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Saturday, 20 April, 2024
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एल्कोहल, डेयरी, ब्रेक्सिट जटिलताएं- विशेषज्ञों ने कहा भारत-यूके FTA के सामने ये हैं चुनौतियां

भारत और UK ने पिछले हफ्ते एक FTA के लिए बातचीत शुरू की, जब व्यापार सचिव एनी-मारी ट्रैवलयान दिल्ली के दौरे पर आईं. लक्ष्य ये है कि 2023 तक इसे अंतिम रूप दे दिया जाए और 2030 तक व्यापार दोगुना हो जाए.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते भारत और युनाइटेड किंग्डम ने अधिकारिक रूप से एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए बातचीत शुरू कर दी और लक्ष्य ये है कि इसे साल के अंत या शुरू 2023 तक इसे अंतिम रूप दे दिया जाए. मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार दोगुना हो जाए.

यूके व्यापार सचिव एनी-मारी ट्रैवलयान ने 13 जनवरी को, नई दिल्ली में बातचीत की शुरूआत पर कहा, ‘हमारा उद्देश्य है कि इस दशक के अंत तक हमारे देशों के बीच व्यापार दोगुना हो जाए और दोनों देशों में रोज़गार, व्यवसाय, और समुदायों को समर्थन मिले’.

उन्होंने कहा, ‘ये यूके के महत्वाकांक्षी एजेण्डा का एक आवश्यक हिस्सा है, जिसमें भारत के साथ हमारी सामरिक और आर्थिक साझेदारी को मज़बूत किया जाएगा, चूंकि वो एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर, अपनी सही जगह को निरंतर मज़बूत करने में लगा है’.

भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बाद में कहा कि एफटीए का उद्देश्य चमड़ा, टेक्सटाइल, ज्यूलरी और परिष्कृत कृषि उत्पाद जैसे श्रमिक प्रधान क्षेत्रों में, भारत के निर्यात को बढ़ावा देना है.

दोनों देशों का ये भी लक्ष्य है कि अगले कुछ महीनों में अर्ली हार्वेस्ट व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाए. ये ऐसे समय पर हो रहा है जब भारत अन्य देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, यूएई, इज़राइल और कनाडा के साथ भी सक्रियता के साथ एफटीए की ओर बढ़ रहा है.

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भारत पहले भी प्रस्तावित भारत-ईयू-एफटीए के तहत यूके के साथ एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा था जब वो यूरोपीय संघ का हिस्सा था. लेकिन जनवरी 2021 में यूके के औपचारिक रूप से संघ से निकल जाने के बाद नई दिल्ली और लंदन ने एक अलग व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू कर दी.

लेकिन, अगर भारत-ईयू बातचीत की धीमी गति कोई संकेत है तो लंदन और नई दिल्ली के बीच एक व्यापक व्यापार समझौते पर बातचीत में भी समय लग सकता है. कुछ चुनौतियां हैं, ख़ासकर एल्कोहल, ऑटोमोबील और डेयरी क्षेत्र में टैरिफ घटाने के मामले में- डेयरी क्षेत्र भारत की ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए बातचीत में भी एक बाधा रहा है.

दिप्रिंट ने विशेषज्ञों से समझना चाहा कि ये मुख्य चुनौतियां क्या हैं और कैसे ब्रेक्सिट बाद का परिदृश्य भारत-यूके एफटीए बातचीत में एक भूमिका अदा कर सकता है.

एल्कोहल और डेयरी क्षेत्र में चुनौतियां

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) में प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने समझाया कि निर्यात विनियमन मुद्दे ही असली कारण हैं कि एल्कोहल और डेयरी क्षेत्र, व्यापार समझौते में एक मसला क्यों बन सकते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘पारस्परिक बाज़ारों तक पहुंच न होने की वजह से भारत का डेयरी उद्योग यूके और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार समझौते में भी एक संवेदनशील क्षेत्र है. यूके ने हमारे डेयरी निर्यात पर पाबंदी लगा दी है क्योंकि उसका कहना है कि हम कुछ नियामक मानकों पर पूरे नहीं उतरते लेकिन हम अभी भी उनके डेयरी आयात को स्वीकार करते हैं’.

मुखर्जी ने भारतीय उद्योग के लिए संयुक्त क्षमता निर्माण कार्यशालाओं का भी सुझाव दिया ताकि मानकों को पूरा किया जा सके और प्रतिबंध हटाने के लिए अंतर सरकारी बातचीत से कुछ लचीलापन तलाश किया जा सके. उन्होंने आगे कहा ‘हम स्किम्ड दूध जैसे निचले स्तर के उत्पादों को बंद रख सकते हैं लेकिन ऊंचे स्तर के चीज़ और ऐसे उत्पादों को आंशिक रूप से खोल सकते हैं जो घरेलू डेयरी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करते’.

शराब उद्योग के मामले में इसी तरह की ग़ैर-टैरिफ बाधाएं हैं.

