नई दिल्ली: ‘चिंता की बात ये है कि बीजिंग के साथ नई दिल्ली का व्यापार घाटा तेजी से बढ़ रहा है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां चीन की जगह भारत की ओर रुख करती नजर आ रही हैं.’ मोबियस कैपिटल पार्टनर्स के संस्थापक मार्क मोबियस ने दिप्रिंट को दिए गए एक इंटरव्यू में यह बात कही.
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा– वह मात्रा जिसमें आयात निर्यात से ज्यादा होता है – वित्तीय वर्ष 2021-22 में 72.9 बिलियन डॉलर रहा. जबकि एक साल पहले यह 44 बिलियन डॉलर था. इस साल अप्रैल से अगस्त तक सिर्फ पांच महीनों में घाटा पहले ही 37 अरब डॉलर को पार कर चुका है. इसका सीधा सा मतलब है कि घाटे के पिछले साल के स्तर को पार करने की पूरी संभावना बनी हुई है.
मोबियस ने समझाते हुए कहा, कोविड महामारी, चीन के सख्त लॉकडाउन और अमेरिका के साथ चल रहे ‘टेक्नॉलॉजीकल वॉर’ की वजह से मैन्युफैक्चरर्स की एक बड़ी संख्या – खास तौर से तकनीकी हार्डवेयर इंडस्ट्री – भारत की ओर बढ़ रही है.
मोबियस एक जाने-माने निवेशक है. उन्हें अक्सर ‘उभरते बाजारों का गॉडफादर’ कहा जाता है, जिनके पास उभरते बाजारों का विश्लेषण करने का दशकों का अनुभव है. उन्होंने 1987 और 2018 के बीच फ्रैंकलिन टेम्पलटन के उभरते बाजार फंड टेम्पलटन इमर्जिंग मार्केट्स की जिम्मेदारी संभाली थी. उनके समय में टेम्पलटन इमर्जिंग मार्केट्स ने अपने पोर्टफोलियो में 100 मिलियन से 40 बिलियन तक की वृद्धि देखी थी.
टेक वार हुई तेज
उन्होंने कहा, ‘भारत की तरफ कंपनियों का रूख करना, उन बड़े रुझानों में से एक है, जो स्पष्ट कारणों से हो रहे हैं. अमेरिका और चीन के बीच जिस तरह की टेक्नोलॉजी वार चल रही है, उसे देखते हुए लगता है कि वह चीन पर ज्यादा से ज्यादा प्रतिबंध लगाने वाला है. इसके अलावा चीन में लगा कोविड लॉकडाउन, निश्चित रूप से वहां मैन्युफैक्चरिंग के लिए गंभीर परिणाम देने वाला साबित हो रहा है.’
मोबियस ने कहा, ‘ इसलिए, कई कारण हैं कि भारत टेक्निकल गुड्स के निर्माताओं के लिए एक लक्ष्य बनने जा रहा है.’
यह भी पढ़ें: जो नोटबंदी नहीं कर पाया वह काम कोविड ने कर दिया! बढ़ रहा ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘कैशलेस इकॉनमी’ का ट्रेंड
व्यापार घाटे को दूर करने में सक्षम भारत
उन्होंने कहा कि फिर भी चीन के साथ व्यापक व्यापार घाटा चिंताजनक है और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ाकर इस स्थिति से निपटे जाने की जरूरत है. भारत अपने आकार और छोटे प्रतिद्वंद्वियों पर जनसांख्यिकीय लाभ के कारण ऐसा करने में सक्षम है.
मोबियस ने कहा, ‘यह (व्यापार घाटा) कुछ ऐसा है जिससे वास्तव में निपटा जाना जरूरी है. और निश्चित रूप से ऐसा करने का तरीका देश में ज्यादा से ज्यादा स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देना है. वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों और कम आबादी वाले अन्य छोटे देशों के लिए ऐसा करना मुश्किल है, लेकिन भारत अपनी एक अरब आबादी, प्रतिस्पर्धात्मक वेतन और एक युवा वर्कफोर्स के साथ ऐसा कर सकता है. इसमें निश्चित रूप से विनिर्माण बढ़ाने और बहुत सारे चीनी आयात को खत्म करने की क्षमता है.’
मोबियस की राय है कि इस लक्ष्य को उच्च आयात करों जैसे इनपुट प्रतिबंधों के जरिए हासिल नहीं किया जा सकता है. भारत की आपूर्ति ऋंखला के लिए अभी भी चीन और अन्य देशों से आयात की जरूरत है.
