नई दिल्ली: अगर देश के कस्टम बरामदी संबंधी वीडियो पर गौर करें तो विग में छिपाने से लेकर सूटकेस की लाइनिंग में रखने, निगल लेने और शरीर के अंगों में छिपाने तक-देश में सोने की तस्करी करने वाले इस कीमती धातु को लाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं. फिर भी बहुत कुछ पता न चल पाने के कारण बड़े पैमाने पर तस्कर पकड़ में आने से बच जाते हैं.
देश की तस्करी विरोधी सर्वोच्च संस्था राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) की तरफ से इस महीने जारी ‘स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट’ के मुताबिक, सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में चोरी-छिपे लाया जा रहा 405 करोड़ रुपये मूल्य का 833 किलोग्राम सोना जब्त किया है.
यह आंकड़ा बड़ा भले ही लग रहा हो लेकिन, डीआरआई के पिछले डेटा के अनुसार, यह भारत में तस्करी करके लाए जाने वाले सोने का मात्र 1 प्रतिशत भी नहीं है.
अपनी 2019-20 की रिपोर्ट में, डीआरआई ने बताया था कि भारत में सालाना करीब 150-200 टन सोने की तस्करी होती है. एक टन 1,000 किलोग्राम होता है, इसलिए 833 किलोग्राम मात्रा तो उस प्रतिबंधित चमकीली धातु का एक बहुत मामूली अंश है जो हर साल देश में आती है.
यह भी पढ़ेंः 2022 के पहले 9 महीनों में भारत का लैपटॉप आयात बढ़कर 500 करोड़ डॉलर पहुंचा, करीब 73% चीन से मंगाए गए
तस्करी के सोने का बाज़ार
चीन के बाद भारत दुनिया में सोने का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जहां न केवल गहनों के लिए बल्कि निवेश के रूप में भी इस कीमती धातु की अत्यधिक मांग है.
हालांकि, चूंकि भारत सोने का उत्पादन काफी छोटे पैमाने पर करता है, इसलिए मांग पूरी करने के लिए यह मुख्यत: आयात पर ही निर्भर रहता है. यहीं से चीजें गड़बड़ होने लगती हैं.
वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने लगभग 525.8 टन सोने का आयात किया, जो कि 2020-21 में आयातित 391.3 टन की तुलना में करीब 35 प्रतिशत अधिक है. इससे पहले 2016-17 से 2018-19 तक भारत ने हर साल औसतन करीब 800 टन सोने का आयात किया था.
हालांकि, यह आयात देश में सोने की खपत की तुलना में काफी कम है और यहीं से तस्करी को लेकर डीआरए के अनुमान सामने आते हैं.
अपनी 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में डीआरआई ने कहा है, ‘हालांकि, भारत में सोने की मांग लगातार बढ़ रही है, यह अनुमान लगाया गया है कि देश में आने वाले सोने की कुल मात्रा का लगभग छठा हिस्सा अवैध कारोबार के जरिए आता है. भारत हर साल करीब 800-850 टन सोने का आयात करता है जबकि इसकी सालाना खपत करीब 1,000 टन है. इससे पता चलता है कि देश में हर साल लगभग 150-200 टन सोने की तस्करी की जा रही है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार निकाय वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुमान भी बताते हैं कि 2019 में 120 टन सोना तस्करी के रास्ते भारत पहुंचता था. महामारी के दौरान खासकर जब उड़ानें संचालित नहीं हो रही थीं, सोने की तस्करी में कमी आई थी.
बहरहाल, चालू वित्त वर्ष के लिए भारत में तस्करी के जरिये आए सोने की मात्रा पर अनुमान आने अभी बाकी हैं, इस वर्ष अधिकारियों की तरफ से जब्त किया गया 833 किलोग्राम सोना तस्करी का एक बहुत मामूली हिस्सा ही होने की संभावना है.
