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Wednesday, 27 March, 2024
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तेलंगाना के ईंट भट्ठों पर कभी न लौटने की उड़िया मज़दूरों ने खाई कसम, मालिकों को सता रही है चिंता

मज़दूरों का आरोप है कि राज्य सरकार और मालिकों ने, घर लौटने या लॉकडाउन से निपटने में उनकी कोई मदद नहीं की, भट्ठा मालिकों का कहना है कि वो खुद लाचार थे.

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रंगारेड्डी ज़िला (तेलंगाना): तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद धीरे-धीरे लॉकडाउन से बाहर आ रही है. लेकिन जब आप ग्रामीण इलाके में दाख़िल होते हैं, तो रंगारेड्डी ज़िले में, जिसे पहले हैदराबाद देहात कहा जाता था, किसी समय फलते-फूलते ईंट भट्ठों पर, कोविड-19 लॉकडाउन का असर साफ देखा जा सकता है.

ज़्यादातर ईंट भट्ठे सुनसान पड़े हैं, सिवाय कुछ मज़दूर परिवारों के, जो वहां रह रहे हैं. बहुत से मज़दूर, जो ओडिशा से हैं, पहले ही अपने घरों को लौट चुके हैं, या हाईवेज़ पर फंसे हुए हैं. लेकिन जो यहां रुक गए, उनका कहना है कि वो जल्दी से जल्दी, अपने गांवों को लौट जाना चाहते हैं और वो कभी तेलंगाना वापस नहीं आना चाहेंगे.

ओडिशा के मज़दूर तेलंगाना के ईंट भट्ठा उद्योग की रीढ़ हैं और यहां के कुल श्रम बल का करीब 85-90 प्रतिशत हैं. दिप्रिंट से बात करने वाले बहुत से भट्ठा मालिकों का मानना है कि अगर वो वापस नहीं आए, तो उद्योग को नुकसान पहुंच सकता है.

लेकिन मज़दूरों का आरोप है कि लॉकडाउन के दौरान आवश्यक चीज़ें मुहैया कराने में, भट्ठा मालिक और राज्य सरकार दोनों ने उनके साथ उदासीनता का बर्ताव किया. उनकी दुर्दशा का संज्ञान तेलंगाना हाईकोर्ट ने लिया, जिसने राज्य सरकार को ये पता लगाने का निर्देश दिया कि कितने मज़दूर अभी भी फंसे हुए हैं और कितने घर लौटना चाहते हैं. साथ ही कोर्ट ने सरकार को उनके ट्रांसपोर्ट और भोजन के बंदोबस्त का भी आदेश दिया. मामले की अगली सुनवाई 9 जून को होगी.

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तेलंगाना के संयुक्त श्रम आयुक्त एल चतुर्वेदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हाईकोर्ट के आदेशों के हिसाब से, हमने अपने उप-आयुक्तों को काम पर लगा दिया है, और मज़दूरों को अपने सरकारी शेल्टर्स में शिफ्ट करने का भी बंदोबस्त किया है, जहां उन्हें पर्याप्त भोजन, और उनकी ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मुहैया कराई जाएंगी.’

तेलंगाना के ईंट भट्ठा निर्माता संघ के अध्यक्ष राजेंद्र रेड्डी के अनुसार, साल 2018 में तेलंगाना के ईंट भट्ठा उद्योग का अनुमानित कारोबार 150 करोड़ रुपए था, जो 2019 में घटकर 125 करोड़ रह गया. लेकिन इस वर्ष, इसका कारोबार 50 करोड़ से भी कम रहने का अनुमान है.

उद्योग व इसके मज़दूरों की दशा

ईंट भट्ठे पूरे तेलंगाना में रंगारेड्डी, संगारेड्डी, मेड़चल, करीम नगर, वारंगल, नालगौण्डा, निज़ामाबाद और यदाद्री भुवनगिरी में फैले हैं.