वह कहते हैं, ‘उन्हें (सरकार) स्थानीय निर्माताओं को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि जिन उत्पादों को फिलहाल चीन से आयात किया जा रहा हैं, उन्हें भारत में और भी कम कीमत पर तैयार किया जा सके.’
भारत में दीर्घकालिक बदलाव
भारत में निवेश के लिए बेहतर क्षेत्रों के बारे में बताते हुए मोबियस ने कहा, टेकनोलिजी हार्डवेयर क्षेत्र में काफी संभावनाएं है. यहां निवेश ‘आगे बढ़ती गति से’, इन्फ्रास्ट्रक्चर, बिल्डिंग मैटेरियल और हेल्थ केयर मॉनिटरिंग में प्रवेश करेगा.
मोबियस ने कहा, संभावना है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां आने का ये सिलसिला लंबे समय तक बना रहेगा, क्योंकि किसी देश में विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के लिए काफी निवेश करना पड़ता है. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि यह तभी संभव है जब निवेश का माहौल अनुकूल बना रहे.
उन्होंने समझाते हुए बताया, ‘एक देश से दूसरे देश की ओर रुख करना आसान नहीं हैं और यह रातों रात नहीं होता हैं. उदाहरण के लिए, अगर होन हाई प्रिसिजन इंडस्ट्री भारत में Apple कंप्यूटर या Apple सेल फोन का निर्माण करने जा रही है, तो उन्हें कुछ बड़े निवेश करने होंगे और उन्हें एक सप्लाई चैन स्थापित करनी होगी. यह करना आसान नहीं होता है.’
मोबियस ने कहा, इसलिए अगर मैन्युफैक्चरर ने भारत में अपना ठिकाना बना लिया तो यह लंबे समय तक यहां बने रहेंगे, बशर्ते कि माहौल इन निर्माताओं के अनुकूल हो यानी बेहतरीन बुनियादी ढांचा और सरकारी नियम उनके अनुकूल हों.’
तेजी से आगे बढ़ती सरकार
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भारत में व्यापार करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए लगातार सुधारों की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है. हालांकि देश की राजनीतिक संरचना की संघीय प्रकृति के कारण यह उतनी प्रगति नहीं कर पा रही है.
मोबियस ने समझाया, ‘सरकार वास्तव में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है. मसलन, लाइसेंस देने के लिए नौकरशाही का तेजी से काम करना और भी बहुत कुछ. लेकिन यह काफी हद तक, भारत के प्रत्येक राज्य पर भी निर्भर करता है. कुछ राज्य सरकारों ने निवेशकों को भारत में आने के लिए लुभाने में बहुत अच्छा काम किया है.’
मोबियस ने कहा कि भारत को एक बड़े नीतिगत नजरिए से देखते हुए विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए, भले ही इसका सर्विस सेक्टर मजबूती से विकसित हो रहा हो.
वह बताते हैं, ‘भारत में सर्विस इंडस्ट्री बहुत बड़ी है. यहां से सॉफ्टवेयर सर्विस का विपणन पूरी दुनिया में किया जाता है और टाटा जैसी कंपनियां हर जगह हैं. यह भारत के लिए पहले से ही एक प्रमुख उद्योग है. अब भारत को मैन्युफैक्चरिंग और हार्डवेयर इंडस्ट्री का विकास करना है और मुझे लगता है कि यह जारी है. हम अभी उस बदलाव को देख रहे हैं.’
सुनक एक दोधारी तलवार
मीडिया और समाज का एक वर्ग यूके के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के भारतीय मूल का होने से खासा उत्साहित है और उसे रेखांकित करने में लगा है. लेकिन मोबियस का मानना है कि यह भारत के लिए एक दोधारी तलवार हो सकती है क्योंकि देश की प्रतिष्ठा उनके प्रदर्शन से जुड़ी है. इसके नुकसान और फायदे दोनों हैं.
मोबियस ने कहा, ‘दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों को न सिर्फ यूके में बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी, खासतौर पर अमेरिका में प्रमुख स्थान लेते हुए देखना अच्छा है. यह भारत के लिए बहुत अच्छी बात है. लेकिन अंत में यह एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है. क्योंकि अगर सुनक अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं या अलोकप्रिय हो जाते हैं, तो यह भारत की छवि के लिए भी ठीक नहीं होगा.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)