नई दिल्ली, आगरा, जयपुर: जैसे ही भारतीय पर्यटकों का एक समूह मशहूर आगरा क़िले की टिकट खिड़की तक पहुंचा, 29 वर्षीय गाइड सलमान ख़ान की उम्मीद जगी कि उसे कुछ बिज़नेस मिलेगा.
तेज़ी के साथ सैलानियों की ओर बढ़ते हुए उसने उन्हें अपना पीला पड़ गया आईडी कार्ड दिखाया और उन्हें राज़ी करने की कोशिश करने लगा, कि उचित दाम की वजह से उसकी सेवाएं ले लें. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उसने ऐसी ही तीन और कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उसे ठुकरा दिया गया.
उसने कहा, ‘ज़िंदा रहने के लिए मुझे कभी मांगना नहीं पड़ा था. लेकिन अब यह नई चीज़ मेरे लिए सामान्य हो गई है. मेरे पास कोई चारा नहीं है.’
महामारी से पहले के दौर में, सलमान एक निजी फर्म के लिए काम करता था, जो रूसी सैलानियों के लिए उसकी सेवाएं लेती थी, चूंकि वो रूसी भाषा जानता है. वो पिछले पांच साल से इस व्यवसाय में है, लेकिन भारतीय पर्यटकों की ज़रूरत पूरी करना, उसकी प्राथमिकता कभी नहीं रहा है.
सलमान ने बताया कि ऐसा इसलिए है, कि घरेलू सैलानी सिर्फ फोटो क्लिक करते हैं, और वो जिस जगह जाते हैं वहां के इतिहास, और उसके महत्व को समझने में उनकी दिलचस्पी नहीं होती. यही वजह है कि विदेशी सैलानियों की कमी का इतना ज़्यादा असर पड़ा है.
क़रीब पांच घंटे की दूरी पर, आमेर महल में एक टूरिस्ट गाइड मोहम्मद एहसान ने भी ऐसी ही कहानी सुनाई. लेकिन सलमान के उलट, उसके पास लुभाने की कोशिश करने के लिए, घरेलू पर्यटक भी नहीं थे.
पास ही में एक ख़ाली टूरिस्ट लॉबी की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा, ‘अगर मुझे दिन भर में एक ग्राहक भी मिल जाए, तो मैं अपने परिवार का कुछ ख़र्च उठा सकता हूं, लेकिन देखिए ज़रा कितने सैलानी इस जगह पर आ रहे हैं’.
नरेंद्र मोदी सरकार ने चार्टर्ड फ्लाइट्स के ज़रिए,अंतर्राष्ट्रीय सैलानियों को 15 अक्तूबर से भारत आने की अनुमति दे दी है, जबकि नियमित रूट्स से आने वाले सैलानी 15 नवंबर से आ सकेंगे.
लेकिन, मार्च 2020 के बाद से, जब कोविड-19 महामारी ने देश को अपनी चपेट में लिया, भारत में विदेशी सैलानियों का आना नहीं हुआ है.
महामारी और लॉकडाउंस का नतीजा ये रहा है कि घरेलू पर्यटकों की संख्या भी महामारी-पूर्व के स्तर को नहीं पहुंची है.
अब, जब देश खुलने लगा है तो दूसरे क्षेत्र पटरी पर वापस आते दिख रहे हैं, लेकिन पर्यटन उद्योग के सामने अभी भी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं- अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और महंगाई के साथ मिलकर, ये जेबों पर बेहद भारी पड़ रही है, जिससे यात्राओं को एक विलासिता के तौर पर देखा जा रहा है.
नतीजे में इस क्षेत्र के आंकड़े, जिस पर महामारी में सबसे बुरी मार पड़ी थी, एक धूमिल तस्वीर पेश करते हैं, जिसकी समस्याएं पर्यटन कारोबार के सभी पहलुओं में, नीचे तक आ गई हैं.