तेलंगाना के श्रम विभाग से हासिल किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 1,091 ईंट भट्ठा इकाईयां हैं, जिनमें 55,145 मज़दूर काम करते हैं. लेकिन राजेंद्र रेड्डी का कहना है कि अकेले उनकी एसोसिएशन में 2,000 से अधिक भट्ठा मालिक सदस्य हैं.


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उन्होंने कहा, ‘सरकार ने केवल बड़े ईंट भट्ठों को पंजीकृत किया है, जिनके पास ज़्यादा जगह है और जो शहर के करीब हैं. लेकिन उसने दूर के इलाकों में स्थित, बहुत सी छोटी इकाइयों को छोड़ दिया है, जो गांवों में मंदिरों के पास हैं. तेलंगाना में ईंट भट्ठे हर जगह पाए जाते हैं.’

मानवाधिकार मंच के ए कृष्णा जैसे कार्यकर्ताओं का कहना है, कि इन ईंट भट्ठों पर लॉकडाउन से प्रभावित हुए मज़दूरों की कुल संख्या, 1.3 लाख तक हो सकती है.

कृष्णा ने कहा, ‘कोई सोच भी नहीं सकता कि कितना नुकसान हुआ है.’

ईट्ट भट्ठों पर काम करने वाले श्रमिकों की एक भारी संख्या, ओडिशा के सूखा-प्रभावित ज़िलों- नुआपाड़ा और कालाहाण्डी से आती है. वो नवम्बर से जनवरी के बीच आते हैं और मई के मध्य तक, बारिश में होने वाली फसलें बोने के लिए, अपने गांव लौट जाते हैं.

तेलंगाना सरकार ने 22 मार्च को अचानक लॉकडाउन घोषित कर दिया, नेशनल लॉकडाउन शुरू होने से तीन दिन पहले. इसके बाद लॉकडाउन को चार चरणों में बढ़ाया गया, जिसकी वजह से ये मज़दूर फंसे रह गए.

कभी वापस नहीं आएंगे, भूखे मर जाना बेहतर

रंगारेड्डी ज़िले के कोंगारा कलां गांव के पास एक ईंट भट्ठे पर, नीरन जाल अपनी काम चलाऊ झोंपड़ी से निकला, जो मुश्किल से पांच फीट लम्बी और तीन फीट चौड़ी थी, और एक काली शीट से ढकी थी. उसने कहा कि वो मई के पहले हफ्ते में ही निकल जाता, लेकिन वो अपने भट्ठा मालिक ‘सेठ जी’ की ओर से, ट्रांसपोर्ट का प्रबंध करने का इंतज़ार कर रहा था.

Brick kiln worker Neeran Jaal from Odisha is living with his family in a shack near Kongara Kalan village, Rangareddy district | Photo: Suraj Singh Bisht | ThePrint
रंगारेड्डी जिले के कोंगरा कलां गांव में अपने परिवार के साथ रहता ओडिशा का रहने वाला ईंट भट्ठा मजदूर नीरन जाल | फोटो : सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

हाल ही में हुईं मॉनसून से पहले की बारिशों ने, उन भट्ठों को तबाह कर दिया जो तैयार थे, और उसका आरोप है कि श्रमिकों को उनकी मज़दूरी नहीं मिलेगी.

नीरन इस साल जनवरी में नुआपाड़ा ज़िले से, चार दूसरे परिवारों के साथ यहां आया था, और यहां रहने के 6 महीनों के दौरान, उन्हें 30,000 रुपए प्रति व्यक्ति देने का वादा किया गया था. इससे एक परिवार के 60,000 रुपए हो जाते हैं, चूंकि उनकी पत्नियां भी भट्ठों पर काम करती हैं. मज़दूरों का कहना है कि उन्हें मार्च तक का पैसा मिला है, लेकिन उसके बाद से सिर्फ उदासीनता और बदसलूकी ही हाथ आई है.

