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Monday, 23 December, 2024
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नई संसद भवन से लेकर ‘सेंगोल’ तक— दिल्ली का CR पार्क दुर्गा पूजा पंडाल बंगाल का अनुभव कराता है

पूजा समिति के अध्यक्ष कहते हैं, “'हमारे पास पहले सोमनाथ मंदिर और यहां तक ​​कि राम मंदिर का एक मॉडल भी था. लेकिन हमने सोचा कि पंडाल को हमारे लोकतंत्र के मंदिर को समर्पित क्यों नहीं किया जाए?”

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नई दिल्ली: अंतरिक्ष शटल की आकृति से लेकर मंदिर के डिजाइन तक, दिल्ली का बंगाली समुदाय इस साल दुर्गा पूजा पंडालों के लिए कल्पना की सीमाओं को आगे बढ़ा रहा है. चितरंजन पार्क दुर्गा पूजा समिति ने इसी से प्रेरणा लेते हुए पूजा पंडाल के लिए भारत के नए संसद भवन का डिजाइन अपनाया है.

लगभग 50 लाख रुपये के बजट के साथ, इलाके के ब्लॉक B में यह पंडाल बनाया गया है. यहां बड़ी संख्या में बंगाली समुदाय के लोग रहते हैं. बड़ी संख्या में आगंतुकों को लुभाने वाले इस पंडाल को 70 फुट ऊंचा बनाया गया है. हर साल बड़ी संख्या में लोग जश्न मनाने के लिए चितरंजन पार्क आते हैं. दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा वार्षिक उत्सव माना जाता है.

समिति के अध्यक्ष अमित रॉय ने दिप्रिंट से कहा, “हमारे पास सोमनाथ मंदिर और यहां तक ​​कि राम मंदिर का भी मॉडल था. लेकिन इस साल हमने सोचा क्यों न इस पंडाल को हमारे लोकतंत्र के मंदिर को समर्पित किया जाए? इस तरह हमने नए संसद भवन पर ध्यान केंद्रित किया.”

पंडाल के सामने वाले हिस्से का आकार नए संसद भवन के मुख्य प्रवेश द्वार जैसा है. द्वार के शीर्ष पर राष्ट्रीय प्रतीक की प्रतिकृति है जिसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है. नए संसद भवन में केंद्रीय फ़ोयर के शीर्ष पर राष्ट्रीय प्रतीक अंकित किया गया है.

हालांकि, इसकी सबसे बड़ी विशेषता ‘सेंगोल’ की उपस्थिति है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2023 में नई संसद में ‘सेंगोल’ को स्थापित किया था.

पंडाल के अंदर बीआर अंबेडकर और मराठा राजा शिवाजी जैसे प्रतीकों की नक्काशीदार कलाकृति और छवियों के साथ भारत के नेताओं और राजाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है. इसके अतिरिक्त, हिंदू धार्मिक ग्रंथ विष्णु पुराण के एक प्रसंग समुद्र मंथन का एक दृश्य भी दिखाया गया है.

सितंबर 2023 से कम से कम 50 कारीगर और मजदूर पंडाल बनाने के लिए काम कर रहे हैं.

रॉय कहते हैं, “दुर्गा पूजा के आयोजन का यह हमारा 48वां साल है और जैसे-जैसे हम अपनी स्वर्ण जयंती के करीब पहुंच रहे हैं, हमारा उद्देश्य बड़ा और बेहतर होते जाना है.”

The entrance to the pujo pandal | Tina Das/ThePrint
दिल्ली के सीआर पार्क में नए संसद भवन की तरह बनाया गया पूजा पंडाल | फोटो: टीना दास | दिप्रिंट

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रचनात्मक विचार

नए संसद भवन की छवि में एक पंडाल बनाने का विचार सबसे पहले पूजा समिति के महासचिव आशीष शोम ने दिया था और लगभग हर कोई तुरंत सहमत हो गया. यह हर साल नए और चुनौतीपूर्ण पंडाल थीम रखने के समिति के दृष्टिकोण में फिट बैठता था.

दो महीने पहले दिल्ली पंडाल बनाने आए बंगाल निवासी पंकज कहते हैं, “इस पंडाल के डिज़ाइन का प्रयास कोलकाता में भी नहीं किया गया है. मैं इसे बनाकर खुश हूं.” 

