नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ऋण विवाद को लेकर एक पुलिसकर्मी की हत्या के मामले में तीन व्यक्तियों को सोमवार को बरी कर दिया और कहा कि सबूत ‘अस्पष्ट’ हैं और गवाह ‘बिल्कुल भी विश्वास करने लायक नहीं’ हैं।
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि अपराध का उद्देश्य बिल्कुल भी साबित नहीं हुआ है और ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है, जिससे आरोपियों को दोषी ठहराया जा सके।
पीठ ने कहा कि तीनों आरोपियों में एक अन्य पुलिस अधिकारी की पत्नी, उसका भाई और रिश्तेदार शामिल थे।
पुलिसकर्मी द्वारा ऋण नहीं चुकाने के कारण उसकी हत्या किए जाने की बात कही गई थी।
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के दो गवाह, जिन्हें कथित तौर पर चश्मदीद गवाह बताया गया था, पूरी तरह से मुकर गए।
शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फरवरी 2013 के आदेश को चुनौती देने वाली तीन आरोपियों की अपील पर अपना फैसला सुनाया।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस आदेश के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी थी, जिसमें उन्हें हत्या के अपराध में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह घटना मार्च 2006 में हुई थी, जब आरोपियों ने कर्ज चुकाने के बहाने पुलिसकर्मी को घर बुलाया और उसकी हत्या कर दी।
पुलिस ने दावा किया कि एक आरोपी सीधे पुलिस थाने गया और थाना प्रभारी के सामने अपराध कबूल किया तथा उन्हें अपने घर में शव होने की जानकारी दी।
पीठ ने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने जिन परिस्थितियों पर सबसे अधिक भरोसा किया, उनमें से एक आरोपी द्वारा पुलिस थाने के अंदर विभिन्न व्यक्तियों के सामने कथित तौर पर न्यायेतर स्वीकारोक्ति थी।
पीठ ने कहा, ‘पुलिस थाने में दी गई न्यायेतर स्वीकारोक्ति और जिस संदर्भ में वह दी गई, उन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता।’
बरामदगी के पहलू पर विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि बरामदगी पर ‘अस्पष्ट सबूतों’ के चलते भरोसा नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘अब अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने वाले गवाहों को देखते हुए, हम पाते हैं कि वे बिल्कुल भी विश्वास करने लायक नहीं हैं।’
पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए तीनों की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और उन्हें बरी कर दिया।
भाषा
अमित सुभाष पारुल
पारुल
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