होटल बंद हो गए हैं और जो खुले हैं उन्हें स्टाफ कम करना पड़ा है; गोल्डन ट्रायंगल ज़ोन (दिल्ली-आगरा-जयपुर) में चल रहे टैक्सी ड्राइवरों को अपनी गाड़ियों को बेंचना पड़ा है, चूंकि बिना किसी आमदनी के गाड़ियों की क़िस्तें भरना अव्यावहारिक हो गया है; कुछ टूरिस्ट गाइड्स अब घरेलू वर्कर्स या ई-रिक्शा ड्राइवर्स का काम कर रहे हैं; जबकि यादगार वस्तुओं की दुकानें चलाने वाले दिन भर अपनी दुकानों के बाहर ख़ाली बैठे रहने को मजबूर हैं.
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आंकड़ों पर निगाह
2018 और मार्च 2020 के बीच औसतन हर महीने लगभग 10 लाख अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भारत आते थे. कोविड महामारी के दौरान ये आंकड़े तबाह हो गए. अब सरकार ने जिन्हें विदेशी सैलानियों के रूप में वर्गीकृत किया है, वो विदेशों में रह रहे भारतीय हैं जो भारत आए हैं.
लॉकडाउंस से ये भी हुआ है कि घरेलू पर्यटन थम गया था, जिसके बाद 2020 के उत्तरार्ध में जब देश खुल गया, तो वो वापस पटरी पर आने लगा.
इस विघ्न से जो क्षेत्र सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, उनमें से एक है आतिथ्य उद्योग (हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री).
फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) के अनुसार, देश में क़रीब 55,000 हज़ार होटल और पांच लाख रेस्टोरेंट्स थे, जिनसे से क़रीब 40 प्रतिशत कारोबार न होने की वजह से पूरी तरह बंद हो गए हैं, और जिनके निकट भविष्य में फिर से खुलने की संभावना नहीं है.
एफएचआरएआई उपाध्यक्ष गुरबख़्शीश सिंह कोहली ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम लगभग 2-5 लाख करोड़ रुपए का अनुमानित नुक़सान देख रहे हैं. घरेलू पर्यटन ने रफ्तार पकड़ ली है, लेकिन कोविड के मामले कम होने पर भी क्षमता को सीमित किए जाने से, होटल मालिकों के लिए वापसी का रास्ता लंबा हो रहा है…(हम) सरकार से अपनी नीतियों पर फिर से विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं, जो पीक संकट के दौरान बनाई गईं थीं’.
कनफेडरेशन ऑफ टूरिज़्म प्रोफेशनल्स के अध्यक्ष सुभाष गोयल के अनुसार, क़रीब 2.5 करोड़ लोग जो अपनी आजीविका के लिए पर्यटन उद्योग पर निर्भर थे, पहले ही इस व्यवसाय को छोड़ चुके हैं.
गोयल ने कहा, ‘पर्यटन कोविड-19 से प्रभावित होने वाला सबसे पहला उद्योग था और उससे उबरने में सबसे आख़िर होगा. ये उद्योग देश भर में अप्रत्यक्ष रूप से क़रीब 7.5 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है. श्रम प्रधान प्रकृति का होने की वजह से, ये अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र की सहायता करता है. इस देश में 9 में से हर एक व्यक्ति, परोक्ष रूप से पर्यटन के कारण काम में लगा है और सरकार को करों से होने वाली कुल आय का 10 प्रतिशत इसी उद्योग से आता है. सरकारी आंकड़े उनके आकलन का समर्थन करते हैं.
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा, पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से की गई एक स्टडी में पता चला कि 2020-21 की पहली तिमाही में पर्यटन से सीधे तौर पर जुड़ीं क़रीब 1.45 करोड़ नौकरियां ख़त्म हो गईं; पर्यटन के साथ परोक्ष रूप से जुड़ी क़रीब 1.85 करोड़ नौकरियां भी ख़त्म हो गईं, जिसके नतीजे में सिर्फ पहले लॉकडाउन में ही कुल 3.3 करोड़ रोज़गार चले गए.