अतीत में, लोगों ने वन-थीम वाले पंडाल पर रखे पेड़ की शाखाओं पर धागे बांधने की भी कोशिश की थी. एक और साल, पंडाल बंगाल की पुरानी विरासत ठाकुरबारी या जमींदारी घरों की प्रतिकृति था.

पूजा समिति के कार्यकारी सदस्य कृष्णा चटर्जी 1978 की उस भयानक घटना को याद करते हैं जब पूरे पंडाल में आग लग गई थी और आयोजकों को भारी नुकसान हुआ था. अन्य तीन पंडालों के प्रबंधकों ने अपना भोग B ब्लॉक पूजा समिति को भेज दिया और एकजुटता दिखाते हुए अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए.

दिल्ली का ‘मिनी बंगाल’ कहे जाने वाले सीआर पार्क में चार प्रमुख पूजा पंडाल हैं. इस साल मेला मैदान में बुद्ध थीम वाला पंडाल बनाया गया है.

सीआर पार्क में दुर्गा पूजा की योजना जून में शुरू होती है. B ब्लॉक पूजा समिति थीम आधारित विस्तृत पंडालों की बंगाली अवधारणा शुरू करने वाली पहली समिति थी. अब, यह एक पूर्ण रचनात्मक प्रतियोगिता है.

सीआर पार्क मार्केट नंबर 1 से लगभग 400 मीटर की दूरी पर स्थित, पूजा मैदान एक तरफ घरों और दूसरी तरफ सड़क के बीच स्थित है. मूर्ति विसर्जन के लिए अपने स्वयं के गड्ढे, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक विशाल मंच और सामान्य भोजन स्टालों, गुब्बारे फेरीवालों, खिलौने विक्रेताओं के साथ, पूजा मैदान अपने आप में एक बंगाल है.

समिति के सदस्य सायन आचार्य कहते हैं, “अंतिम चार दिनों में लोग जो देखते हैं वह वास्तव में महीनों की कड़ी मेहनत और यहां तक ​​कि रातों की नींद हराम करने का परिणाम है. पूजा एक भावना है.”

‘उत्सव जरूरी है’

जबकि सीआर पार्क उत्सवों में डूबा हुआ है, इलाके के कुछ लोग दीर्घकालिक चिंता का सामना कर रहे हैं. समान्य लोग अब बंगाली परंपरा को जारी रखने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. पूजा समिति के साथ लगभग 33 साल जुड़े रहने के बाद रॉय अब सेवानिवृत्त होने के करीब हैं.

हालांकि, समिति के एक युवा सदस्य पुष्कर बसु का कहना है कि लोग अब पहले की तुलना में अधिक पंडाल में आ रहे हैं. पुष्कर कहते हैं, “सोशल मीडिया इसे दिलचस्प और रचनात्मक बनाने में मदद करता है और अधिक युवाओं को पूजा का अनुभव लेने के लिए प्रेरित करता है.”

जैसे-जैसे शाम करीब आती है, समिति के सदस्य अपने कामों में लग जाते हैं: आनंद मेला या मेले का आयोजन करना, नियोजित प्रतियोगिताओं के लिए उपहार पैक करना, काम में कड़ी मेहनत करने वाले लोगों की निगरानी करना, पंडाल के आंतरिक गर्भगृह को डिजाइन करना जहां देवी दुर्गा की मूर्तियां और अन्य चीजें हैं. 

शाम को एक महिला नृत्य प्रतियोगिता के बारे में पूछताछ करने के लिए आती है. समिति के एक सदस्य बताते हैं, “गाने केवल बांग्ला में हो सकते हैं.” सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्देश्य गीतों और नृत्य प्रदर्शनों के माध्यम से बंगाली संस्कृति को बढ़ावा देना है. यह कार्यक्रम पूजा समारोहों के साथ-साथ चलता है और सामुदायिक निर्माण में योगदान देता है. पूजा मैदान पर पेंटिंग, शंख बजाना, अल्पना (फर्श कला) और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं.”

पंडाल में आई एक महिला कृष्णा चटर्जी कहती हैं, “सप्तमी से दशमी तक हमारे घरों की रसोई बंद रहती है. आप हमें यहीं पाएंगे.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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