776 रुपये प्रति वर्ष से कम पर गुजारा करते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, गरीब इसका 6.7 प्रतिशत (6,400 रुपये) प्रति वर्ष सूखे मेवे, पैक्ड प्रोसेस्ड फूड, वाशिंग पाउडर, कपड़े, जूते, ईंधन और प्रकाश, टॉयलेटरीज़ के टैक्स पर खर्च कर रहे हैं.
इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘इन खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं से एकत्रित कुल करों में से कुल कर का 64.3 प्रतिशत गरीब 50 प्रतिशत लोगों से आ रहा है.’
यदि देखा जाये तो ऑक्सफैम के लिस्ट की ज्यादातर उन वस्तुओं पर टैक्स नहीं लगाया गया जो या तो समय-समय पर खरीदी जाती हैं, या फिर गरीबों द्वारा खरीदी ही नहीं जाती हैं. यह समझाना मुश्किल है कि गरीब कैसे टैक्स के हिस्से का इतना बड़ा बोझ उठा रहे हैं.
इसके अलावा, जीएसटी एक एड वलोरम है, जिसका अर्थ है कि कोई वस्तु जितनी अधिक महंगी होगी, उस पर टैक्स का मूल्य उतना ही अधिक होगा. सीधे शब्दों में कहें तो 10,000 रुपये का 28 प्रतिशत 1,000 रुपये के 28 प्रतिशत से बहुत अधिक है.
यह भी पढ़ें: ‘टास्कमास्टर हू डिलीवर’ – कैसे तेलंगाना के पूर्व मुख्य सचिव सोमेश कुमार KCR के लिए महत्वपूर्ण बन गए
विरोधी मुद्दे
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में दो परस्पर विरोधी मुद्दे भी दिखाई देते हैं. पहला यह है कि भारत के कुल जीएसटी संग्रह का ‘सिर्फ 3-4 प्रतिशत’ आबादी के अमीर 10 प्रतिशत लोगों से आता है.
रिपोर्ट का दूसरा मुद्दा यह है कि सरकार को आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी स्लैब को कम करना चाहिए और विलासिता की वस्तुओं पर करों में वृद्धि करनी चाहिए. इसमें कहा गया कि इससे राजस्व सृजन को बढ़ावा मिलेगा जो प्रगतिशील होगा और गरीबों पर बोझ कम करेगा.
सभी वस्तुओं के जीएसटी दरों पर एक नजर डालने से पता चलता है कि अधिकांश आवश्यक वस्तुओं पर पहले से ही सबसे कम स्लैब में टैक्स लगाया जाता है या फिर छूट दी जाती है. निश्चित रूप से कुछ अपवाद बने हुए हैं, और उन्हें सुधारा जाना चाहिए, लेकिन 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के स्लैब में कुछ आवश्यक वस्तुओं पर कर को घटाकर 5 प्रतिशत करने से गरीबो की दुर्दशा को कम करने के मामले में कोई खास अंतर नहीं आने वाला है.
दूसरी तरफ, विलासिता पर पहले से ही 28 प्रतिशत कर लगाया जाता है और उनमें से कई पर मुआवजा उपकर भी लगाया जाता है जो उनकी प्रभावी दर को 35-43 प्रतिशत की सीमा तक ले जाता है.
यदि ऐसी उच्च दरों के परिणामस्वरूप अमीरों से जीएसटी राजस्व का केवल 3-4 प्रतिशत आता है, जैसा कि ऑक्सफैम का दावा है, तो समस्या दरों के साथ नहीं है, यह खपत के स्तरों के साथ है.
यहां तक कि अगर आप विलासिता की दरों को 100 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं, तो इसका जीएसटी राजस्व पर मामूली प्रभाव पड़ेगा, या वास्तव में अमीरों से आने वाले राजस्व का हिस्सा होगा.
ऑक्सफैम जिस समग्र मुद्दे को उठा रहा है वह यह है कि भारत में असमानता बढ़ रही है. वहां कोई वास्तविक विवाद नहीं है. समस्या इसके हेडलाइन हथियाने वाले बयानों के साथ है जो इस मामले पर गहन चर्चा से दूर ले जा रहे हैं.
इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें
(संपादन: अलमिना खातून)
यह भी पढ़ें: कोरोना के बाद RBI की ब्याज दरों में बढ़ोतरी का बैंक ऋण की वृद्धि पर नहीं पड़ा कोई प्रभाव