झोंपड़ी के बाहर एक पत्थर पर बैठे हुए, नीरन ने बताया कि उनमें से किसी को कोई राशन (12 किलोग्राम चावल/गेहूं) नहीं मिला, जिसका मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने लॉकडाउन के दौरान वादा किया था. उसने आरोप लगाया कि जब भी वो चुपके से, ज़रूरी चीज़ें ख़रीदने पास के बाज़ार तक जाने की कोशिश करते थे, पुलिस डंडे लेकर उनके पीछे दौड़ पड़ती थी.

नीरन ने कहा, ‘मैं कभी वापस नहीं आउंगा.’ ईंट भट्ठे पर मौजूद कई दूसरे लोगों ने भी इसी भाव को दोहराया.

जब दिप्रिंट ने हैदराबाद की चीफ राशन ऑफिसर बाला माया देवी से, इस आरोप के बारे में पूछा, कि राशन मुहैया नहीं कराया जा रहा है, तो उन्होंने कहा, ‘हमारी रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों के पास फूड सिक्योरिटी कार्ड थे, उन सबको राशन दिया गया.’

नुआपाड़ा की ही एक 50 वर्षीय महिला, जुदेशी ने कहा कि अपनी दो बेटियों की वजह से, वो अपने गांव जाने के इंतज़ार में है. उसने भी कहा कि वो कभी वापस नहीं आएगी.


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ईंटें ढोने से कंधे पर पड़े निशान दिखाते हुए, उसने ग़ुस्से में कहा, ‘यहां के उलट, कम से कम अपनी सरकार से, हम कुछ बुनियादी चीज़ें मांग सकते हैं. यहां तो उन्हें हमारी परवाह ही नहीं है.’

दो किलोमीटर दूर एक दूसरे भट्ठे पर, दिप्रिंट ने देखा कि अपनी कामचलाऊ झोंपड़ियों में, मज़दूर अपना सामान पैक कर रहे थे.

उनमें से एक मज़दूर रेनू धर्मा ने कहा, ‘मैं कभी वापस नहीं आना चाहूंगा. इससे अच्छा होगा कि भूखे मर जाएं, या अपने गांव में थोड़ा बहुत पैसा कमा लें.’ साल के बाकी समय रेनू ओडिशा में कुली का काम करता है.

मिट्टी के बर्तनों से खेलती अपनी 3 साल की बेटी को देखते हुए रेनू ने कहा, ‘कुली के तौर पर, मैं दिन भर में मुश्किल से 100 रुपए कमा पाता था, कभी-कभी तो वो भी नहीं. लेकिन यहां कभी-कभी रोज़ाना के 250-300 रुपए बन जाते थे.’

उसने बताया, ‘मालिक के लोग हमें तीन बार स्टेशन ले गए, लेकिन फिर वापस झोंपड़ियों में ले आए. हमें कुछ नहीं पता कि क्या चल रहा है. आज दोपहर भी उन्होंने कहा कि हमें ट्रेन से ओडिशा ले जाया जाएगा, लेकिन अगर वो नहीं ले जाते, तो हमें फिर लौटना पड़ेगा.’

बहुत से मज़दूर सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर भी बैठे थे और उनमें से भी बहुत से भट्ठा मज़दूर थे, जिनकी यही कहानी थी.

A large chunk of the migrant workers waiting for trains outside Secunderabad railway station are brick kiln workers from Odisha | Photo: Suraj Singh Bisht | ThePrint
सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के बाहर ट्रेन का इंतजार करते ओडिशा के रहने वाले ईंट भट्ठा मजदूर | फोटो : सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

उनमें से एक धुंगरी थांडी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम अपने भट्ठे से एक ऑटोरिक्शा में यहां आए हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि कौन सी ट्रेन हमें लेकर जाएगी. कोई हमें नहीं बता रहा है. वो कह रहे हैं कि अगले दो दिन तक कोई ट्रेन ओडिशा नहीं जाएगी.’

थांडी के साथ अलग अलग भट्ठों के करीब 30 मज़दूर और थे और वो सब घर पहुंचने के लिए बेचैन थे. और उनमें से अधिकतर यही राग अलाप रहे थे- हम कभी वापस नहीं आएंगे.