सबसे आशावादी परिदृश्य में भी एनसीएईआर अपेक्षा नहीं करती कि 2024-25 से पहले उद्योग महामारी-पूर्व के स्तर पर वापस आ पाएगा.
विदेशी सैलानियों का गोरखधंधा
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू पर्यटन में गिरावट का आकार समान रहा है, लेकिन काफी समय तक विदेशी पर्यटकों के न आने से जो तकलीफ हुई है, उससे ये बात खुलकर सामने आ गई है कि पर्यटन उद्योग कितना नाज़ुक है.
पश्चिमी सैलानियों की ऊंची प्रति व्यक्ति आय, उन्हें ज़्यादा पैसा ख़र्च करने की अनुमति देती थी, जिसकी वजह से उद्योग ने अपनी तवज्जो उनकी तरफ मोड़ ली.
जयपुर के आमेर पैलेस में एक टूरिस्ट गाइड एहसान ने कहा, ‘विदेशी सैलानी निर्धारित क़ीमत देते थे, लेकिन हमें यूरो और डॉलर में टिप देते थे’. उसने स्वीकार किया कि उनके न आने से, ‘अच्छे दिनों में’ उसकी जो कमाई होती थी, अब उससे एक तिहाई रह गई है.
लेकिन आगरा, जहां देश के किसी भी दूसरे शहर के मुक़ाबले, सबसे अधिक विदेशी सैलानी आते थे, सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
आगरा पर्यटन कल्याण बोर्ड के सचिव विशाल शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, कि शहर में काम करने वाले आधे लोग, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी आमदनी पर्यटन से ही कमाते हैं.
शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘अकेले आगरा शहर में पर्यटन क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की पंजीकृत संख्या क़रीब 2.5-3 लाख है. लेकिन, अगर आप सहायक उद्योगों को देखें, जो पर्यटन उद्योग को इनपुट्स सप्लाई करते हैं, तो ये संख्या 12-15 लाख तक पहुंच जाती है, जो शहर में काम कर रहे लोगों की कुल संख्या का तक़रीबन आधा हिस्सा है’.
शर्मा ने ये भी कहा कि महामारी के दौरान आगरा में हर महीने 25 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा हो रहा था, जो पीक सीज़न में बढ़कर 50 करोड़ रुपए हो गया.
उन्होंने आगे कहा, ‘घरेलू पर्यटक वापस आने लगे हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का उत्सुकता से इंतज़ार है. 90 प्रतिशत हस्तशिल्प उद्योग उन्हीं पर निर्भर करता है’.
जयपुर को घरेलू पर्यटकों का इंतज़ार
हॉकर्स से लेकर लग्ज़री होटलों तक, जयपुर में पर्यटन व्यवसाय का ज़ोर अब घरेलू पर्यटकों को लुभाने पर शिफ्ट हो गया है.
जयपुर में एक हेरिटेज होटल नारायण निवास पैलेस के मालिक पृथ्वी सिंह ने दिप्रिंट को बताया, कि उन्होंने दो रेस्टोरेंट्स को समय पर खोल दिया था, ताकि जब सैलानी नहीं आ रहे थे, तो कम से कम रेस्टोरेंट व्यवसाय से ही कुछ कमाई कर लें. उनका कहना था कि रेस्टोरेंट्स अच्छा कारोबार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘भारी छूट देने के बाद भी हमारी ऑक्युपेंसी दर क़रीब 30 प्रतिशत बनी रही. हम अपने पैलेस में शादियां कराने का विकल्प भी पेश कर रहे हैं. हम लागत निकाल पा रहे हैं, लेकिन महामारी-पूर्व की आमदनी से अभी भी बहुत दूर हैं’.
हवा महल के पास अपने परिवार का टेक्सटाइल कारोबार चलाने वाले दीपक नवानी ने कहा, कि वो भाग्यशाली हैं कि उनके परिवार ने पहले ही स्टोर को ख़रीद लिया था. वो अब जीवन भर की उस बचत से ख़र्च चला रहे हैं, जो उनके परिवार ने की हुई थी.