यह भी पढ़ेंः समलैंगिक छात्रों के लिए DU बना एक नया युद्ध का मैदान- समाज पर धब्बा, दमन और आत्महत्या
क्यों बढ़ रही सोने की तस्करी
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में 2011 से सोने की तस्करी में वृद्धि देखी गई है और इसका एक बड़ा कारण उच्च कराधान की भी है.
इंग्लैंड स्थित कीमती धातु अनुसंधान फर्म मेटल फोकस के प्रमुख सलाहकार (दक्षिण एशिया) चिराग शेठ ने कहा, ‘मुझे लगता है कि तस्करी और उच्च कराधान और दुनियाभर में सोने पर प्रतिबंध के बीच एक स्पष्ट संबंध है.’
उन्होंने कहा, ‘सोने की तस्करी 2011 से पहले कोई मुद्दा नहीं थी, जब सोने के आयात पर टैक्स बहुत कम था.’
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत का गोल्ड टैक्स ग्राफ पिछले एक दशक में केवल बढ़ा ही है.
जनवरी 2012 से पहले सोने के आयात पर प्रति 10 ग्राम पर 300 रुपये का शुल्क लगता था. 2011-12 के बजट में इसे बढ़ाकर 2 फीसदी कर दिया गया था. 2012-13 के बजट में इसे दोगुना बढ़ाकर 4 फीसदी कर दिया गया.
फिर 2013 में भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) असंतुलित होने पर सोने पर आयात शुल्क को तीन बार संशोधित किया गया ताकि सीएडी को नियंत्रित किया जा सके. सीएडी तब बढ़ता है जब किसी देश के आयात का कुल मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक हो जाता है.
सोने पर आयात शुल्क जनवरी 2013 तक बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दिया गया और फिर क्रमशः जून और अगस्त में 8 प्रतिशत और 10 प्रतिशत कर दिया गया, जिसे लेकर देशभर के ज्वैलर्स ने विरोध जताया.
अब अगर बात करें 2022 की तो भारत में फिर चालू खाता घाटा बढ़ रहा है. और सरकार ने एक बार फिर टैक्स में बढ़ोतरी का सहारा लिया है. इस साल जुलाई में सोने पर आयात शुल्क 10.75 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया गया था.
तस्कर उन देशों से सोने को चैनलाइज करते हैं जो या तो सोने के उत्पादक हैं या जिनकी पॉलिसी कम टैक्स वाली है. इस पॉलिसी से उन देशों को लाभ होता है क्योंकि उनका कर-मुक्त सोना सस्ता होता है, और इस तरह उन्हें खरीदने वाले अधिक मिलते हैं.
ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी डोमेस्टिक काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष एन. अनंत पद्मनाभन कहते हैं, ‘तस्करों को तभी लाभ होता है जब उनका सोना बाजार मूल्य से सस्ता होता है. लेकिन सोना लाने वाले सिर्फ तस्कर ही नहीं होते. यहां तक, विदेश यात्रा पर जाने वाले तमाम अन्य लोग भी अपनी यात्रा का खर्च पूरा करने के लिए अवैध तरीके से सोना लाने की कोशिश करते हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कीमतों में बहुत ज्यादा अंतर है.’
तो, आखिर इसका उपाय क्या है?, इस बारे में पद्मनाभन का कहना है कि आयात शुल्क घटाना तस्करी पर लगाम लगाने में मददगार हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘यदि सरकार आयात शुल्क को घटाकर 5 फीसदी तक भी कर दे, तो संगठित सोना बाजार प्रतिस्पर्धी कीमतों पर आपूर्ति कर सकता है. इससे सोने की तस्करी में अपने आप कमी आ सकती है.’
हालांकि, पांच फीसदी भले ही न हो लेकिन भारत सरकार इस तरह का कुछ कदम उठाने पर विचार कर रही है. इस हफ्ते के शुरू में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि तस्करी पर लगाम लगाने के लिए व्यापार मंत्रालय सोने पर आयात शुल्क को 12.5 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी करने पर विचार कर रहा है.
(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः पुराना डेटा, बदलते तरीके—क्यों गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले भारतीयों की संख्या एक रहस्य बनी हुई है?