नई दिल्ली: कई सालों से भारत की गायों को कम उत्पादकता के लिए बदनाम किया जाता रहा है. लेकिन इस बार गायों ने दुग्ध उत्पादन के मामले में न केवल भैंसों को पीछे छोड़ दिया है, बल्कि भारत के कुल दूध उत्पादन को रिकॉर्ड स्तर पर लाने में भी मदद की है.
पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में, भारत ने 209 मिलियन टन (प्रोविजनल डेटा) का सर्वकालिक उच्च दूध उत्पादन दर्ज किया, जिसमें से आधे से अधिक हिस्सा गायों का है.
दूध उत्पादन के मामले में अभी तक भैंस प्रमुख उत्पादक थी. उदाहरण के लिए 2016-17 में कुल 165.4 मिलियन टन दूध उत्पादन में भैंसों की हिस्सेदारी लगभग 49.2 प्रतिशत थी, जबकि गायों ने 47.3 प्रतिशत और बकरियों ने 3.5 प्रतिशत उत्पादन किया था.
लेकिन अब डेटा से पता चलता है कि देश में 2020-21 में कुल 209.96 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ है, जो पांच साल पहले की तुलना में 27 फीसदी ज्यादा है. इसमें से गायों की 51 प्रतिशत, भैंसों की 45 प्रतिशत और बकरियों की 3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
एक डेयरी किसान के नजरिए से गाय अब एक अधिक आकर्षक विकल्प बन रही हैं और इसका श्रेय क्रॉस ब्रीडिंग को जाता है.
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गायों के दूध उत्पादन में वृद्धि का कारण
गायों के दूध उत्पादन में इस वृद्धि का क्या कारण है? अगर हम भारत में गायों की नस्लों पर नजर डाले तो एक दिलचस्प प्रवृत्ति का पता चलता है.
मोटे तौर पर भारत में गायों की चार नस्ले हैं: देशी, नॉनडिस्क्रिप्ट, क्रॉस ब्रीड और विदेशी.
2020-21 में गायों के दूध उत्पादन (कुल 51 प्रतिशत) में देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट गायों का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि बाकी बचे 31 फीसदी में क्रॉस ब्रीड गायों (28 प्रतिशत) और विदेशी गायों (3 प्रतिशत) की हिस्सेदारी रही. यानी बाद की दो नस्ल ही कुल उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार रही हैं.
2016-17 में इन गायों ने देश की दूध की कुल मांग का 26.5 प्रतिशत पूरा किया. 2020-21 तक यह संख्या बढ़कर 31 फीसदी हो गई थी.
लेकिन देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट गायों का हिस्सा कमोबेश एक जैसा ही रहा (पूरे समय में 20 प्रतिशत). इसका सीधा सा मतलब है कि इनकी आबादी को देखते हुए दुग्ध उत्पादन में विदेशी और संकर नस्ल की गायों का हिस्सा अधिक है.
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, विदेशी और क्रॉसब्रेड गायें भारत की दुधारू मवेशियों की आबादी का लगभग 20.5 प्रतिशत हैं. इसके बावजूद वे 28 प्रतिशत दूध उपलब्ध कराती हैं.
दूसरी ओर देसी देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट कुल दुधारू आबादी का 38 प्रतिशत हैं और दूध की आपूर्ति में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 20 प्रतिशत ही है.
2014 में भारत सरकार ने किसानों को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के लिए 5,000 रुपये की सब्सिडी देकर स्वदेशी मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया था. साथ ही सिर्फ ‘फीमेल बोवाइन एनिमल्स’ पैदा करने के लिए सेक्स-सॉर्टेड सीमन पर भी ध्यान दिया गया ताकि मवेशियों में निवेश करने में होने वाले रिस्क को कम किया जा सके.
डीएएचडी की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में सेक्स-सॉर्टेड सीमन उत्पादन तकनीक को देशी नस्लों के मवेशियों जैसे कि लाल सिंधी, थारपारकर, साहीवाल, गिर आदि के लिए विकसित किया गया है’ रिपोर्ट में इस बात की ओर इशारा किया गया कि कुछ उच्च गुणवत्ता वाली देशी नस्लें बेहतर उत्पादन करती हैं.
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बोवाइन बिजनेस का अर्थशास्त्र
डीएएचडी के आंकड़े बताते हैं कि औसतन एक क्रॉस ब्रीड गाय रोजाना लगभग 7 से 8 किलोग्राम दूध देती है. यह आंकड़ा देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट देसी गायों की तुलना में दोगुने से भी अधिक है, इन गायों का दूध देने का औसत प्रति दिन 2.4-3 किलोग्राम है.
हालांकि विदेशी गाय सबसे अधिक दूध देने वाली नस्लों में से है. लेकिन दुग्ध उत्पादन में इनके योगदान का आकड़ां सिर्फ इकाई अंक तक सिमट जाने का कारण इनके स्पेशल ट्रीटमेंट से जुड़ा है. इन अंतरराष्ट्रीय किस्मों की गायों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है. ये गायें बीमारी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं. विदेशी गाय औसतन प्रतिदिन 9 किलो से ज्यादा दूध देती हैं.
