scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमBud Expectationघट रहा ड्रॉपआउट रेट, जेंडर गैप हो रहा कमः शिक्षा के बारे में क्या कहता है आर्थिक सर्वेक्षण

घट रहा ड्रॉपआउट रेट, जेंडर गैप हो रहा कमः शिक्षा के बारे में क्या कहता है आर्थिक सर्वेक्षण

प्री-प्राइमरी को छोड़कर सभी स्तरों पर स्कूलों में एनरोलमेंट में सुधार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में देश के 40% स्कूलों में इंटरनेट और 89.3% स्कूलों में बिजली थी.

Text Size:

नई दिल्ली: स्कूल स्तर पर छात्रों के नामांकन में लैंगिक समानता में 2022 में सुधार हुआ है, मंगलवार को जारी नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान ड्रॉपआउट दर में भी गिरावट आई है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2021-22 वित्तीय वर्ष में सभी स्तरों के स्कूलों में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में सुधार देखा गया है. जीईआर स्कूली शिक्षा के एक विशेष स्तर पर कुल नामांकन को कहते हैं, जिसे उस आयु वर्ग में स्कूल जाने वालों की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है.

सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘पूर्व-प्राथमिक स्तर को छोड़कर सभी स्तरों – प्राथमिक (कक्षा 1-5), उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8), माध्यमिक (कक्षा 9-10), और उच्चतर माध्यमिक (कक्षा 11-12) में एनरोलमेंट में वृद्धि हुई है. “पूर्व-प्राथमिक स्तर पर, नामांकन 2021 में 1.1 करोड़ से घटकर 2022 में 1.0 करोड़ हो गया. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक में 2.9 करोड़ है.“

रिपोर्ट के अनुसार, “लड़कियों और लड़कों के लिए – 6 से 10 वर्ष की आयु में जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में कक्षा 1 से 5 में प्राथमिक नामांकन में जीईआर में 2022 में सुधार हुआ है. इस सुधार ने 2017 और 2019 के बीच गिरावट के रुझान को उलट दिया है.

रिपोर्ट बताती है कि उच्च प्राथमिक और प्राथमिक स्तर पर लड़कियों का जीईआर लड़कों की तुलना में बेहतर है. प्राथमिक स्तर पर, 2021-22 में 105 प्रतिशत लड़कियों और 102.1 प्रतिशत लड़कों का नामांकन हुआ, 2019-20 से थोड़ा सुधार हुआ जब 104 प्रतिशत लड़कियों और 102 प्रतिशत लड़कों का नामांकन हुआ था. 100 प्रतिशत से अधिक जीईआर शिक्षा के एक विशेष स्तर में अधिक या कम उम्र के बच्चों की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व कर सकता है. इस बीच, उच्च प्राथमिक स्तर पर भी इसी तरह के सुधार के रुझान देखे गए हैं. 2021-22 में, 94.5 प्रतिशत लड़कों के मुकाबले 94.9 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन हुआ. 2019-20 में लड़कियों और लड़कों के लिए यह क्रमशः 90.5 प्रतिशत और 88.9 प्रतिशत था.


यह भी पढ़ेंः भारतीय कंपनियों को चाहिए ग्रीन-स्किल्ड प्रोफेशनल्स, लेकिन शिक्षा व्यवस्था अभी भी इसके लिए तैयार नहीं


ड्रॉपआउट दर घट रही है

सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्कूल छोड़ने की दर में भी सभी स्तरों पर गिरावट आई है. ड्रॉपआउट रेट एक वर्ष में किसी विशेष स्कूल स्तर पर नामांकित छात्रों का प्रतिशत है, लेकिन अगले वर्ष किसी भी ग्रेड में नामांकित नहीं है.

सर्वेक्षण में कहा गया है, “हाल के वर्षों में सभी स्तरों पर ड्रॉपआउट दरों में लगातार गिरावट देखी गई है. गिरावट लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए है. समग्र शिक्षा, आरटीई अधिनियम, स्कूल के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार, आवासीय छात्रावास भवन, शिक्षकों की उपलब्धता, शिक्षकों का नियमित प्रशिक्षण, मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय और पीएम पोषण योजना जैसी योजनाएं स्कूलों में बच्चों के नामांकन और उनके बने रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.”

2013-14 में प्राथमिक स्तर पर 4.7 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक स्तर पर 3.1 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर पर 14.5 प्रतिशत बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी. 2021-22 में, प्राथमिक स्तर पर संख्या घटकर 1.5 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक स्तर पर 3 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर पर 12.6 प्रतिशत हो गई है.

यह खोज हाल ही में जारी एएसईआर सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुरूप है, जिसे गैर-लाभकारी संगठन प्रथम द्वारा जारी किया गया था. सर्वेक्षण में पाया गया कि कोविड-19 के कारण अधिक छात्र स्कूल छोड़ने वाले नहीं हैं.

शिक्षा का बुनियादी ढांचा

स्कूल स्तर पर शिक्षा के बुनियादी ढांचे के बारे में बात करते हुए, रिपोर्ट से पता चलता है कि शौचालय, बिजली, कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाओं में वर्षों से सुधार जारी है. 2021-22 में देश के 40 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट, 47.5 फीसदी के पास कंप्यूटर और 89.3 फीसदी के पास बिजली थी. 2012-13 में, केवल 6.2 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा थी, उनमें से 22.2 प्रतिशत के पास कंप्यूटर और 55 प्रतिशत के पास बिजली थी.

जब उच्च शिक्षा स्तर पर बुनियादी ढांचे की बात आती है, तो सर्वेक्षण कहता है कि बुनियादी ढांचे को “समय के साथ बढ़ाया गया है.” देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 2014 में 387 से बढ़कर 2022 में 648 हो गई है और इसी अवधि के दौरान एमबीबीएस सीटों की संख्या 51,348 से बढ़कर 96,077 हो गई है.

जब इंजीनियरिंग और प्रबंधन शिक्षा की बात आती है, तो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की संख्या 2014 में 16 और 13 के मुकाबले 2022 में बढ़कर क्रमशः 23 और 20 हो गई है. भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या (IIIT) 2014 में नौ के मुकाबले 2022 में बढ़कर 25 हो गई. सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में, देश में 723 विश्वविद्यालय थे, जिन्हें बढ़ाकर 1,113 कर दिया गया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः उच्च शिक्षा में ST छात्रों का नामांकन लगभग 50% बढ़ा, SC और OBC के भी बढ़ रहे आंकड़े: शिक्षा मंत्रालय


 

share & View comments