नयी दिल्ली, 30 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत दिवाला पेशेवर के रूप में नियुक्ति के लिए अच्छी प्रतिष्ठा और चरित्र बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही, नौकरी के लिए उपयुक्तता का आकलन करने के लिए पिछले कार्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अदालत की यह टिप्पणी एक बैंकर की उस याचिका को खारिज करते हुए आई, जिसमें उसने भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबी) द्वारा उसे दिवाला पेशेवर (आईपी) के रूप में पंजीकृत करने से इनकार करने को चुनौती दी थी।
आईबीबी ने उस महिला पेशेवर को इस आधार पर आईपी के रूप में पंजीकृत करने से इनकार कर दिया था कि उसे 2015 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के मानदंडों का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि 2015 में हुई घटनाओं के लिए उसे आजीवन दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जबकि वह पहले ही उल्लंघन के लिए जुर्माना अदा कर चुकी हैं।
हाल के एक आदेश में, अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए बोर्ड को विवेकाधीन शक्तियां प्रदान की गई हैं कि कॉर्पोरेट दिवाला प्रक्रिया ‘स्वच्छ और स्वतंत्र’ हो।
न्यायमूर्ति सु्ब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘यह निर्णय करते वक्त कि क्या कोई व्यक्ति दिवालिया पेशेवर के रूप में नियुक्त होने के उपयुक्त है, उसके पिछले कार्यों और आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और यह तथ्य कि हाल में उसका आचरण ठीक है, उस व्यक्ति को क्लीन चिट नहीं देता है कि उसकी उम्मीदवारी पर विचार किया जाएगा।’’
आदेश में कहा गया है कि दिवाला समाशोधन प्रक्रिया से गुजरने वाली किसी कंपनी को वस्तुतः अपने अधिकार में लेकर एक दिवाला पेशेवर उसका ‘दिल और दिमाग’ बन जाता है और ‘मामूली रूप से भी अयोग्य’ व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
भाषा सुरेश पाण्डेय
पाण्डेय
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