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Friday, 26 April, 2024
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सुनामी, आग, बाढ़, कोविड- एक आईएएस अधिकारी जिसने तमिलनाडु में आई हर आपदा से लड़ाई में नेतृत्व किया

2004 की महासुनामी के समय डॉ. जे. राधाकृष्णन इससे बुरी तरह प्रभावित नागपट्टिनम में कार्यरत थे और 2015 में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान वे राज्य के स्वास्थ्य सचिव थे. अब वह एक और 'अनदेखे दुश्मन' कॉविड-19 से लड़ रहे हैं.

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चेन्नई: मई महीने की शुरुआत में जब तमिलनाडु महाराष्ट्र के बाद देश में सबसे ज़्यादा कोविड-19 मामलों वाला राज्य बन चुका था तो आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ माने जाने वाले डॉ. जे. राधाकृष्णन को इस वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई में राज्य का नेतृत्व करने के लिए ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन (जीसीसी) के विशेष नोडल अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था.

53 वर्षीय डॉ. राधाकृष्णन के लिए आपदा प्रबंधन एवम् राहत का कार्य कोई नई ज़िम्मेदारी नहीं है. 2004 में आई विनाशकारी सुनामी के समय वे इससे सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक नागपट्टिनम के जिला कलेक्टर थे. उस वक्त उनके द्वारा किए गये राहत कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया था. 2005 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उनके सुनामी राहत कार्य मे दिखाए गये प्रशासनिक कौशल की काफी प्रशंसा की थी.

डॉ. राधाकृष्णन ने भारत में युनाइटेड नेशन्स डेवेलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के आपदा प्रबंधन दल का भी नेतृत्व किया है. सुनामी के दौरान राहत कार्यों की अग्रणी पंक्ति में रहने के अलावा डॉ. राधाकृष्णन 2015 में चेन्नई में आई भीषण बाढ़ के दौरान राज्य के स्वास्थ्य सचिव भी थे. 2004 मे हीं कुंभकोणम के एक स्कूल में लगी आग– जिसमें 94 छात्र जल गये थे- के बाद भी उन्हे हीं आपदा प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दी गयी थी.

तमिलनाडु में दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ रहे कोविड-19 के मामलों के साथ केवल चेन्नई शहर में संक्रमित रोगियों की संख्या 20,000 के करीब हो चुकी है, ऐसे में डॉ. राधाकृष्णन फिर एक बार इसके प्रबंधन दल की अग्रिम पंक्ति में हैं. हालांकि उनके स्वयं के शब्दों में, इस बार उनका सामना एक ‘अनदेखे दुश्मन’ से है.

‘आपदाओं की तुलना नहीं हो सकती’

तकरीबन 6 फीट से अधिक लंबे डील-डौल के साथ एक छरहरे बदन वाले डॉ. राधाकृष्णन के बड़े करीने के साथ कंघी किए गये बालों और पेंट के अंदर सलीके से दबाए गये शर्ट को देखकर कोई भी यह अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि यह शख़्श सुबह 5 बजे से ड्यूटी पर है. दिप्रिंट के साथ बातचीत में वे बताते हैं कि आजकल उनका दिन सुबह 5-5.30 के बीच शुरू होता है और रात 11.00 बजे जाकर समाप्त होता है.

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वह प्रतिदिन दो बार दौरे पर जाते हैं- एक बार सुबह में और फिर दोपहर बाद. बे कहते हैं, ‘मैं फील्ड में जाने के बीच में एक ब्रेक लेता हूं क्योंकि मैं एक कंटेनमेंट जोन से सीधे दूसरे कंटेनमेंट जोन में जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहता. यही कारण है कि मैं हरेक दौरे के बाद कार्यालय वापस आता हूं, स्नान करता हूं, बैठकों में शामिल होता हूं और फिर से फील्ड में वापस जाता हूं.’


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जीसीसी के लिए विशेष नोडल अधिकारी के रूप में कार्य करने के अलावा, डॉ. राधाकृष्णन राजस्व, प्रशासन, और आपदा एवं राहत प्रबंधन के प्रमुख सचिव भी हैं.

पिछली आपदाओं से निपटने के दौरान सीखे गए सबकों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘किन्ही भी दो आपदाओं की एक-दूसरे से तुलना नहीं की जानी चाहिए, वे सब अपने आप मे अनोखे होते है.’ इसके बाद उन्होंने बताया कि क्षेत्र में व्यापक रूप से किए गये कार्य और विशेषज्ञों से मिली सलाह हमेशा मदद करती है.

2004 की सुनामी के बारे में बताते हुए, डॉ. राधाकृष्णन कहते हैं कि यह एक ऐसी आपदा थी जिसके बारे में पहले कभी नहीं सुना गया था. ‘पहले मैं तंजावुर का कलेक्टर था और उसके बाद मुझे नागपट्टिनम का प्रभार दिया गया था. वहां आपदा प्रबंधन का कार्य संसाधनों की क्षतिपूर्ति और जनजीवन को वापस पटरी पर लाने पर केंद्रित था, जबकि चेन्नई की बाढ़ के दौरान डेंगू या दस्त जैसी बीमारी के प्रसार का ख़तरा भी था. हालांकि, कोरोनावायरस तो एक अनदेखा दुश्मन है.’

वे मानते हैं कि पिछली आपदाओं से निपटने का अनुभव लोगों को किसी भी स्थिति से निपटने और दूसरों को प्रेरित करने की ताकत प्रदान करता है, फिर भी उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि कोविड-19 के मामले में हर दिन नया होता है और उसी अनुसार काम करना होता है.