भट्ठा मालिक भी मजबूर

कोंगारा कलां के पास के एक भट्ठे (उससे अलग जिसके मज़दूरों का हमने ऊपर हवाला दिया है) के मालिक, चिवम प्रसाद ने दिप्रिंट को बताया, कि अगर मज़दूर लौटकर नहीं आए, तो इस धंधे में एक करोड़ रुपए लगाने के बाद, सरवाइव करने के लिए उन्हें कोई दूसरा पेशा इख़्तियार करना पड़ेगा.

प्रसाद के भट्ठे पर एक मज़दूर को 1,000 ईंटें बनाने के 250 रुपए मिलते हैं. उन्होंने बताया, ‘चार लोग मिलकर साल भर में 5 लाख ईंटें बना लेते हैं. लेकिन इस साल वो सिर्फ 3 लाख ईंटें बना पाए, और वो भी बहुत मुसीबतों के साथ.’

प्रसाद ने कहा, ‘लॉकडाउन की वजह से हमें प्रोडक्शन के लिए कोई सीमेंट या ज़िंक नहीं मिला, और अब जब वो मिल सकता है, तो मज़दूर जाने के लिए बेताब हैं.’

उन्होंने ये भी कहा कि अगले साल तक, अगर कोविड-19 का कोई टीका नहीं आया, तो मज़दूर वापस नहीं आएंगे, और ये उद्योग, जो पहले ही मार झेल चुका है, पर्याप्त लेबर के बिना सरवाइव नहीं कर सकता, चूंकि ये असंगठित क्षेत्र में आता है.

रंगारेड्डी ज़िले में ही टुक्कूगुड़ा के एक भट्ठा मालिक वी सांभ्या ने कहा, ‘हम अपनी ओर से (मज़दूरों के लिए) पूरी कोशिश कर रहे हैं. लेकिन एक सीमा के बाद हम भी लाचार हैं. हमें सरकार से कोई सब्सिडी नहीं मिलती.’

सांभ्या ने ये भी कहा कि उन्हें डर है कि अगर मज़दूर अगले साल वापस नहीं आए, तो इंडस्ट्री ज़्यादा समय तक नहीं बचेगी.

‘ईंटें बनाने और उन्हें रखने के लिए, कुशल मज़दूरों की ज़रूरत होती है, इसलिए हम काफी हद तक उन पर निर्भर होते हैं.’

करीम नगर के एक भट्ठा मालिक मरियन रेड्डी ने बताया कि उन्हें भी काफी नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हमें मजबूरन एक पखवाड़े तक काम बंद रखना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से, हमारे पास पर्याप्त मटीरियल सप्लाई नहीं थी.’

करीम नगर के ही एक और भट्ठा मालिक, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, का कहना था, ‘ईंट भट्ठा इकाई क्या करेगी, बिना अपने मज़दूरों के, बिना बेसिक मटीरियल के, बिना खरीदारों के? बाज़ार पर भी असर पड़ा है. निर्माण कार्य तो वैसे ही रोक दिए गए थे, इसलिए खरीदार भी आगे नहीं आ रहे हैं.’

हाई कोर्ट का आदेश

तेलंगाना हाईकोर्ट ने श्रम उप-आयुक्तों को आदेश दिया, कि ईंट भट्ठों का मुआयना करके पता लगाएं कि वहां कितने लोग अभी भी काम पर लगे हैं, और कितने लोग अपने राज्यों को लौटना चाहते हैं. साथ ही कोर्ट ने उनके ट्रांसपोर्ट और भोजन के लिए, ज़रूरी बंदोबस्त करने का भी आदेश दिया.

कोर्ट ने ये निर्देश एक रिटायर्ड प्रोफेसर और मानवाधिकार मंच के सदस्य, एस जीवन कुमार रेड्डी की याचिका पर जारी किए, जिसमें ईंट भट्ठा मज़दूरों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया था, जो या तो हाईवेज़ पर फंसे हुए थे, या भट्ठा मालिकों ने उन्हें, घर वापसी के लिए यूं ही छोड़ दिया था.


