नई दिल्ली: मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के मुर्दाघर, जो एलएनजेपी अस्पताल के क्षेत्र में आता है, के बाहर खड़े कलामुद्दीन रहीम बुरी तरह रोते रहे, जब तक उनकी सांस नहीं फूलने लगी.
उन्हें अभी पता चला था कि पिछले दिन जो शव उन्होंने दफ्न किया था, वो उनके पिता मोईनुद्दीन का नहीं, बल्कि मोईनुद्दीन नाम के एक और शख्स का था, जो एक बिल्कुल अलग परिवार से था.
सिसकियां लेते हुए कलामुद्दीन ने दिप्रिंट को बताया, ‘चेहरा सूजा हुआ था और उस पर ख़ून के धब्बे थे. जब मैंने डॉक्टर्स से पूछा तो उन्होंने कहा, कि ऐसा इसलिए था क्योंकि उनका डायलेसिस हुआ था. हमने बॉडी को जल्दी से ले लिया, क्योंकि वो कोविड-19 के मरीज़ थे.’
कलामुद्दीन के पिता मोईनुद्दीन 65 वर्ष के थे और सांस में शिकायत के बाद, उन्हें 2 जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कलामुद्दीन को अस्पताल की तरफ से खबर दी गई, कि उनके पिता की मौत हो गई है और वो शनिवार 6 जून तक आकर, शव की शिनाख़्त कर लें.
कलामुद्दीन ने बताया, ‘मैं बॉडी को फौरन नहीं पहचान पाया, क्योंकि चेहरा क्लीन शेव किया हुआ और सूजा हुआ था, लेकिन डेथ सर्टिफिकेट पर नाम वही था, इसलिए हमने उन्हें ले जाकर दफ्न कर दिया.’
लेकिन उन्हें धक्का तब लगा, जब अस्पताल ने रविवार को, उन्हें एक दूसरे शव की शिनाख़्त के लिए वापस बुलाया. कलामुद्दीन ने रोते हुए कहा, ‘जो शव मैंने आज देखा उसका चेहरा बिना किसी शक के, मेरे पिता का है.’
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दूसरा मोईनुद्दीन
दूसरे मोईनुद्दीन का परिवार रविवार सुबह 9 बजे मौलाना आज़ाद मुर्दाघर पहुंच गया, चूंकि पिछली शाम उन्हें अस्पताल से सूचित किया गया था कि वो उसकी बॉडी ले सकते हैं. ये मोईनुद्दीन 50 वर्ष का था, और उसके भाईयों ने शनिवार शाम से, जदीद कब्रिस्तान में उसके दफ्न की तैयारी शुरू कर दी थी.
मोईनुद्दीन को हाई ब्लड प्रेशर के चलते, 4 जून को अस्पताल में भर्ती किया गया था और उसी दिन उसकी मौत हो गई. अस्पताल ने कोविड-19 टेस्ट किया था, और परिवार को सूचित किया था कि टेस्ट रिपोर्ट आने तक उन्हें बॉडी नहीं दी जाएगी.
इस मोईनुद्दीन के भाई एजाज़ुद्दीन ने बताया, ‘हम यहां उसका ईसीजी कराने आए थे, और उन्होंने कोविड-19 टेस्ट भी कर लिया था. कल शाम को रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया, इसलिए उन्होंने हमें बॉडी लेने के लिए बुलाया. लेकिन वो बॉडी हमारी नहीं थी. जब हमने अस्पताल को बताया, तो उन्होंने हमसे कहा कि हमारी बॉडी पहले ही ली जा चुकी है.’
‘हमने किसी तरह दूसरी फैमिली से सम्पर्क किया और उनसे उस बॉडी की तस्वीर मांगी जो उन्होंने कल दफनाई थी.’
कलामुद्दीन की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘इन्होंने जदीद कब्रिस्तान में उन्हें उस वक़्त दफ्न किया, जब हम वहां थे, और उसकी बॉडी लाने की तैयारी कर रहे थे.’
एजाज़ुद्दीन ने आगे कहा, ‘जब हमने तस्वीर देखी, तो समझ गए कि वो बॉडी हमारी थी. अब वो हमसे कह रहे हैं कि दूसरे परिवार के साथ समझौता कर लें. क्या इसमें अस्पताल की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?’
अस्पताल ने पहले परिवार को ज़िम्मेदार ठहराया
मुर्दाघर की ऑफिसर इंचार्ज डॉ अमनदीप कौर ने कहा, कि ये गड़बड़ी इसलिए हुई कि परिवार ने, गलत बॉडी की शिनाख़्त कर ली.
उन्होंने बताया, ‘उन्हें मेन अस्पताल से किसी ने कॉल किया था. पहचान नम्बर, नाम, और बॉडी की दूसरी डिटेल्स हमने सही-सही लिखी थीं. जब परिवार आया, तो उन्होंने बॉडी की गलत शिनाख़्त कर ली और उसे ले जाकर दफ्ना दिया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने बॉडी कल क्लेम की थी, इसलिए हमने उन्हें उसे ले जाने दिया.’
परिवारों ने स्वीकार किया
कोई दूसरा रास्ता न देख, दोनों मोईनुद्दीन के परिवारों ने आपस में समझौता कर लिया और कलामुद्दीन ने रविवार दोपहर अपने असली पिता को दफ्ना दिया.
आईटीओ के जदीद कब्रिस्तान में दोनों मोईनुद्दीन की कब्रें, एक दूसरे के बगल में हैं.
इधर कलामुद्दीन अपने पिता का शव कब्र में उतार रहे थे, उधर एजाज़ुद्दीन अपने भाई की कब्र पर एक छोटा सा पौधा रख रहे थे.
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कलामुद्दीन ने हाथ जोड़कर एजाज़ुद्दीन से माफ़ी मांगी, जिन्होंने उनसे कहा, ‘ये एक गलती थी. फिक्र मत करो भाई.’
ये गड़बड़ दिल्ली में बढ़ते कोविड-19 संकट, उसके स्वास्थ्य ढांचे पर दबाव का एक ताज़ा संकेत है. 6 जून तक दिल्ली में कुल मामले 27,654 और कुल मौतें 761 पर पहुंच गई हैं.
निजी अस्पतालों को आदेश दिया गया है कि अपने यहां 20 प्रतिशत बेड कोविड-19 मरीज़ों के लिए आरक्षित करें. मरीज़ों को बेड्स लेने में हो रही परेशानी की खबरों के बीच, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को ऐलान किया कि अस्पताल किसी संदिग्ध मरीज़ को वापस नहीं लौटा सकते.
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