मुखर्जी ने कहा, ‘कुछ भारतीय व्हिस्की ब्राण्ड यूके की तीन साल की परिपक्वता की मांग पर पूरा नहीं उतरते. शब्दावली को लेकर भी कुछ समस्याएं हैं क्योंकि कुछ भारतीय व्हिस्की ब्रांड जो सिर्फ एक साल के परिपक्व होते हैं या जो शीरे से बनाए जाते हैं उन्हें भी यूके में भारतीय ‘स्पिरिट्स’ कहा जाता है’.

भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) में प्रोफेसर और अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख बिस्वजीत नाग के अनुसार पूर्वकथित क्षेत्रों में भारत ‘संरक्षणवादी’ हो सकता है लेकिन अन्य क्षेत्रों में वो ‘आक्रामक’ है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘कुछ क्षेत्रों में हम संरक्षणवादी हो सकते हैं लेकिन हाई-टेक उत्पादों और परिशुद्धता उपकरणों जैसे दूसरे क्षेत्रों में हम आक्रामक हैं. महामारी के दौरान एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के विकास में हमने भारत और यूके के बीच ज़बर्दस्त सहयोग देखा. इस इस तरह की चीज़ें दोनों ओर फार्मा और बायोटेक्नॉलजी क्षेत्रों को एक नया आयाम देती हैं’.

ब्रेक्सिट बाद का परिदृश्य

1 जनवरी 2021 को यूके ने आधिकारिक रूप से यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्लॉक की एकल बाज़ार सदस्यता को भी छोड़ दिया. ये दलील दी गई है कि ब्रेक्सिट के कारण यूके की कंपनियों को राष्ट्रीय लाइसेंसिंग व्यवस्थाओं से गुज़रना होगा और अन्य बाधाओं के अलावा सीमा पार के व्यापार पर बंदिशों का सामना करना होगा जबकि इसके विपरीत ईयू कंपनियों को बाज़ार तक पहुंचने के अधिकार होंगे.

नाग ने कहा, ‘ब्रेक्सिट बाद के दौर में यूके को यूरोपीय बाज़ारों में परेशानियों का सामना करना होगा और इसलिए वो भारत जैसे बड़े बाज़ारों में अपनी पहुंच को बेहतर करने की कोशिश करेगा जिसके साथ गहरे सहयोग की संभावनाएं भी होंगी’. उन्होंने ये भी कहा कि यूके उन चुनिंदा देशों में से है जिनके साथ भारत एक ट्रेड सरप्लस साझा करता है.

भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में यूके के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस 3.2 बिलियन डॉलर था.

दूसरी ओर, ब्रेक्सिट के बावजूद यूके और ईयू के बीच क्रॉस-कंट्री आपूर्ति श्रृंखला का मौजूद होना, कुछ अनोखी चुनौतियां पेश कर सकता है.

मुखर्जी ने कहा, ‘यूके से ऑटोमोबील्स के आयात में उत्पत्ति को नियमों को लेकर समस्या है. ब्रेक्सिट को छोड़ दें तो भी ब्रिटिश वाहन निर्माता अभी भी यूरोप से पुर्ज़े मंगाते हैं. इसलिए भारत की ओर से एक चिंता है कि असली आपूर्ति श्रंखला किस तरह की दिखती है’.


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UK में भारतीय प्रोफेशनल्स और कंपनियों के लिए अवसर

अनुमानों के मुताबिक़, यूके में 800 से अधिक भारतीय कंपनियां हैं जिनकी कुल आय 4.1 लाख करोड़ रुपए (41 बिलियन ब्रिटिश पाउंड्स) है और जो क़रीब 1.1 लाख लोगों को रोज़गार देती हैं.

भारतीय उद्योग की ओर से लंबे समय से एक अनुरोध रहा है कि यूके में अस्थायी वीज़ा पर रह रहे कुशल भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए एक सामाजिक सुरक्षा समझौता होना चाहिए, जो उन्हें सोशल सिक्योरिटी योगदान से मुक्त कर देगा.

फिलहाल, अस्थायी भारतीय वर्कर्स के पास एक सीमित छूट है भले ही उनके यूके में इतने समय काम करने की संभावना न हो कि उन्हें कोई पेंशन मिल सके. अनुमान लगाया गया है कि ऐसे योगदान हर एक कर्मचारी पर प्रति वर्ष क़रीब 50,860 रुपए (500 पाउंड्स) की अतिरिक्त लागत का बोझ बढ़ा देते हैं.

पिछले सितंबर में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और यूके चांसलर ऋषि सुनाक के बीच 11वीं वर्चुअल भारत-यूके आर्थिक व वित्तीय वार्त्ता (ईएफडी) में दोनों देशों ने एक सामाजिक सुरक्षा समझौते पर दस्तख़त करने की दिशा में एक साझा डायलॉग के प्रति प्रतिबद्धता जताई.

मुखर्जी ने कहा, ‘यूके में भारतीय आईटी उद्योग भी यूके सरकार के ख़रीद बाज़ार तक पहुंचना चाहता है. हालांकि ये मुद्दा एफटीए बातचीत के दायरे से बाहर रहा है लेकिन दोनों ओर सरकारी ख़रीद से जुड़े अवरोधों पर भी बातचीत में चर्चा हो सकती है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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