उन्होंने कहा, ‘इस स्टोर का किराया क़रीब 60,000 रुपए महीना है. हम लकी थे कि ये जगह हमारी अपनी है, वरना जिन लोगों ने आसपास की दुकानें किराए पर ली हुईं थीं, उन्हें आपने कारोबार छोड़ने पड़े हैं. अब वो सड़क विक्रेताओं का काम कर रहे हैं, और हवा महल के पास सब्ज़ियां बेंच रहे हैं.
जहां दूसरे व्यवसाइयों के पास विकल्प थे, कि या तो वो विविधता लाएं या फिर काम बदल लें, वहीं आमेर क़िले के पास स्थित हाथी गांव में करो-या-मरो की स्थिति थी, जहां तमाम हाथी और उनकी देख भाल करने वाले लोग रहते हैं.
एक महावत आसिफ के अनुसार, जो एक 24 वर्षीय भारतीय हाथी रंगोली की देखरेख करता है, जानवर के भोजन और रखाव पर एक दिन में, क़रीब 1,500-2,000 रुपए का ख़र्च आता है.
आसिफ ने कहा कि ये तभी व्यवहारिक था, जब वो सैलानियों को क़िले तक ले जाते थे.
कारोबार के एक सामान्य दिन में, हाथी एक बार में चार सैलानियों को ले जाता है, जिससे प्रति व्यक्ति क़रीब 1,100 रुपए कमाई हो जाती है. हाथी अकसर दिन भर में चार से पांच चक्कर लगा लेते थे.
जयपुर के हाथी गांव में आसिफ जैसे महावत उम्मीद कर रहे हैं, कि उन्हें ‘रिवेंज टूरिज़्म’ से फायदा पहुंचेगा- जिसमें लोग लॉकडाउंस के दौरान नीरसता झेलने के बाद, उग्रता के साथ घूमने निकल रहे हैं.
आशावादी आसिफ ने कहा, ‘लोग जल्द ही वापस आएंगे. वो भी बहुत बोर हो चुके हैं और इतने लंबे समय से अपने घरों में फंसे हुए हैं. एक बार वो वापस आ जाएं तो हम उन्हें, महाराजा अंदाज़ में हाथी की शानदार सवारी कराएंगे’.
महामारी के दौरान जब कारोबार बिल्कुल बंद था, तो राजस्थान सरकार ने दो मरतबा, शहर के 85 हाथियों के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई- पिछले साल दिसंबर में (4.2 करोड़ रुपए) और इस साल जून में (57.37 लाख रुपए), लेकिन महावतों का कहना था कि इन उपायों से, एक सीमित समय तक ही हाथियों का ख़र्च पूरा हो पाया.
राजस्थान पर्यटन विभाग ने स्वीकार किया, कि उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी ओर से हर संभव कदम उठाए हैं.
राज्य पर्यटन विभाग के उप निदेशक उपेंद्र सिंह शेखावत ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य सरकार ने बार के लाइसेंसों पर 35 प्रतिशत की रिआयत दी है. हम कला और संस्कृति विभाग के ज़रिए, हर लोक कलाकार को 5,000 हज़ार रुपए देने की प्रक्रिया में हैं. हमने गाइड्स की निर्धारित दर भी बढ़ा दी है, जिसकी लंबे समय से मांग चली आ रही थी’.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भी पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से एक योजना बनाई है, जिसके तहत पंजीकृत टूरिस्ट गाइड 7,95 प्रतिशत ब्याज पर 1 लाख रुपए, और टुअर संचालक 10 लाख रुपए तक का क़र्ज़ ले सकते हैं. ये स्कीम 31 मार्च 2022 या 250 करोड़ रुपए इस्तेमाल हो जाने तक वैध है.
लेकिन, ज़्यादातर हितधारकों का कहना था कि ये स्कीम बहुत देर से आई है, और वो पहले ही परिवार या दोस्तों से पैसा उधार ले चुके हैं.
