नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) भारतीय शराब विनिर्माता कंपनियों ने आरोप लगाया है कि कई राज्यों की आबकारी नीतियां विदेशी शराब ब्रांडों के पक्ष में और घरेलू ब्रांडों के खिलाफ भेदभावपूर्ण हैं, जबकि भारतीय ब्रांडों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान और सम्मान मिल रहा है।
पेय पदार्थ विनिर्माताओं के संगठन सीआईएबीसी ने कई राज्य सरकारों से संपर्क कर कहा है कि उनकी उत्पाद शुल्क नीतियों में विसंगतियों के कारण शराब बनाने वाली भारतीय कंपनियां अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में नुकसान में हैं।
भारतीय मादक पेय निर्माताओं की शीर्ष संस्था सीआईएबीसी ने कहा कि भारतीय ब्रांडों को आयातित बीआईओ (बोतलबंद मूल) की तुलना में अत्यधिक उच्च ब्रांड पंजीकरण शुल्क चुकाना पड़ता है, जिससे कई राज्यों में उत्पाद के प्रवेश में बाधा उत्पन्न होती है।
उद्योग संगठन ने आगे कहा कि नए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के लागू होने से बीआईओ उत्पादों पर सीमा शुल्क और घट जाएगा। वहीं दूसरी ओर, राज्य सरकारों द्वारा भारतीय प्रीमियम ब्रांड्स पर लगाया जा रहे ऊंचे उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) घरेलू उद्योग को कम प्रतिस्पर्धी बना देंगे।
सीआईएबीसी ने कहा, ‘विडंबना यह है कि जब भारतीय प्रीमियम और लक्ज़री ब्रांड दुनिया भर में सराहे जा रहे हैं, तब उन्हें अपने ही देश में शुल्क से जुड़ी अड़चनों और शुल्कों में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी उत्पादों के पक्ष में और भारतीय उत्पादों के खिलाफ किया जा रहा यह भेदभाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान के विपरीत है।’
बीआईओ उन व्हिस्की/स्पिरिट्स को कहते हैं जिन्हें उनके मूल देश में बोतलबंद किया जाता है और उनकी ब्रांडिंग और पैकेजिंग के साथ भारत में आयात किया जाता है।
आबकारी नीति में यह भेदभाव लगभग एक दर्जन राज्यों में है। महाराष्ट्र, दिल्ली, केरल, हरियाणा जैसे बड़े मादक पेय उपभोग वाले राज्यों के अलावा, ओडिशा, असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह सबसे ज़्यादा है।
सीआईएबीसी ने आगे कहा, ‘वह विभिन्न राज्य सरकारों को उनकी आबकारी नीतियों में विभिन्न विसंगतियों के बारे में पत्र लिख रहा है, जिससे शराब बनाने वाली भारतीय कंपनियों को अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में नुकसान होता है।’
भाषा योगेश पाण्डेय
पाण्डेय
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