नई दिल्ली: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की तरफ से जारी अनंतिम अनुमानों के मुताबिक भारत सरकार ने मंगलवार को 2021-22 के लिए अपने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में वृद्धि के अनुमान को संशोधित कर 8.7 प्रतिशत कर दिया, जो इसके पहले के 8.9 प्रतिशत के अनुमान से कम है.
कुल मिलाकर 2021-22 में जीडीपी में पिछले महामारी के पहले के साल की तुलना में 1.5 प्रतिशत ज्यादा की वृद्धि हुई है. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था ने कोविड के दौरान हुए अधिकांश नुकसान की भरपाई की है. जनवरी में जारी अपने पहले के अनुमान में सरकार ने 2021-22 में अर्थव्यवस्था के 9.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया था.
अनुमानित वृद्धि में इस संशोधन की वजह जहां एक तरफ कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर के कारण हुए आर्थिक व्यवधान रहे तो वहीं रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि भी शामिल है.
इसके अलावा सरकार के सांख्यिकी विभाग ने 2021-22 के लिए जीडीपी में बहुत थोड़ी से नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि का अनुमान 19.5 प्रतिशत रखा है, जो पहले के 19.4 प्रतिशत के अनुमान से थोड़ा ही ज्यादा है. नॉमिनल जीडीपी चालू कीमतों पर आधारित जीडीपी है, जबकि रियल जीडीपी पिछले साल की तुलना में मुद्रास्फीति या कीमतों में उछाल को भी शामिल करता है.
नॉमिनल जीडीपी की तेज वृद्धि ने सरकार को 2021-22 में जीडीपी के अनुपात के रूप में अपने राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद की है.
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राजकोषीय घाटा सरकार की प्राप्तियों और खर्च के बीच का अंतर है. सरल शब्दों में जब सरकार अपनी कमाई से अधिक खर्च करना शुरू कर देती है तो इसका परिणाम राजस्व घाटा होता है. 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटा 15.87 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 6.7 प्रतिशत है, जबकि संशोधित लक्ष्य 15.9 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 6.9 प्रतिशत था.
जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी 2021-22 में मजबूत हुई है, आर्थिक गतिविधियां पूर्व-महामारी के स्तर को पार कर गईं हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि वैश्विक बाधाओं मसलन महत्वपूर्ण आयात निर्भरता के साथ वस्तुओं की उच्च वैश्विक कीमतें, अधिकांश देशों में मौद्रिक नीतियों का कड़ा होना, आपूर्ति श्रृंखला की अड़चनें और भारत में निर्यात वृद्धि पर प्रभाव के साथ संभावित वैश्विक मंदी का सामना करना पड़ेगा.’
फिर भी 8.7 प्रतिशत की भारत की रियल जीडीपी वृद्धि मौजूदा सीरीज में सबसे तेज होगी. ये आधार वर्ष सीरीज 17 साल पहले की है. इसकी तुलना 2005 से पहले के डेटा से नहीं की जा सकती क्योंकि सकल मूल्य वर्धित (ग्रॉस वैल्यू ऐडेड, जीवीए) को शामिल करने के लिए 2015 में जीडीपी गणना की कार्यप्रणाली और परिभाषा को बदल दिया गया था.
2015 में सरकार ने जीडीपी वृद्धि की गणना के लिए प्रयोग किए जाने वाले आधार वर्ष को बदलकर 2011-12 कर दिया था. यह बदलाव कारक लागतों के बजाय बाजार कीमतों पर जीडीपी की गणना करने के लिए भी था, जो वस्तुओं और सेवाओं के सकल मूल्यवर्धन को ध्यान में रखता है.
8.7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि मुख्य रूप से निम्न आधार (वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि) के कारण है क्योंकि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते 2020-21 में भारत की जीडीपी 6.6 प्रतिशत तक ही सीमित रह गई थी. 2021-22 में स्थिर (बेसिक) कीमतों पर सकल मूल्य में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पहले की अनुमान 8.3 प्रतिशत था.
2021-22 की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि 2021-22 की तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और 2020-21 में 2.5 प्रतिशत थी.