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याचिका में मांग की गई थी कि ईंट भट्ठों, और उनके मज़दूरों का लिखित हिसाब किया जाए, उनके लिए भोजन और शेल्टर की सुविधा दी जाए, और जो उनके ऊपर खर्च डाले बिना, उन्हें ओडिशा भेजने का प्रबंध किया जाए.

याचिका का संज्ञान लेते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट बेंच ने कहा कि ये सुनिश्चित करना राज्य सरकार का कर्तव्य है कि रेलवे या स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की ओर से, मज़दूरों से कोई किराया न वसूला जाए. कोर्ट ने एडवोकेट जनरल बी एस प्रसाद को निर्देश दिया कि 9 जून को होने वाली अगली सुनवाई पर, एक कार्रवाई रिपोर्ट पेश की जाए.

बेंच ने ये भी कहा कि ज़्यादातर प्रवासी मज़दूर, निरक्षर और गैर-तेलुगू भाषी हैं, इसलिए सरकार को श्रमिक ट्रेनों या सरकारी बसों के लिए, एक सरल पंजीकरण प्रक्रिया विकसित करनी चाहिए. कोर्ट ने सरकार को ये भी निर्देश दिया कि रेलवे के साथ समन्वय करके उससे अनुरोध करे कि दूसरे राज्यों के लिए भी, श्रमिक ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाए.

कोर्ट ने सरकार से ये भी कहा कि अभी और भविष्य में, प्रवासी मज़दूरों के साथ डील करने के लिए, एक ‘व्यापक नीति’ तैयार करे, क्योंकि ‘राज्य या देश के ऊपर, बिना बताए कभी भी आपदा आ सकती है’.

श्रम विभाग के इंतज़ाम

संयुक्त श्रम आयुक्त चतुर्वेदी ने कहा, कि श्रमिकों के कल्याण के लिए, उनका विभाग ‘सभी उपाय कर रहा है’.

चतुर्वेदी ने बताया, ‘एक दिन बाद उच्च-स्तरीय बैठक होने जा रही है, और हम इंतज़ार कर रहे हैं कि डिवीज़नल कमिश्नर, अपने क्षेत्रों में भट्ठों के आंकड़े जमा करें, ताकि हम ट्रांसपोर्ट का बंदोबस्त कर सकें.’ उन्होंने आगे कहा कि जब तक मज़दूर फंसे हुए हैं, खासकर गर्भवती महिलाएं और बच्चे, उन्हें सरकारी कैम्पों में रखा जाएगा, और मुनासिब भोजन दिया जाएगा.

चतुर्वेदी ने कहा कि श्रम विभाग के एक सर्वे के मुताबिक, 23,000 भट्ठा मज़दूर सरकार की ओर से चलाई गई ट्रेनों के ज़रिए, पहले ही जा चुके हैं.

उन्होंने बताया, ‘हमने इन भट्ठों के मालिकों से भी बात की है और वो भी अपने मज़दूरों के लिए निजी वाहनों का इंतज़ाम करने को तैयार हैं, ताकि इसमें और देरी न हो.’ उन्होंने आगे कहा कि एक विकल्प ये भी है कि भट्ठा मज़दूरों के लिए स्पेशल ट्रेनों में दो या तीन डिब्बे जोड़ दिए जाएं.

इस बारे में पूछे जाने पर कि मज़दूरों के इन बयानों से कि वो कभी तेलंगाना वापस नहीं आएंगे, ईंट इंडस्ट्री को नुकसान होगा, चतुर्वेदी ने कहा, ‘हमारे पास परामर्श इकाइयां हैं और हम प्रवासियों को स्थिति के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं. हम बस यही कर सकते हैं, क्योंकि घबराहट बहुत फैली हुई है. हमें उम्मीद है कि कोविड के बाद, ये सब आशंकाएं भी मंद पड़ जाएंगी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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