नई दिल्ली: केंद्र सरकार अगले वित्तीय वर्ष में विवादास्पद वित्तीय समाधान और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक एक बार फिर पेश कर सकती है, जिसके जरिये व्यवस्थित तौर पर अहम संस्थानों के साथ-साथ कुछ विशेष श्रेणियों में नाकाम वित्तीय संस्थानों को संकट से उबारने के लिए समाधान ढांचा स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.
जानकारी के मुताबिक, वित्त मंत्रालय अभी बिल के एक नए मसौदे पर काम कर रहा है और ‘बेल-इन’ क्लॉज जैसे कुछ प्रावधानों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है. गौरतलब है कि ऐसी आशंकाएं जताते हुए इस पर काफी हो-हल्ला मचा था कि किसी वित्तीय संस्थान के संकट में घिरने की स्थिति में इसे उबारने वाले उपायों की लागत की भरपाई ग्राहकों को अपने दावों में कमी के तौर पर करनी होगी.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘आम सहमति अभी सामने नहीं आई है, लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि 98 फीसदी जमा कानून पूरी तरह सुरक्षित हैं.’
इसके साथ ही बिल में एक समाधान प्राधिकरण की स्थापना का भी प्रावधान होगा, जिसके पास बैंकों, बीमा कंपनियों और व्यवस्थित तौर पर महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों के लिए त्वरित समाधान की शक्तियां होंगी.
अधिकारी ने कहा, ‘बिल को फिर से तैयार करने की जरूरत महसूस की जा रही है क्योंकि अभी बैंकों और अन्य महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों के लिए कोई समाधान ढांचा नहीं है. यदि कोई बैंक दिवालिया हो जाता है, तो नियमित दिवाला प्रक्रिया के तहत इसे संकट से उबारना संभव नहीं हो पाएगा.’
इस बिल को पहली बार 2017 में लोकसभा में पेश किया गया था और फिर एक संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया था, अगस्त 2018 में विपक्षी दलों और सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों और बीमा कंपनियों की यूनियनों के हंगामे के बाद इसे वापस लेना पड़ गया था.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल कहा था कि सरकार ने बिल को फिर से संसद में पेश करने का निर्णय नहीं लिया है.
कानून के तहत बैंक जमाकर्ताओं के लिए पांच लाख रुपये तक के जमा पर बीमा का प्रावधान भी होगा, जिसे पहले ही कानूनी तौर पर मंजूरी हासिल है.
लोकसभा ने संसद के पिछले सत्र में जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (संशोधन) विधेयक, 2021 नाम का एक बिल पारित किया था, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से किसी बैंक पर रोक लगाए जाने के 90 दिनों के भीतर बैंक के खाताधारकों को जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम से अपनी जमा राशि में से पांच लाख रुपये तक मिल जाएं.
यह भी पढ़ें : फूड डिलीवरी, हेयर ड्रेसर, टैक्सी, बैंक, कार सर्विस- सभी को हर समय फीडबैक क्यों चाहिए
सुपरविजन के अधिकारों पर चर्चा
सरकारी अधिकारी के मुताबिक, मसौदा तैयार होने के बीच इस पर भी चर्चा हो रही है कि क्या समाधान प्राधिकरण को सुपरविजन के अधिकार हासिल होंगे और दिवालिया होने के कगार पर खड़े किसी वित्तीय संस्थान के खिलाफ कार्रवाई के लिए उसे आरबीआई के निर्देशों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
2019 में इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (आईएलएफएस) के कंगाल होने के बाद आरबीआई से परामर्श करके सरकार ने एक विशेष फ्रेमवर्क तैयार किया, जिसके तहत 500 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति के आकार वाले सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान समाधान के लिए दिवाला और दिवालिया प्रक्रिया संहिता (आईबीसी) के दायरे में आ गए हैं.
सरकार ने उस समय कहा था कि वित्तीय सेवा प्रदाताओं के लिए आईबीसी की धारा 227 के तहत बनाया गया स्पेशल फ्रेमवर्क बैंकों और अन्य महत्वपूर्ण वित्तीय सेवा प्रदाताओं के लिए किसी पूर्ण वित्तीय समाधान तंत्र की शुरुआत हो पाने तक किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए एक अंतरिम तंत्र के रूप में काम करेगा.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)