तीन व्यापक क्षेत्रों में से इंडस्ट्री में 10.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई – 2020-21 के 3.3 प्रतिशत की तुलना में 2021-22 में उच्चतम वृद्धि देखी गई है. इंडस्ट्री के बाद सर्विस सेक्टर में भी 2021-22 में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि 2020-21 में यह 7.8 प्रतिशत थी. इसके अलावा 2021-22 में कृषि क्षेत्र में 3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है.
अगर हम खर्च की तरफ देखें तो, सकल स्थिर पूंजी निर्माण 2021-22 में 15.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो 15 प्रतिशत के पिछले अनुमान से ज्यादा है. इसे अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
वहीं निजी अंतिम खपत व्यय 2021-22 में 7.9 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जबकि सरकारी खपत 2.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा. निजी अंतिम खपत व्यय अर्थव्यवस्था में मांग का एक संकेतक है जो सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अधिक योगदान देता है.
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हाल के जीडीपी आंकड़ों पर एक नजर:
मांग में सुधार, सरकारी खर्च में गिरावट
2021-22 में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) से पता चलता है कि फिलहाल मांग में सुधार आया है. यह कोविड-19 महामारी से पहले की तुलना में बेहतर है. 2021-22 में, पीएफसीई लगभग 83.8 लाख करोड़ रुपये था, जबकि 2021-22 में 77.6 लाख करोड़ रुपये और महामारी से पहले के साल 2019-20 में 82.6 लाख करोड़ रुपये था.
सरकारी अंतिम खपत व्यय (जीएफसीई), जो कि वस्तुओं और सेवाओं पर कुल सरकारी खर्च का एक मापक है, 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का 10.7 प्रतिशत था. इससे पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी खर्च में पिछले वर्ष की तुलना में, 2021-22 में मामूली गिरावट आई है.
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पूंजी का निर्माण
सकल स्थाई पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) एक वित्तीय वर्ष में अचल संपत्तियों को जोड़ने के लिए जिम्मेदार है. इसलिए यह निवेश को मापने के लिए एक प्रॉक्सी है. महामारी वाले साल 2020-21 के दौरान जीएफसीएफ 10 प्रतिशत गिरकर, 46.3 लाख करोड़ रुपये से 41.3 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया था.
2021-22 में जीएफसीएफ बढ़कर 47.8 लाख करोड़ रुपये हो गया. महामारी वाले साल से अब तक की यह 15 प्रतिशत की छलांग है. महामारी से पहले के साल 2019-20 की तुलना में 2021-22 में अचल पूंजी निर्माण 3.7 प्रतिशत अधिक रहा.
शुद्ध निर्यात
शुद्ध निर्यात, निर्यात किए गए माल के कुल मूल्य और किसी देश के आयात के बीच का अंतर होता है. एक देश अपने द्वारा उत्पादित और निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर पैसा कमाता है. इसी तरह एक देश को दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात के लिए भुगतान करना पड़ता है.
भारत का आयात ऐतिहासिक रूप से इसके निर्यात से अधिक रहा है. लेकिन 2021-22 में यह अंतर काफी ज्यादा था.
2021-22 में भारत ने 31 लाख करोड़ रुपये से अधिक के सामान का निर्यात किया. इसी समय में किया गया आयात – 38.78 लाख करोड़ रुपये – 22 प्रतिशत अधिक था. यह अंतर पिछले साल करीब 12 फीसदी और 2019-20 में 18 फीसदी था.
रियल और नॉमिनल जीडीपी
रियल जीडीपी आधार वर्ष कीमतों पर व्यक्त की गई सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को बताता है. वर्तमान में 2011-12 आधार वर्ष का प्रयोग किया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ नॉमिनल जीडीपी को चालू कीमतों या वर्तमान वर्ष की प्रचलित कीमतों पर मापा जाता है. रियल और नॉमिलन जीडीपी के बीच का अंतर हमें बताता है कि कीमतों के कारण जीडीपी अनुमान किस हद तक बढ़ गए हैं.
2021-22 में भारत की रियल जीडीपी 147.4 लाख करोड़ रुपये थी, जबकि नॉमिनल जीडीपी 236.6 लाख करोड़ रुपये बताई गई. इसका मतलब यह है कि अगर आज बेची गई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें 2011-12 की कीमतों पर थीं, तो उन्हें आज 60 प्रतिशत अधिक मूल्य पर लिखा जा रहा है.
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