नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) भारत 630 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार और हालात से निपटने के लिए पर्याप्त नीतिगत गुंजाइश होने से फेडरल रिजर्व समेत विदेशी केंद्रीय बैंकों के मौद्रिक नीतिगत कदमों का बखूबी सामना कर सकता है।
संसद में सोमवार को पेश वित्त वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीतियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए भारत की मौद्रिक स्थिति को उपयुक्त बताया गया।
इसके मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार इकट्ठा होने और कुल बाह्य ऋण एवं अल्पावधि ऋण के अनुपात में विदेशी मुद्रा भंडार जैसे संकेतकों ने 2013-14 की तुलना में चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में भी काफी सुधार दिखाया है।
वर्ष 2013-14 में जब फेडरल रिजर्व ने अपने मात्रात्मक सुगमता कार्यक्रम पर विराम लगाना शुरू किया, तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी की निकासी और मुद्रास्फीति बढ़ने लगी थी।
हाल ही में फेडरल रिजर्व ने बढ़ती मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी के संकेत दिए हैं। उसने मौद्रिक नीति के ‘सामान्यीकरण’ की योजना की औपचारिक घोषणा कर दी है।
आर्थिक समीक्षा कहती है, ‘‘भारत ने खुद को नाजुक हालत वाले पांच देशों के समूह से हटाकर चौथे सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाले देश के रूप में बदला है। व्यवस्थागत रूप से अहम केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण की प्रक्रिया के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के पास बदलाव की काफी नीतिगत गुंजाइश बनी हुई है।’’
भाषा प्रेम अजय
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