मुंबई, 25 अगस्त (भाषा) कृत्रिम मेधा (एआई) को अपनाने से देश के बैंक क्षेत्र में कामकाज का तरीका बदलेगा और आधी भूमिकाओं का ‘नया स्वरूप’ सामने आ सकता है। नौकरियों पर कृत्रिम मेधा के प्रभाव को लेकर चिंताओं के बीच, एक परामर्श कंपनी ने सोमवार को यह कहा।
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) ने कहा कि पिछले एक दशक में बैंकों के सूचना प्रौद्योगिकी खर्च में लगभग पांच गुना वृद्धि के बावजूद, उत्पादकता में वृद्धि सीमित है।
कंपनी ने भारतीय बैंकों के लिए वास्तविक उत्पादकता वृद्धि केवल एक प्रतिशत आंकी है। उसने यह भी कहा कि देश के बैंक अपने वैश्विक समकक्षों से पीछे हैं।
बीसीजी ने कहा कि एआई अपनाने से बैंकों को सीमित उत्पादकता लाभ से उत्पन्न चुनौती से उबरने में मदद मिल सकती है और कई बैंक पहले से ही ऐसी प्रौद्योगिकी को अपना रहे हैं।
कंपनी के वरिष्ठ भागीदार रुचिन गोयल ने फिक्की और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा आयोजित सालाना कार्यक्रम फिबैक में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अगर बैंक इन नई प्रौद्योगिकियों को साहसिक रूप से अपनाने में सक्षम होते हैं, तो लगभग 35-50 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप बदल सकता है। वैसे यदि बैंकों को पिछले कुछ वर्षों से चल रही लागत संरचनाओं से बाहर निकलना है तो यह पूर्व शर्त हो सकती है।’’
कृत्रिम मेधा को अपनाने से अर्थव्यवस्था में संगठित क्षेत्र की नौकरियों के लिए चुनौतियां खड़ी हो रही हैं और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे कुछ क्षेत्रों में हाल ही में छंटनी के मामले भी सामने आए हैं। बैंकों के मामले में भी, शुद्ध रूप से कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या समग्र कर्मचारी आधार में कमी आई है, क्योंकि कई बैंक प्रौद्योगिकी के आने से मौजूदा भूमिकाओं के लिए नए कर्मचारियों को नियुक्त करना पसंद नहीं कर रहे हैं।
गोयल ने कहा कि भारतीय बैंकों का प्रौद्योगिकी पर खर्च आगे भी बढ़ता रहेगा। इसका कारण इस मद में खर्च बढ़ने के बावजूद वैश्विक स्तर पर काम कर रहे हैं बैंकों के मुकाबले यह व्यय कम है।
आईटी लागत में 17.4 प्रतिशत की संचयी सालाना वृद्धि दर के साथ यह वित्त वर्ष 2024-25 तक के दशक में परिचालन व्यय में उछाल के मामले में सबसे आगे है। इसके बाद गैर-कर्मचारी परिचालन व्यय 13.2 प्रतिशत और सामान्य परिचालन व्यय 11.7 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में भारत के लिए अन्य चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है। इसमें 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक बैंक ऋण में वृद्धि शामिल है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘विकसित भारत मिशन को गति देने के लिए बैंक परिसंपत्तियों की वृद्धि दर में बाजार मूल्य पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर से 3.0 से 3.5 प्रतिशत अधिक की वृद्धि जरूरी है।’’
उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2024-25 में ऋण वृद्धि दर घटकर 12 प्रतिशत रह गई, जबकि बाजार मूल्य पर जीडीपी में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
परामर्श कंपनी ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि खुदरा ऋण श्रेणी में कर्ज लेने वाले नए ग्राहकों की हिस्सेदारी में गिरावट जारी है।
गोयल ने आगाह किया कि 100 करोड़ से अधिक भारतीय वयस्कों में से केवल एक-तिहाई के मामले में ही क्रेडिट सूचना कंपनियों के पास रिकॉर्ड हैं और यदि यह वृद्धि केवल दो-तीन प्रतिशत ही रही, तो इसमें बहुत लंबा समय लगेगा।
भाषा रमण अजय
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