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Friday, 19 April, 2024
होमदेशCPI(M) ने पत्र लिखकर मांगा जम्मू-कश्मीर HC के चीफ जस्टिस का इस्तीफा, संविधान को लेकर टिप्पणी पर विवाद

CPI(M) ने पत्र लिखकर मांगा जम्मू-कश्मीर HC के चीफ जस्टिस का इस्तीफा, संविधान को लेकर टिप्पणी पर विवाद

सीपीआई (एम) ने पत्र में लिखा है कि न्यायमूर्ति पंकंज ने 'आरएसएस से जुड़े एक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया... और भारत के संविधान के खिलाफ बात की'

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नई दिल्ली: कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटाने की मांग की है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के चीफ जस्टिस ने संविधान की प्रस्तावना के लिए ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए टिप्पणी की है जिसको लेकर सीपीएम ने उन्हें हटाने की मांग की है.

जस्टिस पंकज मित्तल ने 5 दिसंबर को कहा था कि साल 1976 में संविधान की प्रस्तावना में पहले से ही उल्लेखित ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र’ के साथ ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को जोड़ने से ‘इसकी आध्यात्मिक छवि की विशालता’ कम हो गई.

जस्टिस पंकंज ने ये बातें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अधिवक्ता परिषद द्वारा आयोजित एक समारोह में ‘धर्म और भारत का संविधान: परस्पर क्रिया’ पर मुख्य व्याख्यान देते हुए कही.

सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी के हस्ताक्षर वाले पत्र में लिखा है कि न्यायमूर्ति पंकंज ने ‘आरएसएस से जुड़े एक संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया और भारत के संविधान के खिलाफ बात की’

पत्र में यह भी कहा गया कि ‘जस्टिस पंकंज मित्तल ने शपथ का उल्लंघन किया और उनके द्वारा आयोजित संवैधानिक कार्यालय से समझौता किया’

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पत्र में लिखा गया, ‘हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा देश संविधान खिलाफ दिया गया बयान एक ऐसा अपराध है जिसे माफ नहीं किया जा सकता है. उन्होंने यह बयान ऐसे मंच से दिया जो एक विशेष विचारधारा का प्रचार करता है. यह बयान उनके द्वारा अपने संवैधानिक कार्यों को करने के लिए ली गई शपथ का उल्लंघन है’

जस्टिस पंकंज मित्तल को हटाने की अपील करने वाले येचुरी के पत्र में लिखा था, ‘संविधान के संरक्षक के रूप में, देश के प्रमुख के रूप में और जस्टिस मित्तल के नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि संविधान की पवित्रता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए आप उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया को तुरंत गति दें.’


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‘आध्यात्मिक गणराज्य भारत’

समारोह के दौरान, न्यायमूर्ति मिथल ने कथित तौर पर बताया कि पांडवों, मौर्य, गुप्त और मुगलों या बाद में अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया, लेकिन इसे कभी भी मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में धर्म के आधार पर परिभाषित नहीं किया गया था, क्योंकि इसे एक आध्यात्मिक देश के रूप में स्वीकार किया गया था.उन्होंने आगे कहा कि देश हमेशा आध्यात्मिक रहा है और इसलिए इसका नाम ‘आध्यात्मिक गणराज्य भारत’ होना चाहिए था.

उन्होंने जोर देकर कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़कर, ‘हमने आध्यात्मिक उपस्थिति की अपनी विशालता को संकुचित कर दिया है’, और ‘कभी-कभी, हम अपनी जिद के कारण संशोधन लाते हैं’

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए थे.

न्यायमूर्ति मिथल 1985 में उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल में एक वकील के रूप में शामिल हुए और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अभ्यास करना शुरू किया. उन्हें जुलाई 2006 में उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और जुलाई 2008 में स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी. उन्हें पिछले साल दिसंबर में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए सामान्य उच्च न्यायालय के लिए मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और इसी साल 4 जनवरी को पदभार ग्रहण किया.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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