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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशयोग, ध्यान, टीचर और नेता; देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने का ऐसा रहा द्रौपदी मुर्मू का सफर

योग, ध्यान, टीचर और नेता; देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने का ऐसा रहा द्रौपदी मुर्मू का सफर

अपने बड़े बेटे 25 वर्षीय लक्ष्मण की मौत के बाद मुर्मू बिल्कुल टूट गई थीं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 'अपने बेटे के निधन के बाद, मैं पूरी तरह टूट गई थी. मैं दो महीने तक तनाव में थी. मैंने लोगों से मिलना बंद कर दिया था और घर पर ही रहती थी.

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नई दिल्लीः द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है. इसी के साथ वह देश की दूसरी महिला व पहली आदिवासी राष्ट्रपति भी बन गई हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि द्रौपदी मुर्मू का नाम बचपन में यह नहीं था बल्कि उनका ‘पुती’ था. उनका यह नाम उन्हीं स्कूल के एक शिक्षक ने रखा था जो कि उनके पैतृक जिले मयूरभंज के नहीं थे. राष्ट्रपति ने बताया कि चूंकि शिक्षक को उनका नाम पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने उनका नाम बदलकर द्रौपदी रख दिया. यही नहीं उन्होंन यह भी कहा कि द्रौपदी नाम होने के क्रम में उनका नाम ‘दुरपदी’ और ‘दोर्पदी’ भी था.

विवाह के पहले टुडु था सरनेम

विवाह पूर्व उनका सरनेम मुर्मू के बजाय टुडु था. लेकिन श्याम चरण मुर्मू से विवाह के बाद उन्होंने अपना सरनेम बदलकर मुर्मू कर लिया.

मुर्मू ने बताया कि संथाली संस्कृति में नाम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर एक लड़की का जन्म होता है, तो उसे उसकी दादी का नाम दिया जाता है और लड़का जन्म लेता है तो उसका नाम दादा के नाम पर रखा जाता है.’

महिला आरक्षण की रही हैं हिमायती

द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई.

देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित होने से बहुत पहले मुर्मू ने राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण पर अपने विचार स्पष्ट किए थे.

उन्होंने कहा था, ‘पुरुष वर्चस्व वाली राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए. राजनीतिक दल इस स्थिति को बदल सकते हैं क्योंकि वहीं हैं जो उम्मीदवार चुनते हैं और चुनाव लड़ने के लिए टिकट बांटते हैं.’


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बड़े बेटे की मौत के बाद टूट गई थीं मुर्मू

अपने बड़े बेटे 25 वर्षीय लक्ष्मण की मौत के बाद मुर्मू बिल्कुल टूट गई थीं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘अपने बेटे के निधन के बाद, मैं पूरी तरह टूट गई थी. मैं दो महीने तक तनाव में थी. मैंने लोगों से मिलना बंद कर दिया था और घर पर ही रहती थी. बाद में मैं ईश्वरीय प्रजापति ब्रह्मकुमारी का हिस्सा बनी और योगाभ्यास और ध्यान किया.’ मुर्मू ने न सिर्फ अपने बड़े बेटे को ही खोया बल्कि छोटे बेटे सिपुन की भी साल 2013 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई. बाद में उनके भाई और मां का भी निधन हो गया.

मुर्मू ने कहा, ‘मेरी जिंदगी में सुनामी आ गयी थी. छह महीने के भीतर मेरे परिवार के तीन सदस्यों का निधन हो गया था. मुर्मू के पति श्याम चरण का निधन 2014 में हो गया था. उन्होंने कहा, ‘एक समय था, जब मुझे लगा था कि कभी भी मेरी जान जा सकती है…’

रोज़ाना सुबह तीन बजे सोकर उठती हैं

राष्ट्रपति मुर्मू काफी अनुशासित जिंदगी जीती हैं. वे रोजाना सुबह 3 बजे सोकर उठती हैं. और इसके बाद ध्यान और योग करती हैं. और रात में 9 बजे तक सो जाती हैं. वो ब्रह्मकुमारी की ट्रान्सलाईट रखती है और एक छोटी सी ज्ञान की पुस्तक भी अपने साथ रखती हैं.

क्लर्क के तौर पर शुरू किया था करियर

द्रौपदी मुर्मू ने अपना करियर एक टीचर के तौर पर शुरू किया था. राजनीति के शुरुआती दौर में वह बीजेपी की मयूरभंज की जिलाध्यक्ष भी रहीं. इसके बाद बीजेपी के टिकट पर ही ओडिशा में दो बार विधायक रहीं और जब राज्य में बीजेडी और भाजपा की गठबंधन सरकार बनीं तो वह कैबिनेट मंत्री बनीं.

5 लाख रुपये की मिलती है सैलरी

राष्ट्रपति को 5 लाख रुपये की सैलरी मिलती के साथ-साथ अन्य खर्च भी मिलता है. रिटायरमेंट के बाद राष्ट्रपति को डेढ़ लाख रुपये की पेंशन मिलती है. इसके अलावा उन्हें फ्री घर और मेडिकल खर्च के साथ साथ उन्हें एक लाख रुपये वार्षिक खर्च भी मिलता है. साथ ही देश-दुनिया में कहीं भी घूमने के लिए पूरा किराया दिया जाता है. रिटायरमेंट के बाद राष्ट्रपति को एक बिना किराए मकान, दो लैंडलाइन और एक मोबाइल फोन दिया जाता है. इसके अलावा वह एक सहायक के साथ फ्लाइट या ट्रेन का किराया भी दिया जाता है.


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