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ढील, लेकिन शर्तों के साथ
पर्यटन उद्योग में बहुत लोगों की सबसे बड़ी शिकायत ये है, कि क़र्ज़ अदाएगी की शर्तों में जब ढील दी गई, तो वो भी शर्तों के साथ थी.
दिल्ली में टूरिस्ट टैक्सी व्यवसाय चलाने वाले रतन सिंह ने कहा, कि पहले उन्होंने अपने स्टाफ की छुट्टी की, जो अब छोटे-मोटे काम कर रहे हैं, और उसके बाद अपनी गाड़ियां बेंच दीं, क्योंकि वो उस लोन की क़िस्तें अदा नहीं कर पाए, जो गाड़ियां ख़रीदने के लिए लिया था.
उन्होंने पूछा, ‘सरकार ने हमें क़र्ज अदाएगी टालने का विकल्प ज़रूर दिया, लेकिन बैंक उसपर ब्याज लगाते रहे. पिछले डेढ़ साल में हमारा कोई कारोबार नहीं हुआ है, लेकिन हम निजी क्षेत्र से हैं. हमारी कौन परवाह करता है?’
सुभाष गोयल के अनुसार, कंगाली का सबसे ज़्यादा शिकार वो टैक्सी संचालक हैं, जो ज़्यादातर सैलानियों को लाने- ले जाने में लगे थे.
गोयल ने कहा, ‘टैक्सी ड्राइवर्स जिन्होंने अपना पूरा जीवन बैंकों की क़िस्तें चुकाने में बिता दिया, अब उनकी गाड़ियां बैंकों ने अपने क़ब्ज़े में ले ली हैं. सरकारी-मान्यता प्राप्त टूरिस्ट गाइड्स का धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है. अगर अंतर्राष्ट्रीय सैलानी वापस नहीं आते, तो कोविड से कहीं ज़्यादा लोग आर्थिक भुखमरी से मर जाएंगे.’ और ये सिर्फ टैक्सी चलाने वाले ही नहीं होंगे.
लग्ज़री टुअर ऑपरेटिंग एजेंसी ‘हार्ट ऑफ इंडिया’ के सह-संस्थापक कुश सिंह ने कहा, कि जब उन्हें अपने टूरिज़म लाइसेंस के नवीनीकरण करने का ईमेल मिला तो वह काफी परेशान हो गए.
उन्होंने पूछा, ‘जब उन्हें मालूम है कि पिछले दो वर्षों में हमने काम ही नहीं किया है, तो उनकी ये पैसा मांगने की हिम्मत कैसे हो गई? मैं दशकों से भारी कर देता आ रहा हूं, और जब उद्योग अपने सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है, तो हमारे साथ इस तरह का बर्ताव किया जा रहा है’.
दूसरे हितधारकों के साथ ही, जिनमें टूरिस्ट गाइड्स से लेकर टैक्सी मालिक वग़ैरह तक शामिल हैं, कुश के सामने भी पर्यटन विभाग की औपचारिकताएं पूरी करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है, जिनमें उनके लाइसेंस का नवीनीकरण भी शामिल है, भले ही उनके कारोबार में कितनी भी मुसीबत आई हो.
जयपुर स्थित एक टुअर ऑपरेटर परवेज़ आलम ने कहा, ‘विकसित देशों में लोगों को कोरोना काल में 600 डॉलर (क़रीब 45,000 रुपए) के प्रोत्साहन चेक दिए गए, और हमें लोन की पेशकश की गई. मेरी मां की तबीयत बिगड़ गई थी और मैं उनके स्वास्थ्य की देखभाल का ख़र्च नहीं उठा सका. मैंने ये बात उन विदेशी सैलानियों को बताई, जिनकी मैं अच्छे समय में सेवा कर चुका था. उन्होंने एक क्राउडफंडिंग अभियान चलाया, और मेरी सहायता के लिए सामने आए. इसीलिए हम आज भी अतिथि देवो भव (मेहमान भगवान का अवतार होते हैं) में विश्वास करते हैं.