बस इसी वजह से क्रॉस ब्रीड गायों को इन दोनों नस्लों से बेहतर माना जाता है. ये देसी गायों की तुलना में ज्यादा दूध देती हैं. और विदेशी गायों की तुलना में इनका रखरखाव भी आसान होता है.
एनडीआरआई के डेयरी अर्थशास्त्र, सांख्यिकी और प्रबंधन विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक चंदेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘क्रॉसब्रीड आबादी और इसके दूध उत्पादन की बढ़ी हुई हिस्सेदारी, बेहतर अर्थव्यवस्था और सरकार द्वारा इस तकनीक के प्रचार के पीछे जोर देने के कारण हुई है.’
उन्होंने कहा, ‘दूध उत्पादन के नजरिए से देखें तो क्रॉस ब्रीड में निवेश किए गए प्रति रुपये का रिटर्न सबसे अधिक है, खासकर उसके मां बनने के बाद के पहले पांच महीनों के दौरान.’
बोवाइन पशुओं की जनसंख्या में वृद्धि डेयरी व्यवसाय में इन स्वागत योग्य परिवर्तनों का एक और प्रमाण है. 2012 और 2019 के बीच जब पशुधन की जनगणना के 19वें और 20वें दौर का आयोजन किया गया था, कुल मवेशियों की आबादी (गाय, भैंस, याक और मिथुन) में केवल 1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी. इसमें विदेशी और क्रॉसब्रेड गायों की आबादी में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी जबकि देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट गायों में वृद्धि का प्रतिशत 10 था.
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लेकिन, भैंस अपनी जगह पर बनी रहेंगी!
क्रॉसब्रेड और विदेशी गायों को भारत के दूध उत्पादन को रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचाने का श्रेय दिया जा सकता है, लेकिन भैंस हमेशा से भारत में दूध की आपूर्ति की रीढ़ रही हैं.
डीएएचडी के आंकड़ों के अनुसार, देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट दोनों नस्लों की भैंसों से रोजाना लगभग 4-6 किलोग्राम दूध मिलता है, जो देशी और नॉनडिस्क्रिप्ट गायों की तुलना में कहीं ज्यादा है. गाय की ये नस्लें प्रति दिन लगभग 2.4 से 3 किलोग्राम दूध देती हैं.
दिप्रिंट को पता चला है कि दुग्ध उद्योग में गाय के दूध की ओर यह टेक्टॉनिक बदलाव ज्यादातर उत्पादक की ओर से है, क्योंकि उपभोक्ता अभी भी भैंस के दूध को ज्यादा पसंद करते हैं.
भारत के सबसे बड़े डेयरी सप्लायर अमूल के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि किसान अब क्रॉस ब्रीड गायों की तरफ जाने लगे हैं, क्योंकि ये गाय ज्यादा दूध देती हैं. किसानों के लिए दूध की मात्रा काफी मायने रखती है. अगर आप दूध के ठोस पदार्थों की कुल आपूर्ति को देखें, तो भैंसों की कुल आपूर्ति गायों की तुलना में बहुत अधिक है.’
सोढ़ी ने साफ तौर पर कहा कि उपभोक्ता के नजरिए से भैंस एक पसंदीदा विकल्प है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘ फिलहाल तो हम भैंस के दूध की मांग में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं देख रहे हैं. उपभोक्ता अभी भी गाय की तुलना में भैंस के दूध को ज्यादा पसंद करते हैं. भैंस का दूध मलाईदार और सफेद होता है.’
प्रोफेसर चंदेल इस विचार से सहमत है कि भैंस का दूध लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय है. वह कहते हैं, ‘क्रॉसब्रीड दूध पीने के लिए उपभोक्ताओं का शायद ही कोई झुकाव हो. क्रॉस ब्रीड से उत्पादित अधिकतर दूध को प्रसंस्करण के लिए हलवाई और होटल या रेस्टोरेंट में बेचा जाता है. लिक्विड दूध की खपत ज्यादातर देशी गाय और भैंस से होती है. भैंस के दूध की गुणवत्ता वसा और एसएनएफ (वसा नहीं ठोस) के मामले में काफी बेहतर है.’
प्रोफेसर चंदेल ने नीति निर्माताओं को चेताते हुए कहा कि क्रॉस ब्रीड गायों की उत्पादकता से अंधे न हों, भैंस समान रूप से महत्वपूर्ण हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘ नीति बनाने वालों को संकर गायों से दूध उत्पादन के बढ़े हुए हिस्से को लेकर निश्चिंत नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें भैंसों से दूध और दूध उत्पादों के उत्पादन पर अधिक जोर देना चाहिए. भारतीय परिस्थितियों में इस प्रजाति की ताकत और इसके दूध की गुणवत्ता को ध्यान में रखना होगा. निवेश किए गए प्रत्येक एक रुपये के लिए भैंस के दूध से मिलने वाला रिटर्न क्रॉस ब्रीड (गायों) के बाद दूसरा सबसे अधिक है. दूध से मिलने वाला यह लाभ लेट-लेक्टेशन अवधि में भी जारी रहता है.’
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