चेन्नई में कोविड से निपटने का अनुभव

1992 बैच के आईएएस अधिकारी, डॉ. राधाकृष्णन को चेन्नई में कोविड-19 के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में सबसे आगे रहने का जिम्मा सौंपा गया है. डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि सघन आबादी वाले नगर चेन्नई में इस संक्रामक वायरस से निपटने के लिए एक ‘माइक्रो प्लान’ की जरूरत है. वह थिरु वी का नगर, टोंडियारपेट, रोयापुरम और तेन्नमपेट जैसे क्षेत्रों में अधिक संख्या में मिल रहे कोविड- 19 के मामलों पर कड़ी नजर रखते हैं. वे कहते हैं, ‘अभी हम संक्रमण के उस चरण में हैं जिसे मध्य चरण (मिडल फेस) कहा जाता है’.

अपनी कार्यप्रक्रिया को समझाते हुए उन्होंने बताया कि जीसीसी ने घनी आबादी वाले इलाकों में घर-घर जाकर थर्मल स्क्रीनिंग करने के लिए विशिष्ट लोगों को नियुक्त किया है. साथ ही घनी आबादी वाले आठ क्षेत्रों में रहने वाले करीब 3 लाख से अधिक लोगों के अनिवार्य परीक्षण का भी लक्ष्य रखा गया है.

नियमित रूप से परीक्षण, ट्रेसिंग (अनुरेखण) और क्वारेंटाइन के अलावा, राधाकृष्णन जमीनी स्तर पर काम करने और बनाई जा रही योजनाओं को सही तरह से लागू करने में मदद करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को जोड़ने में भी विशेष रूप से विश्वास करते हैं.

उन्होंने 26 लाख से अधिक लोगों को निशुल्क मास्क बांटने, शहर भर में बुखार के मामलो के लिए विशेष शिविर बनाने और प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाली दवाओं जैसे कि जिंक टैबलेट और आयुर्वेदिक/ सिद्धा दवाओं को उपलब्ध करवाने जैसे उपायों के बारे में भी बात की. उन्होंने बताया कि जीसीसी डिस्पेंसरी से दवा लेने वाले डेढ़ लाख बुजुर्गों की पहचान करने और उनकी जांच करने के प्रयास पर काफी जोर दिया गया. उनके अनुसार ‘हमारा मुख्य उद्देश्य उन्हें वायरस के प्रति सुरक्षा आवरण प्रदान करना है.’


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इस आरोप के बारे में पूछे जाने पर कि क्या चेन्नई ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के प्रयास काफी देर से शुरू किए, उन्होंने कहा कि इस वक्त इसका पीछे मुड़कर विश्लेषण करना बहुत ही अनुचित होगा क्योंकि इससे कर्मचारियों, विशेष रूप से अगली पंक्ति में लगे हुए कर्मचारियों, का मनोबल ध्वस्त होता है.

कोआंबेडु क्लस्टर के कोविड पर प्रभाव के बारे में बात करने पर, डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि किसी एक घटना पर विशेष रूप से महत्व देना ठीक नहीं है, लेकिन यह महसूस करने की ज़रूरत है कि जहां एक साथ 20 से अधिक लोग इकट्ठा होते हैं वहां सभी लोगों को अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले व्यवहार को अपनाने की आवश्यकता होती है.

वे कहते हैं, ‘हर किसी को हर समय मास्क पहनना चाहिए, विशेष रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण पलों के दौरान. इसके अलावा बात करते समय इसे कभी भी नहीं हटाएं. हर समय स्वच्छता मानकों का पालन करें और आपस मे पर्याप्त दूरी बनाए रखें.’

उन्होंने विशेष रूप से यह भी रेखांकित किया कि कोविड-19 के साथ हो रही लड़ाई मे किसी भी लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं है, इस बीमारी की एक अपनी जिद्द है.

इस बीमारी के किसी संभावित टीके के बारे में बात करते हुए, इस आईएएस अधिकारी का कहना था कि इस बात को चिकित्सकों और महामारी विज्ञानियों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.

पेशेवर रूप से एक प्रशासक होने के साथ-साथ डॉ. राधाकृष्णन एक कुशल पशुचिकित्सक भी हैं और उनके पास आनुवांशिकी में स्नातकोत्तर उपाधि भी है. फिर भी, उनका मानना ​​था कि उनका वर्तमान कर्तव्य ‘बीमारी से निपटने और इसके निवारण के तरीकों को अपनाने’ तक ही सीमित है.

‘आपदा प्रबंधन रणनीति को लागू करने के सबक’

डॉ. राधाकृष्णन को तमिलनाडु के दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के भरोसेमंद अधिकारी के रूप में जाना जाता था और उन्होंने ही सुनामी के बाद उन्हें नागपट्टिनम का कलेक्टर नियुक्त किया था.


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सुनामी के बारे में बात करते हुए, राधाकृष्णन ने अत्यंत भावुकता के साथ जिस एक बात का पूरे जोशोखरोश से उल्लेख किया वह है नागपट्टिनम के लोगों का लचीलापन. वे कहते हैं, ‘मैं अभी भी उस खूबसूरत जगह पर जाता रहता हूं, हर बार जब मैं वापस वहां जाता हूं तो बहुत कुछ सीखने को मिलता है.’

डॉ. राधाकृष्णन ने आपदाओं से निपटने के अपने कई अनुभवों से जो प्रमुख सबक सीखे हैं, उन्हें वे कुछ इस तरह सूचीबद्ध करते है. उनके अनुसार, सबसे पहला है एनजीओ-सरकार का समन्वय, फिर होता है लोगों की भागीदारी और लोगों के लचीलेपन की शक्ति को समझना, अंत में आता है, सामूहिक कार्य (टीम-वर्क), सकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले कार्य और सामान्य बुद्धि वाले काम करना.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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