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रिकवरी की उम्मीदें
पर्यटन उद्योग कैसे पटरी पर वापस आएगा, ये बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि दुनिया कितनी तेज़ी से कोविड से उबरती है.
हितधारक उम्मीद कर रहे हैं कि अगले 1.5 से 2 वर्षों तक, पर्यटकों का नियमित प्रवाह बना रहे, ताकि वो अपने नुक़सान की भरपाई कर पाएं.
जयपुर के होटल मालिक पृथ्वी सिंह ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि 5 नवंबर के बाद विदेशी सैलानी देश में भीड़ लगा देंगे. वायरस की अनिश्चितता ने उन्हें डरा दिया है, और मुझे नहीं लगता कि अगले सीज़न तक, हमें वो भारी संख्या में आते नज़र आएंगे’.
गोयल ने आगे कहा कि नीतिगत स्तर पर बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने 15 नवंबर से ग़ैर-चार्टर्ड फ्लाइट्स वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आने की अनुमति दे दी है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू नहीं की हैं. पर्यटक इस तरह से कैसे वापस आएंगे? हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि अपनी नीति पर फिर से विचार करे, और उड़ान संपर्क समझौते को 2018-19 के स्तरों पर बहाल कर दे’.
गोयल ने ये भी कहा कि सरकार को, अंतर्राष्ट्रीय सैलानियों की शंकाओं को शांत करने की दिशा में भी, काफी प्रयास करने की ज़रूरत होगी.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास पेश करने के लिए इतना कुछ है; हमने रिकॉर्ड समय में एक अरब से अधिक टीके लगा दिए हैं. हमारे पर्यटन मंत्रालय को उस सब को बढ़ावा देना चाहिए और कहना चाहिए कि कोविड के मामले में, एक देश के तौर पर हम कितने सुरक्षित हैं. अफ्रीका में येलो फीवर अभी भी मौजूद है, लेकिन टीकाकरण के साथ लोग दशकों से वहां जा रहे हैं. कोविड अभी भी है लेकिन अगर सरकार चाहे, तो उद्योग को रिवाइव कर सकती है’.
इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (ताज होटल समूह) के सीनियर वाइस-प्रेज़िडेंट (सेल्स व मार्केटिंग) परवीन चंदर का कहना है, कि घरेलू व्यय की बदौलत चीज़ें फिर से सामान्य हो रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘भारतीय ट्रैवल और टूरिज़्म सेक्टर इस मामले में अनोखा है, कि कुल व्यय का 87 प्रतिशत घरेलू ट्रैवल से आता है. कुल मिलाकर कारोबार धीरे-धीरे और निरंतरता से, सामान्य स्तरों तक आ रहा है, और पहली लहर के मुक़ाबले, उद्योग ज़्यादा मज़बूती और तेज़ी के साथ उछलकर वापस आया है. हम देख रहे हैं कि अवकाश के समय ट्रैवल की मन में दबी हुई मांग, उभरकर सामने आ रही है. कॉरपोरेट मांग में भी रिकवरी के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं, और पिछले कुछ महीनों से प्रमुख शहरों की रिकवरी में काफी सुधार दिख रहा है’.
अंतर्राष्ट्रीय सैलानियों के सहारे उद्योग के रिवाइव होने पर चंदर ने कहा, कि उन्हें एक अच्छी रिकवरी की उम्मीद है, बशर्ते कि कोई आर्थिक झटके न लगें.
उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद कर रहे हैं कि यात्रा पर लगी पाबंदियों में ढील के बाद, इसमें और सुधार आएगा. हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस महामारी-पूर्व के स्तरों तक तभी पहुंचेगा, जब अंतर्राष्ट्रीय ट्रैवल एक संतोषजनक स्तर पर पहुंच जाएगी. ये मानते हुए कि सब कुछ ठीक है, और कोई तीसरी लहर नहीं आएगी, हम उम्मीद कर रहे हैं कि अगली कुछ तिमाहियों में, उद्योग में अच्छी रिकवरी देखने को मिलेगी’.
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